ग्राउंड रिपोर्ट: गुजरात के इस गांव में हैं करीब 600 से 700 बोरवेल, फिर भी बुझ नहीं रही प्‍यास

कई किसान करीब 10 से 15 बोरवेल करा चुके हैं और इनमें से ज्‍यादातर खराब हो गए हैं। गांव में कुएं दिखते तो हैं, लेकिन वो भी सूख चुके हैं।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   8 May 2019 7:36 AM GMT

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ग्राउंड रिपोर्ट: गुजरात के इस गांव में हैं करीब 600 से 700 बोरवेल, फिर भी बुझ नहीं रही प्‍यास

रणविजय सिंह/मिथिलेश धर दुबे

बनासकांठा (गुजरात)। 'पाणी नथी' (पानी नहीं है), यह बात आपको बनासकांठा जिले के डीसा तालुका में स्‍थ‍ित चत्राला गांव के लोगों से आसानी से सुनने को मिल जाएगी। भौगौलिक रूप से चत्राला गांव दो नदियां बनास और सीपू के बीच में स्‍थ‍ित हैं, लेकिन पि‍छले कुछ वर्षों में नदियों के सूखने और लगातार भूजल के गिरते स्‍तर की वजह से यहां पानी की समस्‍या खड़ी हो गई है।

चत्राला गांव डीसा से उत्‍तर दिशा में 17 किमी की दूरी पर स्‍थ‍ित है। इस गांव के रहने वाले भरत भाई (32 साल) बताते हैं, ''गांव में पानी की समस्‍या बहुत है। किसान खेती की लिए बोरवेल कराते हैं, लेकिन वो भी बहुत जल्‍द सूख जाते हैं। नया बोरवेल कराते हुए यह गारण्‍टी नहीं होती कि नीचे से पानी आएगा ही, क्‍योंकि नीचे पानी बचा ही नहीं है, सिर्फ पत्‍थर हैं।''

यह समस्‍या सिर्फ चत्राला गांव तक सिमित नहीं हैं। आस पास के इलाके के कई गांव के लोग इस समस्‍या से जूझ रहे हैं। भडली, मोरथल गोलिया, चंदा जी गोलि‍या, आकडोल, कोथा, तानपुरा ये उन गांव के नाम हैं जहां पिछले कुछ वर्षों में पानी का न होना बड़ी समस्‍या बनकर उभरा है। इन इलाकों की समस्‍या को ऐसे समझ सकते हैं कि कई किसान करीब 10 से 15 बोरवेल करा चुके हैं और इनमें से ज्‍यादातर खराब हो गए हैं। गांव में कुएं दिखते तो हैं, लेकिन वो भी सूख चुके हैं। पानी न होने की वजह से कई किसान अपने खेत खाली छोड़ रहे हैं, वहीं कई खेती छोड़कर बाहर कमाने चले गए हैं।

चत्राला गांव के ही रहने वाले जीतू भाई (25 साल) अपने खाली पड़े खेत के पास बैठे मिले। जहां वो बैठे थे उनके ठीक बगल में एक बेकार पड़ा बोरवेल था। जीतू भाई बताते हैं, ''पानी नहीं है इसलिए मेरा खेत खाली पड़ा है। पानी है नहीं तो खेती कैसे करेंगे। जब खेती नहीं हो पा रही तो मेरे बड़े भाई बाहर कमाने चले गए, मैं यहां घर पर हूं।'' जीतू के घर पर ही दरिया (42 साल) मिलीं। दरिया बताती हैं, ''खेत होते हुए भी मेरा लड़का मजदूरी करने गया है। पानी है नहीं तो खेती कहां से हो पाएगी।''

इस खेत में दो और बोरवेल हैं। दोनों सूख गए हैं, तीसरा लगाने का प्रयास किया गया, लेकिन नीचे पत्‍थर होने की वजह से यह प्रयास फेल हो गया।

गांव के ही रूपाजी चिनाजी माली (46 साल) अपने खेत में बोरवेल करा रहे थे, लेकिन करीब 300 फीट पर जाकर बोलवेल का पाइप नीचे पत्‍थर से जा टकराया। ऐसे में यहां बोरवेल कराना फेल हो गया। रूपाजी ने करीब 1 लाख रुपए इसमें खर्च किए थे, जो कि अब मिट्टी हो चुका था। रूपाजी के भतीजे करसन माली (24 साल) बताते हैं, ''मेरे चाचा जिस खेत में बोरवेल करा रहे थे, उसी में पहले से तीन बोरवेल थे। तीनों खराब होने के बाद यह चौथा बोरवेल कराया जा रहा था, लेकिन यह भी फेल हो गया। अब फिर पैसा होगा तो दूसरा बोरवेल कराएंगे, क्‍योंकि पानी के बिना तो कुछ चलने वाला नहीं।''

चत्राला गांव के कई किसान 10 से 15 बोरवेल करा चुके हैं। एक खराब होने पर किसान दूसरा बोरवेल कराने की तैयारी में जुटा जाता है। गांव के रहने वाले भरत भाई बताते हैं, ''मैंने अबतक सात बोरवेल कराए हैं। करीब-करीब 10 लाख रुपए तक मेरा खर्च हुआ है। बोरवेल कराते हुए यह गारण्‍टी नहीं होती कि नीचे से पानी मिलेगा ही। अगर पानी मिला तो ठीक नहीं तो डेढ़ लाख मेरे मिट्टी हो गए।'' भरत कहते हैं, ''यहां करीब 600 फीट पर पानी मिलता है, लेकिन नीचे पत्‍थर इतने हैं कि बोरवेल कराना बहुत मुश्‍किल है। 30 फीट के बाद से ही पत्‍थर मिलना शुरू हो जाता है। मुझे तो लगता है नीचे अब पानी है ही नहीं, बिल्‍कुल सूख गया है।''

यह बनास नदी है। इसमें पानी बिल्‍कल सूख चुका है।

भरत भाई बताते हैं, ''हमारा गांव दो नदियां बनास और सीपू के बीच में स्‍थ‍ित है, लेकिन मैंने नदियों में पानी बचपन में देखा है। दो साल पहले 2017 में बाढ़ आने पर बनास नदी में पानी आया था, उसके बाद से यह सूखी ही पड़ी है। गांव से 7 किमी की दूरी पर बनास नदी पर डैम बनाया गया है, साथ ही सीपू नदी पर भी डैम बनाया गया है। डैम बनाकर यहां का पानी कहीं और भेजा जाता है, लेकिन हमें नहीं मिलता।'' भरत कहते हैं, ''नदियां चल नहीं रही, डैम ऊपर पहाड़ पर स्‍थ‍ित है। ऐसे में भूजल का स्‍तर दिन पर दिन नीचे जा रहा है। हमारे लिए तो आफत बढ़ती ही जा रही है।''

भरत भाई अनुमान लगाते हैं कि गांव में करीब-करीब 600 से 700 बोरवेल हैं, जिनमें से ज्‍यादातर सूख चुके हैं। वो कहते हैं, ''मैंने ही सात बोरवेल कराए हैं, मेरे बड़े भाई ने 16 बोरवेल कराए हैं। भाई के कराए हुए पिछले 15 बोरवेल खराब हो गए हैं अब बस 16वां चल रहा है।'' भरत भाई कहते हैं, ''किसान 22-23 लाख रुपए बोरवेल में लगाए तो खेती कैसे करेगा, इसलिए गांव में बहुत से लोग खेत खाली छोड़कर चले गए हैं। बाहर कम से कम कुछ कमाई तो होगी।''

पानी की समस्‍या से सिर्फ लोगों पर असर नहीं पड़ रहा, जानवरों पर भी इसका असर हो रहा है। गांव की ही रहने वाली पवन (28 साल) बताती हैं, ''पानी नहीं था तो चारा भी नहीं हो पाया। ऐसे में खाए बिना मेरे पशु की मौत हो गई। यहां हालात बहुत खराब हैं। लोगों को पीने के लिए पानी नहीं है, जानवर के लिए पानी कहां से लाएं।'' पवन की बात से मिलती जुलती बात करसन माली भी कहते हैं। करसन बताते हैं, ''इस गांव में लोग मवेशियों पर बहुत आश्र‍ित हैं। लेकिन पानी की समस्‍या की वजह से उनके चारे की दिक्‍कत होने लगी है। हम खेती करते हैं, लेकिन मवेशियों का चारा नहीं उगा पाते। ऐसे में 8 से 10 रुपए किलो के हिसाब से बाहर से चारा लाते हैं। इस तरह यह भी खर्चा बढ़ रहा है।'' फिलहाल गांव वाले समस्‍या तो बताते हैं, लेकिन इसके समाधान की कोई योजना उनके पास नहीं दिखती। खेतों में सूखती फसलों को दिखाते हुए वो बस इतना कहते हैं, ''पाणी नथी''।


  

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