कभी मटके में जाता था टीकाकरण का वैक्सीन!

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कभी मटके में जाता था टीकाकरण का वैक्सीन!विज्ञान और तकनीक के विकास ने हर क्षेत्र में बड़ा बदलाव किया है।

भोपाल (आईएएनएस)। टीकाकरण गर्भवती महिला से लेकर जन्म लेने वाले शिशु को न केवल कई बीमारियों का सुरक्षा कवच देता है, बल्कि परिवार की खुशहाली में मददगार भी होता है। वर्तमान में जब भी टीकाकरण अभियान चलता है, हर तरफ वैक्सिन कैरियर (प्लास्टिक का बड़ा डिब्बा) लिए स्वास्थ्य कर्मी नजर आ जाते है, बहुत कम लोगों को पता होगा कि कभी टीके का वैक्सीन पानी वाले मटकों में दूर-दराज इलाकों तक पहुंचाया जाता था।

विज्ञान और तकनीक के विकास ने हर क्षेत्र में बड़ा बदलाव किया है। इससे स्वास्थ्य जगत भी अछूता नहीं रहा है। तरह-तरह की बीमारियों के साथ उनके उपचार के तरीके और दवाओं की खोज की गई है। उन्हीं में से एक है टीकाकरण। टीकाकरण से जहां कुपोषण और मातृ एवं बाल मृत्युदर में कमी आती है। साथ ही डिप्थीरिया, टीबी, काली-खांसी, टिटनेस, हैपेटाइटिस, पोलियो, चेचक,दिमागी बुखार से बचाया जा सकता है।

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प्रदेश टीकाकरण अधिकारी डॉ. संतोष शुक्ला ने बताया कि दो वर्ष तक की आयु के बच्चों के संपूर्ण टीकाकरण के लिए 'सघन मिशन इंद्रधनुष अभियान' के तहत चार चरण में अभियान चल रहा है। वर्तमान में तीसरा चरण जारी है। टीकाकरण में किसी तरह की लापरवाही न हो और वैक्सीन का भंडारण पर्याप्त रहे इसके लिए विशेष सॉफ्टवेयर का उपयोग होने लगा है। भोपाल या प्रदेश के किसी भी हिस्से से टीकाकरण की स्थिति और वैक्सीन के भंडारण का पता रहता है। वैक्सीन को सुरक्षित रखने के लिए भोपाल से विकासखंड तक पूरी कोल्ड चेन है।

शुक्ला से जब टीकाकरण के बाद बच्चों की तबीयत बिगड़ने का सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि टीकाकरण के बाद आधा घंटे तक बच्चे और उसकी मां को मौके पर ही रोका जाता है, बुखार आना अच्छा संकेत है, उसे पैरासिटामोल दी जाती है। इसके अलावा एएनएम के पास अन्य दवाएं भी होती है। टीकाकरण पूरी तरह सुरक्षित है।

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राज्य के कोल्ड चेन प्रभारी डॉ. विपिन श्रीवास्तव ने बताया, "वैक्सीन को दो से आठ डिग्री सेल्सियस के तापमान के बीच रखा जाता है, इसके लिए भोपाल से विकासखंड स्तर तक पर केंद्र हैं, जहां तापमान नियंत्रित करने के पर्याप्त इंतजाम है, हर जगह फ्रीजर है, वैक्सीन कैरियर (वैक्सीन ले जाने वाला डिब्बा) में भी वैक्सीन सुरक्षित रहे, इसके लिए आईस पैक रखे जाते हैं।"

डॉ. श्रीवास्तव बताते हैं, "अब से लगभग तीन दशक पहले वैक्सीन को सुरक्षित दूरस्थ इलाकों तक पहुंचाना आसान नहीं था। इसके लिए पानी के मटकों में वैक्सीन को रखकर भेजा जाता था। कई बार वैक्सीन पर दुष्प्रभाव की आशंका रहती थी, मगर अब सिस्टम इतना प्रूफ बनाया गया है कि कहीं कुछ भी कमी की सूचना मुख्यालय तक पहुंच जाती है। इसके लिए हर विकासखंड स्तर पर डिवाइस लगाई गई है।"

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डॉ. श्रीवास्तव का कहना है कि टीकाकरण में सूचना प्रौद्योगिकी और तकनीक का भरपूर उपयोग कर वैक्सीन को सुरक्षित रखा जाता है, वहीं कहीं भी भंडारण की कमी न रहे इसमें भी मदद मिलती है। कोल्ड चेन की टीकाकरण में अहम भूमिका है। बिजली का पूरा इंतजाम रहता है। केंद्रों पर वैकल्पिक इंतजाम भी होते हैं, जिससे तापमान नियंत्रित रहता है। तापमान गड़बड़ाने पर डिवाइस केंद्र के प्रभारी से लेकर प्रदेश स्तर तक पर संकेत दे देती है।

यूनिसेफ के संचार विशेषज्ञ अनिल गुलाटी कहते हैं, "शहरी क्षेत्रों से लेकर ग्रामीण इलाके तक में टीकाकरण के प्रति सभी वर्गो में जागृति आ रही है, यह नजर भी आता है। यही कारण है कि गर्भवती माताओं और बच्चों के टीकाकरण का प्रतिशत बढ़ा है। 'सघन मिशन इंद्रधनुष अभियान' इस दिशा में और कारगर साबित हुआ है।"

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बदलते दौर के साथ वैक्सीन को ले जाने के लिए अपनाए जा रहे आधुनिक साधनों ने टीकाकरण को और सुरक्षित बना दिया है। साथ ही लोगों की भ्रांतियां भी दूर हो रही हैं। इसका असर भी हो रहा है। मध्य प्रदेश में बच्चों में प्रमुख बीमारियों का प्रतिशत कम हुआ है और मातृ व मृत्युदर में भी कमी आई है।

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