सजा काट रहे कैदियों ने बनाया जेल बैंड, थिरकने को कर देते हैं मजबूर, ऐसे हुई थी शुरुआत

Karan Pal SinghKaran Pal Singh   2 May 2017 10:22 AM GMT

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सजा काट रहे कैदियों ने बनाया जेल बैंड, थिरकने को कर देते हैं मजबूर, ऐसे हुई थी शुरुआतप्रस्तुती देते जेल बैँड के कैदी।

आगरा। दुनिया के सात अजूबों में एक ताजमहल है जो आगरा में स्थित है। अगरा में भी कई ऐसी चीजें मिल जाएंगी जो अजूबों से कम नहीं। आगरा की जेल में कैदियों ने थाली, कटोरी, चम्मच, लोटा बजाते-बजाते अपना बैंड बना लिया है। जो प्रदेश में काफी लोकप्रिय हो रहा है।

ऐसे पड़ी नींव

आगरा की सेंट्रल जेल में खाने के वक्त कोई थाली बजाता था तो कोई गिलास और कोई लोटा। दो-तीन लोग ऐसे भी थे जो थाली-गिलास की थाप पर ही गुनगुना शुरू कर देते थे। इस सब के बीच दो लोग ऐसे भी थे जो सन्नाटे के किसी कोने में बैठकर दिल से निकले अल्फाजों को लय देने की कोशिश करते थे।

प्रस्तुती देते कैदी।

ऐसे बना कैदियों का बैंड

कैदियों के गाने की ख्याति धीमें-धीमें जेल की चाहर दीवारियों के बाहर निकलने लगी। कैदियों के हुनर के बारे में पता लगने पर पेशे से म्यूजिक टीचर विक्रम शुक्ला एक दिन जेल आए। जहां उन्होंने किसी को गाते तो किसी को बजाते हुए देखा। विक्रम बताते हैं कि इसमें कुछ लोग ऐसे दिखे जिन्हें कुदरत ने ही संगीत का हुनर सौंपा था। विक्रम ने उस वक्त आगरा सेंट्रल जेल के जेल सुपरिटेंडेंट बीएल वर्मा से बंदियों को संगीत सिखाने की इच्छा जाहिर की। वर्मा भी सहज ही तैयार हो गए। उन्हें लगा कि इससे तो बंदियों में सुधार भी आएगा और कुछ सीखकर ही जेल से जाएंगे।

जेल बैंड ग्रुप।

जेल में शुरु हो गया संगीतकारों का आना-जाना

विक्रम बताते हैं कि फरवरी 2012 में हमने बंदियों को सिखाना शुरू कर दिया। मैं खुद सिंगिग, गिटार, की-बोर्ड, हरमोनियम पर बंदियों को रियाज कराता था। इसके साथ ही शहर में संगीत की परीक्षा कराने आए अंजल घोष भी जेल में कुछ वक्त बंदियों को संगीत की शिक्षा दे आए। म्यूजिक टीचर फ्रांसिस मिरांडा, आक्टोपैड के उस्ताद गुलशन ने भी जेल में जाकर बंदियों को बारिकियां सिखाईं। इतना ही नहीं गजल गायकी का जाना-पहचाना नाम सुधीर नारायण और कव्वाली के उस्ताद सलीम हसन चिश्ती ने भी अपनी क्लास कुछ दिन तक जेल में लगाई।

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गांधी जयंती पर जेल बैंड ने दी पहली प्रस्तुति

मौका था गांधी जयंती का, विक्रम कहते हैं कि इस दौरान बंदी गाने-बजाने में खासे होशियार हो गए थे। बैंड भी तैयार हो गया था। नाम भी जेल बैंड रखा जा चुका था। जेल बैंड ने अपनी प्रस्तुती से सबका मन मोह लिया था। जेल अधिकारियों के सामने ये भी साबित करना था कि बंदियों की मेहनत बेकार नहीं जा रही है। बंदियों ने अपनी पहली कामयाब प्रस्तुति देकर सभी के चेहरे पर हंसी बिखेर दी।

अलग-अलग वाद्य यंत्रों में पारंगत

सजा पाए कैदियों में जुगनू गिटार बजाते हैं, पप्पू कैसियों बजाने के साथ ही गाने भी लिखते हैं। 28 साल के शकील अच्छा गाने के साथ ही लिखते भी हैं। संस्कृत पर शकील अच्छी पकड़ रखते हैं। नौशाद भी अच्छे गाने लिखते हैं। यशपाल त्यागी कांगो बहुत अच्छा बजाते हैं। डॉ. वीरेन्द्र और दीपू आक्टोपैड बजाने में मास्टर हैं।

रोड़ा बनी सुरक्षा

आगरा सेंट्रल जेल में बने जेल बैंड के किस्से दूसरी जेलों में भी होने लगे हैं। बंदियों के बैंड की धुने विडियों के जरिए दूसरी जेल के बंदी भी सुनने लगे। दूसरी जेल में कार्यक्रम के लिए डिमांड होने लगी। जेल सुपरिटेंडेंट लाल रत्नाकर के अनुसार सुरक्षा कारणों की वजह से ऐसे सजायाफ्ता बंदियों को भेजा नहीं जा सकता है।

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