ये अफसर हैं थोड़ा हटकर

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ये अफसर हैं थोड़ा हटकरकलेक्टर ए. मुरली ने अपनी गर्भवती बेटी की डिलीवरी एक सरकारी अस्पताल में करवाई थी।

किसी आईएएस अफसर का जिक्र होते ही मन में छवि उभरती है सुख-सुविधाओं की, रौब-रसूख की, तीखे तेवरों की। आज देश के एक औसत युवा के मन में झांकें तो आईएएस अफसर होने का मतलब है, करीब-करीब बादशाह हो जाना। एक ऐसा बादशाह जिसके सामने पूरा प्रशासनिक अमला सिर झुकाए, हाथ बांधे खड़ा दिखाई देता है। कमोबेश ऐसा है भी, लेकिन जरूरी नहीं कि सभी आईएएस अफसर ऐसे ही हों, ऐसे तमाम उदाहरण हैं जहां आईएएस अफसरों ने खुद को सही मायनों में लोकसेवक समझा।

ऐसे ही एक आईएएस हैं तेलंगाना के जयशंकर भूपालपल्ली जिले के कलेक्टर ए. मुरली। वह बातें कम काम ज्यादा वाले सूत्र में भरोसा रखते हैं। मुरली अक्सर अपने जिले के आदिवासी इलाकों का मुआयना करने रात को ही निकल जाते हैं, वह भी बाइक पर सवार होकर। साथ में न कोई सिक्युरिटी न कोई प्रोटोकॉल। मुरली ऐसी छोटी-छोटी बस्तियों में रात गुजारते हैं जहां पक्की इमारत के नाम पर स्कूल की बिल्डिंग भी नहीं होती।

ऐसे ही एक दौरे पर जब वह चिंताकुंटा गांव में पहुंचे तो वहां सड़क किनारे एक आदिवासी युवा को लोगों के बाल काटते देखा। मुरली ने भी वहीं पेड़ के नीचे बैठकर अपने बाल कटाए और जब बाल कट गए तो उस युवा के हाथ मे 100 का नोट रख दिया। आदिवासी इलाकों में घूमते हुए मुरली की नजर 10 साल के एक लड़के पर पड़ी जो बकरियां चरा रहा था। पूछताछ के बाद पता चला कि वह लड़का जिस व्यक्ति के यहां नौकरी करता है वे बकरियां उसकी थीं। 10 बरस का बच्चा पढ़ाई की जगह किसी की नौकरी करे कलेक्टर साहब को यह मंजूर नहीं हुआ। तुरंत बाल विकास कार्यक्रम अधिकारी को आदेश देकर बच्चे को बाल सदन के हवाले किया और उसकी पढ़ाई लिखाई की व्यवस्था की। इसके अलावा बच्चे के माता-पिता को बुलाकर समझाया कि यह उम्र पढ़ने की है काम करने की नहीं। ए. मुरली की चर्चा इस बात के लिए भी हुई थी कि उन्होंने अपनी गर्भवती बेटी की डिलीवरी एक सरकारी अस्पताल में करवाई थी।

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के कलेक्टर अवनीश कुमार शरण भी आम शहरी की तरह जिंदगी जीने में भरोसा रखते हैं। उनका जोर रहा जिले के सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने पर, इसके लिए उन्होंने जरूरी कदम भी उठाए। सरकारी स्कूलों में भरोसा दिखाते हुए उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ने के लिए पहले आंगनवाड़ी भेजा इसके बाद प्रज्ञा प्राथमिक शाला में कराया। प्रज्ञा नई तरह के प्राथमिक स्कूल हैं जिनमें बच्चों को नई तकनीक का इस्तेमाल करके पढ़ाया जाता है।

यह भी देखें : छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के कलेक्टर ने पेश की मिसाल, बेटी का सरकारी स्कूल में कराया दाखिला

   

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