उत्‍तर प्रदेश: धान बेचने की लड़ाई लड़ रहे किसान, मिलर्स ने बढ़ाई परेशानी

उत्‍तर प्रदेश के अलग-अलग हिस्‍सों में एक अक्‍टूबर और एक नवंबर से धान की खरीद होनी थी, लेकिन पहले केंद्र प्रभारियों की हड़ताल की वजह से खरीद देरी से शुरू हुई और फिर मिलर्स की हड़ताल ने इसमें रोड़ा लगा दिया।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   20 Nov 2018 1:52 PM GMT

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उत्‍तर प्रदेश: धान बेचने की लड़ाई लड़ रहे किसान, मिलर्स ने बढ़ाई परेशानी

बाराबंकी. उत्‍तर प्रदेश के बाराबंकी में सरकारी क्रय केंद्रों पर धान बेचने के लिए किसान पिछले 16 नवंबर से लड़ाई लड़ रहे थे। किसान ट्रैक्‍टर ट्रॉली पर धान लादकर यहां पहुंचे थे और प्रशासन से इसे खरीदने की मांग कर रहे थे। किसानों के विरोध को देखते हुए प्रशासन ने उन्‍हें टोकन बांट दिए हैं, जिससे वो सरकारी क्रय केंद्र पर जाकर धान बेच सकें। गौरतलब है कि प्रदेश में एक नवंबर से धान की खरीद होनी थी, लेकिन पहले केंद्र प्रभारियों की हड़ताल की वजह से खरीद देरी से शुरू हुई और फिर मिलर्स की हड़ताल ने इसमें रोड़ा लगा दिया।

बाराबंकी के गन्‍ना केंद्र में आस पास के ब्‍लॉक और गांव के किसान अपना धान लेकर 16 नवंबर को पहुंचे। इन किसानों का इरादा था कि ये धान से लदी ट्रैक्‍टर ट्रॉली को लेकर लखनऊ स्‍थ‍ित विधानभवन की ओर कूच करेंगे और यहीं इसे छोड़कर चले जाएंगे। किसानों के इस कार्यक्रम की जानकारी के बाद बाराबंकी प्रशासन ने उनसे बात की और उन्‍हें धान खरीदने का आश्‍वासन दिया। इसपर किसान मान गए, लेकिन उन्‍होंने पहले आओ पहले पाओ की नीति के तहत प्रशासन से टोकन बनाने का कहा। इसके लिए किसानों की ओर से एक लिस्‍ट भी प्रशासन को सौंपी गई।

प्रशासन की ओर से किसानों को टोकन बांटे गए।

प्रशासन ने किसानों की इस मांग को भी मान लिया और उन्‍हें टोकन देने का भरोसा दिया। ट्रैक्‍टर पर अतरौरा गांव से धान लेकर बाराबंकी पहुंचे अमित वर्मा बताते हैं, ''हमसे वादा किया गया कि 17 नवंबर की रात से ही टोकन मिलने लगेगा, लेकिन 18 नवंबर की सुबह टोकन बंटने शुरू हुए। प्रशासन ने हमारी लिस्‍ट के अनुरूप ही टोकन दिए, लेकिन ये टोकन मिलर्स के नाम दिए गए। सोचने वाली बात है कि मिलर्स एसोसिएशन हड़ताल कर रहे हैं, ऐसे में हम इन टोकन का क्‍या करते।'' अमित कहते हैं, ''प्रशासन बस हमें यहां से भगाना चाहता था, इसलिए गुमराह करने के लिए ये टोकन दिए गए।''

अमित की बात का समर्थन उरौली से आए किसान शिव कैलाश भी करते हैं। शिव कैलाश कहते हैं, ''अधिकारी हमें यहां से जाने के लिए कह रहे थे, पर हम जाते कहां? अब आए हैं तो बेच कर ही जाएंगे। मिलर्स का टोकन हमने वहीं फाड़ दिया। इसका कोई मतलब नहीं था। हमारे इस कदम से अधिकारी नाराज भी हुए। हमारे कई साथियों को जेल भेजने की धमकी भी दी गई, लेकिन हम जानते थे कि ये ऐसा कुछ नहीं कर सकते। अंत में प्रशासन को हमारी मांग माननी पड़ी और हमें अब सरकारी क्रय केंद्रों का टोकन मिल रहा है।'' बाराबंकी के किसानों को जो टोकन दिए जा रहे हैं उसपर वो दो मंडियों में अपने धान बेच सकते हैं।

''करीब 200 किसानों को टोकन दिए जा रहे हैं। ये लोग सफदरगंज और बाराबंकी मंडी में स्‍थित सरकारी क्रय केंद्रों पर अपना धान बेच सकते हैं।''- एडीएम संदीप गुप्‍ता

हालांकि 1 नवंबर से धान की खरीद होनी थी, लेकिन 20 नवंबर तक भी इन किसानों का धान नहीं खरीदा गया है। इसपर दरारा गांव से आए बृजेश वर्मा कहते हैं, ''अगर धान खरीद में 20 दिन लेट हुआ है तो क्‍या सरकार 20 दिन ज्‍यादा तक खरीद करेगी? इससे पहले हमारे साथ कभी ऐसा नहीं हुआ। सरकार धान खरीदना ही ही नहीं चाहती इसलिए खराब बताकर इसे नकारा जा रहा है।'' बृजेश कहते हैं, ''सरकारी क्रय केंद्रों पर बेचने के लिए किसान को ऑनलाइन रजिस्‍ट्रेशन करना होता है। 15 नवंबर तक रजिस्‍ट्रेशन भी बंद हो गया है। ऐसे में जिन किसानों को रजिस्‍ट्रेशन नहीं हुआ उन्‍हें निजी व्‍यापारियों को ही धान बेचना होगा।''


गौरतलब है कि धान का सरकारी रेट 1750 रुपए है। सरकार ने 638 खरीद केंद्रों के माध्यम से 50 लाख टन धान खरीद का लक्ष्य भी रखा, लेकिन एक अक्टूबर से शुरू हुई उत्तर प्रदेश में सरकारी खरीद लक्ष्य के अनुरूप काफी कम है। वहीं, सरकारी खरीद की जटिल प्रक्रिया की वजह से सरकारी केंद्र पर धान बेचना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। हालात ये है कि किसान 11 से 12 सौ रुपये तक में निजी व्यापारियों को धान बेच रहे हैं।

''इतनी मेहनत के बाद अपना धान बेचने के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है तो इससे ज्‍यादा दुर्भाग्‍य और क्‍या होगा। हम 16 नवंबर से यहां पड़े हैं, किसी को कोई मतलब नहीं। अब ऐसे में सरकारी क्रय केंद्र पर धान बेचकर भी हमारा क्‍या फायदा होगा, जब हमें इतना परेशान किया गया। इससे अच्‍छा तो निजी व्‍यापारी को ही धान बेच देते।''- मझौली गांव के किसान महेंद्र कुमार

किसानों की धान खरीद न हो पाने के पीछे एक वजह मिलर्स की हड़ताल भी है। हड़ताल पर चल रहे उत्‍तर प्रदेश मिलर्स एसोसिएशन की मांग है कि सरकारी रिकवरी का प्रतिशन 67 की बजाए 62 किया जाए। सरकार मिलर्स से 100 किलो धान में 67 किलो चवाल चाहती है, लेकिन मिलर्स का कहना है कि इससे उन्‍हें नुकसान हो रहा है। साथ ही उनकी मांग है 1990 से चले आ रहे कुटाई के दर को बढ़ाया जाए। अभी इन्‍हें धान कुटाई का 1 कुंतल के पीछे 10 रुपए दिया जाता है। मिलर्स की मांग है कि इसे कम से कम 150 रुपए किया जाए।

ये भी पढ़ें: एमएसपी पर धान क्यों नहीं बेच पा रहे किसान, यह भी है एक बड़ी वजह

मिलर्स की हड़ताल पर अतरौरा से आए किसान प्रांजल वर्मा कहते हैं, ''उनकी मांग भी जायज है। वो लोग परेशान हैं, इसलिए ही मांग कर रहे होंगे। अगर उनकी मांग मान ली जाती तो हम लोग भी परेशान न होते और आज धान खरीद चल रही होगी। सरकार को उनकी मांगों को लेकर भी सोचना चाहिए, जिससे इसका जल्‍द से जल्‍द हल निकल सके।''

प्रशासन की ओर से किसान को दिया गया टोकन।

13 नवंबर तक खाद्य व रसद विभाग में हड़ताल के चलते धान क्रय केद्रों पर ताले लटके रहे। विभिन्न मांगों को लेकर पूरे प्रदेश में मार्केटिंग इंस्पेक्टर (खाद्य विपणन विभाग) कर्मचारी हड़ताल पर रहे। जिसके चलते धान की खरीद पूरी तरह ठप्प रही। लगभग दो सप्ताह तक सहकारी समितियों पर ताले लगे रहे, ऐसे में 14 को केंद्र तो खुले लेकिन किसान नदारद रहे।

धान क्रय नीति के तहत सीतापुर, लखीमपुर, बरेली, मुरादाबाद, मेरठ, सहारनपुर, आगरा, अलीगढ़ और झांसी में एक अक्टूबर से 31 जनवरी 2019 तक और लखनऊ, रायबरेली, उन्नाव व हरदोई, चित्रकूट, कानपुर, फैजाबाद, देवीपाटन, बस्ती, गोरखपुर, आजमगढ़, वाराणसी, मिर्जापुर और इलाहाबाद मण्डलों में एक नवंबर, 2018 से 28 फरवरी, 2019 तक धान की खरीद की जाएगी। लेकिन प्रदेश के लगभग सभी जिलों में धान की खरीदी अपेक्षा अनुसार नहीं हो पा रही है। लखनऊ में 14 धान क्रय केंद्र बनाए गए हैं जहां एक नवंबर से खरीद शुरू होनी थी, लेकिन आंकड़ों के अनुसार 15 नवंबर तक राजधानी के किसी भी केंद्र पर धान की आवक नहीं हुई।

फिलहाल मिलर्स एसोसिएशन की हड़ताल की वजह से धान खरीद पर संशय बना हुआ हैै।

उत्तर प्रदेश राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष उमेश चंद्र मिश्रा गांव कनेक्शन से फोन पर कहते हैं "हमारी हड़ताल अभी तक जारी है। हमने इस सत्र में कहीं भी धान नहीं कूटा है, हमारी हड़ताल मांगें पूरी न होने तक जारी रहेंगी।" उमेश आगे कहते हैं "सरकारी क्रय केंद्रों से लेकर कुटाई तक की प्रक्रिया बहुत ही कठिन और पेंचिदा है। भारतीय खाद्य निगम के मानक के अनुसार धान की रिकवरी करीब 52-55 प्रतिशत तक आती है। खंडा आदि लेकर यह करीब 58 से 60 फीसदी पहुंच जाती है। बावजूद इसके प्रदेश सरकार मिलरों से 67 प्रतिशत धान की रिकवरी करती है। इस हिसाब से मिलर को हर साल 12 प्रतिशत का नुकसान हो रहा है।"

13 नवंबर तक के मिले सरकार आंकड़ों के अनुसार अमेठी में मात्र एक क्रय केंद्र पर 50 कुंतल, बहराइच में 300 कुंतल, लखीमपुर खीरी में 21 हजार मीट्रिक टन धान की खरीद हुई। बलरामपुर में लक्ष्य के हिसाब से 2.91 फीसदी खरीद हुई तो वहीं श्रावस्ती में एक केंद्र पर ही धान खरीद हुई। वहीं लखनऊ, गोंडा, फैजाबाद, अंबेडकरनगर, बाराबंकी, सुल्तानपुर, रायबरेली और हरदोई में खाता ही नहीं खुला।


  

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