मुद्दा- सोशल मीडिया का एंटीसोशल इस्तेमाल

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मुद्दा- सोशल मीडिया का एंटीसोशल इस्तेमालउपरोक्त तस्वीरों में सिर्फ ये दिखाने की कोशिश की गई है कि कैसे असमाजिक तत्व फोटो शॉप का इस्तेमाल करते हैं।

लखनऊ। लखीमपुर खीरी समेत उत्तर प्रदेश के कई शहरों में वीडियो और आपत्तिजनक तस्वीरों को लेकर विवाद हो चुका है। सोशल मीडिया के दायरा बढ़ने के साथ उसके कई दुश्प्रभाव भी नजर आए हैं, इसमें सोशल मीडिया का एंटी सोशल इस्तेमाल बढ़ा है।

वर्ष 2016 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में कुछ छात्रों के प्रदर्शन का एक वीडियो कई समाचार चैनलों पर दिखाया गया। वीडियो के वायरल होने के बाद जेएनयू के छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।

11 फरवरी 2016 का प्रदर्शन वायरल हुए इस वीडियो में दिखाया जा रहा है, जिसमें कन्हैया और उसके साथी देश विरोधी और भारत को खंड-खंड करने के नारे लगा रहे हैं। इस हंगामे के दूसरे दिन एक और वीडियो सामने आया, जिसमें बताया जा रहा है कन्हैया देश से नहीं बल्कि गरीबी और भुखमरी से आजादी के नारे लगा रहा था। इससे लगता है कि वीडियो में डॉक्टर्ड यानी छेडख़ानी करने की आशंका है।

नरेंद्र मोदी की तस्वीर भी फोटोशॉप की गई थी।

इस वीडियो में 11 फरवरी की तस्वीरें दिखाई जा रही हैं, जबकि ऑडियो नो फरवरी का है। सिर्फ वीडियो ही नहीं कन्हैया की एक फर्जी तस्वीर भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इस तस्वीर में कन्हैया के पीछे भारत का विवादित नक्शा दिखाया गया है। फिलहाल, सच और झूठ का फैसला तो अदालत में होगा, पर जो हकीकत सामने आ रही है, उससे साफ जाहिर है कि कहीं न कहीं सोशल मीडिया का घातक इस्तेमाल हो रहा है।

ये पहली बार नहीं जब सोशल मीडिया पर फोटो, और वीडियो से छेड़छाड़ कर उससे हिंसा और सामाजिक ताने-बाने को तोडऩे की कोशिश की गई है। मुजफ्फरनगर दंगों की वजह, जातीय विवाद के साथ ही एक वीडियो भी बना था, जिसमें एक धर्म विशेष के दो युवकों की पीट-पीटकर हत्या दिखाई गई थी। दंगों की जांच करने वाली एसआईटी ने इसके लिए लापरवाही भरी रिपोर्टिंग के साथ इस वीडियो को भी जिम्मेदार ठहराया था। जांच में पता चला कि वो वीडियो मुजफ्फरनगर तो दूर भारत का भी नहीं था। यानि किसी ने साजिश के तहत उस वीडियो को एडिट कर वायरल किया। इन वीडियो और तस्वीरों का काम सिर्फ लोगों का भावनाओं को भड़काकर अपना हित साधना होता है। इसके लिए तमाम प्रसिद्ध और समाज में अपना दखल रखने वालों की दर्जनों फर्जी आईडी बनाई गई हैं।

फेसबुक और ट्वीटर पर फर्जीवाड़े का शिकार सिर्फ आम लोग ही नहीं होते हैं। गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी इसका शिकार हो चुके हैं। लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद के ट्विटर अकाउंट से जेएनयू छात्रों के समर्थन में जारी ट्वीट पर गृहमंत्री के ट्वीट करने से विवाद हो गया था। बाद में हाफिज सईद ने खुद कहा कि उसने कोई ट्वीट नहीं किया।

दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बीएस बस्सी ने वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार के अकांउट से जारी एक ट्वीटर को कोट करते हुए जवाब दिया। उस ट्वीट में लिखा था, बस्सी जब कहते हैं उनकी कमिटमेंट खाकी के प्रति है तो समझ में नहीं आता, वो वर्दी की बात कर रहे हैं या नेक्कर की। इस पोस्ट में इशारा संघ की तरफ था, जिसके बाद भड़के बस्सी ने भी इसका करारा जवाब दिया, जबकि हकीकत ये थी कि रवीश कुमार पिछले कई महीनों से ट्वीटर पर सक्रिय नहीं है।

एक आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 11 करोड़ बीस लाख फेसबुक यूजर्स हैं और पांच करोड़ बीस लाख ट्विटर यूजर्स हैं। यानि ऐसा कोई भी वीडियो, फोटो या पोस्ट कुछ मिनटों में फेसबुक, ट्वीटर के माध्यम से दुनियाभर में फैलाया जा सकता है।

फोटो के जरिए भी सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाने का काम होता है। कुछ दिनों पहले वायरल हुए एक पोस्ट में टाटा की फोटो के साथ लिखा गया है, तुम गद्दार हो सकते हो, मैं नहीं। इस पोस्ट में मुम्बई के 26/11 के आतंकी हमले के बाद होटल ताज में हुए नुकसान के नवीनीकरण का टेंडर किसी भी पाकिस्तान को न देने की बात टाटा की ओर से लिखी गई है।

जेएनयू विवाद के बाद फेसबुक ट्विटर और व्हाट्सएप पर एक पोस्ट वायरल की जा रही है। इस पोस्ट में कहा गया है कि अब से टाटा कंपनी किसी जेएनयू स्टूडेंट को नौकरी नहीं देगी। नीचे लिखा है जो देश का नहीं हुआ वो कंपनी का क्या होगा। जय हिंद। फोटो तेजी से वायरल हुई तो टाटा ग्रुप ऑफिसयल आईडी से बताया गया कि रतन टाटा ने कोई बयान जारी नहीं किया है। महात्मा गांधी की एक फोटो अक्सर सोशल साइट्स पर छाई रहती है। फोटो में राष्ट्रपिता एक विदेशी महिला साथ नजर आ रहे हैं, जबकि वास्तविक फोटो में महिला की जगह जवाहर लाल नेहरू हैं। यानि फेसबुक से छेडख़ानी के बाद महिला की फोटो पोस्ट की गई है।

कन्हैया के वीडियो से हुई छेडख़ानी?

11 फरवरी 2016 को छात्र नेता कन्हैया का एक वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में दिखाया गया कि कन्हैया जेएनयू कैंपस में कुछ छात्रों के साथ नारे लगा रहा है। इस वीडियो में सुनाई पड़ रहे नारों से यह संदेश गया कि कन्हैया ने देश विरोधी नारे लगाए गए हैं, ये वीडियो समाचार चैनलों और यूट्यूब पर खूब वायरल हुआ, इसी दौरान एक और वीडियो आया जिसमें कहा गया कि नारे देश के खिलाफ नहीं थे। तो सच क्या है? 9 फरवरी को सीपीआई समर्थित छात्र नेता उमर खालिद का देश विरोधी नारे लगाने का वीडियो सामने आया था। दोनों वीडियो देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कन्हैया के वीडियो के साथ छेड़छाड़ की गई है क्योंकि वीडियो में चित्र और आवाज का कोई मेल नहीं दिख रहा था। जिससे लग रहा था की कन्हैया के वीडियो के ऑडियो में किसी और की आवाज का इस्तेमाल किया गया है। हालांकि सच तो कोर्ट में ही साबित होगा।

कन्हैया की तस्वीर से कैसे हुई छेड़छाड़

छात्र नेता कन्हैया को एक तस्वीर में भारत के विवादित नक्शे के साथ दिखाया गया है, लेकिन गाँव कनेक्शन की पड़ताल में इस झूठ का भी पर्दाफाश हुआ है। दरअसल कन्हैया की विवादित नक्शे के साथ दिखाई गई तस्वीर नकली है। अगर ग्राफिक्स की भाषा में समझे तो फोटोशॉप के जरिए किसी भी तस्वीर को मॉर्फ कर अलग तरीके से पेश किया जा सकता है। कन्हैया की असल तस्वीर में पीछे कोई भी विवादित नक्शा है ही नहीं। कन्हैया का मामला पहला ऐसा मामला नहीं, तस्वीरों और वीडियो के साथ छेड़छाड़ से जुड़े कई मामले पहले भी सामने आ चुके हैं जब असामाजिक तत्वों ने देश का माहौल खराब करने की कोशिश की।

रतन टाटा के नाम से फर्जी पोस्ट

जेएनयू विवाद के बाद देश के शीर्ष कारोबारियों में से एक रतन टाटा के एक बयान ने सबको हैरान कर दिया। सोशल मीडिया में

वायरल हुई रतन टाटा की फोटो वाली पोस्ट में लिखा था... टाटा समूह जेएनयू के किसी भी छात्र की सेवा नहीं लेगा। जो देश का नहीं हुआ वो कंपनी का क्या होगा। जयहिंद। इसके बाद अमित गोविंद नाम के एक शख्स ने ट्वीटर पर टाटा ग्रुप से सवाल पूछा, जिसके जवाब में टाटा ग्रुप की अधिकारिक आईडी से बताया गया कि रतन टाटा ने ऐसा कोई बयान जारी नहीं किया है। यहां एक बात और गौर करने वाली है कि रतट टाटा अब सक्रिय रूप से कंपनियों का कामकाज नहीं देखते वो टाटा ट्रस्ट में व्यस्त हैं। टाटा ग्रुप के चेयरमैन साइरस मिस्त्री हैं।

हाफिज सईद के फर्जी ट्वीट पर बवाल

जेएनयू में चल रही राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को लेकर पूरे देश का माहौल बिगड़ा हुआ था। इसी बीच गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अपने बयान से सबको चौंका दिया। गृहमंत्री ने कहा था कि जेनयू के पीछे हाफिज सईद का हाथ है।

बस्सी खा गए चकमा

ऊपर दिख रहा है ट्वीट दिल्ली के पुलिस कमिशनर बीएस बस्सी का है। बस्सी ने पत्रकार रवीश कुमार के फजऱ्ी हैंडिल को असली समझकर उसे रिट्वीट कर दिया था। जबकि रवीश कुमार महीनों से ट्वीटर पर सक्रिय नहीं हैं।

जब फर्जी हैंडिल से किए गए ट्वीट के झांसे में आए गृहमंत्री

गृहमंत्री ने कहा कि जेएनयू में जो राष्ट्रविरोधी गतिविधियां चल रही हैं उसमें लश्कर-ए-तैयबा के मुखिया और मुंबई हमलों के मास्टर माइंड हाफिज सईद का हाथ है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक, राजनाथ सिंह का बयान हाफिज सईद के फर्जी अकाउंट से किए गए ट्वीट के बाद आया था। ये ट्वीट हाफिज सईद के फर्जी ट्विटर हैंडल हाफिज सईद जेयूडी से किया गया था। जबकि हाफिज सईद ने कहा कि उसने कोई ट्वीट नहीं किया। बताया जा रहा है कि कई फर्जी आईडी हैं।

दादरी में बीफ खाने की अफवाह

यूपी के दादरी इलाके में गोमांस खाने की फर्जी अफवाह ने एक परिवार की जिंदगी बर्बाद कर दी। कुछ समुदाय विशेष के 200 लोगों ने मिलकर दादरी के बिसहड़ा गाँव में रहने वाले आखलाक के घर पर धावा बोला और उसकी जान लेली। हादसे के बाद जांच हुई और पता चला कि उसके घर में गोमांस होने के सबूत नहीं मिले। दरअसल इलाके में गोमांस खाने की अफवाह एक वॉट्सएप मैसेज के जरिए वायरल हुई। किसी को नहीं पता ये वॉट्सएप मैसेज किसने वायरल किया। किसी ने भी ना तो इस वॉट्सएप मैसेज को जांचा ना परखा, बस भीड़ के साथ हो लिए और अखलाक की जान चली गई।

संघ कार्यकर्ताओं ने कब दी महारानी को सलामी?

कुछ ही दिनों पहले संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई। तस्वीर में

आरएसएस के कार्यकर्ताओं को ब्रिटेन की महारानी को गार्ड ऑफ ऑनर देते दिखाया गया। दरअसल, ये तस्वीर भी फर्जी थी। इसे फोटोशॉप के जरिए मॉर्फ करके बनाया गया था। ये तस्वीर कुछ इस कदर वायरल हुई है कि कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने अपने सोशल साइट्स पर कटाक्ष करते हुए लिखा कि आरएसएस के स्वयं सेवकों की हकीकत ये है कि वो ब्रिटिश महारानी को सलामी दे रहे हैं और हमें देशभक्ति सिखाने चले हैं।

क्या है आरएसएस के तस्वीर की हकीकत

दरअसल, आरएसएस के कार्यकर्ता न तो कोई सलामी दे रहे थे और ना ही ये फोटो ब्लैक एंड व्हाइट थी। असली तस्वीर रंगीन थी, जिसे छेड़छाड़ के बाद ब्लैक एंड व्हाइट बना दिया गया था। ताकि देखने में ये तस्वीर अंग्रेजों के जमाने की लगे। पहले फोटो को ब्लैक एंड व्हाइट किया गया और फिर ब्रिटिश महारानी की तस्वीर में यह दिखाने की कोशिश की गई कि जैसे ब्रिटिश महारानी आरएसएस स्वयंसेवकों से गार्ड ऑफ ऑनर ले रही हैं।

       

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