"महादेव का घर खंडहर बनाने से चुनाव हारी भाजपा"?

जानें बनारस में मंदिर तोड़े जाने और ज्ञानवापी मस्जिद के खतरे में पड़ने के दावों का ज़मीनी सच. विशेष रिपोर्ट:-

Vartika TomarVartika Tomar   12 Dec 2018 10:00 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

उत्तर प्रदेश के गंगा तट पर बसे वाराणसी, या कहें कि बनारस शहर के लगभग हर घर में मंदिर हैं. एक अनुमान के मुताबिक बनारस में कम से कम 23,000 मंदिर होंगे.पिछले कुछ समय से शहर में सरकारी शह पर मंदिर तोड़े जाने की खबरें आ रही हैं. मंदिर बचाओ आंदोलन चलाया जा रहा है. जहाँ कई हिंदू संगठनों से समर्थन प्राप्त उस भारतीय जनता पार्टी की सरकार हो जो अपने चुनावी घोषणा पत्र में अक्सर मंदिर बनवाने का ज़िक्र करती है, वहाँ मंदिर तोड़े जाने की ख़बर पर एक बार भरोसा करना मुश्किल लगा. बनारस के मुसलमानों में भी ज्ञानवापी मस्जिद के एक और अयोध्या बन जाने का डर सामने आया. गाँव कनेक्शन ने मामले की तह तक जाने के लिए पड़ताल की.


वाराणसी या कहें कि बनारस को अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन ने इतिहास से भी पुराना शहर कहा था.

कई धर्मों, संप्रदायों और मान्यताओं को सहजने वाले बनारस में शांति और आध्यात्म की खोज में देश ही नहीं दुनिया भर से लोग आते हैं.

विशेष तौर से हिंदु आस्था के इस केंद्र में काशी विश्वनाथ मंदिर का अपना आकर्षण है तो पास ही बनी ज्ञानवापी मस्जिद की मौजूदगी इस शहर की गंगा-जमुनी तहज़ीब को मज़बूत करती है. यहाँ मंदिर बचाओ आंदोलन करने की नौबत कैसे और क्यों आ गई? मुसलमानों को ज्ञानवापी मस्जिद की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट क्यों जाना पड़ा?

"रोज़ टूट रहे मंदिर"

दुनिया के हर प्राचीन शहर की तरह घनी बसावट और संकरी गलियाँ बनारस में भी हैं. गंगा घाट के पास का निर्माण कई सौ साल पुराना बताया जाता है. इसे पक्कामहाल भी कहा जाता है. इसमें कई घर, मंदिर और धर्मशालाएं शामिल हैं. यही इस इलाक़े की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान भी हैं.

यह भी देखें:- "जितने मंदिर मुगल काल में नहीं टूटे, उतने पिछले पांच साल में टूटे हैं"

लेकिन बढ़ती आबादी और पर्यटकों की आवाजाही को देखते हुए गंगा घाट से विश्वनाथ मंदिर तक रास्ता चौड़ा करने के लिए काशी विश्वनाथ कॉरीडोर की घोषणा की गई. कॉरीडोर में आ रहे इलाक़े को विशेष क्षेत्र घोषित कर तेज़ी से काम हो रहा है.

इस साल परियोजना को मिले 360 करोड़ के बजट में से 190 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं. लेकिन इस सरकारी पहल का शायद हर पहलू उजला नहीं है.


"बनारस में रोज़ मंदिर टूट रहे हैं और रोज़ मूर्तियाँ टूट रही हैं. अब तक हम चुप थे. लेकिन अब हम पूरी दुनिया को बताएंगे कि ये औरंगजेब आ गया है नया." शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी और मंदिर बचाओ आंदोलन के मुखिया स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जब गुस्से से भरी आँखों के साथ गंभीर आवाज में यह बताते हैं तो उन पर अविश्वास करना मुश्किल लगता है.

उन्होंने बताया कि जब राज्य में मुख्यमंत्री मायावती(बसपा) की सरकार थी, तब से बनारस में मंदिर टूटने की शुरुआत हुई. मंदिरों को लेकर आंदोलन शुरू हुआ. मंदिर दोबारा बनाने की माँग उठी. बंगाल की एक रानी द्वारा बनवाया गया रानी भवानी मंदिर बचाने के लिए लिखित प्रस्ताव दिया गया. न्यास परिषद की मीटिंग में यह मुद्दा उठा. आंदोलनकर्ताओं की माँग थी कि रानी भवानी मंदिर को तोड़ा न जाए, तकनीक की मदद से स्थानांतरित कर दिया जाए. लेकिन मंदिर को मलबे में बदला गया. बनारस के लंका थाने में एफआईआर दर्ज हुई. काशी विश्वनाथ मंदिर की मोहर के साथ 203 मूर्तियों की पुर्नस्थापना की माँग की गई.

इसके बाद उत्तर प्रदेश में जब अखिलेश(सपा) सत्ता में तो मामला ठंडे बस्ते में ही रहा.

यह भी देखें:- परम धर्म संसद में बनारस में मंदिर टूटने का मुद्दा गर्म

वह कहते हैं, "योगी आदित्यनाथ( भाजपा) के मुख्यमंत्री काल में अब तक उन 203 मूर्तियों को दोबारा स्थापित नहीं किया गया है बल्कि मंदिर टूटना तेज़ हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र में घोषित काशी विश्वनाथ कॉरीडोर के लिए कई पुराने निर्माण ध्वस्त किए गए. इसकी चपेट में कई घर और मंदिर भी आए."

"एक भी मूर्ती नहीं टूटी"


वाराणसी डेवलेपमेंट अथॉरिटी( वीडीए) की निगरानी में काशी विश्वनाथ कॉरीडोर का कार्य हो रहा है.

जब वीडीए के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विशाल सिंह से इस बारे में बात करने पहुँचे तो उनके दफ्तर में अपने मकान, दुकान को लेकर आशंकाओं से भरे कई फरियादी आए हुए थे.

सबसे बात करने के बाद उन्होंने हमें बताया, "मंदिरों पर घर बना कर सालों से लोग कब्जा किए बैठे हैं. बहुतों के पुराने किराएदार नहीं निकल रहे थे. हम सभी को दुगना मुआवज़ा देकर उनके घर रजिस्ट्री करवा कर खरीद रहे हैं. जो मंदिर निकल रहे हैं, उन्हें संरक्षित करने का कार्य किया जा रहा है. मैं आपको पूरे भरोसे के साथ कह सकता हूँ कि मेरे नौ महीने के कार्यकाल में एक भी मंदिर, एक भी मूर्ती नहीं टूटी है."

विशाल सिंह हमें विश्वनाथ मंदिर के पीछे हुआ ध्वस्तीकरण दिखाने ले गए. विश्वनाथ मंदिर से पूर्व दिशा में आठ भवन तोड़े गए जिसमें घर और मंदिर एक ही छत के नीचे थे. उस स्थान पर मंदिरों का गर्भगृह सुरक्षित था.

यह भी सच है कि उनमें से कुछ मंदिरों आम जनता के लिए खुले नहीं थे. उधर ज्ञानवापी मस्जिद भी सुरक्षित थी.

वाराणसी में गंगा घाट के पास बना है विश्वनाथ मंदिर. फोटो क्रेडिट- गूगल मैप

लेकिन स्थानीय इतिहास के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार सुरेश प्रताप सिंह बताते हैं कि विदेशी आक्रमण के काल में बनारस के लोगों ने प्राचीन देवस्थानों को घर बना कर छिपा लिया था.

कई मंदिर पुराने राजा और ज़मीनदारों ने बनवाए जिनमें मंदिर के सेवादारों के रहने की जगह भी बनाई गई थी. कुछ जगह अवैध कब्जे की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन गेहूँ के साथ घुन पिसने की स्थिति बन रही है. हमें इस प्रश्न का उत्तर भी नहीं मिला कि अगर कब्जा अवैध है तो कैसी रजिस्ट्री और कैसा मुआवज़ा?

सुरेश प्रताप आगे कहते हैं, "पक्कामहाल में विकास का हथौड़ा सबसे पहले गणेश जी के कपार पर पड़ा, उसके बाद भारत माता मंदिर, सरस्वती प्रतिमा, राधा-कृष्ण की मूर्ती और अनेक शिवलिंग, नौग्रह आदि सुंदरीकरण की चपेट में आ गए."

कहाँ जा रहा है पैसा?

काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के सीईओ विशाल सिंह ने बताया कि सरकार काशी विश्वनाथ कॉरीडोर में ध्वस्तीकरण में निकल रहे मंदिरों के संरक्षण का काम कर रही है.

गला साफ करते हुए उन्होंने कहा, "हम यह सुनिश्चित करते हैं कि जो भी मंदिर निकल रहे हैं उनमें नियम से पूजा आरती हो, वहाँ साफ – सफाई हो. हम इसके लिए एक सेवादार भी नियुक्त करते हैं. हम इस पर पैसा खर्च करते हैं."

फोटो क्रेडिट - शुभम कौल

हमारी पड़ताल में लगभग ऐसा हर मंदिर मलबे में दबा पाया गया. साफ-सफाई, पूजा, सेवादार दूर- दूर तक नज़र नहीं आए. एक बड़ा सवाल यह भी उठता है कि फिर जो पैसा इस सब पर खर्च किया जाता है, वो कहाँ जा रहा है?

जिस इलाक़े में ध्वस्तीकरण का कार्य हो रहा है वहाँ चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा बल का पहरा देते हैं. लेकिन फिर भी हमने सरकारी लोगों के पहरे से परे स्थानीय लोगों से बात करने की और अन्य इलाक़ों की स्थिति जानने की कोशिश की.

हमने ललिता घाट के नज़दीक पहुँचे. तोड़-फोड़ के मलबे, कचरे और धूल-धक्कड़ से अटा हुआ एक हनुमान मंदिर मिला. स्थानीय लोगों ने बताया कि यह वही मंदिर है जिसके बारे में मान्यता है कि तुलसीदास जब बनारस पहुँचे तो यहीं उन्हें भगवान हनुमान के दर्शन हुए थे.

पता चला कि कॉरीडोर के लिए घर बेचने के लिए डरा धमका कर दबाव बनाया जा रहा है. एक स्थानीय निवासी ने कुछ हफ्ते पहले का एक वीडियो दिखाया. मकान बेचने से पहले ही एक रात कई लोग जबरदस्ती उनके घर में घुस कर तोड़-फोड़ करने लगे. वह वीडियो उसी काली रात का था.

मंदिर बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं को भी डराए धमकाए जाने की बात सामने आई. यही नहीं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने हमें एक एक्लूसिव फोन रिकार्डिंग सुनवाई जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं आंदोलन को बंद करने को कह रहे हैं.

पहले मंदिर फिर मूर्ती ग़ायब


काशी विश्वनाथ कॉरीडोर इलाक़े में पैदल आगे चलने पर एक सपाट मैदान जैसा स्थान दिखा. लोगों ने बताया कि यहाँ एक घर हुआ करता था.

वह लोग घर बेचकर चले गए. घर में जो राधा- कृष्ण मंदिर था उसे तोड़ दिया गया. मंदिर की मूर्तियाँ कुछ समय तक वहाँ रखी रहीं. फिर मूर्ती का हाथ टूटा तो उसे ढ़क दिया गया. फिर अचानक वो मूर्ती वहाँ से गायब हो गई. इसके पूरे घटनाक्रम के फोटो भी हमें सबूत के तौर पर दिए गए.

फिर कुछ और चलने पर कई सौ साल पुराना नीलकंठ महादेव का मंदिर दिखा. कहते हैं कि यह नीलकंठ महादेव मंदिर 600 साल पुराना है. कुछ समय पहले तक यहाँ लगातार पूजा होती थी लेकिन आज देखने में किसी टूटे खंडर जैसा दिखता है.

ध्वस्त हुए निर्माण के कई मंदिर अंधेरे कमरों में तालों के पीछे हैं. जंगले से झांकने पर केवल धूल और जाले नज़र आए.

अगरबत्ती हाथ में लिए एक पुजारी कहते हैं, "इन्होंने हमारे भगवान को हमसे दूर कर दिया. कम से कम सुबह शाम आरती तो करने दो."

कई जगह सेवादार परिवारों के चले जाने के बाद पीछे छूटे मंदिरों का यही हाल दिखा. हमने अपने घर के बाहर गणेश पूजा कर एक पंडित से पूछा कि अब इन मंदिरों की पूजा कौन करेगा? "सरकार ही जाने" रुआंसा सा जवाब मिला.


बुजुर्ग हो चुके ललित को दमे की बीमारी है लेकिन तुलसीदास के हनुमान मंदिर के सामने ध्वस्तीकरण से उठती धूल में दिन भर बैठे रहना उनकी मजबूरी है.

अपनी 20 साल पुरानी वाद्य यंत्रों की दुकान पर मुँह पर काला मास्क पहने बैठे ललित बताते हैं, "इस समय जो बड़े-बड़े मंदिर निकल रहे हैं शिवालय वाले, उन मंदिरों को नहीं गिराया जा रहा है लेकिन पहले जो दो नंबर तीन नंबर गेट(विश्वनाथ मंदिर गेट) के पास जो छोटे मंदिर थे उनका इन्होंने विध्वंस किया. साल भर के अंदर- अंदर बहुत से बहुत से मंदिर थे, बहुत से शिवलिंग थे, उनका क्या हुआ अब ये तो हमें पता नहीं है."

विशाल सिंह से पहले वाराणसी डेवलेपमेंट अथॉरिटी के सीईओ एस एन त्रिपाठी थे. वि्श्वनाथ मंदिर के आस- पास का पुराना निर्माण तोड़े जाने की शुरुआत इन्हीं के समय हुई. स्थानीय लोग कहते हैं कि सबसे अधिक मंदिर तभी तोड़े गए.

फोटो क्रेडिट - शुभम कौल

मुसलमानों को मस्जिद की चिंता

इस स्तर पर हो रही तोड़-फोड़ ने बनारस के मुसमानों के मन में यह भय पैदा किया कि कहीं यह ज्ञानवापी मस्जिद गिराने की तैयारियाँ तो नहीं. ग़ौरतलब है कि ज्ञानवापी मस्जिद के स्थान पर कभी प्राचीन विश्वनाथ महादेव मंदिर हुआ करता था. उग्र हिंदुत्वादी ताकतें इसे समय-समय पर अपने राडार पर लेती रही हैं.

बनारस के मुफ्ती अब्दुल बासित ने कहा, "हम कॉरीडोर के खिलाफ नहीं हैं लेकिन हमें ज्ञानवापी मस्जिद की सुरक्षा का आश्वासन चाहिए."

इस मामले को लेकर बनारस का अंजुमन इंतजामिया मसाजिस सुप्रीम कोर्ट पहुँचा. पिछले महीने नवंबर के आखिरी हफ्तें में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश अरुण मिश्रा और विनीत सरन ने इस मामले की सुनवाई की.

अंजुमन इंतज़ामिया के मीडिया प्रभारी एस एम यासीन ने बेहद संजीदा दिखे. उन्होंने कहा, "ज्ञानवापी मस्जिद के पास के जितने भी मकान और गलियाँ थे, वो ज्ञानवापी मस्जिद के आस पास भीड़ आने से रोकते थे. बहुत भीड़ हमारे लिए खतरे की बुनियाद है. क्योंकि इसी प्रकार अयोध्या में भी हो चुका है."

उन्होंने बताया कि कोर्ट नेअंजुमन इंतजामिया मसाजिस को भरोसा दिलाया है कि विश्वनाथ कॉरिडोर की तोड़फोड़ में ज्ञानवापी मस्जिद को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया जाएगा. विश्ननाथ कॉरीडोर के अधिकारी भी इसकी तस्दीक करते हैं.


सुप्रीम कोर्ट में 18वीं शताब्दी से विश्वनाथ मंदिर का प्रबंधन व देखभाल कर रहे व्यास परिवार से जितेंद्र नाथ व्यास और अंजुमन इंतजामिया कमेटी की ओर से याचिका दाखिल की गई थी.

एक ही परिसर में मंदिर और मस्जिद होने के कारण किसी गड़बड़ी की आशंका से बचने के लिए 1954 में व्यास परिवार और मस्जिद प्रबंधन के बीच तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट गौरीशंकर सिंह ने तय कराया था कि दोनों पक्षों की सहमति के बिना परिसर में कोई नया निर्माण नहीं करवाया जा सकता.

"...तो वही होगा जो आज हुआ"

लेकिन फिलहाल केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही पक्षों की सहमति के बिना इलाक़े में तोड़-फोड़ और नया निर्माण करवा रहे हैं. और सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार का दखल रोकने की व्यास परिवार की याचिका खारिज कर दी है. लगभग 87 साल के पंडित केदारनाथ व्यास का व्यास पीठ तोड़ दिया गया है.

यहाँ बनारस से जुड़े कई प्राचीन दस्तावेज और मनुस्मृतियाँ रखे हुए थे.

मंदिर बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग में "बदला लेना होगा" जैसी आवाजें उठने लगी हैं. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद उन्हें शांत करते हुए कहते हैं, "ह्म बदला ज़रूर लेंगे. जिनती बुरी तरह से हमारे मंदिरों और देव मूर्तियों को तोड़ा गया, जब हम ताकत में आएंगे, उससे भी बुरी तरह से काशी विश्वनाथ कॉरीडोर को तोड़ फेंकेंगे और अपने मंदिरों और देव मूर्तियों की पुर्नस्थापना करेंगे. तब तक आंदोलन जारी रहेगा."

हिंदु धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बनारस को भगवान शिव के लिए बनारस को वास्तु के देवता विश्वकर्मा ने बनाया था.


बनारस के आशीष महर्षी लंबे समय से सोशल मीडिया पर काशी विश्वनाथ कॉरीडोर को लेकर सक्रीय हैं. हाल ही में आए विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद बनारस के आशीष महर्षी #Kashivishwanathcorridor के साथ अपनी फेसबुक वॉल पर लिखते हैं, "जिस महादेव को रावण और राम पूजते हैं, उसके घर को खंडहर में तब्दील करोगे तो वही होगा, जो आज हुआ."

धार्मिक अनुमान और विश्वासों के आधार पर विधानसभा चुनाव नतीजे देखना शायद सही न हो लेकिन आने वाले चुनावों में आम जनता की नाराज़गी और धार्मिक संगठनों के समर्थन में कमी का फर्क सत्ताधारी दल पर भारी ज़रूर पड़ सकता है.

              

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.