अभी छंटता नहीं दिख रहा पराली से उठने वाला धुआं

Alok Singh BhadouriaAlok Singh Bhadouria   10 Oct 2018 12:22 PM GMT

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अभी छंटता नहीं दिख रहा पराली से उठने वाला धुआं

अक्टूबर का दूसरा सप्ताह चल रहा है, पंजाब और हरियाणा के किसान धान की फसल के अवशेष या पराली जलाने लगे हैं। इससे होने वाले वायु प्रदूषण के मद्देनजर केंद्र ने पंजाब और हरियाणा के अधिकारियों के साथ बैठक करके उनसे सख्त कदम उठाने को कहा है। वहीं, पंजाब सरकार ने खेती करने वाले या बटाई पर खेती कराने वाले अपने सरकारी कर्मचारियों को आगाह किया है कि अगर उनके खेतों में पराली जली तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। 2017 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने पराली से निबटने के लिए 665 करोड़ रुपए का बजट भी निर्धारित किया लेकिन हालात में खास बदलाव नहीं दिखाई देता। किसान सरकारी नीतियों को दोष देते हुए पराली जला रहे हैं क्योंकि अगले 20 दिन में उन्हें गेहूं बुवाई की तैयारी करनी है। यह देखकर लगता है कि इन सर्दियों में भी उत्तर भारत खासकर दिल्ली, एनसीआर में रहने वालों को दमघोंटू धुंध का सामना करना पड़ेगा।

हरित क्रांति में अग्रणी भूमिका निभाने वाले प्रदेश पंजाब व हरियाणा में धान की बंपर फसल होती है। धान कटने के बाद पौधे का बाकी हिस्सा जिसकी जड़ें जमीन में होती हैं पराली कहलाता है। किसान के लिए यह किसी काम का नहीं होता। पहले किसान खुद और मजदूरों के साथ धान की कटाई करते थे इसलिए पराली न के बराबर बचती थी। आजकल मजदूरों की कमी और अगली फसल के लिए खेत जल्दी तैयार करने के लिए मशीनों से धान की कटाई की जाती है। ये मशीनें धान का सिर्फ ऊपरी हिस्सा काटती हैं और पौधे का काफी ज्यादा अवशेष रह जाता है।

समय की कमी और मशीनों के इस्तेमाल ने बढ़ाई समस्या

अमूमन इसे सूखे चारे के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन यह श्रमसाध्य काम है जो मजदूरों की कमी से और मुश्किल हो जाता है। पंजाब सरकार के एक फैसले ने इसे और मुश्किल बना दिया है। सन 2008 तक किसान अपनी मर्जी से धान बोने का समय तय करते थे। पर भूजल बचाने के मकसद से पंजाब सरकार ने पंजाब प्रिजर्वेशन ऑफ सबसॉइल वॉटर एक्ट, 2009 के तहत ऐलान कर दिया कि 10 जून के पहले धान की बुवाई नहीं होगी। सन 2014 में यह तारीख 15 जून और बाद में यह 20 जून तक बढ़ा दी गई। इस समय बोए गए धान अक्टूबर के मध्य तक कटते हैं, इस हिसाब से किसान के पास रबी की अहम फसल गेहूं की बुवाई की तैयारी के लिए लगभग 20 दिन का ही समय रह जाता है। पहले तो किसान अपेक्षाकृत कम मात्रा में बची पराली को या तो चारे की तरह इस्तेमाल करता था या गड्ढे खोद कर उसकी खाद बना लेता था। पर अब समय कम होने पर किसान के पास मशीनों की मदद लेने के सिवा दूसरा रास्ता नहीं बचता।

यह भी देखें: "सरकार पर्यावरण को अहमियत ही नहीं दे रही, वरना पराली जैसी समस्याएं नहीं होती"

अकेले पंजाब में निकलती है हर साल 2 करोड़ टन पराली

पंजाब और हरियाणा देश में धान का सर्वाधिक उत्पादन करने वाले प्रदेश हैं, इस हिसाब से यहां पराली भी सबसे ज्यादा होती है। अकेले पंजाब में हर साल लगभग 2 करोड़ टन पराली खेतों में रह जाती है। इनमें से लगभग 1.5 करोड़ टन पराली में आग लगाई जाती है।

इस आग से उठने वाला धुआं अफगानिस्तान से आने वाली पछुआ हवाओं के साथ दिल्ली और उससे सटे शहरों में पहुंचकर धूल, औद्योगिक प्रदूषण और मौसम की ठंडक के साथ जानलेवा स्मॉग का रूप ले लेता है। इससे रोजमर्रा का कामकाज, यातायात वगैरह तो प्रभावित होते ही हैं इस इलाके में स्वास्थ्य संबंधी घातक बीमारियों का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है।

कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र और राज्यों ने उठाए कदम

पराली की वजह से होने वाले प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार केंद्र सरकार ने पंजाब के लिए (2018-20) 665 करोड़ रुपयों की व्यवस्था की है। इसमें से 269 करोड़ 2018 में खर्च किए जाने थे। केंद्र ने पंजाब से कहा है कि इसमें से 30 करोड़ रुपए पराली को जलाने से होने वाले नुकसानों के बारे में जागरुकता फैलाने पर खर्च हों। बाकी की राशि से सब्सिडी पर किसानों और सहकारी समितियों को ऐसी मशीनें दी जाएं जो पराली से छुटकारा दिला सकें। किसान को व्यक्तिगत रूप से 50 फीसदी और सहकारी समितियों को 80 फीसदी सब्सिडी मिलेगी। इसी क्रम में पंजाब सरकार ने धान उगाने वाले प्रदेश के आठ हजार गांवों में इस पर नजर रखने के लिए नोडल अफसर तैनात किए हैं।

यह भी देखें: वीडियो : खेतों में पराली जलाने पर नहीं लग रही रोक, धड़ल्ले से खेत फूंक रहे किसान

किसान सरकार की नीतियों से हैँ नाखुश

लेकिन किसान सरकार के इन कदमों से कतई खुश नहीं हैं। उनका कहना है कि मशीनें समस्या का समाधान नहीं है। गांव कनेक्शन से बातचीत में पंजाब के भारतीय किसान यूनियन नेता बलविंदर बाजवा कहते हैं, "किसान क्या-कया करे। आमदनी है नहीं, कर्ज का बोझ ऊपर से। किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। ऐसे में किसान कहां से इन मशीनों की कीमत का बोझ उठाएगा। पराली का निबटारा सरकार की जिम्मेदारी है।"

यह भी देखें: पंजाब के कृषि विशेषज्ञों की मांग, पराली जलाने पर लगाएं प्रभावी रोक

हरियाणा के डेयरी किसान गुरप्रीत सिंह ज्यादा खुलकर कहते हैं। गुरप्रीत 50 बीघे में खेती करते हैं, प्रगतिशील किसान हैं व डेयरी फारमर्स एसोसिएशन के संचालक हैं। उनका कहना है, "किसान महज 8 प्रतिशत प्रदूषण करते हैं वहीं उद्योग 50 प्रतिशत प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। लेकिन दिल्ली की समस्या के लिए कोई उद्योगों को दोषी नहीं ठहराता क्योंकि वे राजनीतिक दबाव डाल सकते हैं। किसान समूह ऐसा करने में आज भी नाकाम हैं।" गुरप्रीत का तर्क है कि चलिए मान लिया जाए कि किसानों के पराली जलाने से प्रदूषण होता है तो यही किसान अपने खेतों, बाग, बगीचों की हरियाली से प्रदूषण कम करने में भी तो योगदान देता है। इसका फायदा उसे क्यों नहीं मिलता। कोई उद्योगों से पूछे कि उन्होंने जितना प्रदूषण फैलाया उसके एवज में कितने पेड़ लगाए। क्या पराली का कोई इस्तेमाल नहीं हो सकता? गांव कनेक्शन से फोन पर बात करते हुए गुरप्रीत कहते हैं, "अगर सरकार हमें इसमें लगने वाली मेहनत का उचित मूल्य दे तो किसान इसका रखरखाव भी कर सकते हैं। लेकिन इसके बाद इसके उचित मूल्य देने वाले ग्राहक भी तो होने चाहिए, हम इसे कब तक और कहां रखेंगे।"

एमएसपी से भी जोड़ने की वकालत

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख कर मांग की है कि जो किसान पराली को न जलाए उसे प्रति क्विंटल 100 रुपए के हिसाब से मुआवजा दिया जाए। हालांकि किसान इस मांग से भी खुश नहीं हैं उनका कहना है कि 100 रुपए से क्या होगा किसान को इस पराली को काटने के लिए मजदूर पर खर्च करना होगा फिर इसे लाने-ले जाने पर जो खर्च होगा सो अलग। इसे देखते हुए ही कुछ लोगों ने पराली से निपटने का खर्चा धान के एमएसपी में जोड़ने की मांग की है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने पराली को जलाने की समस्या से निपटने के लिए रिमोट सेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल किया है। खेतों में लगने वाली आग पर नजर रखने के लिए सैटेलाइट व्यवस्था का उपयोग किया जा रहा है।

बहरहाल, फिलहाल जो स्थिति है उसमें पंजाब और हरियाणा के किसान के लिए तमाम झंझटों से भली माचिस की एक जलती हुई तीली लग रही है। इसकी आंच से पराली के ढेर के साथ उसकी मुसीबतें भी कम हो जाती हैं, भले ही कुछ देर के लिए ही सही।

देवेंद्र शर्मा ने इस बात पर जोर दिया कि पराली की व्यवस्था करने के लिए किसानों को वित्तीय मदद दी जानी चाहिए।

पराली की समस्या पर चंडीगढ़ में हुआ एक कार्यक्रम

पराली जलाने से होने वाली समस्या पर 10 अक्टूबर को चंडीगढ़ में एक राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन हुआ। इसकी अध्यक्षता करते हुए कृषि खाद्य नीति एवं निर्यात विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने इस बात पर जोर दिया कि पराली की व्यवस्था करने के लिए किसानों को वित्तीय मदद दी जानी चाहिए। उन्होंने सवाल किया, "सरकार धान की सरकारी खरीद पर 41 हजार करोड़ रुपए खर्च कर सकती है तो वह पराली की व्यवस्था करने के लिए किसानों को 2 हजार करोड़ रुपए नहीं दे सकती? अब यह किसानों पर छोड़ दिया जाए कि वे इसे मशीनों या मजदूरों के जरिए खत्म करते हैं या फिर इससे जैव ईंधन बनाने की पहल पर अमल करते हैं।"

पंजाब सरकार के प्रधान मुख्य सचिव सुरेश कुमार ने भी सहमति जताते हुए कहा कि आज नहीं तो कुछ समय बाद सरकार को पराली से निबटने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन देना ही पड़ेगा। सुरेश कुमार का कहना था, "किसानों के साथ जोर-जबर्दस्ती से हल नहीं निकलने वाला। आप कितने किसानों को जेल में डालेंगे।" कार्यक्रम में आए कुछ किसानों का कहना था कि शुरू में कृषि वैज्ञानिकों ने हमसे कहा था कि पराली से छुटकारा पाने के लिए इसमें आग लगा दें, आज जब इसने बड़ी समस्या का रूप ले लिया है तो सारा दोष हम किसानों के माथे मढ़ दिया गया है।

यह भी देखें: पराली जलाने से रोकने के लिए पंजाब सरकार बंद कर सकती है धान की खेती

            

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