खर्च हो गये 96,337 करोड़ रुपए, फिर भी महाराष्ट्र नहीं बन पाया सूखामुक्त राज्य

कैग की रिपोर्ट में हुआ खुलासा, परवान नहीं चढ़ सकी जलयुक्त शिवार योजना। वर्ष 2014 में महाराष्ट्र राज्य को सूखामुक्त बनाने के लिए देवेंद्र फडणवीस सरकार ने शुरू की थी योजना।

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
maharashrta, drought, rain harvestingमहाराष्ट्र का बड़ा हिस्सा इस बार भी सूखे की चपेट में है। (सभी तस्वीरें- Nidhi Jamwal)

सारा खान

कैग की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2014 में महाराष्ट्र राज्य को सूखामुक्त बनाने के लिए शुरू की गई जलयुक्त शिवार योजना सफल नहीं हो सकी। वर्ष 2014 में भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने यही पहली योजना शुरू की थी। इसका लक्ष्य 2019 तक महाराष्ट्र को सूखामुक्त करने का था। अब 2020 बीतने के करीब है लेकिन यह लक्ष्य पूरा नहीं हो सका। वर्ष 2014 से 2019 के बीच महाराष्ट्र में 6,41,000 से अधिक जल संरक्षण कार्यक्रम लागू किये जाने के बाद भी यह योजना विफल रही।

वर्ष 2014 में सीएम बनते ही फडणवीस ने महाराष्ट्र को 2019 तक जल संकट से मुक्ति दिलाने के लिए यह जलयुक्त शिवार योजना शुरू किया था। इसका मुख्य मकसद खेती के लिए जल मुहैया कराना था। वर्षा जल संग्रहण और विकेन्द्रीकृत जल प्रबंधन पर आधारित इस अभियान में जलस्रोतों को गहरा और चौड़ा करना, सीमेंट और मिट्टी के बांधों का निर्माण, नालों को सही बनाना और खेत में तालाबों की खुदाई करना शामिल था। इसके जरिये बारिश के पानी को इकठ्ठा कर भूजल पुनर्भरण करना था।

राज्य को हर साल 5,000 गाँवों को पानी की समस्या से मुक्त करने के लिए जलयुक्त शिवार अभियान शुरू हुआ था। सूखे की मार झेल रहे महाराष्ट्र के किसानों के जीवन में यह उम्मीद की किरण बनकर आया था। इसलिए इस अभियान का अधिकतर लोगों ने खुले दिल से स्वागत किया था।

महाराष्ट्र की वर्तमान महाविकास अघाड़ी सरकार ने इस अभियान पर ताला लगा दिया है, हालांकि कैग की रिपोर्ट से विशेषज्ञ बिल्कुल अचरज़ में नहीं थे। इस अभियान के पीछे राज्य सरकार के इरादों से वे पहले से ही भलीभाँति परिचित थे। पिछले हफ़्ते महाराष्ट्र विधानसभा यह रिपोर्ट पेश हुई तो यह मुद्दा खुलकर सामने आया कि पिछले पाँच वर्षों में 96,337 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी अभियान असफल रहा है। पारदर्शिता की कमी असफ़लता की मुख्य वजह रही। राज्य जल संरक्षण विभाग की अपर्याप्त निगरानी और कार्यों का निष्पादन कैग की रिपोर्ट को सही साबित करता है।

ठेकेदारों के लिए पूंजी संग्रहण का अभियान बना

गाँव कनेक्शन से बातचीत में महाराष्ट्र राज्य योजना आयोग के पूर्व सदस्य और अर्थशास्त्री एचएम देसरदा ने कहा कि दस्तावेजों पर लिखित तौर पैर दर्शाये गए सिद्धांत और घाटी के लिए रिज की वैज्ञानिक पद्धति से बिल्कुल अलग जलयुक्त शिवार अभियान ठेकेदारों द्वारा चलाया जाने वाला पूँजी संग्रहण अभियान था।

महाराष्ट्र के किरकसल गाँव के लोग गाँव को सूखा-मुक्त करने के लिए जल को जमा करने की व्यवस्था करते हुए।

देसरदा ने 2015 के सितम्बर माह बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। इस याचिका में अभियान का आँकलन करने की माँग की गई थी। जलयुक्त अभियान के तहत 25 हज़ार गाँवों को, 6,41,000 श्रम की मदद से आच्छादित या नवीन ढंग से सृजित करने उद्देश्य था। कैग ने 120 गाँवों की जाँच की तो पता चला कि इनमें से 83 गाँवों के लिए जो जल भंडारण ढांचे बनाये गए थे, वह जलापूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं थे। बचे 37 गाँवों के लिए योजना से कम मात्रा में भंडारण बनाये गए। जिसके परिणाम स्वरूप पीने के पानी और सिंचाई के लिए पानी की किल्लत का सामना करना पड़ा। कैग की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ कि जिला अधिकारियों द्वारा तैयार प्रासंगिक रिपोर्ट में इस किल्लत का ज़िक्र ही नहीं किया गया।

जल एवं भूमि व्यवस्थापन संस्था के पूर्व सहायक प्रोफ़ेसर प्रदीप पुरंदरे ने गाँव कनेक्शन को बताया, "राज्य सरकार के स्वायत्त निकाय मृदा एवं जल संरक्षण विभाग द्वारा लागू जलयुक्त शिवार अभियान की अवधारणा ही गलत थी, जो कुछ मौजूदा योजनाओं जैसे नदी-नालों की खुदाई और गहराई की बराबरी कर रहा था। आवश्यकता से अधिक खुदाई और गहराई पानी के प्रवाह में परिवर्तन ला रहे थे। नदियों से पानी का बहाव कुँओं में होने की बजाय विपरीत दिशा में हो रहा था।"

यह भी पढ़ें- देश के कई इलाकों में बारिश न होने से सूखे जैसे हालात, धान, सोयाबीन उड़द की फसल को बारिश का इंतजार

देसरदा की जनहित याचिका के आधार पर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के पूर्व सचिव जॉनी जोसेफ़ की अध्यक्षता में आठ सदस्यों वाली एक समिति का गठन किया। इस समिति के गठन का उद्देश्य अभियान के कामकाज का आँकलन कर रिपोर्ट तैयार करना था। समिति ने इस अभियान को वैज्ञानिक रूप से लागू करने और पहाड़ी ढंग से खेती करने के आदेश के तर्ज पर रिपोर्ट तैयार की।

पुरंदरे ने रिपोर्ट को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया। उन्होंने दावा किया कि यह रिपोर्ट जलयुक्त शिवार योजना को दोषमुक्त बताती है, जो कि गलत है। मैं इस रिपोर्ट को नहीं मानता हूँ। पुंदरे गाँव कनेक्शन से कहते हैं, "मेरा मुद्दा यह है कि इस अभियान को सुचारु रूप से पुनर्योजित करने के बजाय बंद किया गया। भाजपा के सत्ता में आने पर उन्होंने पिछली सरकार के सिंचाई घोटाले का पर्दाफाश किया। इस अभियान की कमियों को दूर करने के बजाय इसे सिर्फ़ इसलिए बंद कर दिया क्यूंकि यह उनके एजेंडा में नहीं था।"

मतभेद के कारण भी नहीं हो सका सफल

मतभेद के कारण भी अभियान अपनी मंज़िल तक पहुँचने में नाकामयाब रहा। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि जलयुक्त शिवार ने जल साक्षरता का अच्छा प्रसार किया था। गाँव के लोग अपने तरीके से लघु स्तर पर जल संरक्षण कार्यक्रम चला रहे थे। धीरे-धीरे यह अभियान अच्छे सन्देश के साथ अलग अलग समुदाय में रफ़्तार पकड़ रहा था। पर इसके बाद वर्तमान सरकार ने इस अभियान को रोक दिया।

गाँव कनेक्शन को औरंगाबाद , वाल्मी के प्रोफ़ेसर राजेश पुरानिक ने बताया, "राज्य के हर क्षेत्र में बारिश की विषमता भी इस अभियान को विफ़ल करने में उत्तरदायी रही। कहीं 6000 मिलीमीटर की तेज़ बारिश तो केवल 300 मिलीमीटर से बारिश होती है। जलयुक्त शिवार के जल संग्रहण कार्यक्रम के तहत जल स्तर में महत्वपूर्ण वृद्धि देखने को मिली।"

राज्य के कुछ स्थानों पर, नदियों और नालों को अवैज्ञानिक रूप से गहरा किया गया था।

मराठवाड़ा में इस वर्ष भूजल पुनर्भरण की अच्छी क्षमता देखने को मिली। इस अभियान को लेकर देसरदा की राय अलग है। वह जल शिवार अभियान को बेबुनियाद, बेकार और अवैज्ञानिक मानते हैं। उनके अनुसार पारिस्थितिक असंतुलन और विनाश की वजह यह अभियान है।

गाँव कनेक्शन से देसरदा कहते हैं, "फणनवीस सरकार की मनपसंद परियोजना कुछ नौकरशाहों की निगरानी में फलफूल रही थी। यह अभियान बादशाह के चमकीले भड़कीले कपड़ों की तरह दिखावा मात्र था। यह चमकदार कपड़ों से इतर सच बयान करती योजना है।"

लातूर के किसान कार्यकर्ता संदीपन बादगिरे के अनुसार इस वर्ष अच्छी बारिश हुई, जो खेती के लिए अच्छे संकेत हैं। इसके बावजूद भी लातूर में भूजल स्तर की भरपाई करने में बारिश का पानी अक्षम रहा है। दिवाली आते आते तक पानी ख़त्म हो जायेगा। मराठवाड़ा के कुछ इलाकों में भूजल स्तर को बढ़ाने पर व्यय करने की बजाय किसान अब जल गहन कृषि आधारित फ़सलें उगा रहे हैं। राज्य तथा किसानों के हित में विवेकपूर्ण तरीके से खेती करना आवश्यक

अच्छे इरादे से शुरू योजना असफल हो गई

अच्छे इरादे और करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद जलयुक्त शिवार अभियान अपने उद्देश्य में असफ़ल रहा। विश्लेषक मानते हैं कि स्थानीय पर्यावरण के अनुकूल सुनियोजित कृषि पद्धति बनाई जाए ताकि वर्षा जल का भूमि के नीचे रिसाव हो पाए और भूमिगत जल की भरपायी हो सके।

अहमदनगर जिले के हिवारे बाज़ार गाँव का उदहारण देते हुए बादगिरे कहते हैं कि सुनियोजित कृषि पद्धति अपनाकर इस गाँव ने सफलतापूर्वक वर्षा जल एकत्रित कर भूमिगत जल स्तर को बढ़ाया। गन्ना जैसी जिन फसलों के लिए अधिक जल की आवश्यकता पड़ती है, उसे छोड़कर किसानों ने मौसमी फसलों की बुवाई को तवज्जो दिया। जल गहन कृषि पद्धति में उन्होंने चना उगाया। चावल, गेहूँ, सोया, कपास और चना जैसी फसलों के लिए बहुत अधिक पानी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है। इससे जल स्तर बढ़ा और पीने तथा सिंचाई के लिए भी पानी पर्याप्त रहा।

महाराष्ट्र के किसी गांव में जल संरक्षण कार्य करते ग्रामीण।

पुरंदरे के अनुसार अर्धशुष्क और सूखा प्रभावित क्षेत्र जैसे मराठवाड़ा में गन्ना की फसल उगाने पर नियंत्रण आवश्यक है। इस प्रकार की फसल भले मात्र 5 फीसदी भूमि पर उगाई जाती है पर इनकी सिंचाई के लिए 70 फीसदी पानी की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में कपास जैसी फसलों के लिए गुंजाइश काफ़ी कम रह जाती है। अगर दुसरी फसल उगाएँ, जिनकी सिंचाई में कम जल की आवश्यकता हो तो न सिर्फ़ उत्पादन बढ़ाया जा सकता है बल्कि किसानों को लाभ होगा। इससे किसानों की आत्महत्या जैसी ख़बरों से छुटकारा मिल पायेगा।

यह भी पढ़ें-देश में एक तरफ बाढ़, एक तरफ सूखा

जलयुक्त शिवार के मूल उद्देश्य को मद्देनज़र रखते हुए अभियान को सफल बनाया जा सकता है। जलयुक्त शिवार अभियान कृषि क्षेत्र के विकास के लिए एक बेहतरीन कदम ज़रूर है। इस अभियान में 10 वर्ष शामिल थे लेकिन कैग की रिपोर्ट को आधे तरीके से तैयार करवा कर अभियान को बदनाम किया गया। राजनीतिक साजिश ऐसे अभियान को फैलने फूलने कहाँ देते हैं। रिपोर्ट में इस अभियान के कुछ अच्छे पहलुओं जैसे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जल स्तर के बढ़ने की बात कही गई है। अभियान के कुछ कार्यों को बाधित कर इसके मूल उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित कर जलयुक्त शिवार को आगे क्रियान्वित किये जाने की आवश्यकता है।

अनुवाद- इंदु सिंह

स्टोरी की मूल कॉपी यहां पढ़ें

   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.