दार्जिलिंग: लगातार 13वें दिन आंदोलन जारी, प्रदर्शनकारियों ने ‘ट्यूबलाइट’ रैली निकाली
Tauseef Ahmad 27 Jun 2017 1:33 PM GMT
दार्जिलिंग।पश्चिम बंगाल के पर्वतीय क्षेत्र में अलग गोरखालैंड की मांग को लेकर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) समर्थकों की ओर से रैली और प्रदर्शन का सिलसिला मंगलवार को भी जारी रहा।आज प्रदर्शनकारियों ने दार्जिलिंग में ‘ट्यूबलाइट’ रैली निकाली।
वहीं, गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) से इस्तीफा दे चुके जीजेएम प्रमुख बिमल गुरुंग ने अपने पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) का मसौदा जलाने की बात कही है। जीजेएम युवा शाखा ने जरूरत पड़ने पर आमरण अनशन एवं आत्मदाह की भी चेतावनी दी है। गौरतलब है कि जीजेएम ने सोमवार को ईद के मौके पर बेमियादी बंद में सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक 12 घंटे की आंशिक ढील दी थी। लेकिन, आज से प्रदर्शनकारी एक बार फिर उग्र रूप धारण कर सकते हैं।
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जानिए क्यों बढ़ी गोरखालैंड राज्य बनाने की मांग
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा वहां राज्य मंत्रिमंडल की बैठक आयोजित करने और बांग्ला भाषा संबंधी पश्चिम बंगाल सरकार की अधिसूचना जारी करने के कारण पहाड़ी क्षेत्र उबलने लगा।
अब इस आंदोलन के रुकने की उम्मीद दूर-दूर तक नहीं दिख रही है, क्योंकि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने पर्वतीय क्षेत्र से पुलिस बल व सेना हटाने और अलग गोरखालैंड राज्य बनाए जाने तक जंगी आंदोलन जारी रखने का एलान किया है।
ममता बनर्जी द्वारा पर्वतीय क्षेत्र के विभिन्न समुदायों जैसे राई, लेपचा और शेरपा के लिए अलग-अलग विकास परिषदों का गठन किए जाने के बाद इन परिषदों को राज्य से आर्थिक सहायता सीधे मिलने लगी जिससे जीजेएम का महत्व कम हो गया।
दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र की चार नगरपालिकाओं (दार्जिलिंग, कालिंपोंग, कर्सियांग और मिरिक) के चुनाव पिछले माह हुए थे। उनमें से तीन में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को बहुमत मिला था और एक (मिरिक) नगरपालिका में तृणमूल कांग्रेस को। बाकी तीन पालिकाओं में भी तृणमूल के कुछ पार्षद निर्वाचित हुए थे। उससे स्पष्ट है कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेता विमल गुरुंग ने कुछ जनसमर्थन खोया है। इसीलिए वह ममता बनर्जी से क्षुब्ध थे।
विमल गुरुंग उपयुक्त समय की तलाश में थे और जब राज्य सरकार ने बांग्ला भाषा को स्कूलों में अनिवार्य बनाए जाने की अधिसूचना जारी की तो उसे गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने अवसर के रूप में लपक लिया और गोरखालैंड को नए राज्य बनाए जाने की मांग तेज हो गई।
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