हरियाणा में कृषि अध्यादेशों के विरोध में रैली निकाल रहे थे किसान, पुलिस ने लाठीचार्ज किया, कई किसान घायल

कृषि अध्यादेशों का विरोध करने के लिए हरियाणा के कुरुक्षेत्र में कई जिलों के किसान पहुंचे थे। पुलिस ने रैली रोकने के लिए क्षेत्र में धारा 144 लगा दिया था। पुलिस की लाठीचार्ज में कई किसान घायल हुए हैं।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   10 Sep 2020 12:00 PM GMT

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Agriculture ordinance, kisan rally pipli, bhartiya kisan union, haryana police, lathi chargeलाठीचार्ज में कई किसानों को चोटें आई हैं। (तस्वीरें किसानों के वाट्सएपग्रुप और ट्वीटर से)

हरियाणा के कुरुक्षेत्र में कृषि अध्यादेशों का विरोध करने के लिए जुटे किसानों पर पुलिस लाठीचार्ज कर दिया। पीपली मंडी में किसान बुधवार से ही जुटने लगे थे। जिसे देखते हुए जिला प्रशासन ने पीपली क्षेत्र में धारा 144 लगाकर रैली के लिए मना कर दिया था।

हरियाणा के कई जिलों से पहुंचे रहे किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने जगह-जगह नाकेबंदी की थी। फिर भी बड़ी संख्या में किसान कुरुक्षेत्र पहुंच गये। दिनभर कई जगह पुलिस और किसानों के बीच टकराव की स्थिति बनती रही और अंत में पुलिस ने किसानों को रोकने के लिए बल प्रयोग किया। लाठीचार्ज में कई किसान घायल हुए हैं।


केंद्र सरकार की कृषि से जुड़े तीन अध्यादेशों के खिलाफ गुरुवार को कुरुक्षेत्र के पीपली में किसान बचाओ-मंडी बचाओ रैली बुलाई गई थी। रैली में शामिल होने के लिए हरियाणा के कई जिलों के किसान आ रहे थे। सैकड़ों किसानों को तो रास्ते में रोक दिया गया। जहां रोका गया, किसानों ने वहीं विरोध किया।

लाठीचार्ज में घायल किसान

इस दौरान रैली में शामिल होने जा रहे महम विधानसभा से निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू समेत कई किसान नेताओं को पुलिस ने हिरासात में ले लिया, लेकिन किसानों की रैली जारी रही।

रैली न रुकती देख पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया जिसमें कई किसानों के सिर फूट गये तो कई किसान घायल भी हुए हैं।

किसानों पर हुए लाठीचार्ज का किसान नेता विरोध कर रहे हैं। किसान नेता और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक सरदार वीएम सिंह ने गांव कनेक्शन से कहा, "मोदी सरकार कोरोना के समय में अध्यादेश लाने में तो नहीं घबराई लेकिन किसानों की रैली से घबरा गई। किसानों पर हुए लाठीचार्ज का हम निंदा कर रहे हैं। देशभर के किसान संगठन एक हैं। उन पर लाठीचार्ज कतई बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।"


कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रदेश की खट्टर सरकार पर हमला बोलते हुए ट्वीट किया और कहा, "खट्टर सरकार ये जान ले, कैथल मंडी में व्यापारियों-आढ़तियों की ये जबरन धर-पकड़ ना तो आवाज़ दबा पाएगी और न ही रोक पाएगी। किसान-आढ़ती-मज़दूर का कारवाँ चलता रहेगा। तीनों अध्यादेश वापिस लेने पड़ेंगे वरना मोदी-खट्टर सरकारों को चलता कर देंगे।"

लाठीचार्ज और हिरासत लेने के बाद पुलिस ने किसानों को रैली करने की छूट भी दी। भाकियू (भारतीय किसान यूनियन) के प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी समेत बड़ी संख्या में किसानों ने रैली स्थल पर पहुंचकर तीनों कृषि अध्यादेशों को किसान और मंडी विरोधी बताया।

इससे पहले 20 जुलाई 2020 को पंजाब, हरिणाया और राजस्थान के किसानों ने केंद्र सरकार की कृषि से जुड़े तीन अध्यादेशों के खिलाफ ट्रैक्टर रैली का आयोजन किया था।

राजस्थान के ग्रामीण किसान मजदूर समिति से जुड़े रणजीत सिंह राजू कहते हैं, "सरकारों की वजह से किसान बर्बादी की कगार पर पहुंच गये हैं। सरकार किसानों के हित पर ध्यान ही नहीं दे रही है। एक तो किसानों को उनकी फसल की सही कीमत नहीं मिल रही है ऊपर से सरकार रोज किसान विरोधी अध्यादेश पारित कर रही है। ऐसे में सरकार की नीतियों के खिलाफ किसान एकजुट हो गये हैं।

किसान सरकार के जिन तीन अध्यादेशों का विरोध कर रहे हैं वह क्या और उसका विरोध क्यों हो रहा?

1. एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव

पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाज़ारी करते थे, उसको रोकने के लिए Essential Commodity Act 1955 बनाया गया था जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी। अब इस नए अध्यादेश के तहत आलू, प्याज़, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है। किसान और किसान संगठनों का मानना है कि सरकार की इस नीति से किसानों को नुकसान होगा।

इस बारे में भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ कहते हैं, "समझने की बात यह है कि हमारे देश में 85% लघु किसान हैं, किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है यानी यह अध्यादेश बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की कालाबाज़ारी के लिए लाया गया है। कम्पनियाँ और सुपर मार्केट अपने बड़े-बड़े गोदामों में कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे।"


किसान संगठनों का कहना कि इस बदलाव से कालाबाजारी घटेगी नहीं बल्की बढ़ेगी। जमाखोरी बढ़ेगी। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी 1972 में मंडी एक्ट लेकर आए थे। मंडी में औने पौने दामों पर फसल की कीमत न तय हो, इसकी व्यवस्था इसमें थी, लेकिन नीति असफल होती गई।

2. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग-The Farmers Agreement on Price Assurance and Farm Services Ordinance

केंद्रीय कृषि सचिव कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा), संजय अग्रवाल ने एक कार्यक्रम में कहा था कि व्यावसायिक खेती के समझौते वक्त की जरूरत है। विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए, जो ऊंचे मूल्य की फसलें उगाना चाहते हैं, मगर पैदावार का जोखिम उठाते और घाटा सहते हैं।

इस अध्यादेश से किसान अपना यह जोखिम कॉरपोरेट खरीदारों को सौंपकर फायदा कमा सकेंगे, लेकिन भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ का मानना है, "इस नए अध्यादेश के तहत किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बन के रह जायेगा। इस अध्यादेश के जरिये केंद्र सरकार कृषि का पश्चिमी मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है लेकिन सरकार यह बात भूल जाती है कि हमारे किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं हो सकती क्योंकि हमारे यहां भूमि-जनसंख्या अनुपात पश्चिमी देशों से अलग है और हमारे यहां खेती-किसानी जीवनयापन करने का साधन है वहीं पश्चिमी देशों में यह व्यवसाय है।"

कुरुक्षेत्र में रैली निकालते किसान

"अनुभव बताते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों का शोषण होता है। पिछले साल गुजरात में पेप्सिको कम्पनी ने किसानों पर कई करोड़ का मुकदमा किया था जिसे बाद में किसान संगठनों के विरोध के चलते कम्पनी ने वापस ले लिया था।" वे आगे कहते हैं।

अभिमन्यु आगे कहते हैं, "कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत फसलों की बुआई से पहले कम्पनियां किसानों का माल एक निश्चित मूल्य पर खरीदने का वादा करती हैं लेकिन बाद में जब किसान की फसल तैयार हो जाती है तो कम्पनियाँ किसानों को कुछ समय इंतजार करने के लिए कहती हैं और बाद में किसानों के उत्पाद को खराब बता कर रिजेक्ट कर दिया जाता है।"

"केंद्र सरकार का कहना है कि इन तीन कृषि अध्यादेशों से किसानों के लिए फ्री मार्केट की व्यवस्था बनाई जाएगी जिससे किसानों को लाभ होगा, लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि अमेरिका व यूरोप में फ्री मार्केट यानी बाजार आधारित नीति लागू होने से पहले 1970 में रिटेल कीमत की 40% राशि किसानों को मिलती थी, अब फ्री मार्केट नीति लागू होने के बाद किसानों को रिटेल कीमत की मात्र 15% राशि मिलती है यानी फ्री मार्केट से कम्पनियों व सुपर मार्केट को फायदा हुआ है।"


"फ्री मार्केट नीति होने के बावजूद किसानों को जीवित रखने के लिए यूरोप में किसानों को हर साल लगभग सात लाख करोड़ रुपये की सरकारी मदद मिलती है। अमेरिका व यूरोप का अनुभव बताता है कि फ्री मार्केट नीतियों से किसानों को नुकसान होता है।" अभिमन्यु कहते हैं।

3. फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस

केंद्र सरकार ने जून 2020 में फार्मिंग प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) अध्यादेश 2020 को मंजूरी दे दी थी। इसके तहत किसानों को एपीएमसी में अपनी उपज बेचने की बाध्यता नहीं होगी। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने इसे लेकर कहा था कि किसानों को उनकी बिक्री की आजादी के लिए एपीएमसी एक्ट में सुधार नहीं किया गया है बल्कि ये एक नया एक्ट है और यह व्यापार के लिए है। इसका नाम 'किसान उपज व्यापार वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण अध्यादेश 2020 है।

वे आगे कहते हैं कि मौजूदा एपीएमसी मंडियां अपना काम जारी रखेंगी। राज्य एपीएमसी कानून बना रहेगा, लेकिन मंडियों के बाहर यह लागू नहीं होगा। अध्यादेश मूल रूप से एपीएमसी मार्केट यार्ड के बाहर अतिरिक्त व्यापारिक अवसर पैदा करने के लिए है ताकि अतिरिक्त प्रतिस्पर्धा के कारण किसानों को लाभकारी मूल्य मिल सके। लेकिन किसानों को लगता है इस बदलाव से उन्हें नुकसान होगा।

पुलिस ने किसानों की रैली को रोका

राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष राहुल राज कहते हैं, "सरकार के इस फैसले से मंडी व्यवस्था ही खत्म हो जायेगी। इससे किसानों को नुकसान होगा और कॉरपोरेट और बिचौलियों को फायदपा होगा।" वे आगे कहते हैं, "फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस में वन नेशन, वन मार्केट की बात कही जा रही है लेकिन सरकार इसके जरिये कृषि उपज विपणन समितियों (APMC) के एकाधिकार को खत्म करना चाहती है। अबर इसे खत्म किया जाता है तो व्यापारियों की मनमानी बढ़ेगी, किसानों को उपज की सही कीमत नहीं मिलेगी।"

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