बजट 2020: पानी, रसोई और मकान को लेकर ग्रामीणों की क्‍या हैं उम्‍मीदें?

Ranvijay SinghRanvijay Singh   22 Jan 2020 8:04 AM GMT

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बजट 2020: पानी, रसोई और मकान को लेकर ग्रामीणों की क्‍या हैं उम्‍मीदें?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को 2020-21 का आम बजट पेश करेंगी। इससे पहले जुलाई 2019 में बजट पेश किया गया था। उस वक्‍त बजट पेश करते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा था, ''महात्‍मा गांधी ने कहा था भारत की आत्‍मा इसके गांवों में बसती है। हमारी सरकार का केंद्र बिंदू भी गांव, गरीब और किसान है।''

सरकार के केंद्र बिंदू में गांव का होना इस लिए भी जरूरी है कि भारत में करीब 6.28 लाख गांव हैं। इन गांव में भारत की करीब 70 फीसदी आबादी रहती है। ऐसे में गांव कनेक्‍शन बता रहा है कि 2020 के बजट से ग्रामीणों की क्‍या अपेक्षाएं हैं। वित्‍त मंत्री ने अपने भाषण में खास तौर से उज्‍ज्‍वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना और हर घर नल योजना का जिक्र किया था। हमने इन्‍हीं पर ग्रामीणों की राय ली है।

मकान की जरूरत

साल 2019 के स‍ितंबर महीने की बात है। उत्‍तर प्रदेश के हरदोई जिले के लालपालपुर गांव में एक खंडहर से मिट्टी के घर में 7 साल के बच्‍चे की मौत सांप काटने से हो गई थी। यह घर रिक्‍शा चालक पुत्‍तनलाल का था, जो अपने बच्‍चों के साथ जैसे तैसे इस घर में गुजर बसर कर रहे थे। पुत्‍तनलाल के बेटे को जब सांप काटा और और यह खबर मीडिया में आई तो आनन फानन में उसे आवास दिया गया।


यह कहानी एक गांव की नहीं है। पुत्‍तनलाल जैसे लोग हर गांव में मिल जाते हैं, जो खंडहर से मिट्टी के घर में रहने को मजबूर हैं। जुलाई 2019 में बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, 'प्रधानमंत्री आवास योजना - ग्रामीण' के दूसरे चरण में 2019-20 और 2020-21 के दौरान पात्र लाभार्थियों को 1.95 करोड़ मकान दिए जाएंगे। इन घरों में बिजली, एलपीजी कनेक्शन और शौचालय उपलब्ध होगा।

आवास को लेकर सरकार के प्रयास जमीन पर नजर भी आते हैं। गांवों में बहुत से लोगों को आवास के लिए सरकार की सहायता मिली है। लेकिन यह भी सच है कि बहुत से पात्र लोग इसके दायरे में नहीं आ पाए हैं। इसी बारे में उत्‍तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले की ग्राम पंचायत हसुड़ी औसानपुर के प्रधान दिलीप त्रिपाठी कहते हैं, अभी आवास के लिए सहायता 2011 की जनगणना के हिसाब से दी जा रही है, लेकिन तब से लेकर अब तक स्‍थ‍ित‍ि बहुत बदल चुकी है। जैसे घरों के बंटवारे हो चुके हैं, नए परिवार बन चुके हैं। ऐसे में 2011 की जनगणना में इनका जिक्र नहीं है। सरकार की ओर से नया सर्वे किया गया है, पर अभी तक उस सर्वे के हिसाब से नाम अपलोड नहीं हुए हैं। उस सर्वे के आधार पर आवास दिए जाएं तो बहुत से पात्र लोगों को लाभ मिल सकेगा।''

आवास योजना में एक दिक्‍कत और आ रही है। प्रधानमंत्री आवास योजना की राशि तीन किस्तों में दी जाती है। जैसे अगर लाभार्थी को 1.20 लाख की सहायता मिलती है तो यह राश‍ि तीन किस्‍तों में लाभार्थी के बैंक खाते में जाती है। लेकिन बहुत से मामलों में देखने को मिल रहा है कि पहली किस्‍त के बाद दूसरी और तीसरी किस्‍त आने में देर हो रही है।


किस्‍तों के बैंक खाते में देरी से पहुंचने की बात पर केरल के वायनाड के थ्र‍िस्‍स‍िलेरी गांव के रहने वाले राजेश कृष्‍णन बताते हैं, ''यह बहुत आम बात है। पहली किस्‍त आने के बाद लोग दूसरी और तीसरी किस्‍त का इंतजार करते रहते हैं। घर बनाने में पैसे खर्च होते हैं। ऐसे में जब घर बनाने की शुरुआत हो जाती है तो फिर पैसे लगेंगे ही, लेकिन जब यह किस्‍त लेट होती है तो उसका असर सीधा हम पर पड़ रहा है। पहला तो घर आधे-अधूरे बनते हैं, दूसरा यह कि अगर घर बनवा लिया तो जो पास में पैसे पड़े हैं वो भी खत्‍म हो जाते हैं। सरकार किस्‍तों को वक्‍त से पहुंचाने पर ध्‍यान दे तो अच्‍छा होगा।''

एक बात और है कि कई बेहद गरीब तबके से जुड़े पात्र लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना से मिलने वाली सहायत कम लगती है। क्‍योंकि उनकी आमदनी उतनी नहीं कि वो सहायता राश‍ि में खुद के पास से कुछ जोड़कर घर बनवा सकें। ऐसे तबके के लोग सहायता राश‍ि को और बढ़ाने की मांग करते हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सामान्य जिलों के लाभार्थियों को 1.20 लाख रुपए और नक्सलग्रस्त जिलों में 1.30 लाख रुपए दिए जाते हैं। इसके अलावा प्रति आवास शौचालय के लिए 12 हजार रुपए दिए जाते हैं।

इसी गरीब तबके से जुड़ी उत्‍तर प्रदेश के देवरिया जिले के बमपाली गांव की रहने वाली सुशीला भारती हैं। सुशीला कहती हैं, हमारे परिवार की आमदनी महीने में 5 हजार के करीब है। मजदूरी करके सब जी रहे हैं। आवास में नाम आया था, लेकिन उसमें पैसा बहुत कम मिलता है। पहली किस्‍त नीव बनवाने में ही खर्च हो गई। आगे का कुछ पता नहीं है। अगर सरकार पैसे (सहायता राश‍ि) को बढ़ा दे तो हमारे लिए अच्‍छा होगा।


पानी की किल्‍लत

"हमें हर रोज एक किमी दूर से पानी लाना पड़ता है, जिस वजह से रोज स्कूल जाने में देर हो जाती है। यह काम दिन में दो बार करना पड़ता है," कई पीले बड़े-बड़े डिब्बों के बीच बैठे मध्य प्रदेश में विदिशा जिले के चकरघुनाथपुर गांव में रहने वाले मोहित ने बताया।

मोहित कक्षा सात में पढ़ाई करता है, लेकिन उसे पढ़ाई से ज्यादा पानी की ढुलाई पर मेहनत करनी पड़ती है। उसकी ही तरह उसके गाँव के दूसरे बच्चे भी कभी समय से स्कूल नहीं जा पाते, क्योंकि उन्हें भी पानी भर के घर में रखना पड़ता है।

यह कहानी सिर्फ मोहित या उसके गांव के दूसरे लड़कों की ही नहीं है, भारत के करीब 60 करोड़ लोग इस समय इतिहास के सबसे बुरे जल संकट से जूझ रहे हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक देश के कुल 24 करोड़ परिवारों में 7 करोड़ परिवार ही शोधित जल हासिल कर रहे हैं। वहीं, 70 फीसदी परिवारों को दूषित पानी ही मिल रहा है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2019-20 का बजट पेश करते हुए अपने भाषण में कहा था है कि 'देश के प्रत्येक नागरिक को सुरक्षित और पर्याप्त जल मुहैया कराना सरकार की प्राथमिकता है।' इसी के मद्देनजर सरकार ने जल शक्‍ति मंत्रालय बनाया है और गांव-गांव, घर-घर नल से पानी पहुंचाने की योजना भी बनाई है।


केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय का 2019 - 20 का कुल बजट 8245.25 करोड़ रुपये है। इसमें आधारभूत संरचना पर खर्च करने के लिए पूंजी 391.47 रुपये है जबकि 7853.78 करोड़ रुपये राजस्व के तौर पर है। इसके अलावा केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के ही अधीन जलापूर्ति और स्वच्छता विभाग को बजट में कुल 20016.34 करोड़ रुपये का प्रावधान है जबकि बीते वित्त वर्ष में इस मद में 19992.97 करोड़ रुपये का संशोधित बजट दिया गया था।

इन सब प्रयासो के तहत सरकार का प्रयास है कि 2024 तक देश के हर घल तक नल से पानी पहुंचाया जाएगा। लेकिन एक सवाल यह है कि इन नलकों में साफ पानी कहां से आएगा? पिछले बजट में इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं बताया गया था। यह सवाल इसलिए भी महत्‍वपूर्ण है कि इंडिया वाटर पोर्टल के अनुसार भारत के 50 प्रतिशत शहरी, 85 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में पानी चिंताजनक ढंग से विलुप्त हो रहा है। 3400 विकासखण्डों में से देखा गया कि 449 विकासखण्डों में 85 प्रतिशत से अधिक पानी खत्म है। ज्यादातर राज्यों में भूमिगत जलस्तर 10 से 50 मीटर तक नीचे जा चुका है।

उत्‍तर प्रदेश के बागपत जिले के बिनौली ब्‍लॉक के सरौरा गांव की रहने वाली सुनीता बताती हैं, ''उनके यहां लगा हैंडपंप पीले रंग का पानी दे रहा है। यह स्‍थि‍ति आज से नहीं बल्‍कि पिछले कुछ वर्षों से बनी हुई है। गांव के हर नल से ऐसा ही पानी आ रहा है। प्रधान बता रहा है कि गांव में टंकी बनेगी, लेकिन कब बनेगी कुछ पता नहीं।'' सुनीता की ही तरह देश की बड़ी आबादी सुरक्षित और पर्याप्त जल की आस में हैं।


प्रधानमंत्री उज्‍ज्‍वला योजना का विस्‍तार

मोदी सरकार की 'प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना' (PMUY) देश में काफी सफल और लोकप्रिय रही है। इस योजना का फायदा गरीब तबके की महिलाओं को हुआ है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तरह सरकार ने 2020 तक 8 करोड़ गैस कनेक्शन देने का लक्ष्य रखा है। हाल ही में आई भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट के मुताबिक, 31 मार्च 2019 तक ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने 7.19 करोड़ एलपीजी कनेक्शन दिए थे, जो सरकार के मार्च 2020 तक 8 करोड़ कनेक्शन देने के लक्ष्य का लगभग 90 फीसदी है।

ऐसे में इस बार के बजट में इस योजना को आगे बढ़ाने का प्‍लान सरकार कर सकती है। हालांकि CAG की रिपोर्ट में यह सामने आया है कि PMUY के तहत जिन लोगों को एलपीजी गैस कनेक्शन मिले हैं, वे अपने सिलेंडर को नियमित रूप से भरवा नहीं रहे हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि 31 दिसबंर 2018 तक एक वर्ष या उससे अधिक का समय पूरा कर चुके करीब 56 लाख (17.61 प्रतिशत) लाभार्थी ऐसे हैं जिन्‍होंने दूसरी बार सिलेंडर नहीं भरवाया।

सिलेंडर न भरवाने के पीछे एक बड़ी वजह जो सामने आ रही है, वो है सिलेंडर की कीमतें। गरीब तबके से जुड़े ऐसे लोग जो अपने पेट पालने की ही जद्दोजहद कर रहे हैं वो सिलेंडर कैसे भरवाएं। उत्‍तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के छेदा गांव की रहने वाली सुशीला घर संभालती हैं और उनके पति मजदूर हैं, जिनकी कमाई दिन के 200 से 250 रुपए तक होती है, वो भी तब जब काम मिल जाए। सुशीला बताती हैं, 'एक आदमी की कमाई पर 6 लोगों का परिवार पल रहा है। अब इस कमाई में या तो पेट पाल लें या सिलेंडर ही भरवा लें।'

बात करें गैस सिलेंडर के दाम की तो उज्‍ज्‍वला योजना की शुरुआत से लेकर अब तक घरेलू सिलेंडर के दाम में करीब 30% से ज्‍यादा का इजाफा हुइा है। मई 2016 में नॉन सब्सिडाइज्ड घरेलू सिलेंडर (14.2 किग्रा) का दाम 550 रुपए के करीब था। वहीं, दिसंबर 2019 में घरेलू सिलेंडर का दाम 750 रुपए के करीब था। यानी मई 2016 से लेकर दिसंबर 2019 तक नॉन सब्सिडाइज्ड घरेलू सिलेंडर के दामों में 30.76% की बढ़ोत्तरी हुई है।


सरकार की ओर से घरेलू गैस सिलेंडर पर सब्‍सिडी दी जाती है। दूसरे उपभोक्‍ताओं की तुलना में उज्‍ज्‍वला योजना के उपभोक्‍ताओं को 20 रुपए ज्‍यादा सब्‍सिडी दी जाती है। जैसे दिल्‍ली में नॉन सब्सिडाइज्ड घरेलू सिलेंडर का दाम 714 रुपए है। उज्‍ज्‍वला योजना के उपभोक्‍ताओं को 179 रुपए सब्‍सिडी दी जाती है और दूसरे उपभोक्‍ताओं को 158 रुपए सब्‍सिडी दी जाती है। ऐसे में 14.2 किग्रा के सिलेंडर के लिए उज्‍ज्‍वला योजना के उपभोक्‍ताओं को 535 रुपए और दूसरे उपभोक्‍ताओं को 556 रुपए देने होते हैं।

बाराबंकी के ही छेदा गांव की रहने वाली प्रमिला के घर में भी उज्‍ज्‍वला योजना का सिलेंडर खाली पड़ा है। वो कहती हैं, ''हमारा 20 लोगों का परिवार है। सिलेंडर 15 दिन भी नहीं चलता। अगर हर महीने सात-आठ सौ रुपए गैस भरवाने में लगाएंगे तो खाएंगे क्‍या? लकड़ी तो आसानी से मिल जाती है तो उसी पर खाना बना रहे हैं।'' प्रमिला घर में रखे सिलेंडर को दिखाते हुए उदास होकर कहती हैं, ''अगर पैसा होता तो इसे जरूर भराती, लकड़ी के धुएं से आंखें जलने लगती हैं।''

यानी साफ है कि अगर प्रमिला के पास पैसे होते या उज्‍ज्‍वला योजना से जुड़े घरेलू सिलेंडर के दाम कुछ और कम होते तो बहुत से परिवार इसका लाभ लेते। इस बार के बजट में इस योजना का विस्‍तार हो सकता है। ऐसे में इस बात को ध्‍यान रखा जाए तो बहुत से गरीब परिवारों तक इसका लाभ पहुंच पाएगा।


 

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