कुंभ मेला 2019: 'नेहा के पापा हम गुम गए हैं, खोया-पाया कैंप पर आकर हमको ले जाओ'

पहले दिन करीब 540 लोग ऐसे थे जो या तो गुम हो गए या किसी अपने को खोज रहे थे।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   17 Jan 2019 3:53 AM GMT

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कुंभ मेला 2019: नेहा के पापा हम गुम गए हैं, खोया-पाया कैंप पर आकर हमको ले जाओ

प्रयागराज। कुंभ की शुरुआत हो गई है। इसके साथ दूर दराज से आए लोगों के खोने का सिलसिला भी चल पड़ा है। कुंभ के पहले दिन मेले में लगे बड़े बड़े लाउड स्‍पीकर दिन भर लोगों के गुम होने की सूचना देते रहे। कहीं किसी की पत्‍नी गायब थी तो कहीं किसी का बेटा उनसे बिछड़ गया था।

बिहार के दरभंगा से आई नुनू देवी की बहन भी इस मेले में खो गईं हैं। वो बताती हैं, ''उनकी बहन जिनका नाम बबुआ देवी है वो नहाने गईं थीं, लेकिन फिर मिली ही नहीं।'' इसके बाद नुनू देवी हेमवंती नंदन बहुगुणा स्‍मृति समिति द्वारा चलाए जा रहे खोया पाया कैंप में जाकर रह रही हैं। कैंप के संचालक संत प्रसाद पांडे बताते हैं, हम खाई हुई महिलाओं और बच्‍चि‍यों को अपने कैंप में रखते हैं। तीन दिन तक अगर उनको कोई अपना नहीं आता तो उन्‍हें उनके घर पहुंचाने की व्‍यवस्‍था की जाती है।

खोया पाया केंद्रों का संचालन करने वाले डॉ. प्रसन्‍ना उगावकर

ये तो हुई एक कैंप की बात। इसके अलावा मेले में काश आईटी सॉल्‍युशन की ओर से कंप्‍यूटराइज्‍ड खोया पाया केंद्र बनाए गए हैं। इन खोया पाया केंद्रों का संचालन करने वाले डॉ. प्रसन्‍ना उगावकर बताते हैं, ''मेले में हमारे 15 सेंटर हैं। ये सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। हम पहले खोए हुए व्‍यक्‍ति की पूरी जानकारी लेते हैं उसके बाद कंप्‍यूटर में फीड करके उसे मेले की स्‍क्रीन पर चलाते हैं। साथ ही समय समय पर लाउड स्‍पीकर के माध्‍यम से सूचना भी देते हैं।''

डॉ. उगावकर बताते हैं, ''पहले दिन करीब 540 लोग ऐसे थे जो या तो गुम हो गए या किसी अपने को खोज रहे थे। इनमें से 195 लोग मिल गए, जिनका केस हम बंद कर चुके हैं। इसके अलावा बहुत से लोग बाहर ही मिल गए, जिन्‍होंने अपना केस क्‍लोज नहीं कराया है। हालांकि वो मिल गए हैं।''

मध्‍य प्रदेश के टिकमगढ़ जिले के रहने वाले राजेंद्र प्रसाद का बेटा खो गया है।

खोया पाया कैंप के बाहर ही मध्‍य प्रदेश के टिकमगढ़ के रहने वाले राजेंद्र प्रसाद मिले। राजेंद्र का 18 साल का बेटा राजू खो गया है। वो कहते हैं, ''हम दोनों नहाने गए, लेकिन फिर पता नहीं मेरा लड़का कहां निकल गया। उसका कुछ पता नहीं चल रहा है। लाउड स्‍पीकर से कई बार बोला जा चुका है। दरअसल वो अनपढ़ है न, इसलिए समझ ही नहीं पाता होगा कि कहां जाना है।''

राजेंद्र की तरह ही बहुत से लोग अपनों को खोजते मिल जाते हैं। इन्‍हीं में से बिहार के छपरा से आईं दुलारी देवी अपने पति से बिछड़ गई हैं। मकर संक्रांति को गयाब होने के दूसरे दिन तक उनके पति का कुछ पता नहीं चल सका है। दुलारी देवी बताती हैं, ''उनके पति का नाम इंद्रासन है। उन्‍होंने सफेद शर्ट पहनी है। मेले में साथ ही चल रहे थे, लेकिन कब भीड़ में गुम हो गए पता ही नहीं चला। इतना बड़ा मेला है कि कौन कहां निकल जाए क्‍या पता। बता दें, इस बार मेला क्षेत्र 45 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला है। इससे पहले सिर्फ 20 वर्ग किमी में ही होता था।


खोया पाया केंद्र के संचालक डॉ. उगावकर बताते हैं कि ''हमारी हेल्‍पलाइन 1920 हमेशा काम कर रही है। किसी भी खोए हुए व्‍यक्‍ति की सूचना इसपर दी जा सकती है। हम उसके नाम को लाउड स्‍पीकर से अनाउंस करेंगे।'' फिलहाल कुंभ बिछड़ने के लिए हमेशा से जाना जाता रहा है। हर बार ऐसी कहानियां सामने आती हैं, लेकिन अच्‍छी बात ये है कि मोबाइल के आने के बाद से ऐसे मामलों में कमी आई है। एक और बात खास है कि बिछड़ने वालों में सबसे ज्‍यादा बिहार के लोग शामिल हैं। दूसरे नंबर में मध्‍य प्रदेश के लोग आते हैं।

   

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