बदलते सामाजिक मूल्‍यों की देन है आगरा के संजलि जैसे हत्‍याकांड

आगरा और उन्नाव में हुए हत्याकांड समेत तमाम घटनाओं के पीछे वही लोग थे जो करीबी रिश्तेदार थे या पहले से जानते थे। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस तरह की वीभत्स घटनाओं की आई बाढ़ के पीछे कई कारण निकल कर आ रहे हैं।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   29 Dec 2018 7:38 AM GMT

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बदलते सामाजिक मूल्‍यों की देन है आगरा के संजलि जैसे हत्‍याकांड

लखनऊ। आगरा के संजिल हत्‍याकांड ने सबको चौका दिया। एक 14 साल की लड़की को राह चलते जिस तरह से जला दिया गया यह हैरान करने वाला था। वहीं, उन्‍नाव में भी एक 20 साल की लड़की की चाकू से गोदकर हत्‍या कर दी गई। पुलिस के खुलासे में इन दोनों ही मामलों में लड़कियों के जानने वाले आरोपी निकले। आगरा में तो ताऊ के लड़के ने घटना को अंजाम दिया था।

इन मामलों की कड़ी को अगर जोड़ें तो साफ तौर पर दिखता है कि हाल के दिनों में सामाजिक मूल्‍यों में गिरावट आई है। सामाजिक मूल्‍यों पर बात करने से पहले हमें समझ लेना चाहिए कि सामाजिक मूल्‍य बनते कैसे हैं। आधुनिक भारत के प्रसिद्ध चिन्तक एवं समाजविज्ञानी रहे राधाकमल मुखर्जी के मुताबिक, ''मनुष्य को मूल्य अपने जीवन से, अपने पर्यावरण से, अपने-आप (स्वयं) से, समाज और संस्कृति से ही नहीं अपितु मानव-अस्तित्व व अनुभव से प्राप्त होते हैं।'' यानि एक इंसान के चारों तरफ हो रहे बदलाव का सीधा असर उसके मूल्‍यों पर पड़ता है।

संजलि की हत्‍या के बाद आगरा के लालऊ गांव में उसके घर के पास लगी ग्रामीणों की भीड़। फोटो- रणविजय सिंह (गांव कनेक्‍शन)

अब बात करते हैं समाज में आए इन बदलावों की जहां भाई अपनी बहन को लेकर आकर्षण महसूस करता है तो एक लड़का अपने पड़ोस की लड़की की हत्‍या कर देता है। इन बदलावों को लेकर समाज सेविका ताहिरा हसन कहती हैं ''इसके पीछे की असल वजह पितृसत्तात्मक सोच है। पितृसत्‍ता में औरतों को कमोडिटी के तौर पर देखा जाता है। उसके साथ होने वाले अपराध को अपराध नहीं समझा जाता है। पहले भी ऐसे अपराध होते थे। इसके बाद हम लोग लड़े और डोमेस्‍ट‍िक वॉयलेंस एक्‍ट लेकर आए।''

''पहले कहा जाता था कि बेटियां चारदीवारी में सबसे ज्‍यादा सुरक्ष‍ित हैं, लेकिन वो वहीं सबसे ज्‍यादा प्रताड़ित हैं।'' - ताहिरा हसन समाज सेविका

समाज सेविका ताहिरा हसन।

ताहिरा हसन कहती हैं, ''पहले भी चचेरे भाई करते थे, देवर करते थे। हर समुदाय में ये था। देवर ने भाभी का बलात्‍कार किया तो घर में ही छिपा दिया गया, क्‍योंकि वो घर की इज्‍जत थी। चचेरे भाई ने किया तो वो भी छिपा दिया गया, क्‍योंकि घर की बात है। लोग पुलिस थाना नहीं करते थे क्‍योंकि अपने ही घर के लोगों को जेल नहीं भेजना है। तो इन सब कारणों से ऐसे मामलों को घर में ही दबा दिया जाता था। लेकिन अब यह बढ़ गया है और इसमें कोई रोक नहीं है। आस-पड़ोस, छोटी सी बच्‍ची, चार साल की बच्‍ची तक इसके दायरे में आ गए हैं।''

बता दें, राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्‍यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, 2015 में 95 प्रतिशत रेप पीड़िता को जानने वाले किसी व्‍यक्‍ति द्वारा किये गए। इसी साल नवंबर में उत्‍तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के एक गांव में 6 साल की बच्‍ची से रेप किया गया। रेप करने वाले 24 साल के लड़के को बच्‍ची 'राहुल दादा' करके पुकारती थी, यानि उसे बहुत अच्‍छे से जानती थी। ऐसे तमाम मामले रोजना सामने आ रहे हैं। इसे लेकर एडीजी वूमेन पावर लाइन (1090) अंजू गुप्‍ता कहती हैं, ''रेप के मामलों में सबसे ज्‍यादा करीबी शामिल होते हैं, क्‍योंकि उनकी पहुंच पीड़िता तक होती है। ऐसे में जो खतरा है वो जानने वालों से ज्‍यादा है, राह चलते लोगों से कम है। राह चलते लोग इसलिए भी ऐसा नहीं करते क्‍योंकि उन्‍हें कानून का डर है, समाज का डर है। लेकिन जो करीबी है उनकी पहुंच आसान हो जाती है।''

एडीजी अंजू गुप्‍ता से ही मिलती जुलती बात क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट उदय सिन्‍हा भी करते हैं। उनके मुताबिक, ''अपने करीबी को शिकार इस लिए बनाया जाता है कि ऐसा करने वालों को लगता है कि उन्‍हें कौन पकड़ेगा, वो इस माहौल में सबसे सुरक्ष‍ित हैं। साथ ही हमारा समाज जैसा है उसमें ये भी मान लिया जाता है कि लड़की लोक लाज के डर से कहीं शिकायत भी नहीं करेगी।'' उदय सिन्‍हा मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान (आईएचबीऐएस) में क्‍लिनिकल साइक्‍लोजिस्‍ट डिपार्टमेंट के एचओडी हैं।

वकील रेनू मिश्रा।

हालिया घटनाओं को समझाते हुए महिलाओं के कानूनी अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली संस्था आली की प्रमुख रेनू मिश्रा कहती हैं, ''आज के वक्‍त में पारिवारिक मूल्‍यों में भी गिरावट आई है, जिससे नैतिकता खत्‍म हो रही है। परिवार में प्रेम और एक दूसरे के लिए करने की भावना कम हुई है। अब इसको ऐसे समझा जाए कि पहले मोहल्ले की लड़की भी बहन होती थी। उसके साथ छेड़छाड़ करने का कोई सोचता नहीं था, लेकिन अब ऐसा नहीं रहा।''

''अभी अभिभावक भी व्‍यस्‍त हैं। इस वजह से अपने बच्‍चों पर ध्‍यान नहीं दे पाते। ऐसे में बच्‍चों का जैसा मानसिक विकास होना चाहिए वो नहीं हो पा रहा। समाज में आ रहे इन बदलावों के लिए ये भी एक जरूरी बात है।''- एडवोकेट रेनू मिश्रा

मोबाइल और इंटरनेट से बिगड़ रहा माहौल

इसी साल सितंबर में नोएडा के फेज तीन थाना इलाके की रहने वाली एक 15 साल की लड़की ने अपने पिता के खिलाफ रेप का मामला दर्ज कराया था। लड़की के मुताबिक उसका पिता अश्लील फिल्में देखने का आदि था और ऐसी फिल्में मोबाइल में देखकर उसके साथ रेप करता है।

''ये सब सस्ते मोबाइल और इंटरनेट की देन है। फिलहाल सरकार ने कुछ पॉर्न साइट्स को बैन किया है। लेकिन कुछ दिन पहले तक तो यह बहुत आसान था, अभी भी है। अब कोई पॉर्न देखेगा तो थोड़ा आवेग उसमें आएगा। ऐसे में वो आस-पास के लोगों को ही टारगेट बनाते हैं, क्‍योंकि ये उनके लिए सबसे आसान होता है,'' क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट उदय सिन्‍हा समझाते हैं।

बढ़ते अपराधों के पीछे सस्‍ता इंटरनेट और पॉर्न की दुनिया भी बड़ी वजह है।

समाजसेविका ताहिरा हसन भी मोबाइल और इंटरनेट के गलत इस्‍तेमाल को लेकर चिंता जताती हैं। उनके मुताबिक, ''ऐसे मामलों के बढ़ने के पीछे इंटरनेट का बहुत बड़ा रोल है। इसमें ब्‍लू फिल्‍म का भी रोल है। बच्‍चे देख रहे हैं, नौजवान देख रह हैं। इसमें कोई रोक नहीं है। अब आप देखें निर्भया में क्‍या हुआ था।'' बता दें, दिल्‍ली के निर्भया मामले के आरोपियों ने भी पुलिस पूछताछ में बताया था कि वो मोबाइल पर पॉर्न देखा करते थे।

टीवी सीरियल और फिल्‍मों से मिल रही अपराध की क्‍लास

आगरा के संजलि हत्‍याकांड में पुलिस ने खुलासा किया कि इस घटना को अंजाम देने का तरीका आरोपियों को टीवी सीरियल से मिला। इससे पहले भी कई मामलों में पुलिस इस बात की ओर इशारा करती रही है।

''2015 में अजय देवगन की एक हिंदी फिल्‍म आई थी दृश्‍यम। वो फिल्‍म उदाहरण है कि फिल्‍म देखकर लोग क्‍या सीख सकते हैं और क्‍या कर सकते हैं। अब वेब सीरिज का जमाना है। वहां भी वॉयलेंट सेक्‍स और रेप के सीन दिखाए जा रहे हैं। उसकी भी भागीदारी है। हां, कितनी भागीदारी है यह कह नहीं सकते।''- क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट उदय सिन्‍हा

समाधान क्‍या?

अब सवाल उठता है कि तेजी से बदल रहे समाज और इन बदलाओं को लेकर आखिर समाधान क्‍या है? इसपर वकील रेनू मिश्रा कहती हैं, कानून सही तरीके से लागू नहीं हो रहा इस लिए डर खत्‍म हो रहा है। सामाजिक मूल्‍यों और कानून का एक दूसरे से जुड़ाव है। जिस भी जगह पर कानून सख्‍त होगा, वहां ऐसे मामले कम होंगे। कानून को लागू करने वाले संस्‍थानों ने इतनी छूट दे रखी है कि अपराधी सोचता है कि वो बच निकलेगा। अगर कानून का सही तरीके से लागू किया जाए तो ऐसे मामलों में कमी आएगी।

वहीं, समाजसेविका ताहिरा हसन कहती हैं, ''हर मां को अपनी बेटी को गुड टच और बैड टच के बारे में बताना चाहिए। इसे इज्‍जत से न जोड़ें कि उनकी इज्‍जत खराब होगी, जो गलत करेगा उसकी इज्‍जत खराब होगी। लड़कियों को डर रहता है कि वो घर पर बताएंगी तो उनकी पढ़ाई रोक दी जाएगी, या उन्‍हें घर से नहीं निकलने दिया जाएगा। ऐसा भी नहीं होना चाहिए। कुछ बदलावा आया है, लड़कियां अब आवाज उठा रही हैं। ये अंधेरी कोठरी में रोशनी की एक किरण जैसा है, लेकिन अभी बहुत काम बाकी है।''

लोगों को जागरूक करना जरूरी

हालांकि साइकोलॉजिस्ट उदय सिन्‍हा को लगता है कि अभी ग्राउंड पर बिल्‍कुल भी काम नहीं हो रहा है। वो कहते हैं, निर्भया मामले के वक्‍त जस्‍टिस वर्मा कमिटी बनी थी। उसने एक रिपोर्ट दी जो अब तक लागू नहीं की गई है। उसमें कहा गया था कि समाज को ज्‍यादा संवेदनशील होना होगा। आज ऐसा नहीं है। इसके लिए लोगों को जागरूक करना जरूरी है और यह सिर्फ शहरों तक न हो। गांव में जाकर काम करने की जरूरत है। गांव को फोकस करना जरूरी है, क्‍योंकि हमारा देश गांव से बना है।'' उदय सिन्‍हा निराश मन से कहते हैं, ''मुझे नहीं लगता कि जब तक सब लोग मिलकर काम नहीं करेंगे तब तक कुछ होना है। अभी ऐसा तो नहीं हो रहा। छोटे-छोटे ग्रुप में काम हो रहा है, लेकिन वो व्‍यक्‍तिगत फायदे का ज्‍यादा लगता है।''

एडीजी वूमेन पावर लाइन (1090) अंजू गुप्‍ता।

एडीजी वूमेन पावर लाइन (1090) अंजू गुप्‍ता समाधान को लेकर कहती हैं, पहला तो है जागरूकता और दूसरा है लड़कियों को सशक्‍त करना। लड़कियों को बताना होगा कि वो पुलिस में शिकायत कर सकती हैं। 1090 डायल कर सकती हैं। वहीं, लोगों की सोच बदलने की भी जरूरत है। शहर से लेकर गांव देहात के क्षेत्रों तक कैंपेन करने की जरूरत है। हम लोग इसे लेकर काम कर रहे हैं। हमारे पास जो भी मामले आते हैं उसका समाधान किया जाता है।

   

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