नक्सल अभियान से कहीं अधिक हार्ट अटैक, स्युसाइड से जाती है सीआरपीएफ जवान की जान 

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नक्सल अभियान से कहीं अधिक हार्ट अटैक, स्युसाइड से जाती है सीआरपीएफ जवान की जान वर्ष 2015 में सीआरपीएफ के पांच जवान, वर्ष 2016 में 31 जवान और इस वर्ष अप्रैल तक 13 जवानों की जान गई

नई दिल्ली (भाषा)। पिछले दो साल में सीआरपीएफ जवानो‍ं की मौत नक्सल हिंसा के बजाय हार्ट अटैक, डिप्रेशन और स्युसाइड से अधिक हुई है। सरकार ने बताया कि नक्सल हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में विभिन्न अभियानों और घात लगाकर किए गए हमलों की तुलना में शहीद होने वाले जवानों से 24 गुना अधिक सीआरपीएफ जवानों की जान ऊपर दी हुईं वजहों से हुई है।

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज जी अहीर ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड के तीन वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों में वर्ष 2015 में सीआरपीएफ के पांच जवान, वर्ष 2016 में 31 जवान और इस वर्ष अप्रैल तक 13 जवानों की जान गई। इन अभियानों अथवा काम के दौरान हुई मौतों की तुलना में पिछले वर्ष देश के इस विशालतम अर्द्धसैनिक बल के 476 जवान मारे गए जबकि वर्ष 2015 में 407 जवान मारे गए।

पिछले वर्ष के आंकड़े दर्शाते हैं कि केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 92 जवान हृदयाघात के कारण, पांच मलेरिया और डेंगू के कारण, अवसाद व आत्महत्या करने की वजह से 26 जवान और गैर सैन्य कारणों से 353 जवानों की मौत हुई।

इसी प्रकार वर्ष 2015 के आंकड़े दर्शाते हैं कि बल के 82 जवानों की मौत हृदयाघात के कारण, मलेरिया और डेंगू के कारण, 13 जवानों की, अवसाद एवं आत्महत्या करने की वजह से 35 जवानों की और दूसरे कारणों से 277 जवानों की मौतें हुई।

तीन लाख जवानों वाला सीआरपीएफ देश का सबसे बड़ा पुलिस बल

करीब तीन लाख जवानों वाला सीआरपीएफ, देश का विशालतम केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) है। नक्सलविरोधी अभियान चलाने वाला यह प्रमुख बल है और देश के आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर विभिन्न दायित्वों का निर्वाह करता है।

सम्मिलित आंकड़े दर्शाते हैं कि पिछले दो वर्षों में अभियान संबंधी मौतों की तुलना में हृदयाघात, अवसाद, आत्महत्या, मलेरिया, डेंगू और दूसरे ऐसे कारणों से सीआरपीएफ के जवानों और अधिकारियों की 24 गुना अधिक मौतें हुई हैं।

मंत्री ने कहा कि माओवाद विरोधी अभियान में लगे इस बल के सैनिकों के मनोबल को बढ़ाने के लिए जोखिम भत्ते का अनुदान, आवास किराया भत्ता और सेवाकाल के अंतिम दिनों में दिए गए सरकारी आवास को रखने की सुविधा की समयसीमा का विस्तार जैसे उपाय पहले से ही लागू हैं।

       

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