सुप्रीम कोर्ट का फैसला, शादी से बाहर संबंध अपराध नहीं, लेकिन नैतिक रूप से गलत

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सुप्रीम कोर्ट का फैसला, शादी से बाहर संबंध अपराध नहीं, लेकिन नैतिक रूप से गलत

विवाहेतर संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इससे संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया। गुरुवार को पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। हालांकि अदालत ने साफ किया कि अडल्टरी या विवाहेतर संबंध तलाक का आधार रहेगा और इसकी वजह से हुई आत्महत्या के मामले में उकसाने का केस भी दर्ज हो सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की इच्छा, अधिकार और सम्मान को सर्वोच्च बताते हुए कहा,"पत्नी पति की संपत्ति नहीं है। यह कानून महिला की सेक्स संबंधी पसंद को प्रतिबंधित करता है।" कोर्ट ने जोसेफ शाइन की याचिका पर यह फैसला सुनाया था। यह याचिका किसी विवाहित महिला से विवाहेतर यौन संबंध को अपराध मानने और सिर्फ पुरूष को ही दंडित करने के प्रावधान के खिलाफ दायर की गई थी।

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प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित 158 साल पुरानी आईपीसी की धारा 497 को मनमाना, एकपक्षीय, पुरातनकालीन और समानता के अधिकार तथा महिलाओं के लिए समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन करने वाला बताया। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति आर. एफ. नरिमन, न्यायमूर्ति ए. एम.खानविलकर, न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने एकमत से कहा कि आईपीसी की धारा 497 असंवैधानिक है।

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प्रधान न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि व्यभिचार आपराधिक कृत्य नहीं होना चाहिए लेकिन इसे अभी भी नैतिक रूप से गलत माना जाएगा और इसे विवाह खत्म करने व तलाक लेने का आधार माना जाएगा। घरों को तोड़ने के लिये किसी को सामाजिक लाइसेंस नहीं मिल सकता। भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अनुसार यदि कोई पुरूष यह जानते हुए भी कि महिला किसी दूसरे व्यक्ति की पत्नी है और उस व्यक्ति की सहमति के बगैर ही महिला के साथ संबंध बनाता है तो वह परस्त्रीगमन के अपराध का दोषी होगा। यह बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा। इस अपराध के लिये पुरूष को पांच साल की कैद या जुर्माना अथवा दोनों की सजा का प्रावधान था।

हालांकि इस धारा के मुताबिक, पति की इजाजत से किसी दूसरे पुरुष के साथ संबंध बनाए जा सकते हैं। इस तरह से पत्नी एक प्रकार से पति की संपत्ति मान ली गई थी।

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