भूजल संकट: कर्नाटक-राजस्‍थान में लोन लेकर बोरवेल लगवा रहे किसान, पानी मिलने की गारण्‍टी नहीं

कर्नाटक देश का चौथा राज्‍य है, जहां गहराई तक बोरवेल करने की जरूरत पड़ रही है। पहले नंबर पर राजस्‍थान, दूसरे पर आंध्र प्रदेश और तीसरे पर तमिलनाडु है।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   3 Dec 2018 5:41 PM GMT

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भूजल संकट: कर्नाटक-राजस्‍थान में लोन लेकर बोरवेल लगवा रहे किसान, पानी मिलने की गारण्‍टी नहीं

नई दिल्‍ली। 'हमारे गांव में सूखा पड़ा है। फसल के लिए पानी नहीं है। बोरवेल लगाने के लिए लोन लिया था, लेकिन 1 हजार फीट पर भी पानी नहीं निकला। अब सर पर कर्ज का बोझ भी है और फसल भी बर्बाद हो गई।' ये बात 'किसान मुक्‍ति मार्च' में कर्नाटक के डोड्डाबल्लापुरा तालुका से दिल्‍ली आईं मंजुड़ा कहती हैं। मंजुड़ा की ही तरह कर्नाटक से कई किसान परिवार पानी की समस्‍या लेकर इस मार्च में आए थे।

मंजुड़ा के साथ आईं सुनीता ने भी बोरवेल के लिए लोन लिया है, लेकिन बोरवेल कराने पर जमीन से पानी ही नहीं निकला, अब सुनीता पर डेढ़ लाख का लोन है। सुनीता बताती हैं, ''डोड्डाबल्लापुर तालुका में उनके जैसे कई किसान परिवार हैं, जिन्‍होंने बोरवेल के लिए लोने ले रखा है।'' डोड्डाबल्‍लापुरा तालुका कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु से 40 किमी की दूरी पर स्‍थित है। कर्नाटक के दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले यहां कम बारिश होती है। कम बारिश और भूमिगत जल के अत्‍यधि‍क दोहन की वजह से इस इलाके का अधिकांश भूमिगत जल भी सूख गया है।

'किसान मुक्‍ति मार्च' में कर्नाटक के डोड्डाबल्लापुरा तालुका से दिल्‍ली आईं मंजुड़ा और सुनीता।

ऐसा नहीं कि ये समस्‍या सिर्फ डोड्डाबल्लापुर तालुका तक ही सिमित है। ये पूरे कर्नाटक में फैली हुई समस्‍या है। भूमिगत जल के लगातार गिरते स्‍तर से यहां हर काई परेशान है। सुनीता और मंजुड़ा के साथ आए बेलगाम के नागरा गांव के रहने वाले लिंगो पाटिल कहते हैं, ''कर्नाटक में आपको हर खेत में बोरवेल मिल जाएगा। वहां भूमिगत जल इतना नीचे चला गया है कि जितनी तेजी से बोरवेल लगाए जाते हैं उतनी ही तेजी से वो सूख भी जाते हैं।'' लिंगो कहते हैं, ''किसान को खेती करनी है, जब आसमान से राहत नहीं मिल रही तो वो जमीन से पानी निकालकर खेती करना चाहता है, लेकिन यहां भी उसके हाथ खाली हैं। ऐसे में पानी न होने की वजह से फसल का नुकसान तो होता ही है साथ ही किसान पर कर्ज भी बढ़ता जाता है। हमारे गांव में भी बहुत बोरवेल किया गया है।''

2017 में World Water Day के दिन कर्नाटक सरकार ने भी स्वीकार किया था कि राज्य में कुल 176 तालुकों में से 140 से अधिक का भूजल अत्‍यधिक दोहन की वजह से समाप्‍त हो गया है। इस समस्‍या पर जिओ रेन वॉटर बोर्ड के वर्षा जल संचयन विशेषज्ञ एनजे देवराज रेड्डी कहते हैं, ''20 साल पहले डोड्डाबल्लापुर तालुका किसानों के लिए बहुत अच्‍छा था। वहां खेती बहुत अच्‍छी थी, सब हरा भरा था। लेकिन पिछले 20 साल में हर खेत में 5 से 10 तक बोरवेल लगाए गए हैं। इनसे भूजल का अत्‍यधिक दोहन किया गया और अब ये हालात हैं।''

देवराज रेड्डी कहते हैं, ''4 एकड़ वाला छोटा किसान भी 5 से 10 बोरवेल लेकर रखा है। इनसे हो रहे अत्‍यधिक दोहन और लगातार कम होती बारिश की वजह से अब दिक्‍कत होने लगी है। चिकबल्लापुर जिले को लिया जाए तो यहां के एक गांव में 1 हजार के करीब लोग रहते हैं। इनमें से 200 किसान हैं। हर किसान के पास 5 से 10 बोरवेल होगा। साथ ही जितने बोरवले चलती हालत में होंगे उतने ही सूख भी चुके हैं। इस जिले में रोजाना तीन से चार किसानों का बोरवेल सूख जाता है।''

''अगर बात करें एक सीजन (दिसंबर से जून) की तो चिकबल्लापुर जिले में एक हजार फीट तक के बोरवेल लगाने में रोजाना 2 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। इस क्षेत्र में 40 के करीब ड्रिलिंग मशीन हमेशा काम पर लगी रहती हैं। इनमें से 20 से 30 प्रतिशत बोरवेल से ही पानी निकल पाता है, बाकी 70 से 80 प्रतिशत बोरवेल नाकाम ही होते हैं।'' - देवराज रेड्डी कहते हैं।

देवराज रेड्डी बताते हैं, ''कर्नाटक में बोरवेल माइनिंग की तरह किया जा रहा है। कर्नाटक में जल संरक्षण के लिए काम होना चाहिए। किसानों को मानसिक तौर पर तैयार करना होगा। अभी उसे लग रहा है कि जमीन में पानी तो है ही, लेकिन उसे समझाना होगा कि अब जमीन में भी पानी नहीं बचा। इसके लिए बहुत काम करना है।''

बता दें, कर्नाटक देश का चौथे नंबर का राज्‍य है जहां गहराई तक बोरवेल करने की जरूरत पड़ रही है। पहले नंबर पर राजस्‍थान, दूसरे पर आंध्र प्रदेश और तीसरे पर तमिलनाडु है। माइनर इरिगेशन सेंसस के मुताबिक, कर्नाटक में 1,18,763 बोरवेल 70 मिटर से ज्‍यादा गहराई में लगे हैं, तो राजस्‍थान में 1,06,002 बोरवेल 150 मिटर से ज्‍यादा की गहराई में लगाए गए हैं।

राजस्‍थान के बिकानेर के पलाना गांव में भूजल 1200 से 1600 फीट पर पहुंच गया है। यहां के रहने वाले आशूराम गोदारा बताते हैं, हमारे गांव में पहला बोरवेल 1999 में हुआ था। उस वक्‍त 500 फीट पर पानी आ गया था। उस वक्‍त बोरवेल कराने का खर्च पांच लाख तक आता था। अब पानी का लेवल 1200 से 1600 फीट हो गया है और खर्च बढ़कर 15 से 17 लाख तक पहुंच गया है।

राजस्‍थान के पलाना गांव में खराब बोरवेल।

आशूराम बताते हैं, ''उनके गांव की आबादी चार हजार है और यहां साढ़े चार सौ बोरवेल लगे हैं। हालांकि पानी का स्‍तर नीचे होने की वजह से अब बोरवेल से पानी भी कम ही आता है।'' आशूराम कहते हैं, ''इसकी कोई गारंटी नहीं कि आपका लगाया गया बोरवले कब बंद हो जाए। ऐसे में फसलों को नुकसान होता है। और एक बार किसी ने कर्ज लेकर बोरवेल करा लिया तो बिगड़ने पर वो इस स्‍थ‍िति में भी नहीं रहता कि उसे बनवा सके।''

आशूराम ने 2009 में पहला बोरवेल कराया था। वो बोरवेल 1 साल तक चला। इसके बाद दूसरा बोरवेल 6 महीने, तीसरा बोरवेल 4 साल चला। आशूराम बताते हैं, उन्‍होंने अपने चौथे बोरवेल को पहले 600 फीट पर लगाया था, फिर उसे 900 फीट पर कराया और अब 1600 फीट पर करवाया है। आशूराम कहते हैं, ''हमारे गांव में हर खेत में 2 से 4 बोरवेल मिल जाएंगे। किसान को खेती के लिए पानी की जरूरत है। ऐसे में वो साहूकार से कर्ज लेकर बोरवेल लगाता है, ये सोचकर कि फसल से चुकता कर्ज भी चुकता हो जाएगा। लेकिन किसी रोज बोरवेल चलना बंद हो जाए तो फसल को भी नुकसान और कर्ज भी चढ़ा रहता है। ऐसे में किसान को अपनी जमीन बेचकर कर्च चुकाना पड़ाता है।''

फिलहाल ये समस्‍या सिर्फ कर्नाटक की मंजुड़ा और राजस्‍थान के आशूराम तक ही सिमित नहीं है। ये समस्‍या व्‍यापक हो गई है। देश में भूजल का स्‍तर लगातार गिर रहा है। इसी साल आई नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, भूजल का घटते स्तर 2030 तक सबसे बड़े संकट के तौर पर उभरेगा। ऐसे में जल संरक्षण के प्रति हमें और हमारी सरकारों को काम करने की आवश्‍यकता है, नहीं तो देश भर के लोग मंजुडा और आशूराम जैसे परेशान होंगे।

  

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