शिक्षक दिवस : दूसरे विश्व युद्ध से लेकर कोरोना काल तक कहानी उन शिक्षकों की, जिन्होंने नहीं मानी हार
शिक्षक दिवस पर पढ़िए दुनिया के उन शिक्षकों की कहानी, जिन्होंने समाज में शिक्षा की अलख जगाने के लिए आईं मुश्किलों से कभी हार नहीं मानी। आपदाओं के समय में भी इन शिक्षकों ने नए तरीके इजाद कर अपनी अलग पहचान बनाई।
हिमानी दीवान 4 Sep 2020 2:59 PM GMT

कोरोना वायरस के रूप में आई महामारी अब सिर्फ एक बीमारी नहीं रही। एक युद्ध हो गया है जो हर रोज हर व्यक्ति लड़ रहा है। दूसरे विश्व युद्ध से लेकर इस मौजूदा युद्ध तक, ऐसी आपदाओं का असर जब शिक्षा व्यवस्था पर पड़ा है, तो शिक्षकों ने कई ऐसे तरीके भी ईजाद किए हैं जिन्होंने हैरान भी किया और गर्व करने का मौका भी दिया। इस शिक्षक दिवस पर पढ़िए जापान के हेड मास्टर कोबायाशी से लेकर भारत की मोमिता बी. तक की दिलचस्प कहानियां ...
शुरुआत करते हैं जापान से, जहां एक तरफ दूसरा विश्व युद्ध सब कुछ तितर-बितर कर रहा था और दूसरी तरफ कोबायाशी जैसे हेड मास्टर बच्चों के लिए एक सपनों जैसे स्कूल की स्थापना कर रहे थे।
कोबायाशी का जन्म 18 जून, 1893 को हुआ था। कोबायाशी ने तोमोए नाम से एक ऐसा स्कूल बनाया, जहां बच्चों को सपने देखने, प्रकृति को महसूस करने और अपनी रचनात्मकता को बढ़ाने की भरपूर आजादी दी गई। जब उनकी शिष्या तोतो चान यानी तेत्सुको कुरोयांगी ने अपने बचपन के इस स्कूल और हेड मास्टर कोबायाशी के बारे में एक किताब लिखी और उसमें बताया कि किस तरह कोबायाशी और उनके स्कूल तोमोए ने उनकी जिंदगी बदलने का काम किया, तब ये किताब औऱ हेड मास्टर कोबायाशी का योगदान दुनिया के सामने आया।
ये किताब 1981 में प्रकाशित हुई और दुनिया भर में इसकी करोड़ों प्रतियां हाथों हाथ बिक गईं। साथ ही दुनिया के 30 देशों में भी इसका अनुवाद हुआ।
रेल के पुराने डिब्बों से बना दिया स्कूल
बतौर टीचर कोबायाशी का शिक्षा और बच्चों के प्रति समर्पण कई किस्सों में सामने आता है। तोतो चान ने खुद लिखा है कि वह बचपन में इतनी बातें किया करती थीं, इतने सवाल किया करती थीं कि स्कूल के टीचर उनसे कुछ ही समय में तंग हो जाते और उनकी मां से उसे स्कूल से निकाल लेने को कहते।
इसी का नतीजा हुआ कि उन्हें एक के बाद एक सात स्कूल छोड़ने पड़े। आखिर में उसकी मां उसे कोबायाशी के बनाए स्कूल तोमोए में ले गईं, जो बाकी स्कूलों से बहुत अलग था। वो स्कूल रेल की खराब पड़ी बोगियों में बनाया गया था। इस स्कूल को देखते ही तोतो खुशी से उछल पड़ी थीं।
स्कूल में एंट्री लेते ही तोतो ने स्कूल के हेड मास्टर कोबायाशी से पूछा था- आप हेड मास्टर हैं या स्टेशन मास्टर? और इसका जवाब हेड मास्टर कोबायाशी ने गुस्सा होकर नहीं खिलखिला कर दिया था।
इसी स्कूल में तोतो ने जमीन पर म्यूजिक नोट्स लिखना, पेड़ पर चढ़ना और बागवानी करना सीखा। तोतो को अक्सर ये सोचकर हैरानी भी होती कि वो ये सब कुछ एक स्कूल में जाकर भी कर सकती हैं क्योंकि इससे पहले उसे किसी भी स्कूल में अपनी बात कहने तक का मौका नहीं दिया जाता था।
साल 1945 में हुए विनाश के दौरान ये स्कूल भी नष्ट हो गया, लेकिन इस स्कूल ने अपने बच्चों को जो सिखाया, वो कभी नष्ट नहीं हो पाया। इस घटना का भी इस किताब में जिक्र है कि जब द्वितीय विश्व युद्ध के विध्वंस में तोमोए जलकर राख हो गया था, तब कोबायाशी की क्या प्रतिक्रिया थी।
सड़क से अपने स्कूल को जलते देख हेड मास्टर जी ने उत्साह से पूछा था- 'हम अब कैसा स्कूल बनाएं?' तोतो चान ने अपने एक इंटरव्यू में कहा भी है, 'हेड मास्टर जी का बच्चों के लिए अथाह प्यार और शिक्षा के प्रति समर्पण उन लपटों से कहीं अधिक शक्तिशाली था।'
रेफ्रीजरेटर ट्रे को बनाया प्रोजेक्टर
आज जो कोराना युद्ध चल रहा है, उसने भी टीचर्स के सामने कई चुनौतियां और मौके ला खड़े किए हैं। सभी टीचर और बच्चे ऑनलाइन व्यवस्था के साथ अब भी सहज नहीं हो पाए हैं। ऐसे में उन्होंने अपने ही इनोवेटिव तरीके ढूंढ लिए हैं।
एक टीचर ने बच्चों को गणित के सवाल समझाने के लिए रसोई में इस्तेमाल होने वाले दो डिब्बों और रेफ्रीजरेटर की पारदर्शी ट्रे का इस्तेमाल किया। रेफ्रीजरेटर ट्रे को दो डिब्बों के सहारे उन्होंने टिकाया और उसके नीचे कॉपी और पेन से गणित के सवाल हल करना शुरू किया, रेफ्रीजरेटर ट्रे के ऊपर उन्होंने कैमरा ऑन करके अपना फोन रखा, ताकि बच्चों को प्रोजेक्टर की तरह ही कॉपी पर लिखा हुआ सब कुछ बड़ा बड़ा दिखे। ट्विटर पर सामने आई टीचर की ये फोटो काफी वायरल हुई।
A teacher using a refrigerator tray to teach online. #Teachinghacks #onlineeducation pic.twitter.com/NptsEgiyH6
— Monica Yadav (@yadav_monica) August 8, 2020
कपड़ों के हैंगर से बनाया ट्राईपॉड
पुणे की केमिस्ट्री टीचर मोमिता बी. ने भी कोविड लॉकडाउन के दौरान बच्चों को दी जाने वाली ऑनलाइन एजुकेशन में एक जुगाड़ फिट किया और बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस को थोड़ा आसान और मजेदार बना दिया।
कपड़े टांगने वाले हैंगर को ऊपर और नीचे की तरफ से कपड़े की कतरनों से बांधकर उन्होंने उसके बीच में अपने फोन को फिट किया ताकि वो ब्लैक बोर्ड पर जो लिखें वो मोबाइल के जरिए वीडियो क्लास में जुड़े बच्चों को साफ-साफ दिखे और समझ आए।
उन्हें ट्राईपॉड ना होने की वजह से ऐसा करना पड़ा, लेकिन उनका ऐसा करना कई और टीचर्स के लिए प्रेरणा बना और उनका ये ऑनलाइन क्लासेस वाला वीडियो सोशल मीडिया पर खूब पसंद किया गया।
There is so much of positivity and hope in this picture. Click on the pic - to see the commitment of this chemistry teacher. Pic via @PishuMon pic.twitter.com/gCwbVcLmmT
— Sudha Ramen IFS 🇮🇳 (@SudhaRamenIFS) June 9, 2020
रेडियो के जरिए करवाई पढ़ाई
मध्य प्रदेश के जिला सागर की शासकीय प्राथमिक शाला कल्याणपुर के प्राथमिक स्कूल में पढ़ाने वाले रामेश्वर प्रसाद लोधी ने भी इस दौरान बच्चों को शिक्षित करने की एक खास तरकीब ढूंढी। स्कूल बंद हुए, तो रेडियो और टीवी कार्यक्रम के जरिए वो बच्चों को पढ़ाने लगे।
ग्रामीण स्तर पर हर घर में मोबाइल ही नहीं, रेडियो की भी व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में काफी समय तक स्कूल बंद होने के बाद जब अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई, तो उन्होंने एक बच्चे के बड़े घर में ही कुछ संख्या में छात्रों को इकट्ठा किया, वहां सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनने जैसी गाइडलाइंस के साथ एक बार में 6-7 बच्चों के रेडियो पर आने वाले शैक्षिक कार्यक्रमों के जरिए पढ़ाना शुरू कर दिया।
लाउडस्पीकर लगाकर शुरू की क्लास
उपक्रम एजुकेशनल फाउंडेशन नाम से शिक्षण संस्था चलाने वाली किरन तिवारी कहती हैं कि ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में ऑनलाइन एजुकेशन को लागू करना एक बड़ी चुनौती है, वहां स्मार्टफोन तो दूर की बात है, एक बेसिक फोन उपलब्ध नहीं हैं।
ऐसे में बच्चों को स्कूल ना आने की स्थिति में उन तक पहुंचना जरूरी था। इसका हल उन्होंने और उनके सहयोगी निखिल ने चार-पांच पन्नों की वर्कबुक्स के जरिए निकाला। अब वह घर-घर जाकर बच्चों के ये वर्कबुक देते हैं और फिर उनसे ये वर्कबुक लेने जाते हैं ताकि पढ़ाई में आई बाधा से निपटा जा सके।
किरन बताती हैं कि उनके ही समूह के एक टीचर जो झारखंड में बच्चों के पढ़ाते हैं उन्होंने भी इस दौरान अपनी तरह ही एक प्रेरक कोशिश की। उन्होंने बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग के तहत इकट्ठा किया और दो गज की दूरी पर बिठाया। एक ऊंची जगह पर जाकर लाउड स्पीकर लगाया और वहां से बच्चों को पढ़ाना शुरू किया ताकि पढ़ाई ना छूटे और कोरोना से बचाव की अनदेखी भी ना हो और साथ ही मोबाइल का ना होना उनकी शिक्षा के सफर में बाधा ना बने।
शिक्षा एक टच स्पोर्ट्स है : जानकी राजन
जानी-मानी एजुकेशनिस्ट जानकी राजन ऑनलाइन एजुकेशन की इस स्थिति को एक अलग नजरिए से देखती हैं। वह प्रोफेसर यशपाल से जुड़े एक किस्से का जिक्र करती हैं। बताती हैं कि प्रोफेसर यशपाल एक बार एमआईटी गए थे। वहां एमआईटी के प्रेजीडेंट ने उन्हें दिखाया कि ये हमारी वेबसाइट है और इसमें हमारा सब सिलेबस और लेक्चर अपलोडेड हैं। जो भी हम पढ़ाते हैं, वो सब इसमें अपलोडेड है।
तब यशपाल जी ने सवाल किया कि आपने सब कुछ वेबसाइट पर फ्री डाल दिया तो आपके पास पढ़ने कौन आएगा, तब प्रेजीडेंट ने जवाब दिया कि सर एजुकेशन इज ए टच स्पोर्ट्स। किसी को भी सिर्फ किताबों और ऑनलाइन मैटर से शिक्षित नहीं किया जा सकता, इसके लिए आमने-सामने के एक संबंध की जरूरत होती है।
जानकी राजन कहती हैं कि आज के परिदृश्य में भी ये बात फिट बैठती है। कोरोना के चलते ऑनलाइन एजुकेशन की जरूरत तो है, पर भारत जैसे देश में इसे एक समान रूप से लागू करना प्रैक्टिकल नहीं लगता, क्योंकि हर जगह की परिस्थिति अलग है। बच्चे को मोबाइल और लैपटॉप उपलब्ध कराना हर परिवार के स्तर पर संभव नहीं है। हमारे कई टीचर्स काफी इनोवेटिव हैं और उनसे इस बारे में जगह और परिस्थिति के अनुसार सुझाव मांगे जाने चाहिए, ताकि जिन ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ाई का पहिया बिल्कुल रुक ही गया है, वहां शिक्षा की गाड़ी फिर से शुरू हो सके।
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