वायु प्रदूषण से कम हो सकती है उम्र, उत्तर भारत में सबसे ज्यादा खतरा
गाँव कनेक्शन 1 Nov 2019 11:29 AM GMT
वायु प्रदूषण का असर कितना खतरनाक हो सकता है इस बात को जाहिर करते हुए एक अध्ययन सामने आया है। इस अध्ययन के मुताबिक गंगा के मैदानी इलाकों में वायु प्रदूषण के कारण लोगों की औसत आयु में सात साल कम होने की आशंका है।
यह अध्ययन अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय की शोध संस्था एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट 'एपिक' द्वारा तैयार किया गया है। रिपोर्ट में इस बात का विश्लेषण किया गया है कि वायु प्रदूषण फैलाने वाले पार्टिकुलेट तत्वों का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों तक न होने से इंसानों की औसत आयु पर क्या असर पड़ेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पार्टिकुलेट तत्वों का तय मानक 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है।
रिपोर्ट में उत्तर भारतीय इलाकों में वायु प्रदूषण फैलाने वाले पार्टिकुलेट तत्वों का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों से काफी दूर पाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक,1998-2016 के बीच भारत के गंगा के मैदानी क्षेत्रों में प्रदूषित सूक्ष्म तत्वों और धूलकणों से पैदा 'पार्टिकुलेट पॉल्यूशन' भारत के दूसरे इलाकों से करीब दोगुना ज्यादा है। इसकी वजह से इन इलाकों में रह रहे लोगों की औसत आयु लगभग सात वर्ष तक कम होने की संभावना है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर भारत के क्षेत्र में यातायात, आवासीय और कृषि स्रोतों से ज्यादा प्रदूषण हो रहा है। इसकी वजह से 1998 से 2016 के दौरान गंगा के मैदानी इलाके में वायु प्रदूषण 72 प्रतिशत बढ़ा है। उल्लेखनीय है कि गंगा के मैदानी इलाकों में भारत की लगभग 40 प्रतिशत आबादी रहती है। गंगा के मैदानी इलाके में बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश,पश्चिम बंगाल जैसे साल राज्या और केंद्र शासित प्रदेश आते हैं।
वहीं, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि वायु प्रदूषण से भारत में रहने वाले नागरिकों की औसत आयु में 4.3 साल की कमी आ सकती है। साथ ही रिपोर्ट में भारत के 10 सबसे ज्यादा प्रदूषित क्षेत्र भी बताए गए हैं। इन क्षेत्रों में हापुड़, बुलंदशहर, गाजियाबाद ,गौतम बुद्ध नगर, संभल, अलीगढ़, कासगंज, बागपत, बदायूं और मेरठ शामिल है।
शिकागो विश्वविद्यालय में एपिक के निदेशक डॉ माइकल ग्रीनस्टोन ने वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक की विश्लेषण रिपोर्ट का हिंदी संस्करण जारी करते हुये कहा कि यह रिपोर्ट पार्टिकुलेट तत्वों से जनित वायु प्रदूषण से इंसानी जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों को उजागर करती है। उन्होंने कहा कि इसकी मदद से ऐसी नीतियां बनाने में मदद मिल सकती है जो वायु प्रदूषण के कारण जीवन प्रत्याशा को प्रभावित करने वाले कारकों से निपटने में सक्षम हों।
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