जैसलमेर के गाँवों में कामयाब है बारिश का पानी इकट्ठा करने का ये तरीका

राजस्थान के जैसलमेर में पानी संरक्षण के लिए आज भी परंपरागत बेरियाँ तरीके का इस्तेमाल हो रहा है, इससे ग्रामीणों के साथ ही उनके पशुओं को भी साल भर पानी मिलता रहता है।

Kuldeep ChhanganiKuldeep Chhangani   6 July 2023 6:29 AM GMT

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जैसलमेर के गाँवों में कामयाब है बारिश का पानी इकट्ठा करने का ये तरीका

राजस्थान के जैसलमेर ज़िले में फलसूंड क्षेत्र के प्रभुपुरा, अबासर और उसके आस पास के गाँवों में बेरियाँ को परंपरागत रूप से आज भी अपनाया जा रहा है। सभी फोटो: कुलदीप छंगानी

पोखरण (जैसलमेर), राजस्थान। यहाँ एक कहावत प्रचलित है "घी ढुळ्यां म्हारो की नी जासी, पाणी ढुळ्यां म्हारो जी बळे" यानी घी फैल जाए तो हमें कुछ फर्क नहीं पड़ता लेकिन पानी फैलने पर हमारा दिल जलता है। तभी तो यहाँ पानी किसी कीमती ख़ज़ाने से कम नहीं है। यहाँ पानी के सरंक्षण का सालों पुराना तरीका अपनाया जा रहा है।

जैसलमेर के एक रेगिस्तानी गाँव अबासर में किसान धनाराम अपनी 50 बीघे ज़मीन पर बाजरा, मूंग और ग्वार फली की ख़ेती करते हैं। 38 साल के किसान और उनके परिवार के 12 सदस्यों के लिए, सबसे कीमती संपत्ति शायद उनके खेत में बनी बेरी है, जो थार रेगिस्तान की चिलचिलाती गर्मी सहित पूरे साल उनकी पीने के पानी की ज़रूरतों को पूरा करती है। स्थानीय रूप से बेरियों को यहाँ पार कहा जाता है।

राजस्थान के जैसलमेर ज़िले में फलसूंड क्षेत्र के प्रभुपुरा, अबासर और उसके आस पास के गाँवों में परंपरागत रूप से आज भी अपनाया जा रहा है। दरअसल इस गाँव में 50-60 साल पहले वर्षा जल को संग्रहित करने के लिए बनाई गई बेरियाँ आज भी काम की हैं। तभी तो यहाँ के लोगों के सामने पानी की समस्या नहीं होती है।


धनाराम गाँव कनेक्शन को बताते है, "हमारे और पशुओं के पीने के पानी की ज़रूरत इन्हीं पार से होती है, जबकि घर के दूसरे कामों के लिए हमें टैंकर भेज कर फलसूंड इंदिरा गांधी नहर पर बने हाईडेंट से पानी मंगवाना पड़ता है जिसका 1000 रुपए खर्च आ जाता है।" जबकि धनाराम के घर के पास ही जलदाय विभाग की जीएलआर बनी हुई हैं लेकिन उसमें अंतिम बार पानी साल 2015 में आया था।

ऐसा नहीं है कि इन बेरियों में हमेशा पानी रहता था। धनाराम के मुताबिक कभी पानी से तरबतर रहने वाली ये बेरियाँ साल 2004 से 2006 के बीच पड़े अकाल के वक़्त सूख गई थी। लेकिन पिछले तीन सालों से अब वापस इन बेरियों में बारिश का पानी इकट्ठा होने लगा है।

गर्म और शुष्क जैसलमेर ज़िले में देश में सबसे कम बारिश होती है, और रेगिस्तानी ज़िले में गर्मियों का तापमान 47-49 डिग्री सेल्सियस को पार करने के लिए जाना जाता है। इसलिए, फलसुंड में कृषि भूमि और उसके आसपास बेरियाँ देखना असामान्य नहीं है।

राजस्थान को वर्षा जल संचयन के प्राचीन ज्ञान की भूमि के रूप में जाना जाता है, और पानी की कमी वाले क्षेत्र में रहने वाले समुदायों के जल संरक्षण के प्रयास सदियों से जीवन का एक तरीका रहे हैं। जैसलमेर ज़िले के कई गाँवों में 60 साल से अधिक पुरानी बनी बेरियाँ आज भी काम कर रही हैं।


फलसूंड तहसील के प्रभुपुरा गाँव में 400 घर हैं और इन सभी घरों में बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए बेरियाँ बनी हुई हैं।

प्रभुपुरा के रहने वाले 30 साल के अशोक चौधरी के खेत में ऐसी सात बेरियाँ हैं, वो गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "इन बेरियों में से 4 बेरियाँ मेरे जन्म से पहले की और तीन को हाल ही में कुछ साल पहले बनाया गया है।"

आगे वे कहते हैं हमारे पूरे परिवार में पीने के लिए पानी इसी बेरियों से निकाला जाता है, इनमें पानी का स्टॉक इतना रहता है कि साल भर ये पानी हमारे पेयजल के पूर्ति कर देता है और अगर कभी गाँव में शादी होती है या किसी के यहाँ ज़्यादा पानी की ज़रूरत होती है तो लोग इनसे पानी निकाल कर भी ले जाते हैं।

"ये बेरियाँ खेत के लगभग 1 बीघा आगोर (कैचमेंट) पर बनाई जाती हैं, इसे बनाने के लिए रेत के धोरों को 60 से 70 फिट तक खोदकर बेरी के अंदर की ओर सीमेंट या राख की एक परत का प्लास्टर किया जाता है। पानी का ढलान पूरी इन बेरियों की तरफ रहता है, जिससे बरसात का सारा पानी बहकर इसमें आ जाता है, "अशोक चौधरी ने बताया।

आजकल इन बेरियों को पट्टियों से ढककर ऊपर सीमेंट का प्लस्टर कर दिया जाता है। लेकिन पहले तो इन्हें रोहिड़ा, खेजड़ी आदि पेड़ के डालियों और सूखी घास से ही ढका जाता था।

पाइप लाइन बिछी लेकिन पानी नहीं

बेरियों से परिवार के सदस्यों और पशुओं के लिए पानी मिल जाता है, लेकिन घर में दूसरे कामों के लिए पानी इंदिरा गांधी नहर, फलसुंड से टैंकरों द्वारा लाया जाता है।

फलसूंड तहसील में जल जीवन मिशन के तहत सभी गाँवों में पाइपलाइन बिछा दी गई है, लेकिन पानी सिर्फ फलसूंड तहसील के अंतर्गत आने वाले जीव राजगढ़ गाँव तक ही पहुँच पाया है उससे आगे के अबासर, भूर्जगढ़, पद्मपुर , प्रभुपुरा जैसे गाँव अभी भी या तो वर्षा जल पर निर्भर हैं या फलसूंड इंदिरा गांधी नहर के हाईडेंट से पानी मंगवाते हैं।


एक टैंकर पानी की कीमत एक हज़ार होती है, जिसमें लगभग 4,236 लीटर पानी होता है।

पोखरण में तहसीलदार द्वारा बनाए गए वर्षा गेज रजिस्टर के अनुसार, 2004 और 2006 के बीच, क्षेत्र में गंभीर सूखे के कारण हमेशा भरी रहने वाली बेरी सूख गई थी। जैसलमेर ज़िले में 200 मिमी (मिलीमीटर) से ज़्यादा की सालाना बारिश के उलट, 2004 के सूखे वर्ष में, इस क्षेत्र में केवल 80 मिमी बारिश हुई। लेकिन, हालात सुधरे और बेरियों में फिर से पानी जमा होने लगा। 2022 में 354 मिमी बारिश हुई।

गाँव कनेक्शन ने क्षेत्र में मिशन की प्रगति के बारे में अधिक जानने के लिए पोखरण स्थित जल जीवन मिशन के परियोजना अधिकारी महेश शर्मा से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग, पोखरण उप-मंडल के अधिकारी, राधे राम रेवाड़ ने गाँव कनेक्शन को बताया कि वर्तमान में, क्षेत्र में कोई सरकार समर्थित जल-संचयन कार्यक्रम नहीं है।

“प्रभुपुरा गाँव में जो बेरियाँ बनी हुई हैं जिनमें अधिकतर गाँव वालों ने खुद ही बनवाई है सार्वजनिक स्थानों पर बने टांकों और कुंड का निमार्ण ग्राम पंचायत द्वारा मनरेगा और जल जीवन मिशन जैसे योजनाओं से हुआ है, "रेवाड़ ने गाँव कनेक्शन को बताया।

#rainwaterharvesting #rajasthan 

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