संरक्षणवाद, आटामेशन से विश्व अर्थव्यवस्था को खतरा नहीं: अरविंद पनगढ़िया

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संरक्षणवाद, आटामेशन से विश्व अर्थव्यवस्था को खतरा नहीं: अरविंद पनगढ़ियाभारत के शीर्ष अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया। 

संयुक्त राष्ट्र (भाषा)। भारत के शीर्ष अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया ने संयुक्त राष्ट्र से कहा है कि विश्व निर्यात बाजार करीब 22,000 अरब डालर का है और यह इतना बड़ा है कि शायद ही संरक्षणवाद का इस पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

संयुक्त राष्ट्र महासभा की दूसरी समिति की बैठक को संबोधित करते हुए 65 साल के पनगढ़िया ने इस बात को भी महत्व नहीं दिया कि आटोमेशन से लोगों की नौकरी जाएगी। नीति आयोग के उपाध्यक्ष पद से हाल में ही इस्तीफा देने वाले पनगढ़िया कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और जगदीश भगवती प्रोफेसर आफ इंडियन पालिटिकल एकोनामी के रुप में अमेरिका वापस लौट गये हैं।

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उन्होंने कहा, ''आटोमेशन को लेकर मेरी अपनी व्यक्तिगत राय यह है कि हम प्राय: बढ़ा-चढ़ाकर चीजों को रखते हैं। हम यह तो देखते हैं कि आटोमेशन से कौन सी नौकरियां खत्म हुई लेकिन हम यह नहीं देख सकते हैं कि वास्तव में आटोमेशन से किस प्रकार की नौकरियां सृजित होंगी। पनगढ़िया ने जोर देकर कहा कि इतिहास में कभी यह नहीं देखा गया कि प्रौद्योगिकी की प्रगति से रोजगार में कटौती हुई हो।

उन्होंने कहा, ''यह हम सभी को अधिक व्यस्त बनाता है और औद्योगिक देशों में जहां आटोमेशन हैं लोग ज्यादा व्यस्त हैं। संरक्षणवाद के मुद्दे से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा कि उनकी अपनी राय है कि वैश्विक बाजार काफी बड़ा है। पनगढ़िया ने कहा कि उदाहरण के लिये वस्तु निर्यात बाजार 17,000 अरब डालर का है। सेवा निर्यात 5,000 से 6,000 डालर है। इस तरह कुल 22,000 अरब डालर का निर्यात बाजार है। उन्होंने कहा कि यह इतना बड़ा है कि शायद ही संरक्षणवाद का इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और अगर यह होता भी है तो देश व्यक्तिगत रुप से व्यापार बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने का प्रयास कर सकते हैं।

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उन्होंने कहा कि भारत इसका एक अच्छा उदाहरण है। वस्तु निर्यात में उसकी हिस्सेदारी केवल 1.7 प्रतिशत है। अब इस प्रकार के बाजार के आकार में गिरावट की प्रासंगिकता कमोबेश भारत के मामले में इससे ज्यादा नहीं है कि वह इस बाजार में अपनी हिस्सेदारी 1.7 प्रतिशत से बढाकर चार या पांच प्रतिशत कर सकता है। पनगढ़िया ने कहा, ''मेरे विचार से प्रौद्योगिकी के बजाए अंतत: नेतृत्व और उनकी नीतियों तथा बेहतर शासन का क्रियान्वयन देशों का भविष्य निर्धारण करेगा।''

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