भारत की सबसे कमजोर आबादी के लिए जलवायु के अनुकूल भविष्य बनाने में मदद कर सकता है मनरेगा

अगर मनरेगा इन चुनौतियों को अवसरों में तब्दील करने में सफल रहा तो यह अधिक सतत भविष्य के निर्माण और सबसे ज्यादा जोखिम के साये में जी रही आबादी की अनुकूलन क्षमता बढ़ाने की दिशा में भारत द्वारा किये जा रहे प्रयासों में बहुत मददगार साबित हो सकता है।

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भारत की सबसे कमजोर आबादी के लिए जलवायु के अनुकूल भविष्य बनाने में मदद कर सकता है मनरेगामनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले करोड़ों परिवारों के लिये सामाजिक सुरक्षा का एक ताना-बाना है। फोटो साभार : आरजीएमवीपी

पार्वती प्रीतन, शुभम गुप्ता और नकुल शर्मा

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा भारत की एक ध्वजवाही योजना है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले करोड़ों परिवारों के लिये सामाजिक सुरक्षा का एक ताना-बाना है जो उन्हें गारंटी-शुदा रोजगार और आमदनी का सतत माध्यम उपलब्ध कराती है।

मनरेगा ने ग्रामीण आबादी की जिंदगी और अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया है, मगर क्या इसे जलवायु सम्बन्धी एजेंडा को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने में इस्तेमाल किया जा सकता है और क्या यह सततता को बनाये रखने में योगदान कर सकती है?

जलवायु सततता या लचीलेपन का मतलब इस बात को समझने से है कि कैसे जलवायु परिवर्तन दोनों ही प्रकार के घटनाक्रम यानी धीमी-शुरुआती (जैसे कि समुद्र का जलस्तर बढ़ना, तापमान में बढ़ोत्तरी, मौसम में तेजी से बदलाव) और जलवायु सम्बन्धी चरम स्थितियों वाली घटनाएं आखिर किस तरह वास्तविक खतरों में तब्दील होती हैं, जो हमारी भलाई को प्रभावित करते हैं और इन जोखिमों से किस प्रकार निपटा जा सकता है।

इन जोखिमों के अनेक स्वरूप हो सकते हैं, जैसे कि कृषि उत्पादकता में गिरावट, भौतिक संपत्तियों को नुकसान और क्षति, वगैरह। स्थानीय समुदायों पर मंडरा रहे जलवायु सम्बन्धी जोखिमों से निपटने के लिये एक विकेन्द्रित योजना की जरूरत है।

मनरेगा इसी से मिलते-जुलते सिद्धांतों पर लागू किया गया है। यह जोखिम के साये में जी रही आबादी पर केन्द्रित है और यह अपनी योजना से लेकर अनुमोदन तक के चरणों में नीचे से ऊपर तक आने की प्रवृत्ति पर आधारित है। मनरेगा के तहत 260 तरीके के कार्य किये जा सकते हैं। उनमें से 181 का सम्बन्ध प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन से है। वहीं 164 कार्य कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों से जुड़े हुए हैं। इनमें से ज्यादातर काम जलवायु सततता या लचीलेपन के नजरिये से महत्वपूर्ण हैं।

वित्त पोषण भी एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है। भारत सरकार मनरेगा के लिये बहुत बड़ी मात्रा में धन आबंटित करती है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में पूरे देश में इस योजना पर खर्च के लिये 61,500 करोड़ रुपये आबंटित किये गये थे। कोविड-19 महामारी के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान मई माह में वित्त मंत्री द्वारा घोषित विशेष आर्थिक पैकेज के तहत मनरेगा की मद में एक लाख करोड़ रुपये और दिये गये। इससे एक प्रमुख चुनौती का समाधान होता है, साथ ही यह जलवायु सततता बनाने और निवेश की कमी को दूर करने का अवसर भी देता है।

ग्लोबल कमीशन ऑन एडेप्टेलशन (जीसीए) के मुताबिक बेहतर सततता पर निवेश के एवज में मिलने वाले नतीजे बहुत अच्छे हैं। इसमें लाभ-लागत अनुपात 2:1 से लेकर 10:1 तक है। इन फायदों के बावजूद जिस रफ्तार या पैमाने से निवेश होना चाहिये, वह नहीं हो रहा है। अब भी भारत की 70% आबादी गांवों में रहती है। इसे देखते हुए मनरेगा भारत में जलवायु सततता विकास की दिशा में आगे बढ़ने में मदद कर सकता है, वह भी किफायती तरीके से।

मनरेगा के तहत 260 तरीके के कार्य किये जा सकते हैं। उनमें से 181 का सम्बन्ध प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन से है। फोटो साभार : फ्लिकर

सिक्किम की धारा विकास परियोजना

सिक्किम में इसका कामयाब उदाहरण देखने को मिलता है। यहां ग्राम्य विकास विभाग (आरडीडी) ने वर्ष 2008 में मनरेगा और नेशनल एडेप्टेशन फंड फॉर क्लाइमेट फंड फॉर क्लाइमेट चेंज (एनएएफसीसी) से मिलने वाले धन से धारा विकास परियोजना शुरू की। यह जल सुरक्षा को बढ़ाने और सिक्किम में सूखे की आशंका वाले क्षेत्रों में जलधाराओं के पुनरुद्धार का एक नवोन्मेषषी और अनोखा कार्यक्रम है।

सिक्किम की करीब 80 प्रतिशत आबादी पीने और सिंचाई के पानी के लिये इन्हीं जल धाराओं पर निर्भर करती है। मगर गिरते भूजल स्तर और तालाबों इत्यादि के सूखने की वजह से इन जल धाराओं पर असर पड़ रहा है। इस कार्यक्रम के तहत इन जल धाराओं के भरण क्षेत्रों की पहचान करने के लिये स्थानीय विशेषज्ञों और वैज्ञानिक जीआईएस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।

मनरेगा के जरिये स्थानीय श्रमिकों को समोच्च ट्रेंचेज बिछाने, वर्षा जल संचयन और लघु सिंचाई नेटवर्क को बढ़ाने इत्यादि के कार्यों में लगाया जाता है। इस तरह की गतिविधियां जल की दर में वृद्धि करने और सतह पर पानी को व्यर्थ बहने से रोकने, भू-जल स्तर में सुधार और समुदायों को अधिक जल सुरक्षा प्रदान करने में योगदान करती हैं।

धारा विकास सम्मिलन का यह मॉडल इसका बेहतरीन उदाहरण है कि मनरेगा को जोखिम के साये में जी रहे समुदायों की सम्पूर्ण आय और आजीविका के अवसरों में योगदान करके जलवायु सततता और अनुकूलन को विकास के साथ मुख्यधारा में लाकर किस प्रकार प्रभावशाली तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। यह कार्यक्रम स्थानीय सहभागिता को बढ़ावा देने के साथ-साथ सामुदायिक स्तर पर जानकारी और क्षमताओं के विकास को भी सुनिश्चित करता है।

वह तत्व, जिसकी कमी है : जलवायु सम्बन्धी डाटा और प्रबन्धन की रणनीतियां

जलवायु सततता को मनरेगा के साथ मुख्यधारा में लाने के लिये जलवायु सम्बन्धी सूचना, कम कार्बन उत्सर्जन वाली प्रौद्योगिकियों और टिकाऊ ढांचे के निर्माण को एक साथ जोड़ने की जरूरत है। फोटो साभार : डाउनटूअर्थ

जलवायु सततता को मनरेगा के साथ मुख्यधारा में लाने के लिये जलवायु सम्बन्धी सूचना, कम कार्बन उत्सर्जन वाली प्रौद्योगिकियों और टिकाऊ ढांचे के निर्माण को एक साथ जोड़ने की जरूरत है। शीर्ष से संचालित होने वाले स्टेट एक्शन प्लांटस फॉर क्लाइमेट चेंज (एसएपीसीसी) के विपरीत नीचे से ऊपर की ओर बढ़ने वाले मनरेगा को जलवायु परिवर्तन के कारण आजीविका और कल्याण पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में ग्राम और ब्लॉक पंचायतों को बड़े पैमाने पर जागरूक करने और उनकी क्षमता का निर्माण करने की जरूरत है।

यह एक चुनौतीपूर्ण काम है क्योंकि इसके लिये जटिल और वैज्ञानिक जलवायु डाटा को ऐसी सूचना में तब्दील करना होगा जो स्थानीय समुदायों को आसानी से समझ में आये और उन पर अमल किया जा सके। इसमें अनेक संस्था‍गत बदलाव भी शामिल होंगे। जैसे कि परियोजना के डिजायन के लिये नये दिशा-निर्देश और कम कार्बन उत्सबर्जन वाली प्रौद्योगिकियों पर होने वाले अतिरिक्त खर्च को समायोजित करना और ढांचे को जलवायु के प्रति अधिक लचीला या सतत बनाना।

अगर मनरेगा इन चुनौतियों को अवसरों में तब्दील करने में सफल रहा तो यह अधिक सतत भविष्य के निर्माण और सबसे ज्यादा जोखिम के साये में जी रही आबादी की अनुकूलन क्षमता बढ़ाने की दिशा में भारत द्वारा किये जा रहे प्रयासों में बहुत मददगार साबित हो सकता है।

डब्यूआरआई-इंडिया की क्लाइमेट रेजीलिएंस प्रैक्टिस (सीआरपी) टीम क्लायइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया (सीएएनएसए) के साथ मिलकर सिक्किम, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में जिला स्तरीय योजना प्रक्रियाओं में सततता को मुख्यधारा में लाने और वर्कशॉप व विचार-विमर्श कार्यक्रमों की श्रंखला के जरिये जलवायु सम्बेन्धी वित्त पोषण जुटाने की उनकी क्षमता में वृद्धि की दिशा में काम कर रहा है।

धारा विकास कार्यक्रम से मिले सबक हमें टीम प्रयासों यानी स्थानीय संस्थागत क्षमताओं और हितधारकों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करने और विकास और जलवायु दोनों से ही सम्बन्धित सरोकारों को आपस में जोड़ने वाले अभिसरण मॉडल को बढ़ावा देने को गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

यह उम्मीद है कि देश के विभिन्न राज्य इस तरह की पहल को अपना सकते हैं और साथ ही साथ सबसे ज्यादा ध्यान देने योग्य जलवायु सम्बन्धी उन जोखिमों के नये समाधान निकाल सकते हैं, जो उनके सामने खड़े हैं। इस तरह की सर्वोत्तम पद्धतियों और अनुभवों का ज्ञान साझा करना इस कवायद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना रहेगा।

(इस लेख को डब्ल्यूआरआई इंडिया से लिया गया है)

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