कर्ज़माफी, आर्थिक सहायता मत दीजिए, फसल का सही दाम मिल जाए, किसान आप से और कुछ नहीं मांगेगा

किसानों का कहना है कि उन्हें कर्ज़ माफी और आर्थिक मदद से कोई खास फायदा नहीं हो रहा है, उन्हें अपनी फसलों के लिए केवल न्यूनतम समर्थन मूल्य चाहिए, इससे उनकी बहुत सारी समस्याएं अपने आप ही खत्म हो जाएंगी।

Pragya BhartiPragya Bharti   1 Feb 2019 1:37 PM GMT

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कर्ज़माफी, आर्थिक सहायता मत दीजिए, फसल का सही दाम मिल जाए, किसान आप से और कुछ नहीं मांगेगा

लखनऊ।

"6000 एक साल में, मतलब 500 रुपए एक महीने के, यानी कि एक दिन का 17 रुपए। अब आप सोच लीजिए 17 रुपए हर दिन दे रहे हैं तो क्या भला कर रहे हैं? इसमें बताने वाली क्या बात है? फायदा क्या होगा इसका? सरकार अपना फंड बर्बाद कर रही है," शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश के किसान अमृत सिंह कहते हैं।

सरकार ने 2019 के लिए पेश हुए बजट में गरीब किसानों को 6000 रुपए की आर्थिक मदद देने की घोषणा की है, इसे अमृत सिंह बेकार बताते हैं। सिर्फ वो ही नहीं उनकी तरह कई किसानों का यही मानना है कि इस मदद का ज़मीनी स्तर पर कोई खास फायदा नहीं है।

किसानों को कौन सी योजना के तहत मिलेंगे 6000 रुपए?

एक, फरवरी 2019 को राजग (एनडीए) सरकार ने इस सत्र का अपना आखिरी बजट पेश किया। वित्त मंत्री अरुण जेटली की तबीयत नासाज़ होने के कारण इसे कार्यकारी वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने पेश किया. पीयूष गोयल ने गरीब किसानों की मदद के लिए आर्थिक सहायता देने का ऐलान करते हुए कहा कि सरकार हर साल उन किसानों को, जिनके पास 2 या उससे कम हेक्टयर ज़मीन है, 6000 रुपए की आर्थिक मदद देगी। इस योजना को सरकार ने 'प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि' का नाम दिया। इसके तहत गरीब किसानों को जिनके पास 2 हेक्टयर तक की ज़मीन है, हर साल तीन किश्तों में 6000 रुपए मिलेंगे, यानी हर 4 महीने में 2000 रुपए की एक किश्त। इस योजना का पूरा खर्च केन्द्र सरकार वहन करेगी, मतलब राज्य सरकार को इसके लिए कोई बजट नहीं देना होगा। किसानों को ये पैसे सीधे उनके खाते में मिलेंगे। सरकार ने दावा किया है कि सभी किसानों की लिस्ट पूरी होने के बाद जल्द-से-जल्द पहली किश्त भेज दी जाएगी। उम्मीद है कि मई में होने वाले आम चुनावों से पहले किसानों के खातों में 2000 रुपए पहुंच जाएंगे। ये योजना 1 दिसंबर 2018 से लागू होगी और जो एरियर बनेगा वो भी किसानों को दिया जाएगा। एरियर यानी कि एक दिसंबर से लेकर अभी तक का पैसा।

सरकार का दावा है कि इससे 12.56 करोड़ किसान परिवारों को लाभ मिलेगा। वहीं, सरकार को हर साल 75,360 हज़ार करोड़ रुपए, इसके लिए देने होंगे। हज़ारों, करोड़ों के आंकड़े सुन कर लगता है सरकार किसानों के लिए कितनी प्रतिबद्ध है, हमारे गरीब अन्नदाताओं के लिए इतने हज़ार करोड़ की सहायता कर रही है। यही समझने के लिए हमने बात की किसानों से और जानना चाहा कि क्या सच में ये हज़ारों करोड़ की सहायता उनके लिए फायदेमंद है?

यूपी के पीलीभीत के कृषि विभाग में कर्मचारी धीरज कहते हैं, "इसका मतलब नहीं है कुछ भी। हाँ, किसानों को इतना फायदा हो सकता है कि खाद वगैरह जो भी है वो ले लेंगे बाकी तो इसका कोई मतलब नहीं है। किसानों को इस योजना से कोई फायदा नहीं होने वाला। कम से कम 4000 रुपए तो एक किश्त में मिलने ही चाहिए, साल भर में 12000 ।"

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धीरज आगे कहते हैं, "अगर सरकार को किसानों की मदद करनी है तो वो हर फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर दें, इसके अलावा कुछ और करने की ज़रूरत ही नहीं है। सरकार को किसानों की आर्थिक मदद करने की आवश्यकता ही नहीं है, उनकी फसल का सही दाम अगर मिल जाए तो सारे किसान आर्थिक रूप से सशक्त हो जाएंगे। इससे किसान अपने आप मजबूत होंगे, उन्हें किसी पर निर्भर होने की ज़रूरत नहीं होगी।"


धीरज ये भी कहते हैं कि सरकार को दवाईयां, जो कि खेती में इस्तेमाल होती हैं, खाद, कीटनाशकों आदि के दाम भी कम करने चाहिए। फसलों का दाम किसानों के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। यही बात भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता, राकेश टिकैत कहते हैं, "गाँव की तरफ सरकार देख नहीं रही है, ये लोग गाँवों को भूल चुके हैं। किसान दिक्कत में हैं। मैं पिछले महीने बिहार गया था, वहां पर मूंग की फसल 32 रूपए किलो, बाज़ार भाव के हिसाब से बिक रही थी और वैसे उसका भाव 56-57 रुपए किलो है, ये जो आधे दाम पर फसल बिक रही है इसका कौन ज़िम्मेदार है? हमने मांग रखी कि जितनी भी फसलों का एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय हो गया है, आप उसे डिजीटल इंडिया से जोड़ दीजिए। हमने फसल पैदा की, उसका सही भुगतान दे दो। अगर सही दाम मिल जाए तो ये 6 हज़ार रुपए देने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।"

इतना ही नहीं राकेश फसल के दामों को लेकर एक कानून की भी माँग करते हैं। "इस पर एक कानून बनना चाहिए कि इस दाम से कम पर खरीद नहीं होगी। जो भी व्यक्ति ऐसा करता है, वो आपराधिक श्रेणी में आएगा। सरकारी मंडियों पर क्यों कम दामों पर बोली लगती है? ये सभी बातें हैं जिन पर सरकार को गौर करने की आवश्यकता है। हमें उम्मीद ये थी कि सरकार कम-से-कम 25000 रुपए प्रति एकड़ हर साल देगी। तेलंगाना एक छोटा सा राज्य है, जब वो दे सकता है तो केन्द्र सरकार क्यों नहीं? किसान इस बजट से खुश नहीं है, किसान नाराज़ है,"- राकेश टिकैत ने आगे कहा।

राकेश की ही तरह उत्तर प्रदेश के शमशेर का भी यही मानना है कि सरकार को किसानों के लिए ये 6000 रुपए की मदद देने की ज़रूरत ही नहीं है, इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। किसानों को उनकी फसल का सही दाम मिल जाए तो आर्थिक मदद की आवश्यकता ही नहीं होगी। शमशेर कहते हैं कि किसानों को ये तसल्ली होनी चाहिए कि उसे फसल का कम-से-कम दाम तो मिलेगा ही, वो बस उत्पादन करे। कई बार ऐसा होता है कि फसल बहुत ज़्यादा हो जाती है पर किसानों को उसका उचित दाम नहीं मिलता।


उन्होंने आगे कहा, "अगर सरकार को आर्थिक मदद करनी ही है तो कम-से-कम इतना पैसा तो दे कि इन्सान का खर्चा चल जाए। हर महीने 2000 रुपए तो सरकार को गरीब किसानों को देने चाहिए, यानी साल भर में 24000। वृद्ध पेंशन भी अब 2000 के करीब हो गई होगी तो किसान परिवार को इतना तो मिलना ही चाहिए।"

पंजाब के सांघा जिले के गुरप्रीत सिंह बताते हैं कि अगर दो हेक्टयर में किसान को कीटनाशक डालने हों तो उसका खर्च ही 6000 रुपए हो जाता है। अगर साल भर में आप उसे 6000 दे रहे हैं तो क्या मतलब है? वो कहते हैं, "अगर सरकार किसानों का भला करना चाहती है तो उनके कर्ज़ माफ कर दे, वो उनके लिए बहुत बड़ी समस्या होते हैं; पूरा नहीं तो कम-से-कम आधा कर्ज़ तो सरकार को माफ कर देना चाहिए। जो व्यापारी किसानों से फसल खरीदते हैं वो उसकी कीमत तय करते हैं, पूरी मेहनत किसान की पर फिर भी वो उसे सही दाम पर नहीं बेच पाता। फायदा नहीं होता तो अगली बार खेती के लिए उसे कर्ज़ लेना पड़ता है, इसी तरह ये चलता रहता है। कई बार एक ही जैसी फसल पर भी दाम अलग होते हैं, किसी को 3500 तो किसी को उस ही फसल के 2800 मिलते हैं, अब आप खुद ही सोचिए कि एक कुंतल पर अगर किसान को 700 रुपए का नुकसान है तो अगर वो 100 कुंतल बेचेगा तो कितने नुकसान में है, पर उसके पास कोई और चारा भी नहीं है, व्यापारी को नहीं तो किसे बेचे? सरकार अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर दे तो किसानों की सभी समस्याओं का निदान हो जाएगा।"

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता, राकेश जिस योजना के बारे में बात कर रहे थे वो तेलंगाना सरकार द्वारा चलाई जा रही है। तेलंगाना में 'राय्थू बंधु स्कीम' नाम से लागू इस योजना के तहत किसानों को हर एकड़ ज़मीन पर खेती करने के लिए 8000 रुपए हर साल दिए जाते हैं। ऐसा ही उड़ीसा में होता है। उड़ीसा में 'कालिया' (कृषक असिस्टेंस फॉर लाइवलीहुड एंड इनकम ऑगमेंटेशन) नाम की एक योजना चल रही है। इसके तहत गरीब और छोटे किसानों को बीज, खाद, कीटनाशक खरीदने और खेती से जुड़े तमाम खर्चों के लिए सालाना 25,000 रुपए तक की राशि दी जाती है।

राजस्थान के जालोर जिले में रहने वाले किसान जुलजाराम इस बजट के बारे में कहते हैं, "सरकार द्वारा दी गई 6000 रुपए की मदद से छोटे किसानों को फायदा होगा लेकिन किसानों को ये सब नहीं चाहिए, ये आर्थिक मदद और कर्ज़ माफी हमें गुमराह करने के साधन हैं। किसान इस तरह की योजनाओं से बिल्कुल खुश नहीं है। हमें सरकार से कुछ नहीं चाहिए, हम मेहनतकश लोग हैं, मेहनत करके खाएंगे, हमें बस इतना चाहिए कि हमारी मेहनत की सही मजदूरी, फसलों का सही दाम हमें मिले। कर्ज़ माफ होता रहा तो लोगों को ऐसे ही बैठे-बैठे खाने की आदत हो जाएगी, सब बेरोज़गार हो जाएंगे।"

सरकार को फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए। साथ ही अगर आर्थिक तौर पर किसानों की मदद करनी है तो वो कम-से-कम उतनी हो कि किसान को कोई और कर्ज़ न लेना पड़े, उसका खेती से जुड़ा पूरा खर्च उन मदद के पैसों से हो जाए। कर्ज़ माफी और आर्थिक मदद किसानों की समस्या का हल नहीं है।

इन सभी किसानों और किसान नेताओं से बात कर के हमें ये समझ आया कि सरकार द्वारा दी जा रही आर्थिक मदद का उन्हें खास फायदा नहीं होने वाला। सबसे ज़्यादा ज़रूरी है फसलों का उचित दाम तय होना। सरकार का कहना है कि लगभग 22 फसलों के समर्थन मूल्य में उन्होंने वृद्धि की है पर किसानों के लिए ये कुछ अधिक मायने नहीं रखता। जब तक सभी फसलों का उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य तय नहीं होगा, किसानों की समस्याएं बरकरार रहेंगी। उनकी फसलों के न्यूनतम दाम को तय कर कर ही सरकार उनकी सही मायनों में मदद कर सकती है।

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