लॉकडाउन: दिल्ली से बिहार जा रहे मजदूर की वाराणसी में मौत, पिता ने कहा- हम खाने को मोहताज हैं लाश कैसे जलाते

Mithilesh DharMithilesh Dhar   22 April 2020 6:15 AM GMT

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लॉकडाउन: दिल्ली से बिहार जा रहे मजदूर की वाराणसी में मौत, पिता ने कहा- हम खाने को मोहताज हैं लाश कैसे जलातेराम जी महतो की एक यही तस्वीर है जो गौरव पांडेय ने खींची थी।

बिहार के बेगूसराय के रामजी महतो तीन अप्रैल को दिल्ली से पैदल अपने घर के लिए निकले थे, लेकिन 16 अप्रैल को वाराणसी में चलते-चलते उनकी मौत हो गई। बदनसीबी का आलम यह था कि जिन घर वालों तक पहुंचने के लिए रामजी पैदल निकल पड़े थे, उनके पास शव लेने और दाह संस्कार करने तक के पैसे नहीं थे। वाराणसी पुलिस ने दाह संस्कार किया।

मामला उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी के रोहनिया थाना क्षेत्र का है। उस समय रोहनिया थाने में तैनात चौकी इंचार्ज गौरव पांडेय ही वे व्यक्ति थे जो रामजी महतो (45) से आखिरी बार मिले थे। वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "16 अप्रैल को सुबह छह बजे मुझे पता चला कि एक मजदूर सड़क पर गिरा है। जब उसके पास पहुंचा तो उसकी सांसे बहुत तेज चल रही थीं। मैंने तुरंत एंबुलेंस बुलाया, लेकिन एंबुलेंस वाला देखते ही डर गया। उसे लगा कि कहीं ये इसे कोरोना तो नहीं है। मैंने रिक्वेस्ट करके किसी तरह सावधानी से उन्हें एंबुलेंस में लिटाया ही था कि उनकी सांसे थम गईं।"

वे आगे बताते हैं, "इसके बाद मैंने उनके परिजन के घर फोन किया था तो उन्होंने कहा कि हम यहां अकेले हैं और हमारे पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि वहां तक आ पाएंगे। हमने रामजी महतो का कोरोना टेस्ट भी कराया जो कि निगेटिव निकला। पोस्टमार्टम रिपोर्ट अभी आई नहीं है। रिपोर्ट के बाद ही पता चला पायेगा कि मौत की मुख्य वजह क्या है।"

गूगल मैप की मानें तो दिल्ली से बेगूसराय की दूरी 1,100 किमी से ज्यादा है। कोई आदमी अगर पैदल जाता है तो वह लगभग 215 घंटे में दिल्ली से बेगूसराय पहुंचेगा। रामजी महतो 850 किमी से ज्यादा का सफर तय कर चुके थे। लगभग 375 किमी का सफर बाकी था। हम आप अधिकतम कितना किलोमीटर पैदल चले होंगे, अपने आप से यह सवाल पूछ सकते हैं।


रामजी महतो ने दिल्ली से निकलने से पहले अपनी बहन नीला देवी से बात की थी। उन्होंने फोन पर क्या कहा था, और महतो दिल्ली में क्या करते थे, उन्होंने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया।

नीला कहती हैं, "जब मेरे भाई ने फोन किया था तब उसकी तबियत कुछ खराब लग रही थी। उसने कहा कि उसे भूख नहीं लग रही और बेचैन है। वह वहां पानी सप्लाई करने वाली गाड़ी चलाता था और मजदूरी का भी काम करता था। गाड़ी का काम हमेशा नहीं मिलता था। 13 अप्रैल को उसने फोन किया था। उसके बाद मरने से पहले 15 तारीख को फोन पर बात हुई थी तब बोला कि बनारस में हूं, तुम्हारे पास आना है लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं। मैंने उसे बोला था कि चारों ओर बंदी है तो घर मत आओ, लेकिन वह नहीं माना। वह तीन तारीख को घर के लिए निकला था। उसके पास पैसे नहीं थे।"

रामजी की बहन अपने ससुराल बेगूसराय के कुम्हरा सो गांव में रहती हैं और माता-पिता कोठियरा, बखरी में रहते हैं। रामजी पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे और लगभग 10 सालों से दिल्ली में रह रहे थे, घर वालों को भी इतना ही पता है।

उनके पिता राम चंदर महतो गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "इन 10 सालों में बस एक बार ही घर आया था। बहन के पास ही जाता था। वाराणसी से बहन को फोन करके पैसे मांग रहा था लेकिन पैसा जाता कैसे। एक बेटा पंजाब में मजदूरी करता है, वह वहां फंसा हुआ। एक बेटा बीमार रहता है जो हमारे पास ही है। पुलिस वाले बनारस बुला रहे थे, बोले कि व्यवस्था हो जायेगी यहां तक आने के लिए लेकिन मैं जाता भी कैसे। हम तो खाने को मोहताज है, लाश कैसे जलाते।"

रामजी के बाद दूसरे नंबर के भाई का नाम है राम विलास महतो। वे खेतों में मजदूरी करते हैं। गांव कनेक्शन को बताते हैं, "भाई ही कमाने वाला था। हर महीने चार-पांच हजार रुपए भेजा करता था। दिल्ली में ड्राइवरी और मजदूरी का काम करता था। मेरी भी यही कुछ 10 दिनों पहले बात हुई थी। काम धंधा न चलने से वह बहुत परेशान था। बोल रहा था कि अब खाने में दिक्कत हो रही है इसलिए गांव आना चाहता हूं। लगभग नौ साल बाद वह घर आ रहा था।"

इस मामले में नई दिल्ली के स्वतंत्र पत्रकार, मजदूरों के मामले में रिपोर्टिंग करने वाले नंदी ग्राम डायरी के लेखक पुष्पराज कहते हैं, "रामजी महतो की मौत सामान्य व स्वाभाविक मौत नहीं है। यह भारत में "लॉकडाउन डिजास्टर" की वजह से हुई एक श्रमिक की शहादत है। प्रधानमंत्री लॉकडाउन कानून की सख्ती के तहत उसे जेल में बंद कर दिया जाता तो इस तरह घर पहुंचने की राह में पैदल-पथिक की मौत नहीं होती। इस मौत को प्रधानमंत्री के लॉकडाउन डिजास्टर में भूख के खिलाफ संघर्षरत एक श्रमिक की शहादत के रूप में दर्ज किया जाए।"

  

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