Lockdown : बाजार में खत्म हो रही जरूरी दवाएं, सप्लाई चेन पर बुरा असर
Ranvijay Singh 2 April 2020 10:56 AM GMT
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के रहने वाले विनीत कुमार पिछले कुछ दिनों काफी परेशान रहे। विनीत की पत्नी की डिलीवरी की डेट नजदीक आ चुकी थी और डॉक्टर ने डिलीवरी कराने में असमर्थता जाहिर कर दी थी। दरअसल विनीत की पत्नी हेपेटाइटिस की मरीज हैं, ऐसे में डिलीवरी के वक्त हेपेटाइटिस बी की एक किट इस्तेमाल होती है जो कि डॉक्टर के पास नहीं थी। लॉकडाउन की वजह से स्थानीय बाजार में भी यह किट उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में विनीत ने अपनी परेशानी सोशल मीडिया में साझा की और फिर उनके एक दोस्त ने दिल्ली से इस किट को उन्हें भेजा।
लॉकडाउन के वक्त में दवा और इलाज से जुड़े सामानों को लेकर ऐसी परेशानियां आम हो गई हैं। भले ही दवा दुकानें खुल रही हों, लेकिन जरूरी दवाओं का स्टॉक तेजी खत्म हो रहा है और नया स्टॉक इन दुकानों तक आसानी से नहीं पहुंच पा रहा। ऐसे में दवा दुकानदार अपने स्टॉक के भरोसे ही लोगों की जरूरतों को पूरा करने में जुटे हैं।
''मेरे मेडिकल स्टोर में दवाएं तेजी से खत्म हो रही हैं। मैं गोरखपुर से दवा मंगाता हूं, पहले रोज दवा आ जाती थी, अब 4 से 5 दिन में एक बार दवा आ रही है। लोग भी अपनी जरूरत से ज्यादा दवाएं खरीद रहे हैं, शायद वो दवाएं स्टॉक करने में जुटे हैं। ऐसे हाल में मेरी दुकान का स्टॉक खत्म होता जा रहा है।'' - उत्तर प्रदेश के संतकबीरनगर जिले में स्थित जमजम मेडिकल स्टोर के मालिक फुरकान कहते हैं।
यह हाल सिर्फ फुरकान का नहीं है। लॉकडाउन के पहले हफ्ते में ही देश के अलग-अलग राज्यों से ऐसी ही खबरें आ रही हैं जहां मेडिकल स्टोर्स में दवाओं का स्टॉक खत्म होता जा रहा है। हाल ही में हैदराबाद से खबर आई कि वहां की 60 प्रतिशत दवा की दुकानें बंद की जा रही हैं। इस बारे में हैदराबाद मेडिकल स्टोर्स एसोसिएशन के महासचिव किशन मुरारे शेट्टी का कहना है कि 'थोक बाजारों से मेडिकल स्टोर्स तक दवाएं नहीं पहुंच पा रही हैं, ऐसे में मजबूरन दवा की दुकानें बंद की गई हैं।' ऐसी ही खबरें दिल्ली और यूपी के कानपुर में स्थित दवा की थोक मार्केट से आ रही हैं।
मेडिकल स्टोर में दवाओं की कमी से यह सवाल उठता है जब सरकार ने साफ कहा है कि लॉकडाउन के दौरान अवाश्यक वस्तुओं की सप्लाई में कोई बाधा नहीं आने दी जाएगी तो दवाएं मेडिकल स्टोर तक क्यों नहीं पहुंच पा रहीं? इस बारे में जानने के लिए हमने हिमाचल प्रदेश ड्रग मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन के महामंत्री मुनीष ठाकुर से बात की।
मुनीष बताते हैं, ''हिमाचल प्रदेश का बद्दी फार्मास्यूटिक्ल हब कहा जाता है, लेकिन आज यहां 95 प्रतिशत कंपनियां बंद पड़ी हैं, वजह यह है कि कंपनियों के पास दवा बनाने के लिए कच्चा माल उपलब्ध ही नहीं है। भारत में दवा कंपनियां चीन से एक्टिव फार्मास्यूटिक्ल इंग्रीडिएंट्स (एपीआई) का आयात करती हैं। करीब 80 फीसदी एपीआई चीन से ही आता था, जोकि अब नहीं आ रहा। वहीं, जो थोड़ा बहुत कच्चा माल भारत आया है वो लॉकडाउन की वजह से बंदरगाहों पर फंसा हुआ है। ऐसे में जब कच्चा माल ही नहीं होगा तो कंपनियां दवा कहां से बनाएंगी।''
''इसके अलावा एक दिक्कत और है, वो यह कि जिन कंपनियों के पास दवाइयां तैयार हैं वो सप्लाई नहीं कर पा रहीं। क्योंकि ट्रांसपोर्ट पूरी तरह से नहीं चल रहे। जैसे मुझे अगर मुंबई दवा भेजनी है तो पूरा ट्रक लोड लेना होगा, लेकिन मुझे पूरा ट्रक लोड लेने की जरूरत नहीं है, मेरा इतना सामान ही नहीं है। ऐसे में उनका ही सामान जा सकता है जो पूरा ट्रक लोड लें, अगर मुझे पार्ट लोड में सामान भेजना है तो मेरे लिए मुश्किल है। यह तब है जब भारत में 70 प्रतिशत से ज्यादा दवा कंपनियां छोटे स्केल पर काम कर रही हैं। ऐसे में पूरा ट्रक लोड तो चुनिंदा 50-60 बड़ी कंपनियां ही ले पाएंगी।'' - मुनीष कहते हैं
मुनीष जिस ट्रांसपोर्ट की दिक्कत की बात कर रहे हैं। यह दिक्कत सरकार तक भी पहुंची थी। इसी स्थिति को देखते हुए लॉकडाउन के करीब छह दिन बाद केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को पत्र लिखकर कहा कि लॉकडाउन के दौरान जरूरी और गैर जरूरी वस्तुओं में भेद किए बिना सभी सामान की ढुलाई की अनुमति दी जाए। इस आदेश के बाद मुनीष ठाकुर को लगता है कि अब ट्रांसपोर्ट की दिक्कत थोड़ी कम होगी और छोटी दवा कंपनियां भी अपना सामान थोक बाजार तक पहुंचा सकेंगी।
कंपनियों के थोक बाजार तक दवा पहुंचा देने भर से सप्लाई चेन चलने नहीं लगेगी। लॉकडाउन का असल असर तो इन थोक बाजारों में ही देखने को मिलता है। कंपनियों और आपके हमारे बाजार के मेडिकल स्टोर के बीच की कड़ी यह थोक बाजार ही होते हैं। इस लॉकडाउन का असर इन थोक बाजारों पर कैसा है यह जानने के लिए हमने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अमीनाबाद में स्थित थोक मार्केट से जुड़े व्यापारियों से बात की।
उत्तर प्रदेश सर्चिकल एसोसिएशन के महामंत्री और दवाओं के थोक व्यापारी अनिल उपाध्याय बताते हैं, ''हमारे लिए बहुत दिक्कत बढ़ गई है। कंपनियों से दवा आ नहीं पा रही है, हम दूसरे जिलों तक दवा ठीक से भेज नहीं पा रहे हैं। लॉकडाउन ने एकदम बांध दिया है। कई व्यापारियों का स्टॉक खत्म हो चुका है। बाजार में महत्वपूर्ण दवाएं जैसे एंटिबायोटिक, बीपी, हृदय रोग से संबंधित दवाइयां तेजी से खत्म हो रही हैं। हमारे पास जो भी उपलब्ध था हम बाजार में जैसे-तैसे भेज चुके हैं, अब कंपनियों से माल का इंतजार हो रहा है।''
''एक बात और है कि अगर किसी के पास माल है भी तो वो सप्लाई नहीं कर पा रहा। वजह है कि पास बहुत कम संख्या में बांटे गए हैं। मुझे ही अभी पास नहीं मिल पाया था, बताया गया कि पास खत्म हो चुके हैं, प्रिंट होने गए हैं। अब आप समझ लीजिए कि लॉकडाउन की वजह से दवाओं की सप्लाई चेन पर कितना असर पड़ा है।'' - अनिल उपाध्याय कहते हैं
दवा कारोबार से जुड़े इन लोगों की बातों से एक बात तो साफ होती है कि कंपनियां दवा बना नहीं पा रही, जो बनी हैं वो सप्लाई नहीं हो पा रही और मार्केट में उपलब्ध दवाओं का स्टॉक तेजी से खत्म हो रहा है। इन सब बातों के इतर भी दवा कारोबार से जुड़े लोग अन्य चीजों से जूझ रहे हैं। जैसे दवा को बनाने के बाद उसे पैकेट में रखा जाता है। कंपनियां अपने पास उपलब्ध कच्चे माल से दवा तो तैयार कर लेंगे, लेकिन पैकेट कहां से लाएंगी। ऐसी ही परेशानी से पंजाब के मोहाली में स्थित पेरेक्स फार्मास्यूटिकल्स कंपनी के मालिक जगदीप सिंह जूझ रहे हैं।
जगदीप बताते हैं, ''मार्केट में दवाएं कोरी तो भेजी नहीं जा सकती। मैं दवाएं बना दूं लेकिन उसको पैक करने के लिए भी पैकेट चाहिए, यह पैकेट बनाने वाली कंपनी बंद पड़ी है। इस हाल में दवा कैसे बन पाएगी। बाजार में तो सब एक दूसरे से जुड़ा है न, सब चेन से बंधे है। एक काम नहीं करेगा तो दूसरे का काम कैसे चलेगा।''
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