ग्राम पंचायत: कागजों पर बन रही सड़क, नाली और खड़ंजा, जमीन पर कुछ नहीं

Ranvijay SinghRanvijay Singh   4 Sep 2019 5:35 AM GMT

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बरेली (उत्‍तर प्रदेश)। ''पेपर में सब बना है, जमीन पर कुछ नहीं।'' यह बात कहकर 40 साल के अनोखे लाल ठहाके लगाकर हंस देते हैं। उनकी इस बात पर उनके साथ बैठे करीब 20 गांव वाले भी हंसने लगते हैं।

अनोखे लाल अपने गांव के बाहर पीपल के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठे हैं। क्‍योंकि यह गर्मी का मौसम है ऐसे में दोपहर का वक्‍त काटने के लिए गांव के दूसरे लोग भी पेड़ के नीचे जमावड़ा लगाए हैं। कोई हाथ में पंखा लिए डोला रहा है तो कोई खैनी पीट रहा है। गांव कनेक्‍शन की टीम जब इनके बीच पहुंची तो यह लोग जरा सचेत हुए। आपस में कुछ बात करने के बाद टीम से परिचय लिया।

परिचय अदान प्रदान के बाद जब गांव कनेक्शन की ओर से उनसे पूछा जाता है कि आपके गांव में 'बादाम सिंह के घर से लेकर प्रताप सिंह के घर तक खड़ंजा और नाली निर्माण हुआ है न?' इसी सवाल के जवाब में अनोखे लाल कहते हैं- ''पेपर में सब बना है, जमीन पर कुछ नहीं।'' और इसी के साथ माहौल में हंसी गूंज उठती है।

यह कहानी है उत्‍तर प्रदेश के बरेली जिले की पिपौली ग्राम पंचायत की। हाल के दिनों में गांव वालों की ओर से उनकी पंचायत में घोटाले को लेकर आवाज उठाई गई है। इस बात की शिकायत शेरगढ़ ब्‍लॉक के ब्लॉक विकास अधिकारी (बीडीओ) से भी की गई है। शिकायत के आधार पर बीडीओ ने मामले में जांच के आदेश दे दिए हैं। यह खबर तमाम स्‍थानीय अखबारों में छपी, ज‍िसके बाद गांव कनेक्‍शन की टीम इस गांव पहुंची।

ऐसा नहीं है कि पिपौली एकलौती ग्राम पंचायत है जहां भ्रष्‍टाचार का मामला सामने आया है। ग्राम पंचायत में भ्रष्‍टाचार के मामले अक्‍सर सामने आते रहते हैं। गूगल पर 'ग्राम पंचायत' लिखते ही भ्रष्‍टाचार की खबरें देखने को मिलती हैं। अखबारों में भी एक-दो कॉलम में ऐसी खबरें छपा ही करती हैं। ऐसे में देश भर की ग्राम पंचायतों से आ रही इन खबरों से भष्‍टाचार का आंकलन लगाने से पहले यह जान लेना चाहिए कि देश में कितनी पंचायतें हैं।

उत्‍तर प्रदेश के बरेली जिले की पिपौली गांव के लोग।

पंचायतों का सशक्तिकरण 90 के दशक में हुआ था। पंचायती राज व्यवस्था का निर्माण स्थानीय विकास को बल दिलाने के लिए किया गया था। भारत में 2.51 लाख पंचायतें हैं, जिनमें 2.39 लाख ग्राम पंचायतें हैं। इसमें 6904 ब्लॉक पंचायतें और 589 जिला पंचायतें शामिल हैं। देश में 29 लाख से अधिक पंचायत प्रतिनिधि हैं। यह आंकड़े इस बात को सोचने पर मजबूर करते हैं कि ग्राम पंचायत में हो रहे भ्रष्‍टाचार की खबरों में अगर जरा भी सत्‍यता है तो यह कितना बड़ा घालमेल हो सकता है।

अगर पंचायतों को दिए जाने वाले फंड की बात करें तो 2015 में 14वीं वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार अगले पांच वर्षो तक पंचायतों को तीन गुना अधिक फंड दिया जाएगा। यानि पंचायतों को मिलने वाली राशि 63,051 करोड़ रुपए (13.3 बिलियन डॉलर) से बढ़ कर 200,292 करोड़ (31.2 बिलियन डॉलर) हो गई। इस आंकड़े से साफ होता है कि जहां एक ओर इस हिसाब का पैसा ग्रामीण भारत के लिए फ्लो हो रहा है, वहीं अब भी गांव बदहाल ही पड़े हैं। इसके पीछे की एक वजह ग्राम पंचायतों में फैला भ्रष्‍टाचार ही है।

फिलहाल बात करते हैं बरेली की पिपौली ग्राम पंचायत की। यहां के रहने वाले बेचेलाल (45 साल) बताते हैं, ''गांव के ही जगन लाल के मकान से रामचंद्र के मकान तक नाली पर डिप कार्य (चौराहे और तिराहे पर नाली पर पड़ने वाली स्‍लैब) कराया गया है। इसके लिए अलग अलग मदों में पैसे भी निकाले गए हैं। आप खुद चलकर देखें आपको कहीं डिप कार्य नहीं मिलेगा। मेरा घर भी इस बीच में पड़ता है। मेरे घर तो नाली भी नहीं है। न जाने कहां डिप कार्य कराया गया।''

बेचेलाल आगे कहते हैं, ''कागजों का पेट भरा है, लेकिन लोगों का नहीं भरा। कागजों में काम हुए हैं, लेकिन जमीन पर काम नहीं हुए। कई रोड, नाली, खड़ंजा तो पेपर में बन गए हैं, असल में कहां हैं हमें पता ही नहीं। इन्‍हीं सब शिकायतों को लेकर गांव वालों ने बीडीओ के पास शिकायत की है।''

कागज में डिप कार्य, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं।

कागजों में हुए काम की बात करें तो गांव के ही बादाम सिंह के घर से लेकर प्रताप सिंह के घर तक नाली और खड़ंजा निर्माण का कार्य होना दिखाया गया है। जब गांव कनेक्‍शन की टीम बादाम सिंह (48 साल) से मिली तो उन्‍हें इस बात की जानकारी ही नहीं थी। बादाम सिंह अपने घर के बाहर बनी कच्‍ची नाली को दिखाकर कहते हैं, ''यह मैंने अपने हाथों से बनाई है। आप आए हैं तो पता चला कि ऐसा कोई काम भी हुआ है।''

कुछ ऐसा ही हाल प्रताप सिंह (52 साल) का भी है। प्रताप भी अपने घर के बाहर खुले में बहते पानी को दिखाकर कहते हैं, ''आप बता रहे हैं कागज में नाली बनना बताया गया है, कहां है नाली? हमारे घर का सारा पानी सड़क पर बह रहा है। कई बार प्रधान से बता भी चुके हैं, लेकिन कोई सुने तब तो।''

इस बारे में जब ग्राम प्रधान दुर्गा प्रसाद से फोन पर बात की गई तो उन्होंने कहा, ''गांव में कहां-कहां काम हुआ है इस बारे में पंचायत सेक्रेट्री ज्‍यादा अच्‍छे से बता पाएंगे। उनके पास लिख‍ित में सारी चीजें है। मैं क्‍या बताऊं की कहां काम हुआ है या कहां नहीं।'' जब पंचायत सेक्रेट्री से फोन पर बात करने की कोश‍िश की गई तो उनका नंबर स्‍विचऑफ बता रहा था।

मामले पर शेरगढ़ के ब्‍लॉक विकास अध‍िकारी (बीडीओ) अतुल यादव का कहना है, पिपौली ग्राम पंचायत का मामला संज्ञान में आया है। ग्रामीणों की ओर से शिकायत की गई है। मेरी ओर से जांच के आदेश दे दिए गए हैं। एडीओ एजी और जूनियर इंजीनियर इसकी जांच करेंगे।

कागजों में बन नाली असल में है ही नहीं।

भ्रष्‍टाचार को लेकर यह अकेली कहानी नहीं है। ऐसी कई कहानियां कई ग्राम पंचायतों से आती ही रहती हैं। इसी 28 अगस्‍त को 'नई दुनिया' की एक खबर भी ग्राम पंचायत के भ्रष्‍टाचार को लेकर है। इस खबर का शीर्षक है- ''सरपंच, सचिव व रोजगार सहायक पर पंचायत की राशि से ट्रैक्टर लेने का आरोप।'' यह खबर मध्यप्रदेश के सीहोर जिले की ग्राम पंचायत कादराबाद की है।

खबर में बताया गया है कि ग्रामीण का कहना है- 'वर्ष 2015 जनवरी से मार्च 2019 तक ग्राम पंचायत को 90 लाख 18 हजार 93 रुपए प्राप्त हुए हैं। इसमें से 66 लाख 81 हजार 577 रुपए विकास कार्यों में खर्च होना बताया जा रहा है। जबकि 23 लाख 36 हजार 516 रुपए शेष राशि बचत में बताई गई है, लेकिन खर्च की गई राशि से क्या कार्य किए गए हैं। इसकी जानकारी लिखित में नहीं दी गई है। बार-बार पूछने पर मौखिक रूप से जो विकास कार्य बताए जा रहे हैं, वह ग्राम पंचायत में नजर नहीं आ रहे हैं। सरपंच, सचिव और रोजगार सहायक तीनों ने ट्रैक्टर ले लिए हैं। इसलिए इस मामले की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए।'

यह तो हुई बात मध्‍यप्रदेश की। इसी 22 अगस्‍त को हिमाचल प्रदेश की विधानसभा में भी ग्राम पंचायत में हो रहे भ्रष्टाचार को लेकर चर्चा हुई थी। इस चर्चा में चिंतपूर्णी से भाजपा विधायक बलबीर सिंह ने ग्राम पंचायत में फंड के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर करते हुए कहा, 'ग्राम पंचायतें भ्रष्‍टाचार की मांद बनती जा रही हैं।' उन्‍होंने पंचायतों में हो रहे विकास कार्यों के लिए धन का सदुपयोग और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए सदन में संकल्प प्रस्ताव भी लाया, जिसे सत्तापक्ष और विपक्ष के कई विधायकों ने समर्थन दिया।

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यानि ग्राम पंचायतों में भ्रष्‍टाचार का मामला व्‍यापक है और इसे भी देश में फैले अन्‍य भ्रष्‍टाचार की तरह गंभीरता से लेनी की जरूरत है। क्‍योंकि जनगणना के मुताबिक भारत में कुल 597,464 गांव हैं। इनमें रहने वाले बहुत से लोगों को जीवन इस भ्रष्‍टाचार से सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है। करीब 69 फीसदी भारत अब भी ग्रामिण इलाकों में बसता है।

ऐसा नहीं है कि देश भर में हर जगह पंचायतें खराब काम ही कर रही हैं। देश भर के पंचायतों की बात करें तो केरल के ग्रामीण संस्थानों की स्थिति सबसे बेहतर है। पंचायती राज मंत्रालय द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक- ''वित्त मामले में केरल पहले स्थान पर है, दायित्व एवं कार्यकर्ताओं के मामले में दूसरे स्थान पर और संरचना और कार्य बेहतर तरीके से करने में तीसरे स्थान पर है। केरल में पंचायतों के काम बेहद पारदर्शी हैं।'' हाल यह है कि राज्य ने अधिकतम कार्य पंचायत को सौंप रखा है। पंचायती राज मंत्रालय द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक केरल के बाद, ग्रामीण संस्थानों की बेहतर स्थिति कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु की हैं।


   

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