बजट 2020-21 से किसानों की उम्मीदें: 'खेती से जुड़ी चीजों से जीएसटी हटे, फसलों की सही कीमत मिले'

यूनियन बजट 2020-21 के आने में अब गिनती के ही दिन बचे हैं। हर साल की तरह इस साल भी कृषि प्रधान देश के लगभग 10.07 करोड़ किसान बजट से उम्मीदें लगाये बैठे होंगे।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   24 Jan 2020 1:30 PM GMT

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बजट 2020-21 से किसानों की उम्मीदें: खेती से जुड़ी चीजों से जीएसटी हटे, फसलों की सही कीमत मिले

"मैं तो बजट से बस यही चाहता हूं कि हमें जो मुआवजा मिलता है वह दो गुना हो जाए और सिंचाई के समय पर्याप्त बिजली मिले," मध्य प्रदेश के इंदौर से 40 किमी दूर गांव छोटा बांगड़दा के किसान सुधांशु शुक्ला कहते हैं।

सुधांशु (42) ने पिछले साल 20 एकड़ में सोयाबीन की खेती की थी जो भारी बारिश के कारण लगभग 80 फीसदी बर्बाद हो गई। गाँव कनेक्शन ने फोन पर बात की और जानने की कोशिश की कि बजट 2020-21 से उनकी उम्मीदें क्या हैं? सरकार से क्या चाहते हैं?

"सोयाबीन की फसल तो बर्बाद ही हो गई थी। बाद में कई बार अधिकारी आए नुकसान का आंकलन करने के लिए। राहत के नाम पर कुछ सौ रुपए मिले जबकि नुकसान हजारों में हुआ था। सोयाबीन के बाद अब गेहूं से उम्मीद है लेकिन बिजली की स्थिति बहुत खराब है। 24 घंटे में 4 घंटे लाइट आती है। बजट में मेरे लिए बस इतना हो जाये कि मुआवजे की राशि ज्यादा मिले क्योंकि अब हर साल कोई न कोई फसल बर्बाद हो जाती है," सुधांशु आगे कहते हैं।

बजट 2020-21 के आने में अब गिनती के ही दिन बचे हैं। हर साल की तरह इस साल भी कृषि प्रधान देश के लगभग 10.07 करोड़ किसान बजट से उम्मीदें लगाये बैठे होंगे। पिछले साल के बजट को किसान केंद्रित बजट कहा गया था। फसलों की कम कीमत और मौसम की मार से बेहाल किसान सरकार से इस बजट में क्या चाहते हैं? यह जानने के लिए गाँव कनेक्शन ने देश के अलग-अलग राज्यों के किसानों से बात की और बजट से उनकी क्या उम्मीदें हैं यह जानने का प्रयास किया।

उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के ब्लॉक चरथावर, गांव आखलोरा के 39 वर्षीय किसान पीयूष कुमार गन्ने की खेती करते हैं। बजट से अपनी उम्मीदों के बारे में वे बताते हैं, "जिस हिसाब से लागत बढ़ रही है उस हिसाब से फसलों की कीमत नहीं मिल रही है। अब तीन साल पहले डीएपी की एक बोरी 1050 रुपए की थी जो आज 1450 रुपए की है। बिजली की कीमतें बढ़ गईं। निराई-गुड़ाई की कीमत पिछले तीन साल में दोगुनी हो गई है लेकिन एक कुंतल के लिए गन्ने की कीमत दो साल पहले भी केंद्र सरकार 275 रुपए दे रही थी और आज भी वही है।"

फसलों की सही कीमतों के लिए किसान अभी भी परेशान हैं।

"हम तो अखबारों में पढ़ते रहते हैं कि प्रदेश और केंद्र सरकार हमारी आय दोगुनी करने के लिए बहुत काम कर रही है, लेकिन जब खर्च बढ़ता जाएगा और उस हिसाब से फसल की कीमत नहीं बढ़ेगी तब हमारा मुनाफा कैसे बढ़ेगा? बजट से तो मैं यही चाहता हूं कि हमारी उपज की कीमत सही मिले और खेती के लिए जरूरी उर्वरकों की कीमत घटे," पीयूष आगे कहते हैं।

बजट 2019-20 जारी करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि यह बजट गांव, गरीब और किसानों का है। तब उन्होंने किसानों के लिए जो घोषणाएं की थीं उस पर भी एक नजर डाल लेते हैं।

  • तिलहन किसानों को आत्मनिर्भर बनाएंगे।
  • पांच साल में 10 हजार नये किसान उत्पादक संगठन बनाएंगे।
  • डेयरी कार्यों को बढ़ावा दिया जायेगा।
  • किसानों के लिए जीवन व्‍यतीत करना और व्यवसाय करना आसान बनाएंगे।
  • किसानों को आत्‍मनिर्भर बनाने के लिए 'जीरो बजट फार्मिंग' को बढ़ावा दिया जाएगा।

" मैं तो कहता हूं सरकार इस बजट में किसानों के लिए कोई नई घोषणा करे ही ना, बस यह हो जाये कि पहले की जो घोषणाएं हुईं हैं उसे लागू कर दिया जाये। आपने लागत का डेढ़ गुना देने की बात कही थी जो हुआ नहीं। जीरो बजट फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए भी कुछ नहीं हुआ। सरकार कई बार कह चुकी है वे स्वामीनाथ आयोग की सिफारिशों के आधार पर किसानों को फसल की कीमत दे रहे हैं लेकिन किसानों को सी2+एफएल के आधार पर सरकार आज भी किसानों ने फसल नहीं खरीद रही," जय किसान आंदोलन के संयोजक अविक शाह कहते हैं।


महाराष्ट्र यवतमाल के खैरगांव पाटलकोड़ा के किसान नेमराज कपास की खेती करते हैं। उनके पास 18 एकड़ खेत है। वे कहते हैं, "मुझे इस साल भी कपास की वह कीमत भी नहीं मिली जो सरकार ने तय की है। मैं लंबे रेशे वाले कपास की खेती करता हूं जिसकी एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) 5,550 रुपए प्रति कुंतल है, लेकिन मैं कपास 4,800 रुपए कुंतल ही बेच पाया। मंडियों में कोई न कोई कमी बताकर फसल खरीदने से मना कर देते हैं। हमारी लागत के हिसाब से 5,500 रुपए बहुत कम है और हमें यह भी नहीं मिलता। मैं तो बजट से यही चाहता हूं कि कपास की एमएसपी सरकार बढ़ाये और मंडियों में फसल खरीद के जो नियम हैं उसमें छूट मिले।"

राहत पैकेज की आस में कॉफी किसान

मौसम की मार और गिरती कीमतों से परेशान कर्नाटक के कॉफी उत्पादक वित्त मंत्री निर्मला सीतारण से राहत पैकेज की उम्मीद लगाये बैठे हैं। बजट 2020 से पहले कर्नाटक ग्रोवर्स फेडरेशन, कर्नाटक प्लांटर्स एसोसिएशन और कोडागू प्लांटर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने कॉफी किसानों की ओर से वित्त मंत्री से मुलाकात की और संकट से उबारने के लिए इस सेक्टर के लिए सरकारी मदद की मांग की।

कर्नाटक देश का सबसे बड़ा कॉफी उत्पादक प्रदेश है, लेकिन यहां के किसान पिछले कुछ वर्षों से कम कीमत और जलवायु परिवर्तन से परेशान हैं। हालात यह है कि कॉफी की कीमत 26 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। कर्नाटक के 1.5 लाख कॉफी उत्पादक और इससे जुड़े 15 लाख लोगों को सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। कर्नाटक ग्रोवर्स फेडरेशन की एक रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2001 से 2011 के बीच प्रदेश के 150 कॉफी किसान खुदकुशी कर चुके हैं।

ऐसे में कॉफी उत्पादकों को उम्मीद है कि बजट 2020-21 से उनको राहत मिलेगी। वे सरकार से राहत पैकेज की मांग भी कर रहे हैं। इस बारे में कर्नाटक ग्रोवर्स फेडरेशन के यूएम तीर्थमल्लेश फोन पर गांव कनेक्शन को बताते हैं, " कभी सूखा तो कभी बाढ़, पैदावार लगातार घट रही है। कॉफी किसान इस समय संकट में हैं। ऐसे में बजट से हमनें केंद्रीय वित्त मंत्री से मुलाकात की और मांग की कि एक तो हमारे नुकसान की भरपाई हो और देश के कॉफी सेक्टर को संकट से उबारने के लिए विशेष राहत पैकेज भी दिया जाये।"

कर्नाटक का कॉफी उत्पादन 40 फीसदी तक कम हो गया है। वर्ष 2002, 2005 और 2008, 2016 में जहां प्रदेश के किसान सूखे से जूझ रहे थे, तो वहीं वर्ष 2006, 2007, 2008, 2018 और 2019 में हुई ज्यादा बारिश ने कॉफी बागानों को बर्बाद कर दिया। खरीफ सीजन 2019 के दौरान कर्नाटक सरकार ने प्रदेश के 17 जिलों के 80 तालुका को बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र घोषित किया है। इनमें तीन कॉफी उत्पादक जिले कोडागु (तीन तालुका), हसान (3 तालुका) और चिकमंगलूर (4 तालुका) भी शामिल हैं, और तीन जिले देश में कुल पैदा होने वाले कॉफी का 70 फीसदी अकेले उत्पादन करते हैं।

कॉफी किसानों पर विस्तृत खबर यहां पढ़ सकते हैं:संकट में कर्नाटक के कॉफी किसान, बाढ़, सूखे से परेशान होकर बागान बेच रहे या आत्महत्या कर रहे

किसान संगठनों ने सरकार से उर्वरकों पर लगने वाले जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) को कम करने और एमओपी पर सब्सिडी की भी मांग की है।

पिछले आठ वर्षों में प्रति हेक्टेयर में कॉफी की खेती में लागत 2.6 गुना बढ़ी है। डीएपी, यूरिया, पोटाश, रॉक फॉस्फेट, सुफला जैसे उर्वरकों की कीमत 2011 में कुल मिलाकर 1560 पर बोरी के आसपास थी जो इस समय 4,030 रुपए है। पोटेशियम क्लोराइड (MOP) जैसे उर्वरकों की कीमत वर्ष 2011 में 250 रुपए बोरी थी जो अब 945 रुपए बोरी है। पोटाश कॉफी के पौधों के लिए सबसे जरूरी उर्वरक है। इसी तरह डीएपी वर्ष 2011 में 500 रुपए प्रति बैग था जो अब 1,440 रुपए बैग है। यूरिया की कीमत जरूर इन आठ वर्षों में 15 रुपए कम हुई है। सुफला 290 रुपए बोरी से बढ़कर 1030 रुपए पहुंच चुका है।

कॉफी किसानों ने यह भी मांग की है कि जैसे धान और काली मिर्च को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत लाया गया है उसी तरह कॉफी को भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ मिले।


" तीन लाख रुपए तक के कृषि लोन पर प्रदेश सरकार कोई ब्याज नहीं ले रही जबकि 10 लाख रुपए पर 3 फीसदी तक का ब्याज लगता है। ऐसे में हमने केंद्र सरकार से मांग की है कि नेशनल बैंकों से मिलने वाले लोन की भी ब्याज दरें घटाई जायें, क्योंकि नुकसान सह रहे किसान अब लोन लेकर ही अपना खर्च चला रहे हैं," यूएम तीर्थमल्लेश कहते हैं।

आय सुरक्षा कानून की मांग

बजट से कुछ दिनों पहले कंसोर्शियम ऑफ इंडियन फार्मर्स एसोसिएशन (सीआईएफए) ने देशभर के किसानों की ओर से सरकार से मांग की है कि बजट 2020-21 में आय सुरक्षा कानून बने, साथ ही वर्ष 2022 के अंत तक किसानों की आमदनी भी दोगुनी हो जाये। सीआईएफए के सलाहकार पी चेंगल रेड्डी अपनी वेबसाइट के माध्यम से इसकी जानकारी देते हुए कहते हैं, "देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार तभी मिलेगी जब खेती से जुड़े सेक्टर विकास करेंगे। किसानों की आय बढ़ेगी तभी अर्थव्यवस्था में सुधार संभव है।"

सीआईएफए की मांगें

  • सरकार की तरफ से सीआईएफए ने मांग की है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के आधार पर फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण हो। एमएसपी में खेती की लागत, पारिवारिक मजदूरी, भूमि की कीमत को जोड़ने के बाद किसानों को कम से कम 50 फीसदी का लाभ मिले।
  • पराली बैंक बने। पराली को इकट्ठा करके उसे वहां भेजें जहां चारे की दिक्कत है। इससे किसानों का फायदा बढ़ सकता है और प्रदूषण का खतरा भी नहीं रहेगा।
  • देश में अगर फल और सब्जियों के रखरखाव के लिए बेहतर व्यवस्था की जाये तो किसानों की आमदनी बढ़ सकती है। ऐसे में जरूरी है कि इस बजट में सरकार वेयरहाउस के निर्माण के लिए ज्यादा बजट जारी करें।
  • इसके अलावा निर्यात नीति में सतर्कता बरती जाये। पुर्वानुमान के आधार पर दाल और तेलों के निर्यात का फैसला न लिया जाये।
  • बंटाई और मजदूरी करने वाले किसानों की आय निश्चित करने के लिए कानून लाया जाये।
  • किसानों को सही कीमत नहीं मिलती और उपभोक्ताओं को उसी उपज के लिए भारी कीमत देनी पड़ती है। ऐसा इसलिए होता है कि क्योंकि बिचौलिये स्टॉक जमा कर लेते हैं। इसलिए अब जरूरी है कि कमोडिटी स्टॉक एक्ट के तहत फसलों की स्टॉक लिमिट तय की जाये।
  • कृषि उपकरणों और प्रोसेस्ड फूड को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाये।
  • चावल और तंबाकू निर्यात को प्रोत्साहन मिले।
  • हॉर्टिकल्चरकी खेती को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कमोडिटी समूह बनाएं जाएं।

   

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