देश-दुनिया में भारतीय मोटे अनाज की बनी पहचान, 2018 दुनियाभर में होगा खास

Ashwani NigamAshwani Nigam   25 Nov 2017 10:56 AM GMT

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देश-दुनिया में भारतीय मोटे अनाज की बनी पहचान, 2018 दुनियाभर में होगा खासप्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली। भारत के मोटे अनाज की आजकल पूरी दुनिया में मांग बढ़ रही है। स्वास्थ्य कारणों से लोग मोटे अनाज जिन्हें कदन्न कहा जाता है उसको आहार के रूप में अपना रहे हैं। ऐसे में कदन्न को बढ़ावा देने के लिए कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने संयुक्‍त राष्‍ट्र को वर्ष 2018 को अंतर्राष्ट्रीय कदन्‍न वर्ष घोषित करने का प्रस्‍ताव भेजा।

यदि प्रस्ताव पर सहमति होती है, तो इससे उपभोक्ताओं, नीति निर्माताओं, उद्योग और अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र में कदन्‍न के बारे में जागरूकता आएगी।

वैश्विक स्तर पर गहन प्रयासों के माध्यम से कदन्‍न के उत्पादन और खपत को बढ़ावा दिए जाने से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने और भूख से सार्थक ढंग से निपटने में सहायता मिल सकती है। कदन्‍न को लोकप्रिय बनाने से किसानों की भावी पीढ़ियां और उपभोक्ता लाभान्‍वित होंगे।

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आम तौर पर कदन्‍न को छोटे बीज वाली घास के रूप में वर्गीकृत किया जाता है जिसे प्राय: पोषक तत्‍व वाले अनाजों अथवा शुष्‍क भूमि-अनाज का नाम दिया जाता है, और इसमें ज्‍वार, बाजरा, रागी, छोटे कदन्‍न, फॉक्‍सटेल कदन्‍न, प्रोसो कदन्‍न, बार्नियार्ड कदन्‍न, कोदो कदन्‍न और अन्य कदन्‍न शामिल हैं।

पूरे उप-सहारा अफ्रीका और एशिया में लाखों छोटी जोत वाले शुष्‍क भूमि के किसानों के लिए कदन्‍न की महत्वपूर्ण रेशा अनाज फसल के रूप में कठिन समय में भी पोषण, अनुकूलता, आय और आजीविका प्रदान करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका है। इसका बहुत से स्रोतों जैसे कि भोजन, आहार, चारा, जैव ईंधन और शराब उत्‍पादन में पूरा उपयोग नहीं किया गया है। इसलिए कदन्‍न एक अनुकूल भोजन है जो आपके स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बेहतर है। यह किसानों और सभी पृथ्‍वीवासियों के लिए लाभकारी है।

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इनमें अधिक संतुलित अमीनो एसिड प्रोफाइल, कच्चे रेशे और आयरन, जिंक और फास्फोरस जैसे-खनिजों के साथ इनके प्रोटीन के उच्च स्तरों के कारण पोषक तत्‍व के हिसाब से यह गेहूं और चावल से बेहतर है। कदन्‍न पोषण तत्‍व संबंधी सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं और ये पोषण संबंधी कमी में ढाल के रूप में बचाव करते हैं, खासकर बच्चों और महिलाओं में। कदन्‍न जैसे कम खर्चीले और पोषक तत्‍व से भरपूर अनाज का इस्‍तेमाल करने से एनीमिया (लोहे की कमी), बी-कामपेक्‍स विटामिन की कमी, पेलाग्रा (नियासिन की कमी) को प्रभावी ढंग से दूर किया जा सकता है।

कदन्‍न, मोटापा, मधुमेह और जीवनशैली समस्याओं जैसे स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने में सहायता कर सकता है क्योंकि वे लस मुक्त हैं, उसमें कम ग्लिसेमिक इंडेक्स हैं और आहार रेशेयुक्‍त और उच्च एंटीऑक्सिडेंट्स वाले हैं।

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निम्‍न और गैर-खरीदकृत आदानों और अर्द्ध शुष्क उष्णकटिबंधियों क्षेत्रों में व्‍याप्‍त कठोर पर्यावरण और मौसम से अनुकूलता स्‍थापित करते हुए ये आदान शुष्क कृषि भूमि के लिए अत्‍यधिक महत्‍वपूर्ण सिद्ध होंगे।

जलवायु परिवर्तन के प्रति फोटो असंवेदीत एवं अनुकूलित होने के कारण कदन्‍न ऐसी मौसम सहिष्‍णु फसल है जिसमें निम्‍न दर्जे का कार्बन और वाटर फूटप्रिंट निहित होता है जिसके कारण कदन्‍न की खेती अत्‍यधिक ऊंचे तापमान को भी सहन करने के साथ-साथ किसी भी बाहृ आदान के साथ गैर-उपजाऊ मिट्टी में भी हो सकती है। जलवायु परिवर्तन के इस युग में कदन्‍न मौसम सहिष्‍णु फसल है जिसे गरीब सीमांत किसानों के लिए एक अच्छी जोखिम प्रबंधन कार्यनीति के रूप में अपनाया जा सकता है।

नोट- खेती में काम आने वाली मशीनों और जुगाड़ के बारे में जानकारी के लिए यहां क्लिक करें

          

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