सुप्रीम कोर्ट ने दिया मायावती को झटका, कहा मूर्तियों पर खर्च किया जनता का पैसा लौटाना चाहिए

Shabnam KhanShabnam Khan   8 Feb 2019 8:18 AM GMT

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सुप्रीम कोर्ट ने दिया मायावती को झटका, कहा मूर्तियों पर खर्च किया जनता का पैसा लौटाना चाहिएबसपा सुप्रीमो मायावती

लखनऊ। लोकसभा चुनाव से पहले बहुजन समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मायावती की मुश्किलें बढ़ गई हैं। नोएडा में लगाई गई हाथी की मूर्तियों के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को कहा कि मायावती को मूर्तियों (Statues) पर खर्च पैसे को सरकारी खजाने में वापस जमा कराना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि "प्रथम दृष्टया बीएसपी नेता मायावती को अपनी प्रतिमाओं और पत्थर के हाथियों पर खर्च किए गए सभी सार्वजनिक धन का भुगतान करना चाहिए। हालांकि यह फैसला नहीं है। पीठ ने यह साफ किया कि यह अभी संभावित विचार है, क्योंकि मामले की सुनवाई में कुछ वक्त लगेगा। सुप्रीम कोर्ट 2 अप्रैल मूर्तियों पर खर्च की गई धनराशि की जनहित याचिका की अंतिम सुनवाई करेगा। मायावती (Mayawati) की ओर से सतीश मिश्रा ने कहा कि इस केस की सुनवाई मई के बाद हो, लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा कि हमें कुछ और कहने के लिए मजबूर न करें।



बता दें सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई कर रहा है कि क्या मायावती और बसपा चुनाव चिन्ह की मूर्तिर्यों के निर्माण पर हुए खर्चे को पार्टी से वसूला जाए या नही। याचिकाकर्ता रविकांत ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि मूर्ति निर्माण पर हुए करोड़ों के खर्च को बसपा से वसूला जाए। याचिकाकर्ता रविकांत ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सरकारी धन को इस तरह नहीं खर्च किया जा सकता। सरकार की कार्रवाई गलत थी और इस पर सुनवाई होनी चाहिए। रविकांत ने साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर मूर्ति निर्माण पर हुए करोड़ों के खर्च को बसपा से वसूलने की मांग की थी.

क्या था मामला?

दरअसल, साल 2007 से 2011 के बीच उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने लखनऊ और नोएडा में दो पार्क बनवाए थे। इन पार्कों में मायावती ने अपनी, संविधान के संस्थापक भीमराव अंबेडकर, बसपा के संस्थापक कांशीराम और पार्टी के चिह्न हाथी की कई मूर्तियां बनवाई थीं। हाथी की पत्थर की 30 मूर्तियां और कांसे की 22 मूर्तियां लगवाई गईं थीं। इस पर 685 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। मूर्तियों की इस परियोजना की कुल लागत 1,400 करोड़ रुपए से ज्यादा थी। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस पर सरकारी खजाने को 111 करोड़ रुपए का नुकसान होने का मामला दर्ज किया था।

   

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