छत्‍तीसगढ़: कभी मजदूरी करती थीं ये महिलाएं, अब चलाती हैं कैंटीन

Swati SubhedarSwati Subhedar   14 Feb 2019 5:39 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
छत्‍तीसगढ़: कभी मजदूरी करती थीं ये महिलाएं, अब चलाती हैं कैंटीन

रायपूर। नया रायपूर से महज चार किमी दूर झांझ गांव में रहने वाली रूपा साहू (48) ने कभी अपने गांव के बाहर कदम भी नहीं रखा था, लेकिन आज वो नया रायपूर में 50 हेक्टयर में फैले IIIT में एक कैंटीन में काम करती हैं। वो बहुत आत्मविश्वास के साथ यहां पढ़ने वाले शहरी छात्रों से बात करती हैं और हिसाब किताब संभालती हैं।

जब हमने इनसे मुलाकात की तब ये बैंक की विभिन्न बचत योजनाओं के बारे में जानना चाहती थीं, जिससे वो ज्यादा से ज्यादा पैसा बचा सकें। रूपा और उनके पति ने सारी जिंदगी मजदूरी की और जैसे तैसे अपने तीन बच्चों को पढ़ाया। लेकिन आज रूपा छह हजार महीना कमा के बहुत खुश हैं। उन्होंने बताया, "इस कैंटीन के खुलने से बहुत राहत मिली है। पहले मैं गांव के प्राथमिक शाला में खाना बनाने का काम करती थी जिसमें मुझे 1200 महीना मिलता था। मेरे पति मजदूरी करते हैं जिसमें नियमित आवक नहीं है। अब मेरी यहां नौकरी लगने से आसानी हो गयी है। पैसा तो जितना मिले उतना कम ही पड़ता है, लेकिन जितना ज्यादा मिले उतना अच्छा।"

रूपा साहू

रायपूर के कई बड़े कॉलेज में राज्य सरकार द्वारा चलाए जाने वाले छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन 'बिहान' के तहत ऐसे कैंटीन खोले गए हैं, जिसमें कॉलेज के आस-पास पड़ने वाले गांवों में स्व सहायता समूह से जुड़े लोगों को नौकरी में प्राथमिकता दी जाती है।

निर्मला चंदानी (28) गांव में स्थित लक्ष्‍मी ग्राम संगठन समूह की अध्यक्षा हैं। उन्हीं की देख रेख में ये कैंटीन खुली है और वे यहां का संचालन करती हैं। उन्होंने बताया, "सरकार ने बिहान को 10 लाख का कर्जा दिया है। हमें उसे 8 साल में चुकता करना हैं। यहां हम फिलहाल एक कैंटीन और किराना दुकान चला रहे है। दोनों मिला के हम दिन का 6000 कमा लेते हैं । मुझे पूरा यकीन है के हम सरकार का कर्जा समय से पहले चूका देंगे।"

निर्मला चंदानी

बिहान की तरफ से उन्हें एक रिक्शा भी मिली है, जिसमें ये लोग सामान लाने का काम करते हैं। कैंटीन 2 पारी में चलता है। रात को 11 भी बज जाते हैं। क्योंकि इनका गांव पांच किमी दूर है। रात को जाने में दिक्कत ना हो इसलिए भी इन्हें ये रिक्शा मिली है।

मनीषा चंदानी (28) जो गांव के समूह में हिसाब किताब संभालती हैं। उन्होंने बताया कि कैंटीन में काम करने वाली महिलाओं को एक दिन का 200 रुपया मिलता है। "जब तक हम सरकार द्वारा दिया हुआ लोन चूका नहीं देते, हम इनको ज्यादा पैसा नहीं दे सकते। लेकिन जो भी इन्हें मिल रहा है वो भी बहुत है क्योंकि गांव में कोई काम नहीं था। लोग खाली बैठे थे। हमारी कोशिश यही रहेगी कि समूह से जुड़ी अधिकतम महिलाओं को रोज़गार मिले।"

मनीषा चंदानी

रेवती बेकली (32) जो अपने गांव झांझ में खेती बाड़ी करती थीं उन्होंने बताया, "जब ये कॉलेज नहीं खुला था तब यहां सिर्फ जंगल था। जब ये कॉलेज खुला तब मैं कई बार इसे बहार से देखती और सोचती अंदर की दुनिया कितनी अलग है। कभी नहीं सोचा था कॉलेज के अंदर काम करूंगी। यहां के शहरी बच्चों से बात करके मज़ा आता है। मेरा भी आत्मविश्वास बढ़ रहा है।"

   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.