'ज़िंदगी में पहली बार इतनी शाबाशी और सम्मान मिला' - उत्तरकाशी में 41 मज़दूरों की जान बचाने वाले रैट होल माइनर्स ने कहा

17 दिनों के संघर्षों के बाद आखिर 28 नवंबर को टनल में फँसे 41 मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया, इस दौरान कुछ ऐसे भी लोग थे, जो इस बचाव अभियान के हीरो थे, उनमें से एक रैट होल माइनर्स का ग्रुप भी है।

Brijendra DubeyBrijendra Dubey   30 Nov 2023 11:33 AM GMT

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ज़िंदगी में पहली बार इतनी शाबाशी और सम्मान मिला - उत्तरकाशी में 41 मज़दूरों की जान बचाने वाले  रैट होल माइनर्स ने कहा

"25 नवंबर की सुबह जब मेरे पास ठेकेदार का फोन आया कि हमें सिल्कयारा सुरंग में फँसे मज़दूरों को बचाना है, फिर क्या था हम तुरँत उत्तराखंड के लिए निकल लिए, हम भी मज़दूर और सुरंग में फँसे लोग भी मजदूर; सभी हमारे भाई ही तो थे, उन्हें हमें किसी तरह से सुरक्षित निकलना था। " 34 साल के मोनू कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया।

25 नवंबर की सुबह मोनू कुमार गाँव से लगभग 400 किमी दूर अपने साथियों के साथ कार से उत्तरकाशी के लिए निकल पड़े।

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के अख्तियापुर गाँव के मोनू कुमार उन 12 लोगों में से एक हैं, जिन्होंने 17 दिनों से सुरंग में फँसे मज़दूरों को बचाया। अख्तियापुर गाँव के कई लोग रैट होल माइनर्स का काम करते हैं। मोनू कुमार जैसे रैट होल माइनर्स को छोटी सुरंगों और कोयले की खदानों में काम के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

उत्तरकाशी में दुनिया भर के टनल एक्सपर्ट के साथ एयरफोर्स, आर्मी, एनडीआरएफ की टीम के साथ अत्याधुनिक मशीनें लगाई गईं थीं। दुनिया भर की निगाहें टनल पर अटकी थी कि कब उन 41 मज़दूरों को बाहर निकाला जाएगा।


26 नवंबर को मोनू कुमार अपने साथियों के साथ पहुँच गए। मोनू कुमार आगे कहते हैं, "मैं नाशिर, जतिन, देवेंद्र, सौरभ और अंकुर के साथ पहुँच गया; वहाँ पर ठेकेदार वकील हसन, मुन्ना, इरशाद, फिरोज़, राशिद और नशीम के साथ वहाँ पहुँचे थे। तीन दिनों की मेहनत से हम अंदर तक पहुँच गए।

हाथों में छेनी, कुदाल और तसला लेकर दो-दो लोग तीन-तीन घंटे के लिए अंदर जाकर सुरंग खोदते गए। मोनू कुमार सबसे अंदर जाने वाले माइनर्स में से एक थे। उनके बड़े भाई देवेंद्र कुमार भी उनके साथ थे। देवेंद्र कुमार गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "हमको बहुत अच्छा लग रहा है हमने अपनी जान पर खेल कर इतने लोगों की जान बचा ली; अपने हाथों से मिट्टी निकाल निकाल कर पाइप में घुसकर सुरंग बनाई है।"

"जब हम सुरंग में फँसे मज़दूरों के पास पहुँचे तो वह बहुत खुश हुए, उन लोगों ने हमें टॉफी, पानी और ड्राई फ्रूट्स दिया और कहा - 'अब तुम्हे क्या दे दें, जान दे दें, ज़मीन, धन दौलत, तुम्हारे नाम कर दें?', तब हमने उन लोगों से कहा हमें कुछ नहीं चाहिए हमें आपको बचाना था; यहाँ से सभी को सुरक्षित बाहर निकालना है, यहाँ से निकल जाओ और कुछ नहीं चाहिए।"

इन रैट होल माइनर्स को उस दिन से पहले इतना ज़्यादा सम्मान कभी नहीं मिला था। देवेंद्र आगे कहते हैं, "बहुत शाबाशी मिली, सभी ने बहुत सम्मान दिया; उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने हम लोगों को गले लगाया, साथ ही 50- 50 हज़ार रूपये का इनाम देने को कहा।"

ये माइनर्स ओडिशा, मुंबई, कर्नाटक, दिल्ली जैसे प्रदेशों में काम की तलाश में जाते हैं। मुश्किल से उन्हें एक दिन का 800 से हज़ार रुपए मिलता है।


देवेंद्र के पास पक्का घर तक नहीं है। देवेंद्र कहते हैं, "हमारा खुद का पक्का मकान नहीं है, कुल छह भाई, दो बहन है; हमारे तीन बच्चों में दो बेटे और एक बेटी है, हमारा पक्का मकान बन जाए सरकार से यही माँग करते हैं।"

अख्तियारपुर गाँव के मनोज गौतम भी रैट माइनर्स का काम करते हैं। 16 साल हो गए उन्हें ये काम करते हुए हो गए। जब दिल्ली से वकील हसन का फोन आया तो उनके घर में शादी का कार्यक्रम चल रहा था।

फिर मनोज ने मोनू और बाकी लोगों को वहाँ, मनोज गौतम हँसते हुए बोले, "कमाते तो बड़े लोग ही हैं, हम तो मज़दूर आदमी हैं, केवल अपनी दिहाड़ी मिल जाए वही बहुत है; एक दिन में 1000 -800 रुपए कमा लेते है, बहुत ही ख़तरनाक काम है।"

"मैंने तो मोनू से मना किया कि छोटे भाई की शादी है कल बारात जाएगी, लेकिन उन लोगों ने कहा कि नहीं हम पहाड़ को फाड़कर मज़दूरों को बाहर लेकर आएँगे।"

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