किसानों की ट्रैक्टर रैली, जन आक्रोश प्रदर्शन: कृषि से जुड़े इन तीन अध्यादेशों का किसान क्यों कर रहे हैं विरोध?
केंद्र सरकार की कृषि से जुड़े तीन अध्यादेशों का विरोध अब सड़क तक पहुंच चुका है। किसान ट्रैक्टर के साथ इन अध्यादेशों का विरोध कर रहे है। आखिर इन अध्यादेशों का विरोध क्यों हो रहा है?
Mithilesh Dhar 20 July 2020 5:48 AM GMT
केंद्र सरकार की कृषि से जुड़े तीन अध्यादेशों के खिलाफ पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के किसान 20 जुलाई सोमवार को अपने ट्रैक्टरों के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान ट्रैक्टर लेकर जिला मुख्यालय और तहसील तक जाएंगे। किसान मजदूर समिति, अखिल भारतीय किसान सभा व किसान संघर्ष समिति के तत्वावधान में प्रदर्शन कर प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपेंगे।
राजस्थान के गंगानगर जिले में भी किसान अपना ट्रैक्टर लेकर सड़कों पर उतर आये हैं। इस बारे में ग्रामीण किसान मजदूर समिति से जुड़े रणजीत सिंह राजू कहते हैं, "सरकारों की वजह से किसान बर्बादी की कगार पर पहुंच गये हैं। सरकार किसानों के हित पर ध्यान ही नहीं दे रही है। एक तो किसानों को उनकी फसल की सही कीमत नहीं मिल रही है ऊपर से सरकार रोज किसान विरोधी अध्यादेश पारित कर रही है। ऐसे में सरकार की नीतियों के खिलाफ किसान एकजुट हो गये हैं।"
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की पुरानी सहयोगी अकाली दल भी इन मुद्दों पर किसानों के साथ है। पार्टी के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने ट्वीट करके कहा, "किसानों के कल्याण से जरूरी हमारे लिए कुछ नहीं है। फसलों की एमएसपी और सुनिश्चित बाजार, संकटग्रस्त किसानों के लिए जीवन और मृत्यु का सवाल है और हम इसे समझते हैं। हमारी पार्टी किसानों के हित के लिए हर तरह के बलिदान देने के लिए तैयार है।"
किसान सरकार के किन तीन अध्यादेशों का विरोध कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं, यह जानना भी जरूरी है-
1. एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव
पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाज़ारी करते थे, उसको रोकने के लिए Essential Commodity Act 1955 बनाया गया था जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी।
अब इस नए अध्यादेश के तहत आलू, प्याज़, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है।
किसान और किसान संगठनों का मानना है कि सरकार की इस नीति से किसानों को नुकसान होगा। इस बारे में भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ कहते हैं, "समझने की बात यह है कि हमारे देश में 85% लघु किसान हैं, किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है यानी यह अध्यादेश बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की कालाबाज़ारी के लिए लाया गया है। कम्पनियाँ और सुपर मार्केट अपने बड़े-बड़े गोदामों में कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे।"
किसान संगठनों का कहना कि इस बदलाव से कालाबाजारी घटेगी नहीं बल्की बढ़ेगी। जमाखोरी बढ़ेगी। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी 1972 में मंडी एक्ट लेकर आए थे। मंडी में औने पौने दामों पर फसल की कीमत न तय हो, इसकी व्यवस्था इसमें थी, लेकिन नीति असफल होती गई।
2. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग-The Farmers Agreement on Price Assurance and Farm Services Ordinance
केंद्रीय कृषि सचिव कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा), संजय अग्रवाल ने आज तक को बताया कि (व्यावसायिक) खेती के समझौते वक्त की जरूरत है। विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए, जो ऊंचे मूल्य की फसलें उगाना चाहते हैं, मगर पैदावार का जोखिम उठाते और घाटा सहते हैं। इस अध्यादेश से किसान अपना यह जोखिम कॉरपोरेट खरीदारों को सौंपकर फायदा कमा सकेंगे।
लेकिन भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ का मानना है, "इस नए अध्यादेश के तहत किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बन के रह जायेगा। इस अध्यादेश के जरिये केंद्र सरकार कृषि का पश्चिमी मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है लेकिन सरकार यह बात भूल जाती है कि हमारे किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं हो सकती क्योंकि हमारे यहां भूमि-जनसंख्या अनुपात पश्चिमी देशों से अलग है और हमारे यहां खेती-किसानी जीवनयापन करने का साधन है वहीं पश्चिमी देशों में यह व्यवसाय है।
"अनुभव बताते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों का शोषण होता है। पिछले साल गुजरात में पेप्सिको कम्पनी ने किसानों पर कई करोड़ का मुकदमा किया था जिसे बाद में किसान संगठनों के विरोध के चलते कम्पनी ने वापस ले लिया था।" वे आगे कहते हैं।
Nothing is more important to us than the welfare of farmers. MSP & assured marketing of crops is the question of life & death for the beleaguered peasantry and we understand this. @Akali_Dal_ is ready to make any sacrifice needed to ensure they continue as assured by the GOI. 1/5 pic.twitter.com/YX5kq5x9Pu
— Sukhbir Singh Badal (@officeofssbadal) July 19, 2020
अभिमन्यु आगे कहते हैं, "कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत फसलों की बुआई से पहले कम्पनियां किसानों का माल एक निश्चित मूल्य पर खरीदने का वादा करती हैं लेकिन बाद में जब किसान की फसल तैयार हो जाती है तो कम्पनियाँ किसानों को कुछ समय इंतजार करने के लिए कहती हैं और बाद में किसानों के उत्पाद को खराब बता कर रिजेक्ट कर दिया जाता है।"
#Rajasthan #Ganganagar #farmers marching to SDM/DC office, to register their protest against the agri ordinances, which is being seen as a step towards stopping the Min Support Procurement of crops. Similar preparations are on in #Punjab & #Haryana too. #20जुलाई_ट्रैक्टर_प्रदर्शन pic.twitter.com/dVGMwzmd3K
— Ramandeep Singh Mann (@ramanmann1974) July 20, 2020
"केंद्र सरकार का कहना है कि इन तीन कृषि अध्यादेशों से किसानों के लिए फ्री मार्केट की व्यवस्था बनाई जाएगी जिससे किसानों को लाभ होगा, लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि अमेरिका व यूरोप में फ्री मार्केट यानी बाजार आधारित नीति लागू होने से पहले 1970 में रिटेल कीमत की 40% राशि किसानों को मिलती थी, अब फ्री मार्केट नीति लागू होने के बाद किसानों को रिटेल कीमत की मात्र 15% राशि मिलती है यानी फ्री मार्केट से कम्पनियों व सुपर मार्केट को फायदा हुआ है।"
कैबिनेट ने कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020 को दी मंजूरी।
— Narendra Singh Tomar (@nstomar) June 3, 2020
अध्यादेश के लागू हो जाने से किसानों के लिए एक सुगम और मुक्त माहौल तैयार हो सकेगा, जिसमें उन्हें अपनी सुविधा के हिसाब से कृषि उत्पाद खरीदने और बेचने की आजादी होगी।#CabinetDecisions pic.twitter.com/2LZcIq9GXI
"फ्री मार्केट नीति होने के बावजूद किसानों को जीवित रखने के लिए यूरोप में किसानों को हर साल लगभग सात लाख करोड़ रुपये की सरकारी मदद मिलती है। अमेरिका व यूरोप का अनुभव बताता है कि फ्री मार्केट नीतियों से किसानों को नुकसान होता है।" अभिमन्यु कहते हैं।
3. फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस
केंद्र सरकार ने जून 2020 में फार्मिंग प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) अध्यादेश 2020 को मंजूरी दी दी थी। इसके तहत किसानों को एपीएमसी में अपनी उपज बेचने की बाध्यता नहीं होगी। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने इसे लेकर कहा था कि किसानों को उनकी बिक्री की आजादी के लिए एपीएमसी एक्ट में सुधार नहीं किया गया है बल्कि ये एक नया एक्ट है और यह व्यापार के लिए है। इसका नाम 'किसान उपज व्यापार वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण अध्यादेश 2020 है।
वे आगे कहते हैं कि मौजूदा एपीएमसी मंडियां अपना काम जारी रखेंगी। राज्य एपीएमसी कानून बना रहेगा, लेकिन मंडियों के बाहर यह लागू नहीं होगा। अध्यादेश मूल रूप से एपीएमसी मार्केट यार्ड के बाहर अतिरिक्त व्यापारिक अवसर पैदा करने के लिए है ताकि अतिरिक्त प्रतिस्पर्धा के कारण किसानों को लाभकारी मूल्य मिल सके।
लेकिन किसानों को लगता है इस बदलाव से उन्हें नुकसान होगा। राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष राहुल राज कहते हैं, "सरकार के इस फैसले से मंडी व्यवस्था ही खत्म हो जायेगी। इससे किसानों को नुकसान होगा और कॉरपोरेट और बिचौलियों को फायदपा होगा।"
वे आगे कहते हैं, "फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस में वन नेशन, वन मार्केट की बात कही जा रही है लेकिन सरकार इसके जरिये कृषि उपज विपणन समितियों (APMC) के एकाधिकार को खत्म करना चाहती है। अबर इसे खत्म किया जाता है तो व्यापारियों की मनमानी बढ़ेगी, किसानों को उपज की सही कीमत नहीं मिलेगी।"
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