भोपाल गैस त्रासदी: एक माँ का दर्द जिसने बेटे के लिए मौत मांगी

Manish MishraManish Mishra   3 Dec 2019 7:31 AM GMT

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भोपाल गैस त्रासदी: एक माँ का दर्द जिसने बेटे के लिए मौत मांगी

लखनऊ। भोपाल गैस कांड की पीड़िता हाजिरा बी की मौत हो गई है, अपनों को तिल-तिल मरते देखने वाली हाजिरा बी की एक ही अंतिम इच्छा थी, जो पूरी न हो सकी।

हाजिरा बी से मुलाकात पिछले साल भोपाल में हुई थी, तब जान पाया कि वह 35 साल बाद भी मुआवजे के लिए धरने दे रही थीं, और घर आकर बिस्तर पर पड़े अपने बेटे की देखभाल करती थीं।

उनका पूरा परिवार इस गैस कांड में कैंसर या अन्य दूसरी बीमारियों से खत्म हो गया। उन्हें समय पर मुआवजा तो नहीं मिला लेकिन पुलिस की लाठियां जरूर मिलीं।

हाजिरा बी चाहती थीं कि उनके बेटे की मौत उनसे पहले आए। एक मां के लिए ऐसा सोचने भर से कलेजा धक से हो जाता है। उन्होंने कहा था कि सब कुछ खोने के बाद अब एक ही इच्छा है कि मेरे बेटे की मौत मुझसे पहले हो जाए।

एक माँ का ऐसा सोचने की वजह थी अपने बेटे के कष्टों को न देख पाना। हाजिरा बी का छोटा बेटा गैस की चपेट में आकर अपंग हो गया, और उसकी देखभाल हाजिरा बी ही करती थीं। हाजिरा बी को अपनी खुद की बीमारी के बारे में पता था। उन्हें पता था कि पता नहीं कि कब मौत आ जाए और उनके न रहने पर बेटे की देखभाल कौन करेगा? हाजिरा बी की अंतिम इच्छा पूरी नहीं हो पायी और उन्होंने पहले ही दम तोड़ दिया।

गाँव कनेक्शन से बात करते हुए हाजिरा बी ने बताया था, "जब भोपाल गैस पीड़ितों का जब म्यूजियम बन रहा था तो हमसे बोला गया- हाजिरा जो चीज तुम्हारे दिल के सबसे करीब हो, वो दान करो। मेरे पति ने हमारे लिए पांच रुपये का आइना खरीद के दिया था, लेकिन जब वो ही नहीं रहे तो हम श्रृंगार किसके लिए करते, और वो सबसे अजीज आइने को हमने दान कर दिया।"

ऐसा बोलते हुए हाजिरा बी के आंसू छलक आए। हाजिरा बी की ही तरह हजारों पीड़ित 35 साल पहले 02 दिसंबर-1984 की उस काली रात को भुला नहीं पाईं। जब भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से हुए गैस के रिसाव ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया। भोपाल गैस हादसे में पीड़ित हाजिरा बी पिछले 35 सालों से पीने के लिए जहरीले पानी से बचाव, मुआवजे, इलाज और रोजगार की लड़ाई लड़ रही थीं।

"इस हादसे के बाद हमारी आंखों की रोशनी कम हो गई। सांस फूलने लगी, लीवर खराब हो गया और हार्ट की समस्या होने लगी। हमारे पति हार्ट की समस्या से खत्म हुए। मां कैंसर से, सास को हार्ट हार्ट की समस्या थी। बहनोई का भी इंतकाल कैंसर से हुआ," हाजरा बी आंसू पोंछने के बाद भरे गले को साफ करते हुए बताया, "ऐसा केवल हमारे साथ ही नहीं हुआ हर गैस पीड़ित का परिवार ऐसे ही खत्म हो गया।" भोपाल गैस त्रासदी की उस रात को याद करते ये पीड़ित याद करते हुए सिहर उठते हैं। इन लोगों को उसके बाद हर चीज के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा।

"पहले गैस ने मारा फिर बीमार किया, हक के लिए आवाज उठाई तो पुलिस ने डंडे मारे और मुकदमे ठोक दिए," हाजिरा बी ने बताया। गैस पीड़ितों के इलाज के लिए अस्पताल तो खुले, उन्हें कार्ड भी बांटे गए लेकिन समय पर जांच न होने और सभी दवाइयां न मिलने से मुश्किलें कम नहीं हुईं।

"गैस पीड़ितों के लिए बने अस्पतालों में डाक्टर कम होते गए पर हमारी बीमारियां नहीं कम हुईं। गैस पीड़ितों को होने वाली बीमारियों में कैंसर तो आम है। जहां-जहां पर कचरा दबाया वहां ज़मीन का पानी खराब हो गया। हम 35 साल से लगातार दवा खा रहे हैं, "हाजिरा बी ने अपनी रोज की ज़िंदगी के बारे में बताया।

गैस पीड़ितों की जिन समस्याओं को दूर करने के लिए सरकारों को खुले दिल से सामने आना चाहिए था उसके इन्हें लगातार संघर्ष करना पड़ा।

"हमने जहरीले पानी, मुआवजे, इलाज और रोजगार की लड़ाई लड़ी। पीड़ितों के लिए कोच फैक्टरी खोली गई, लेकिन उन्हें रोजगार नहीं मिला। हमें आज भी 35 साल बाद भी हमें जीने का हक ही नहीं मिला, "हाजिरा बी ने कहा।

भोपाल गैस पीड़ित मुआवजे में भी न्याय न करने का आरोप लगा रहे हैं। "यूनियन कार्बाइड से आया, उसे इधर-उधर लगा दिया। छह साल तक 200 रुपए महीना राहत के रूप में मिला राजीव गांधी के समय। छह साल बाद 14,400 बने, लेकिन हमें 1989 में मुआवजे के 10000 देके क्लेम पर 25 हजार लिख दिया।"

"हमने 2006 से लेकर 2008 तक यूनियन कार्बाइड के जहरीले पानी की लड़ाई लड़ी, उसके बाद गैस की चपेट में आने वाली 22 बस्तियों में पानी आया। कुछ बस्तियों में तो 2012 में पानी आया, "अपने पूरे परिवार को खो चुकी हाजिरा-बी ने बताया।

हर कदम लड़ाई, हर मोड़ पर जिल्लत

हमने बहुत लड़ाई लड़ी। सिलाई सेंटर में काम करने के लिए कलेक्टर तक से मिलना पड़ा, लेकिन वह सिलाई सेंटर बंद हो गया। मुआवजे के लिए भोपाल से दिल्ली तक पैदल गए, पुलिस ने डंडे मारे, पुलिस ने उठा कर जेलों में ठूंसा। उसके बाद अदालत से जमानत करानी पड़ी। जो 11 साल केस लड़ा। हमारे ऊपर सिर्फ केस लगे हैं, थाना पुलिस डंडे मिले और अदालत में लड़ाई लड़ी, लेकिन हक अभी तक नहीं मिला।

नहीं भूलती वो काली रात

"दो दिसंबर 1984 को इतवार का दिन था, शाम से ही गैस लीकेज शुरू हो गई थी, जिसे सरकार को मालूम था, पब्लिक को नहीं मालूम था, सर्दी बहुत थी, हमारे मियां उठे और बाहर गए तो वो अंदर आए बोले हाजरा किसी ने देखो मिर्ची जला दी। तो मैंने रजाई से मुंह खोला और कहा कि इतनी रात को मिर्ची कौन जलाएगा। मैंने कहा कि इतनी मिर्ची थोड़े जला दी होगी कि अपना पूरा घर धुएं में हो गया। हम इतना ही बोल पाए थे कि मियां बीवी का खांसना शुरू। इतनी खांसी-इतनी खांसी कि नाक-आंख सब एक हो गया और बाथरूम भी हो गई, हाजिरा बी ने बताया।

दम घुटने लगा, कौन कहां को भागा मालूम नहीं। उस रात की कहानी बयां करते हुए हाजिरा बी ने कहा, "मेरी बड़ी बेटी कहां भागी मालूम नहीं, बड़े बेटे को मेरे मियां ने लिया और छोटा बेटा 11 महीने का था उसे मैंने कंबल में लिया और भागे। पास ही डीआईजी बंगले के पास कुछ लोगों ने आग जला रखी थी और पानी था, मुंह धुला। जब हमारी आंख खुली तो देखा कि पास में दो ही बेटे हैं, तीसरा तो है ही नहीं। बेटे की तड़प में हम फिर घर वापस आए। हमारा बीच वाला बेटा इतना तड़पा कि बीच में गिर गया। वो हमें एक ठेले पर बेहोश मिला,"

भोपाल के युनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड का प्लांट और गैस त्रासदी की जद में आया क्षेत्र उसके बाद अपनी पत्नी को खोज रहा था तो कोई बच्चों को। उसके बाद सरकारी गाड़ियों ने लाशों को ढोना शुरू कर दिया। "हमीदिया अस्पताल में लाशों का अंबार था, ज़िंदा लोगों को कोई पूछने वाला नहीं था। उसके बाद 16 दिसंबर को भोपाल खाली हुआ तो हम रिश्तेदार के घर निकल गए। एक हफ्ते के बाद वापस लौटे। जो बेटा बीच वाला छूट गया और ठेले पर मिला उसे डाक्टरों ने इलाज किया और ब्लड टीवी बता दी, वो आठ साल तक भर्ती रहा। उसका बचपना खो गया। उन बच्चों ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा, कभी खेलकूद नहीं पाए। बच्चों की ज़िंदगी बर्बाद हो गई," हाजिरा बी की आंखों में आंसू आ गए।


    

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