मोदी 18 बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से करेंगे सम्मानित , 3 बच्चों को मरणोपरांत सम्मान

vineet bajpaivineet bajpai   19 Jan 2018 3:22 PM GMT

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मोदी 18 बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से करेंगे सम्मानित , 3 बच्चों को मरणोपरांत सम्मानराष्ट्रीय वीरता पुरस्कार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वर्ष 7 लड़कियों समेत 18 बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित करेंगे। 3 बहादुर बच्चों को मरणोपरांत ये पुरस्कार दिए जाएंगे। इन बच्चों को 24 जनवरी, 2018 को सम्मानित किया जाएगा। ये बहादुर बच्चे राजपथ पर आयोजित होने वाले गणतंत्र दिवस परेड 2018 में भाग लेंगे, जहां वे मुख्य आकर्षण केन्द्रों में एक होंगे।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इन बच्चों से मुलाकात करेंगे। भारतीय बाल कल्याण परिषद द्वारा राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार की शुरूआत की गई है। पुरस्कार के अंतर्गत एक मेडल, प्रमाण-पत्र और नगद धनराशि दी जाती हैं। स्कूली शिक्षा पूरी करने तक उन्हें वित्तीय सहायता भी दी जाती है। कुछ राज्य सरकारें भी उन्हें वित्तीय सहायता देती हैं। 1957 से अब तक 963 बहादुर बच्चों को ये पुरस्कार दिए गए हैं जिनमें 680 लड़के और 283 लड़कियां हैं।

नाजिया

प्रतिष्ठित भारत पुरस्कार उत्तर प्रदेश के आगरा ज़िले के मंटोला क्षेत्र की 18 वर्षीय कुमारी नाजिया को दिया जाएगा, जिन्होंने अपने घर के आस-पास दशकों से चल रहे अवैध जुए और सट्टेबाजी के खिलाफ आवाज़ उठाई। जान से मारने की धमकी के बावजूद उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा।

प्रतिष्ठित गीता चोपड़ा पुरस्कार कर्नाटक की 14 वर्षीय कुमारी नेत्रावती एम. चव्हाण को दिया जाएगा, जिन्होंने दो लड़कों को डूबने से बचाने के लिए अपनी जान दे दी।

नेत्रावती एम. चव्हाण

नेत्रावती चव्हान, एक पत्थर की खदान के पास बने तालाब के किनारे कपड़े धो रही थी। भारी वर्षा के कारण तालाब पूरा भरा हुआ था। उसी समय दो लड़के गणेश और मुथू तालाब में तैराकी करने लगे। नेत्रावती ने अचानक लड़कों को तालाब में डूबते हुए देखा। बिना घबराए, नेत्रावती उन्हें बचाने के लिए पानी में कूद पड़ी। 30 फुट गहरे तालाब से नेत्रावती 16 वर्षीय मुथु को सुरक्षित बाहर निकाल लाई। इसके बाद 10 वर्षीय गणेश को बचाने वापिस तालाब में गई। लेकिन इस बार गणेश ने नेत्रावती की गर्दन पकड़ ली और उसका दम घुटने लगा। जिससे दोनों को अपने प्राण गंवाने पड़े। यह घटना 13 मई 2017 की है।

संजय चोपड़ा पुरस्कार पंजाब के 17.5 वर्षीय मास्टर करनवीर सिंह को दिया जाएगा, जिन्होंने अपने निरंतर प्रयास और असीमित साहस से कई बहुमूल्य जीवनों की रक्षा की।

करनवीर सिंह

20 सितम्बर 2016 को कुछ बच्चे अपनी स्कूल की बस में वापिस लौट रहे थे। ड्राइवर गाड़ी तेज चला रहा था। अटारी गाँव के पास एक पुल को पार करते समय, बस दीवार से टकराकर नाले में जा गिरी और बस में पानी भर गया, जिससे सभी बच्चों सांस लेने में भी कठिनाई होने लगी। एेसे में करनबीर सिहं बस का दरवाजा तोड़ते हुए बाहर निकला। फिर दुबारा बस में गया और अन्य बच्चों को बाहर आने में मदद की। करनबीर ने 15 बच्चों का जीवन बचाया। घटना में 7 बच्चों को बचाया नहीं जा सका। करनबीर स्वयं भी घायल हुआ और उसके आँख के ऊपर माथे पर गहरा जख्म हो गया।

मेघालय के मास्टर बेटशवाजॉन पेनलेंग (14 वर्ष), ओडिशा की कुमारी ममता दलाई (7.5 वर्ष) और केरल के मास्टर सेवेस्टियन विनसेंट (13.5 वर्ष) को बापू गैधानी पुरस्कार दिया जाएगा।

बेटशवाजॉन पेनलेंग

यह घटना 23 अक्तूबर 2016 की है जब बेट्श्वाजॉन और उसका तीन वर्षीय भाई आरबियस घर पर अकेले थे। छोटा बालक घर के अन्दर था कि अचानक उनकी झोपड़ी में आग लग गई। बेट्श्वाजॉन, जो कि घर से बाहर था, ने अपनी झोपड़ी को आग की लपटों से घिरा पाया। यह सोचकर कि उसका छोटा भाई घर के अन्दर है वह बिना किसी डर के अपने जीवन को खतरे में डालकर जलती हुई झोपड़ी में बच्चे को बचाने के लिए गया। खतरे और दर्द को सहते हुए, वह साहसपूर्वक बच्चे को आग की लपटों से सुरक्षित बाहर निकालकर लाया। इस घटना में बेट्श्वाजॉन का दाहिना हाथ और चेहरा बुरी तरह से जल गया तथा हाथ की उंगलियां विकृत हो गईं। बेट्श्वाजॉन ने अपने निर्भीक एवं साहसिक कृत्य से, अपने भाई को जीवित जलने से बचाया।

ममता दलाई

ममता दलाई ने अपनी दोस्त को एक मगरमच्छ के जबड़े से बाहर निकाला। यह घटना 6 अप्रैल 2017 को ओडिशा के केन्द्रापाड़ा जिले की है। ममता दलाई एवं आसन्ती दलाई (7वर्ष) नजदीक के तालाब में स्नान के लिए गई हुई थीं। उस तालाब में नजदीक की नदी से एक मगरमच्छ आया हुआ था। जिसने अचानक पानी से निकलकर, आसन्ती पर हमला कर दिया। पाँच फुट लम्बे मगरमच्छ ने उसका दाहिना हाथ अपने जबड़ों में जकड़ लिया। मगरमच्छ आसन्ती को तालाब में खींचने लगा। इस विषम परिस्थिति में, बिना डरे ममता ने आसन्ती का बांया हाथ पकड़ा और मगरमच्छ के मुंह से खींचने का प्रयत्न करने लगी। उसके दृढ़ रक्षा-हेतु प्रयास एवं चीखों के चलते, मगरमच्छ की पकड़ आसन्ती पऱ कमजोर पड़ गई और वह तालाब में वापिस चला गया। इसके बाद ममता, आसन्ती को सुरक्षित स्थान पर खींचकर ले आई।

सेवेस्टियन

सेवेस्टियन ने रेल पटरी पर एक दुर्घटना से अपने दोस्त को बचाया। यह घटना 19 जुलाई 2016 की सुबह की है जब सेबासटियन विनसेन्ट और उसके मित्र साइकिल से अपने स्कूल जा रहे थे। जब वे सब एक रेलवे क्रासिंग को पार कर रहे थे तब उसके एक दोस्त अभिजीत का जूता रेलवे ट्रैक में फंस गया। इस कारण वह साइकिल और स्कूल बैग के साथ ट्रैक पर गिर गया। तभी बच्चों ने देखा कि एक रेलगाड़ी तेजी से आ रही थी। सभी बच्चे घबरा गए और वहां से भागने लगे। सेबासटियन ने तुरन्त अपने दोस्त को बचाने का प्रयास किया। पहले उसने अभिजीत को ट्रैक से हटने के लिए कहा, लेकिन उसने देखा कि साइकिल के भार के कारण वह उठ नहीं पा रहा था। सेबासटियन ट्रैक पर कूदा और साइकिल को धक्का दिया। तब उसने अभिजीत को खड़ा करने का प्रयास किया लेकिन वह हिम्मत हारकर फिर गिर गया। सेबासटियन ने शीघ्रता दिखाते हुए अभिजीत को अपनी पूरी ताकत से ट्रैक से दूर धकेला और स्वयं भी रेलगाड़ी आने से तुरन्त पहले कलाबाजी खाते हुए ट्रैक से दूर जाकर गिरा। इस घटना में सेबासटियन के दाहिने हाथ की हड्डी टूट गयी।

लक्ष्मी यादव

02 अगस्त 2016 की शाम आठ बजे, लक्ष्मी यादव और उसके एक मित्र ने गणेश नगर मार्ग पर अपनी मोटर साइकिल खड़ी की और बातचीत करने लगे। उसी समय एक अपराधी अपने दो साथियों के साथ वहां पहुंचा। उन दोंनो के साथ गाली-गलौज और मार-पीट करते हुए उन्होंने उनकी मोटर साइकिल की चाबी छीन ली। उनमें से एक ने, जबरदस्ती लक्ष्मी को खींचते हुए बाईक पर बैठाया और वे तीनों उसे अगवा करके यौन शौषण के इरादे से एक सुनसान जगह पर ले गये। इस स्थिति में भी, लक्ष्मी ने स्वयं का मानसिक एवं भावनात्मक संतुलन बनाए रखा। उसके साहस ने उसे खतरे का सामना करने हेतु सक्षम किया। वह किसी तरह मोटर साइकिल की चाबी निकालने में सफल हो गई और चाबी को कहीं छुपा दिया। जब बदमाशों ने लक्ष्मी को पकड़ने का प्रयास किया, उसने उन्हें धक्का दिया और वहां से बच निकलकर सीधे पुलिस चैकी पर जाकर घटना की सूचना दी। लक्ष्मी यादव ने निडरता एवं पराक्रम से बुराई का डटकर मुकाबला किया एवं तीन कट्टर अपराधियों को पकड़वाने में मदद की।

मनशा

मेरीबनी (3 वर्षीय) एवं चुम्बेन (छः वर्षीय) की माता के देहान्त के बाद, मनशा उनकी देखभाल किया करती थी। 7 अगस्त 2016 की रात करीब डेढ़ बजे, मनशा ने मेरीबनी की दबी-घुटी आवाज सुनी। वह बच्ची को देखने के लिए गई। वहां मेरीबनी के पिता को उसका गला दबाकर मारने का प्रयास करते देख, वह आश्चर्यचकित रह गई। सोचने के लिए बिल्कुल समय नहीं था तो मनशा ने तुरन्त बच्ची को छीना और उसके पिता को धक्का देकर, बच्ची को अपने साथ ले गई। कुछ मिनट बाद, दुबारा उसने वैसी ही आवाज सुनी। वह तुरन्त भागकर वहां पहुंची तो देखा कि पिता अपने बेटे चुम्बेन का बेल्ट से गला घोंटने का प्रयास कर रहा था। मनशा ने उसे बच्चे से दूर धकेला और मदद के लिए चिल्लाई। शोरगुल सुनकर, बच्चों के मामा, जो बगल के कमरे में रहते थे, दौड़कर मदद के लिए पहुंचे। जब शेंगपॉन और योकनेई, मनशा से घटना की जानकारी ले रहे थे, तब वेनथंगो रसोई की तरफ भागे और वहां से कुल्हाड़ी जैसा एक हथियार अपने बच्चों को मारने के लिए ले आए। उसने अपने बेटे पर उससे वार किया। यद्यपि योकनेई ने बच्चे को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया, परन्तु उसे गर्दन में गंभीर चोटें आईं।

चिंगई वांग्सा

यह घटना 4 सितम्बर 2016 की सुबह की है। अधिकांश ग्रामीण चर्च में थे जब एक घर में आग लग गई। इस बात से बेखबर, एक 74 वर्षीय बुजुर्ग घर में सो रहे थे, कि उनकी रसोई से आग की लपटें उठने लगी। तभी पड़ौस में रहने वाले चिंगई वांग्सा ने बगल वाले घर की छत से आग की लपटें उठते देखीं। चिंगई वांग्सा तुरन्त जलते हुए घर की तरफ भागा, लेकिन दरवाजा अन्दर से बंद था। उसने आवाज लगाई मगर कम सुनाई देने के कारण, वृ़द्ध ने उसकी आवाज नहीं सुनी। अतः उसने दरवाजा तोड़ दिया। वह डर हुआ था, लेकिन फिर भी आग की लपटों में घिरी रसोई से गुजरते हुए कमरे तक पहुंचा जहां वृद्ध व्यक्ति सो रहे थे। आग पहले से ही छत तक पहुंच चुकी थी। चिंगई वांग्सा ने उन्हें उठाया और सुरक्षित बाहर लेकर आया। वह दुबारा साहस कर, जलते हुए घर की ओर गया और घर के पिछले हिस्से में बंधे पशुओं को बचाया। गैस के दो सिलिण्डर फट जाने के कारण घर पूरी तरह जल चुका था। चिंगई वांग्सा के साहसिक एवं सामयिक कार्य से एक वृद्ध व्यक्ति जिन्दा जलने से बच गए।

समृद्धि शर्मा

1 जुलाई 2016 की दोपहर, समृद्धि शर्मा घर पर अकेली थी कि दरवाजे की घंटी बजी। उसने दरवाजा खोला तो सामने खड़ा एक नकाबपोश व्यक्ति नौकरानी के विषय में पूछताछ करने लगा। समृद्धि ने उसे बताया कि वह अपना काम खत्म करके जा चुकी है। तब उसने पीने के लिए पानी मांगा। समृद्धि द्वारा पानी के लिए मना किया जाने पर, उस व्यक्ति ने चाकू निकाला और उसकी गर्दन पर रख दिया। बिना घबराए, खतरे का सामना करते हुए, उसने अपने बांए हाथ से चाकू को खुद से दूर किया और उस व्यक्ति को गेट से बाहर धकेला। इससे वह फिसलकर गिर पड़ा। उसके बाद बदमाश चाकू छीनते हुए कम्पाउण्ड से बाहर भागा। हाथापाई में चाकू से लड़की के हाथ की नस कट गई और बहुत खून बहने लगा। दर्द की परवाह किए बगैर, समृद्धि दृढ़ता और साहस से उसके पीछे भागी। बदमाश बचकर अपनी बाईक पर भागने में सफल रहा लेकिन जल्दबाजी में चाकू उसके हाथ से गिर गया जिसे पुलिस को सौंप दिया गया। समृद्धि के हाथ में चोटें आईं जिसके लिए उसे दो ऑपरेशन करवाने पड़े। समृद्धि की मानसिक शक्ति ने उसे, साहस एवं शौर्यपूर्ण कार्य हेतु सक्षम बनाया।

जोनुनतुआंगा

यह घटना 20 अगस्त 2016 की सुबह हुई जब जोनुनतुआंगा और उसके पिता मिजोरम के सरचिप जिले में स्थित एक छोटी नदी पर जा रहे थे। रास्ते में कुछ हलचल सुनकर, उसके पिता पता लगाने के लिए रुके तो अचानक एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया। पिता को अपने बचाव का एक भी मौका न देते हुए, जंगली जानवर ने अपना हमला जारी रखा और उनके चेहरे को भयानक रूप से घायल कर दिया। जोनुनतुआंगा कुछ दूर था जब उसने उनकी चीखें सुनी और दौड़कर वहां पहुंचा। अपने पिता को बचाने के लिए, जोनुनतुआंगा बिना डरे, शोर मचाते हुए एक कुल्हाड़ी जैसे हथियार को लेकर भालू के समीप पहुंचा। उसने निडरता से भालू से मुकाबला किया। अपने साहसिक प्रयास से वह भालू को भगाने में सफल हो गया। जोनुनतुआंगा अपने घायल पिता को लेकर वापिस गांव गया। उन्हें आवश्यक इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया। अपनी जान जोखिम में डालकर, जोनुनतुआंगा ने साहसपूर्वक जंगली जानवर से अपने पिता की रक्षा की।

पंकज सेमवाल

यह घटना 10 जुलाई 2016 की रात करीब एक बजे, उत्तराखण्ड के टीहरी गढ़वाल जिले में हुई। घर की दूसरी मंजिल पर बरामदे में, पंकज सेमवाल अपनी माँ और भाई-बहनों के साथ सोया हुआ था। एक गुलदार, सीढ़ी के रास्ते होता हुआ बरामदे में पहुँचा और अपने पंजों से उसकी माँ पर हमला कर दिया। गुलदार उसकी मां को सीढ़ियों की तरफ खींचने लगा। लेकिन वह दर्द के मारे चीखने एवं शोर मचाने लगी। मां की चीखें सुनकर, पंकज उठ गया। इस भयावह स्थिति में, पंकज ने अपने डर पर काबू करते हुए, पास में पड़ा एक डंडा उठाया और गुलदार को भगाने का प्रयास करने लगा। डर के मारे उसके भाई-बहन गुमसुम हो गए। पंकज के निर्भीकतापूर्ण मुकाबले से गुलदार को भागना पड़ा। इसी बीच गाँव वाले भी इकट्ठा हो गए। विमला देवी घायल थीं और बहुत खून बह रहा था, तो उन्हें अस्पताल ले जाया गया। पंकज सेमवाल के साहसिक एवं धैर्यपूर्ण कृत्य के कारण उसकी माता जंगली जानवर के प्राणघातक हमले से बच गई।

इजाज अब्दुल रॉफ

यह घटना 30 अप्रैल 2017, गाँव परडी, जिला नानदेड़, महाराष्ट्र की है। कुछ महिलायें और लड़कियां, एक नदी पर बने जलाशय के किनारे गई हुई थीं। अचानक उनमें से एक लड़की का पैर फिसला और वह पानी में गिर गयी। यह देख, शेख अफसर अपनी सहेली को बचाने के लिये जलाशय में उतरी। किन्तु पानी गहरा होने के कारण वह भी डूबने लगी। तब दो और लड़कियां शेख आफरीन और शेख तबस्सुम उन्हें बचाने के लिए गईं। दुर्भाग्यवश इन सब लड़कियों में कोई भी तैरना नहीं जानती थी तथा उन्हें पानी की गहराई का कोई अंदाजा नहीं था। इसलिये वे भी डूबने लगीं। उनकी चीखें सुनकर, वहां से गुजरते हुए कुछ व्यक्ति उनकी मदद के लिए पहुंचे। इजाज अब्दुल रॉफ और दो अन्य व्यक्तियों ने पानी में छलांग लगा दी। यह जानकर कि लड़कियां गहरे पानी में जा चुकी हैं, तो वे दो व्यक्ति किनारे पर वापस आ गये। लेकिन इजाज अब्दुल रॉफ बिना किसी भय के 20 फुट गहरे पानी में उन लड़कियों को तलाश करता रहा और धैर्यपूर्वक, सभी बाधाओं का सामना करते हुए, वह तबस्सुम तथा आफरीन को बचाने में सफल हो गया। दुर्भाग्यवश दो अन्य लड़कियों को बचाया नहीं जा सका। इजाज अब्दुल रॉफ ने कठिन एवं खतरनाक स्थिति में, बिना घबराए, मुश्किलों का सामना करते हुए, दो अमूल्य जीवन बचाए।

राजेश्वरी चनु

यह घटना 10 नवम्बर 2016 की है। ओगंबी केबीसाना अपनी बेटी इनंगंबी (तीन वर्षीय) एवं एक अन्य लड़की राजेश्वरी चनु के साथ एक लकड़ी का पुल पार कर रही थीं। 167 फुट चैड़ी इम्फाल नदी पर बना यह लकड़ी का पुल, मरम्मत न होने के कारण जर्जर अवस्था में था। छोटी बच्ची ठोकर खाकर, पुल पर बने छेद से नीचे नदी में गिर पड़ी। अपने बच्चे को बचाने के लिए उसकी माँ भी तत्काल पानी में कूद पड़ी। परन्तु तैरना न आने के कारण, वह भी डूबने लगी। यह देख, राजेश्वरी चनु ने 30 फुट गहरे पानी में छलाँग लगा दी। दृढ़ निश्चय के साथ, उसने बच्ची एवं उसकी माँ को पकड़कर, किनारे की ओर धकेला। गहरे पानी में लंबे समय तक संघर्ष के कारण, किनारे तक आते-आते वह अत्यन्त थक गई और मदद के लिए पुकारने लगी। वहीं नजदीक उपस्थित कुछ लोगों ने चीख-पुकार सुनी तो जाकर माँ एवं बच्ची को बाहर निकाला। परन्तु राजेश्वरी चनु तीव्र जलधारा में बह गयी एवं उसे ढूंढा नहीं जा सका। तीन दिनों की खोज के उपरांत, उसके शव को नदी से निकाला गया। राजेश्वरी चनु ने, अत्यन्त पराक्रम से, दो अमूल्य जीवन बचाने के प्रयास में, अपने प्राणों की आहूति दे दी।

ललछंदामा

7 मई 2017 की दोपहर, ललछंदामा अपने सहपाठियों के साथ शहर से आठ किलोमीटर दूर त्लांग नदी पर गया जो कि मिजोरम की सबसे बड़ी नदी है। उन्होंने एक घंटे तैराकी का आनन्द लिया। जब वे वापसी की तैयारी कर रहे थे, तो अचानक उनके एक मित्र ललरेमकीमा का पैर, चट्टान पर जमी काई के कारण, फिसल गया और संतुलन बिगड़ने से वह नदी में जा गिरा। घबराहट की वजह से, वह तैर नहीं सका और मदद के लिए चिल्लाने लगा। ललछंदामा एवं ललमुंआसांगा ने तुरन्त पानी में छलांग लगा दी और तैरकर अपने असहाय मित्र के पास पहुँचे। डूबते हुए लड़के ने ललमुंआसांगा की गर्दन पकड़ ली जिस कारण उसे साँस लेने एवं तैरने में कठिनाई होने लगी। परिणामस्वरूप वे दोनों डूबने लगे। ललछंदामा ने साहस से ललमुंआसांगा को ललरेमकीमा की पकड़ से छुड़वाया और उसे किसी तरह किनारे तक पहुंचाने में सफल रहा। परिणाम की परवाह किए बिना, बहादुर ललछंदामा बगैर हिचकिचाहट, अपने दूसरे मित्र को बचाने के लिए एक बार फिर गहरे पानी में गया। निरन्तर कोशिश के बावजूद, वह अपने प्रयास में विफल हो गया और दोनों को अपने प्राण गंवाने पड़े। ललछंदामा ने निर्भय होकर, खतरे और कठिनाई का सामना किया एवं अपने मित्रों को बचाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।

पंकज

यह घटना 22 मई 2017 की सुबह, ओडिशा के केंदुझर जिले में घटी। तीन महिलाएं बैजयन्ती (25 वर्ष), पुष्पलता (22वर्ष) एवं सुचिता (34 वर्ष) स्नान के लिए बैतारनी नदी पर गई हुई थीं। हालांकि अधिकतर ग्रामीण उस नदी में स्नान किया करते थे, किन्तु वे हाल ही में हुई वर्षा के कारण हुए रेत के अवसादन से अनभिज्ञ थे। स्नान करते समय, गीली रेत पर बैजयन्ती का पैर फिसला और वह 20 फुट गहरे पानी में जा गिरी। अन्य दो महिलाओं ने उसे बचाने का प्रयास किया परन्तु वे भी डूबने लगी। यह देख, पंकज तुरन्त उन्हें बचाने के लिए दौड़ा और तैरकर पानी की गहराई में पहुँचा। तीनों महिलाओं का वजन, पंकज के वजन और ताकत से कहीं अधिक था। अपने जीवन को दांव पर लगाकर, उसने उन तीनों को एक-एक कर बाहर निकाला। पंकज कुमार माहंत ने अपने निर्भीक एवं साहसिक कृत्य से तीन जीवन बचाए।

 

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