'कंपनियां हमारा पानी पी रही हैं और हम प्यासे मर रहे हैं'
सण्डीला औद्योगिक क्षेत्र से लगे कई गांव वालों का आरोप है कि कंपनियां भूजल का बहुत अधिक दोहन कर रही हैं। इसकी वजह से इलाके का भूजल स्तर गिरता जा रहा है और इन लोगों को पानी नहीं मिल पा रहा है।
Ranvijay Singh 22 Oct 2019 1:33 PM GMT
हरदोई (उत्तर प्रदेश)। ''हमें पानी की बहुत दिक्कत है। बारिश की वजह से अभी नल में पानी आ रहा है, लेकिन एक-दो महीने में यह भी खत्म हो जाएगा। दो साल से ऐसा ही हो रहा है। जबसे यह कंपनियां आई हैं, इलाके का भूजल स्तर गिरता ही जा रहा है।'' यह बात 23 साल के अमित कुमार यादव कहते हैं।
अमित उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के सराय मारुफपुर गांव के रहने वाले हैं। अमित जिन कंपनियों की बात कर रहे हैं वो कंपनियां सण्डीला औद्योगिक क्षेत्र में चल रही हैं। इनमें शराब, कोल्ड ड्रिंक और दूध बनाने वाली कंपनियां शामिल हैं। इस क्षेत्र से लगे गांव वालों का आरोप है कि यह कंपनियां भूजल का बहुत अधिक दोहन कर रही हैं, जिस वजह से इलाके का भूजल स्तर गिरता जा रहा है और इन लोगों को पानी नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में करीब 10 से 15 गांव पानी की समस्या से जूझ रहे हैं।
बात करें प्रदेश में भूजल दोहन की तो अनियोजित और अनियंत्रित दोहन की वजह से प्रदेश के शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में भूजल खतरनाक स्तर पर घटा है। प्रदेश में मुख्य तौर से सिंचाई, पीने के पानी और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए भूजल का दोहन किया जाता है। भूजल पर बढ़ती निर्भरता का आकलन इस बात से लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में वर्ष 2000 में जल विकास/दोहन दर 54.31% थी और 2009 में यह 72.16% अनुमानित थी जो 2011 में बढ़कर 73.65 हो गई और 2013 में 73.78% हो गई।
सण्डीला औद्योगिक क्षेत्र से ही लगा हुआ गांव है सोम। इस गांव की बहुत सी जमीन औद्योगिक क्षेत्र में ही पड़ती है। गांव के रहने वाले 45 साल के मुंशी लाल गुप्ता बताते हैं, ''पहले 30 से 40 फीट पर अच्छा पानी आ जाता था, लेकिन तीन साल पहले जब यहां कोल्ड ड्रिंक बनाने का प्लांट लगा उसके बाद से ही हालात खराब होते गए। अब यह हाल है कि हमें 200 से 250 फीट पर बोर कराना पड़ता है, तब जाकर कहीं अच्छा पानी मिलता है। इससे आप समझ सकते हैं कि भूजल का स्तर कितनी तेजी से गिर रहा है।''
प्रदेश में भूजल के गिरते स्तर को सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड (CGWB)की रिपोर्ट - Ground water year book 2017-18 से समझा जा सकता है। इसमें 2007 से लेकर 2017 के बीच उत्तर प्रदेश के 637 कुओं का वॉटर लेवल देखा गया। इन 637 कुओं में से 450 कुओं के वॉटर लेवल में गिरावट देखी गई, जो कि 71% है। यानि साफ है कि प्रदेश में भूजल खतरनाक स्तर पर घट रहा है और अब इसका असर कई इलाकों में दिखने को मिल रहा है।
हरदाई का सराय मारुफपुर गांव भी इस असर से अछूता नहीं है। सराय मारुफपुर गांव भी सण्डीला औद्योगिक क्षेत्र के पास ही है। यहां की रहने वाली 85 साल की रशीदा बानो के घर के बाहर एक सरकारी नल था। यह नल पिछले साल की गर्मी में सूख गया। रशीदा बताती हैं, ''पानी की ऐसी दिक्कत पहले कभी नहीं हुई थी। अब तो पानी के लिए बहुत मारा मारी है।''
रशीदा अपने घर के सामने वाले सरकारी नल की ओर दिखाते हुए कहती हैं, ''इस नल से टोले भर में पानी जाता था। लोग कहते इसका पानी बहुत मीठा है। लेकिन पिछले 3-4 साल से नल में पानी कम होने लगा और खराब पानी भी आता था। पिछली गर्मी में यह सूख गया, उसके बाद से ही खराब पड़ा है।''
नलों के खराब और सूख जाने पर सराय मारुफपुर गांव के ही रहने वाले रसूल बख्श कहते हैं, ''दो साल पहले तक सब ठीक था, 40 फीट पर अच्छा पानी आ जाता था। लेकिन जबसे औद्योगिक क्षेत्र में कोल्ड ड्रिंक बनाने वाली कंपनी आई पानी का स्तर खराब हो गया। इस कंपनी ने जमीन का पानी निकालना शुरू कर दिया। यही वजह है कि नल सूख जाते हैं।''
रसूल बख्श बताते हैं, ''सिर्फ नल सूखने तक की समस्या नहीं है। जमीन से जो पानी आ रहा है वो बेहद खराब है। आधा घंटा रख दिया जाए तो पीला पड़ जाता है। ऐसा पानी हर नल में आता है, चाहे वो सरकारी हो या घर का नल। हम लोग ऐसा ही पानी पी रहे हैं।'' यह बात बोलते हुए रसूख कुछ देर रुक जाते हैं, फिर चेहरे पर हारा हुआ भाव लिए कहते हैं, ''हम और कर भी क्या सकते हैं! कंपनियां हमारा पानी पी रही हैं और हम प्यासे मर रहे हैं।''
कंपनियों के ग्राउंड वॉटर पर निर्भरता की बात करें तो उत्तर प्रदेश में 85 प्रतिशत औद्योगिक क्षेत्र की जरूरतें भूजल से ही पूरी होती हैं। आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस कोल्ड ड्रिंक कंपनी की बात रसूख बख्श कर रहे हैं उसे सालाना 10.36 लाख घनमीटर भूजल का उपयोग करने की इजाजत मिली हुई है। वहीं ग्राउंड वॉटर रिचार्ज के नाम पर उसे सिर्फ 6.31 लाख घनमीटर पानी रिचार्ज करना है। यह जानकारी खुद सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड की ओर से 1 अगस्त 2018 को दी गई है।
ऐसा नहीं है कि पानी के गिरते स्तर की सिर्फ कोरी शिकायतें की गई हैं। गांव वालों ने इन कंपनियों के खिलाफ कई बार प्रदर्शन भी किया है। कई बार ग्रामीणों ने लिखित में शिकायत भी दर्ज कराई है। इन शिकायतों का संज्ञान लेते हुए अधिकारियों ने जांच भी की, लेकिन जस का तस बना रहा और भूजल का स्तर गिरता गया।
सण्डीला इलाके में काम करने वाले समाजसेवी अशोक भारती बताते हैं, ''हम लोगों ने कई बार इसकी शिकायत की है, लेकिन इन शिकायतों से यह पता चल गया कि कंपनी का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता और आम लोगों की जिंदगी की कोई कीमत नहीं है।'' अशोक भारती सवाल करते हैं, ''चलिए मान लेते हैं कि पानी का स्तर खुद से गिर रहा है, लेकिन यह तभी क्यों शुरू हुआ जब यहां कोल्ड ड्रिंक कंपनी का प्लांट खुला। उससे पहले सब सही कैसे था? इस ओर भी अधिकारियों को गौर करना चाहिए।''
गांव वाले जिस कोल्ड ड्रिंक कंपनी का जिक्र कर रहे हैं उसका नाम है 'वरुण बेवरेजेस' है। इन आरोपों पर कोल्ड ड्रिंक कंपनी के इस प्लांट के डिप्टी मैनेजर शिवेंद्र शुक्ला कहते हैं, ''हमें जितनी परमिशन मिली है उससे कम ग्राउंड वॉटर हम ले रहे हैं, वहीं वॉटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से उससे कहीं ज्यादा ग्राउंड वॉटर रिचार्ज कर रहे हैं। इसके अलावा हर साल हम अपनी रिपोर्ट सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड को भेजते हैं।''
इस मामले पर जब उत्तर प्रदेश के ग्राउंड वॉटर डिपार्टमेंट में सीनियर हाइड्रो-जियोलॉजिस्ट रविकांत सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा, ''इसी 2 अक्टूबर को नया वॉटर एक्ट लागू हुआ है। उत्तर प्रदेश उन कुछ राज्यों में से एक हो गया है जहां भूगर्भ जल के इस्तेमाल को लेकर कानून बनाया गया है। अब इसके तहत जिलाधिकारी और कमिश्नर शिकायतों पर कार्रवाई भी कर सकते हैं।''
वहीं, जब इस बारे में हरदोई के जिलाधिकारी पुलकित खरे से बात की गई तो उन्होंने कहा, ''अगर गांव वाले इस बात को कह रहे हैं तो हम जांच कराएंगे। पहले भी इस बात की चेकिंग कराई गई थी कि इंडस्ट्री मानक के हिसाब से काम कर रही हैं या नहीं। एक बार फिर नई टीम बनाकर इसकी जांच कराई जाएगी। जो नया वॉटर एक्ट आया है उसके हिसाब से इसे फिर से चेक करा लिया जाएगा।''
More Stories