मोटे अनाजों की अनदेखी कर चावल से कुपोषण दूर करेगी सरकार, होंगे करोड़ों रुपए खर्च

देश के 115 सबसे पिछड़े जिलों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत चलाई जाने वाली इस योजना पर सालाना 12 से 14 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे

Alok Singh BhadouriaAlok Singh Bhadouria   9 Jun 2018 8:13 AM GMT

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मोटे अनाजों की अनदेखी कर चावल से कुपोषण दूर करेगी सरकार, होंगे करोड़ों रुपए खर्च

केंद्र सरकार देश के 115 पिछड़े जिलों के गरीब परिवारों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सुदृढ़ीकृत चावल मुहैया कराने जा रही है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत चलाई जाने वाली इस योजना पर सालाना 12 से 14 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे। लेकिन अगर खाद्य वैज्ञानिकों की नजर से देखें तो सरकार ऐसा करके मोटे अनाजों को बढ़ावा देने की अपनी नीति के उलट काम कर रही है।

हाल ही में केंद्रीय खाद्य मंत्री राम विलास पासवान ने बताया, "नीति आयोग की मदद से सुदृढ़ीकृत चावल मुहैया करने की योजना का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने देश के 115 सबसे पिछड़े जिलों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और सेहत सुधारने के लिए यह कदम उठाया है। इसके लिए इन जिलों में सुदृढ़ीकृत चावल (जरूरी विटामिन और खनिजों से युक्त चावल) का वितरण किया जाएगा। इन जिलों का चुनाव इसलिए भी किया गया है क्योंकि यहां का मुख्य भोजन चावल है।"

खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना था, " एक किलो चावल के सुदृढ़ीकरण पर 40 पैसे का खर्च आएगा। हमने राज्यों से कह दिया है कि वे गेहूं के आटे के सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया भी शुरू कर दें।" उत्तर प्रदेश सरकार में फूड कमिश्नर आलोक कुमार ने ट्वीट कर जानकारी दी कि इन 115 जिलों में उत्तर प्रदेश के 10 जिले मेरठ, सिद्धार्थनगर, मऊ, फैजाबाद, फरूखाबाद, मुरादाबाद, हमीरपुर, इटावा, औरैया और संतकबीरनगर भी शामिल हैं।



क्या हैं सुदृढ़ीकृत अनाज

यहां यह जानना उचित होगा कि सुदृढ़ीकृत चावल या फोर्टीफाइड राइस है क्या और इसकी जरूरत क्यों पड़ी। सुदृढ़ीकृत अनाज ऐसे अनाज हैं जिनकी पोषकता को कृत्रिम तरीके से बढ़ाया जाता है। मसलन, साधारण चावल पर विटामिन और खनिज का छिड़काव करके उन्हें और पोषक बनाया जाता है। ऐसा करने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि समय-समय पर हुए तमाम शोधों में पाया गया कि बदलते समय के साथ हमारी खुराक में जरूरी पोषक तत्व नहीं रह गए हैं।

भारत की बड़ी आबादी है कुपोषित

ऐसी ही एक रिसर्च है अमेरिका स्थित इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टमस एनालिसिस की। डॉ. नरसिम्हा डी. राव की अगुआई में वैज्ञानिकों ने भारत के नेशनल सेंपल सर्वे (2011-12) का अध्ययन किया और पाया कि भारत की दो-तिहाई आबादी प्रोटीन, जिंक और आयरन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों व विटामिन ए की कमी से ग्रस्त है। इस शोध से मिले आंकड़ों के मुताबिक, भारतीयों की लगभग 90 फीसदी खाने-पीने की चीजों में आयरन की कमी है, 85 फीसदी में विटामिन ए की कमी है और 50 फीसदी से ज्यादा में प्रोटीन की कमी है। आमतौर पर भारतीयों के भोजन में प्रोटीन और कैलोरी से ज्यादा सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होती है।

चावल की तुलना में गेहूं और मोटे अनाज ज्यादा पौष्टिक हैं

यह स्टडी इस लिहाज से दिलचस्प है कि यह भारत में कुपोषण को क्षेत्रीय आधार पर उजागर करती है। इसके हिसाब से, भारत के दक्षिण और पूर्व (जहां चावल मुख्य आहार है) में रहने वाले लोग उत्तर और पश्चिम में रहने वालों (जहां गेहूं मुख्य आहार है ) के मुकाबले कम पोषक भोजन करते हैं। इसी तरह शहरी क्षेत्रों के भोजन में ग्रामीण इलाकों की तुलना में सूक्ष्म पोषक तत्वों की ज्यादा कमी पाई गई, खासकर कम आय वाले परिवारों में। चूंकि ग्रामीण इलाकों में कई तरह का अनाज खाया जाता है इसलिए वहां के आहार में सूक्ष्म पोषक तत्व ज्यादा पाए गए।

चावल की जगह मोटे अनाज को बढ़ावा देना बेहतर

इस शोध के आधार पर यह नतीजा निकाला गया कि अगर चावल की जगह गेहूं और मोटे अनाज, मीट की जगह दालें, हरी सब्जियां और नारियल खाया जाए तो ज्यादा आसानी से कुपोषण कम किया जा सकता है। डॉ. नरसिम्हा डी. राव का कहना है, "खान-पान में इस बदलाव से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भी कमी आएगी, क्योंकि लोग चावल की जगह मोटे अनाज का उत्पादन करने लगेंगे।

यह शोध ऐसे समय में आया है जब खुद भारत सरकार मोटे अनाजों को प्रोत्साहन दे रही है। साल 2018 को मोटे अनाजों का वर्ष भी घोषित किया गया है। यही नहीं, इन्हें सार्वजनिक वितरण व्यवस्था (पीडीएस) में शामिल करके राशन की दुकानों पर भी उपलब्ध कराने का फैसला लिया गया है। सरकार मोटे अनाजों को न्यूट्री सीरियल्स या पोषक अनाज के तौर पर प्रचारित कर रही है। पर जब यही सरकार पीडीएस के तहत आयरन फोर्टीफाइड राइस बांटेगी तो चावल की खपत और उत्पादन दोनों बढ़ेंगे जिससे ग्रीन हाउस उत्सर्जन की समस्या बढ़ेगी जिसे कम करने को लेकर विकसित देश भारत पर दबाव बनाते रहते हैं।

पोषण के अलावा मोटे अनाज की खेती के अपने फायदे हैं। चावल की तुलना में इन्हें कम पानी की जरूरत होती है। ये सूखा, मिट्टी और पानी का खारापन व गर्म वातावरण झेलने में सक्षम होते हैं। इन्हें कीटनाशकों और रासायनिक खाद की भी कम जरूरत होती है। इसलिए बेहतर होगा कि सरकार चावल को सुदृढ़ीकृत करने पर जो खर्च कर रही है उसकी जगह मोटे अनाज के उपयोग बढ़ाने पर खर्च करे तो धरती और इंसानों की सेहत दोनों को लाभ होगा।

नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज के श्रीनगर रीजनल रिसर्च स्टेशन पर तैनात वैज्ञानिक एम. शेख का कहना है, मोटे अनाजों को लोग भूल गए हैं लेकिन अगर इनकी खेती का चलन फिर से लौटे तो इससे हमारी सेहत और जलवायु दोनों को लाभ होगा।

(आंकड़े और रिसर्च की जानकारी Mongabay India से ली गई)

    

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