पंचायती राज दिवस: एक सरपंच ने संगमरमर की खदानों के बीच बसा दिया बाग
Anusha Mishra 24 April 2017 12:36 PM GMT
लखनऊ। राजस्थान के राजसमंद जिले के पिपलात्री गांव के आस-पास सफेद संगमरमर की खदाने हैं। इनमें होने वाले खनन और मलबे के कारण यहां इतना प्रदूषण हो गया था कि हरियाली लगभग खत्म हो गई थी। जलस्तर काफी नीचे चला गया था। वन्यजीव यहां से गायब हो दूर चले गए थे। फिर 2005 में इस गांव के लोगों ने श्याम सुंदर पालीवाल को सरपंच चुना और उन्होंने गांव की काया पलट दी।
गाँव के पूर्व प्रधान श्याम सुंदर पालीवाल का कहना है कि 2005 से लेकर अभी तक वह अपने गांव में 3.50 लाख पौधे लगा चुके हैं। ये सब कैसे हुआ पूछने पर श्याम सुंदर पालीवाल बताते हैं, “अगर कोई भी सरपंच ये चाहे कि वह सिर्फ सरकारी योजनाओं के माध्यम से ही अपने गांव की दशा बदल सकता है तो यह वाकई मुमकिन है।”
मैंने बेटियों को बचाने, पानी का स्तर बढ़ाने और पौधे लगाने को गांव के विकास का आधार बनाया। अब मेरे गांव में जब भी कोई बेटी पैदा होती है तो गांव वाले मिलकर 111 पौधे लगाते हैं, और जब किसी की मृत्यु होती है तब भी 11 पौधे लगाते हैं।श्याम सुंदर पालीवाल, पूर्व प्रधान, पिपलांत्री गांव, राजस्थान
श्याम सुंदर फोन पर गांव कनेक्शन को बताते हैं, “वह एक पत्र पर गांव के लोगों से हस्ताक्षर करवाते हैं कि बेटी की शादी कानूनी उम्र से पहले नहीं करेंगे, उसे नियमित तौर पर स्कूल भेजेगे और उनके नाम पर लगाए गए पेड़ों की देखभाल करेंगे।”
लड़कियां बोझ न समझी जाएं, वो बड़ी होकर किसी के आगे हाथ न फैलाएं, उनकी जन्म के साथ ही इसका भी इंतजाम हो जाता है। सरकार ने भले ही आज लड़कियों के लिए तमाम योजनाएं शुरु कि हो लेकिन इस गांव में डेढ़ दशक से ये हो रहा है। वो बताते हैं, बेटी के जन्म लेने पर उसके पिता से दस हजार रूपये लिए जाते है और उसमें गांव वालों की ओर से एकत्रित किए 21 हजार रुपये मिलाकर उस रकम को लड़की के नाम से खोले गए बैंक खाते में बीस वर्ष के लिए जमा कर देते है, ये पैसे बच्ची की पढ़ाई से लेकर उसके शादी-बारात में काम आते हैं। कई बार यही पैसे लड़की आर्थिक आधार भी देते हैं।”
अनुदान और योजनाओं से किया विकास
रोजगार बढ़ाने के लिए यहां एलोवेरा की खेती को बढ़ावा दिया गया और एक प्लांट लगाकर एलोवेरा जूस, शैंपू और इससे बनने वाली अन्य सामग्री का उत्पादन किया जा रहा है। खास बात यह है कि श्याम सुंदर पालीवाल ने यह सब सरकार द्वारा पंचायतों को मिलने वाले अनुदान और योजनाओं से ही किया है। श्याम सुंदर पालीवाल का कहना है कि अगर कोई भी सरपंच ये चाहे कि वह सिर्फ सरकारी योजनाओं के माध्यम से ही अपने गांव की दशा बदल सकता है तो यह वाकई मुमकिन है।
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