रेप मामले में 'निर्दोष' ने 20 साल जेल में काटे, मुकदमा लड़ते और सदमे में माता-पिता और 2 भाई चले गए, 5 एकड़ जमीन बिक गई

सितंबर 2000 में गिरफ्तार होने के बाद विष्णु तिवारी को न तो जमानत मिली न ही एक बार पैरोल मिली, जबकि इस दौरान उसके माता-पिता और दो भाइयों की मौत हो गई। जिसे लेकर कानून के जानकार सवाल उठा रहे हैं।

Arvind Singh ParmarArvind Singh Parmar   3 March 2021 7:00 AM GMT

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रेप मामले में निर्दोष ने 20 साल जेल में काटे, मुकदमा लड़ते और सदमे में माता-पिता और 2 भाई चले गए, 5 एकड़ जमीन बिक गई20 साल जेल में काटने के बाद अब कोर्ट ने आरोपी को निर्दोष बताया और जल्द से जल्द रिहा करने के आदेश दिये हैं। (सभी फोटो- गांव कनेक्शन)

ललितपुर (उत्तर प्रदेश)। "मेरे भाई के साथ जो कुछ हुआ वह किसी के साथ ना हो। गरीब निर्दोष फंस जाते हैं, भोगता पूरा परिवार है। जैसे हमारे परिवार ने भोगा, सब बर्बाद हो गया। वह 20 साल उस जुर्म के लिए जेल काटकर बाहर आएगा, जो उसने किया ही नहीं था। माता-पिता और 2 भाइयों की मौत हो गई, उनकी अर्थी को काँधा नहीं दे सका। जमीन बिक गई, पूरा परिवार सड़क पर आ गया हमारा।" विष्णु तिवारी के छोटे भाई महादेव तिवारी (33 वर्ष) कानून व्यवस्था को कोसते हुए कहते हैं।

उत्तर प्रदेश में ललितपुर जिले के विष्णु तिवारी को वर्ष 2000 में अनुसूचित जाति की महिला की शिकायत पर रेप के आरोप और हरिजन एक्ट (एससी-एसटी एक्ट) के तहत गिरफ्तार किया गया था। तब से वो जेल में हैं। साल 2003 में सत्र न्यायालय ने रेप के आरोप में 10 वर्ष और एससीएसटी के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इस केस में नया मोड़ आया 22 फरवरी को तब आया जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जेल से दाखिल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए विष्णु तिवारी को न सिर्फ निर्दोष माना बल्कि राज्य सरकार पर तल्ख टिप्पणी भी की। हालांकि कोर्ट का फैसला में लिखी तारीख 28 जनवरी 2021 है।

न्यायमूर्ति डॉ. केजे ठाकर व न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने कहा, "यह बेहद दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि गंभीर अपराध न होने के बावजूद आरोपी 20 साल से जेल में है। राज्य सरकार ने सजा के 14 साल बीतने पर भी उसकी रिहाई के कानून पर विचार नहीं किया। इतना ही नहीं जेल से दाखिल अपील भी 16 साल दोष पूर्ण रही। कोर्ट ने यूपी के विधि सचिव को निर्देश दिया है कि वह सभी जिलाधिकारियों से कहें कि 10 से 14 साल की सजा भुगत चुके आजीवन कारावासियों की संस्तुति राज्य सरकार को भेजें। भले ही सजा के खिलाफ अपील विचाराधीन हो।


20 साल से जेल में बंद आरोपी विष्णु ने जेल अधीक्षक के जरिए कोर्ट में अपील डिटेक्टिव दाखिल की। अर्जी पर हाईकोर्ट ने पाया कि रेप का आरोप साबित ही नहीं हुआ। मेडिकल रिपोर्ट में जबरदस्ती करने के कोई साक्ष्य नहीं थे। पीड़िता 5 माह से गर्भवती थी, ऐसे में कोई निशान नहीं हैं जिससे यह कहा जाये कि जबरदस्ती की गई। रिपोर्ट भी पति व ससुर ने घटना के तीन दिन बाद लिखायी थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि सत्र न्यायालय ललितपुर ने सबूतों पर विचार किये बगैर गलत फैसला दिया है। दुराचार का आरोप साबित न होने पर आरोपी विष्णु को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है।

सितंबर 2000 में गिरफ्तार होने के बाद विष्णु तिवारी को न तो जमानत मिली न ही एक बार पैरोल मिली, जबकि इस दौरान उसके माता-पिता और दो भाइयों की मौत हो गई। जिसे लेकर कानून के जानकार सवाल उठा रहे हैं।

देर से मिला न्याय अन्याय के समान है, सरकारों और कानून व्यवस्था न्यायपालिका को ऐसे मामलों पर ध्यान देने की बात करते हुए ललितपुर में महरौनी बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद चौबे कहते हैं, "केन्द्र व राज्य सरकारों को कानून के तहत विशेष शक्तियां प्राप्त हैं। शक्तियों का प्रयोग करते हुऐ 10 से 14 वर्ष की सजा भुगतने के बाद उनकी रिहाई पर विचार करती हैं। साथ ही संविधान के अनुच्छेद 161 द्वारा राज्य के राज्यपाल को ऐसे मामलों में क्षमादान की शक्ति प्रदान की गई है। आजीवन कारावास के मामले में उनके पास रिहाई का अधिकार हैं ऐसे मामलों में सरकार को ध्यान देकर अपनी शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए।"

कोर्ट के आदेश की कॉपी

वरिष्ठ अधिवक्ता सीमा मिश्रा दिल्ली से गांव कनेक्शन को फोन पर बताती हैं, "मैंने फैसले को ठीक से पढ़ा नहीं है। एफआईआर भी नहीं देखी इसलिए फैसले पर कुछ नहीं कहूंगी लेकिन 20 साल से कोई कैदी जेल में है, ये नियमों के विरुद्ध है। यहां सरकार की लापरवाही रही है। अदालत से केस में जो अवोलकन करते हुए निर्देश दिये हैं मैं उससे बहुत सहमत हूं। ऐसे बहुत सारे केस होंगे।"

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) आंकड़ों के अनुसार, "31 दिसंबर 2019 तक देश की अलग-अलग जेलों में 4,78,600 लोग कैद थे, जिसमें उत्तर प्रदेश की जेलों में सबसे ज्यादा 1,01,297 लोग कैद थे। आंकड़ों के अनुसार जेल में बंद सबसे ज्यादा कैदियों की उम्र 18 से 30 साल के बीच थी। कुल कैदियों में से 2,07,942 यानी 43.4% कैदी 18 से 30 साल के लोग थे, जबकि 2,07,104 कैदियों की उम्र 30 से 50 के बीच थी।

सोर्स- NCRB

हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता आईबी सिंह कहते हैं, "हमारे सिस्टम में जवाबदेही का अभाव है। मुझे याद नहीं कि गलत जांच के लिए कभी किसी जांच अधिकारी सजा मिली हो। मैंने कोरोना के दौरान रिट पिटीशन दाखिल की है कि जो लोग 14 साल से जेल में बंद हैं उन्हें छोड़ा जाए, वो याचिका भी लंबित है।"

कोर्ट और जेल के कानूनी पेचिंदगी से दूर ललितपुर में महरौनी तहसील से 27 किलोमीटर दूर सिलावन गांव के अंदर महामाई मंदिर की गली में स्थित एक खपरैल वाले घर में अरसे बाद हलचल हुई है। ये विष्णु तिवारी का घर है, जहां वो अपने पांच भाइयों के साथ रहता था।

गांव में मिली विष्णु की बड़ी भाभी सुषमा तिवारी (55 वर्ष) कहती हैं, "सास चिल्लाते-चिल्लाते मर गई। वो रो-रोकर कहती थी मेरा लड़का बेकसूर है उसकी उम्र ही क्या थी, झूठे केस ने लड़के की जिंदगी बर्बाद कर दी उसे झूठा फंसाया गया। मेरा सब कुछ बेच दो। मरने से पहले लड़के को देखना चाहती हूं लेकिन वो अपने लड़के को देखे बिना ही मर गईं।"

देश के अलग-अलग राज्यों की जेलों में बंद कैदियों की संख्या


विष्णु के एक और भाई सत्य नारायण तिवारी (55 वर्ष) दुखी मन से कहते हैं, "इस परिवार ने हमारा सब कुछ छीन लिया। गांव में खाना-पानी बंद हो गया था। सदमे औऱ कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाते हुए मां-पिता जी चल बसे, दो भाई भी नहीं रहे। समाज में जीना मुश्किल हो गया था। कोई मजदूरी तक नहीं देता था। छोटे भाई (महादेव) की शादी तक नहीं हुई।" सिलावन गांव के बस स्टैण्ड पर हाथ ठेला लगाकर परिवार की आजीविका चलाने वाले सत्य नारायण आगे कहते हैं,"गांव में कोई मजदूरी देने वाला नहीं था परिवार कर्ज में डूब गया खाने पीने के लाले पड़ गये।"

परिजनों के मुताबिक जब तक पिता थे वो हाईकोर्ट लेकर आगरा जेल तक चक्कर लगाते रहे लेकिन करीब 7 साल पहले वो भी चल बसे। इसके बाद सिर्फ एक बार छोटे भाई महादेव ने करीब 2 साल पहले आगरा जेल में विष्णु से मुलाकात की थी।

महादेव बताते हैं, "पिता की मौत की खबर भी विष्णु को दो ढाई साल पहले ही हुई जब घर से कोई गया नहीं। इतने पैसे ही नहीं थे, कब तक दौड़ते। पांच एकड़ जमीन पहले ही बिक चुकी थी। वकील भी बस चक्कर लगवाते रहे। अब वो छूट कर आ रहा है तो दाग हटेगा, समाज जीने देगा।"

महादेव याद कर बताते हैं, "बड़ा भाई जब जेल गया था तब वह मुश्किल से 17-18 साल का रहा होगा। अब 20 साल हो गए। पूरा जीवन बर्बाद हो गया। ये झूठा केस था, गाय खेत में चली गई थी उसकी लड़ाई थी लेकिन उसने फंसा दिया।

  

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