उत्तराखंड टनल हादसा: नौ दिन से फँसे ये मज़दूर कौन हैं?

गाँव कनेक्शन ने झारखंड के डुमरिया ब्लॉक में फँसे कुछ प्रवासी मजदूरों के परिवारों का पता लगाया, जिनके पास बमुश्किल एक एकड़ ज़मीन है और बेहद गरीबी में रहते हैं।

Manoj ChoudharyManoj Choudhary   20 Nov 2023 8:06 AM GMT

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उत्तराखंड टनल हादसा: नौ दिन से फँसे ये मज़दूर कौन हैं?

पूर्वी सिंहभूम, झारखंड। सर्दियाँ आ रही हैं और 63 साल के बासेत मुर्मू के पास पहनने के लिए ऊनी कपड़े तक नहीं हैं।

कुंडलुका गाँव में किसान के पास बमुश्किल एक एकड़ (0.4 हेक्टेयर) खेत है और इस ज़मीन में इतनी पैदावार नहीं होती कि वो अपने परिवार का पेट भर सकें, इसलिए उनके 20 साल के बेटे भुक्तू मुर्मू को काम की तलाश में पलायन करना पड़ा।

भुक्तू ने अपने बूढ़े माता-पिता, अपनी पत्नी पुंटा मुर्मू और अपने सात और चार साल के दो बच्चों के लिए ऊनी कपड़े खरीदने का वादा किया था।

लेकिन पिछले एक सप्ताह से (180 घंटे से अधिक) झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले का युवा मज़दूर राज्य की राजधानी देहरादून से लगभग सात घंटे की दूरी पर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में एक निर्माणाधीन टनल में फंसा हुआ है।


उनके साथ 40 और मज़दूर सुरंग के मुहाने से करीब 200 मीटर की दूरी पर फँसे हुए हैं, जो 12 नवंबर को दिवाली की सुबह करीब 5:30 बजे ढह गई थी।

बचाव अभियान जारी है लेकिन अभी तक इस सुरंग के अंत में कोई रोशनी नहीं आई है, जो भारत सरकार की महत्वाकांक्षी चार धाम ऑल वेदर रोड परियोजना का एक हिस्सा है।

“हमें पता था कि हमारा बेटा पैसे कमाने और घर भेजने के लिए गया था लेकिन हमें नहीं पता था कि वह उत्तराखंड में था। मुझे अपने बेटे के उत्तराखंड में एक सुरंग में फंसे होने के बारे में तब पता चला जब स्थानीय पुलिस ने मुझे पहचान के लिए उसके आधार कार्ड के साथ पुलिस स्टेशन जाने के लिए कहा,” भुक्तू के पिता बसंत मुर्मू ने कहा, जिनका परिवार एक जर्जर घर में रहता है।

“हम गरीब लोग हैं जो किसी तरह दिन में दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ कर पाते हैं; गरीबी के कारण मेरे बेटे भुक्तू को बाहर जाना पड़ा। हम बस यही चाहते हैं कि वह सुरक्षित घर लौट आए। ” चिंतित पिता ने गाँव कनेक्शन को बताया।

सुरंग के अंदर फंसे 41 श्रमिकों में से 39 उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और हिमाचल प्रदेश राज्यों के प्रवासी श्रमिक हैं, जबकि दो उत्तराखंड के हैं।

पूर्वी सिंहभूम जिले के डुमरिया ब्लॉक के कुल छह श्रमिक वर्तमान में सुरंग के अंदर फंसे हुए हैं - गुणोधर नायक, रवींद्र नायक और रंजीत नायक मानिकपुर गाँव के रहने वाले हैं, जबकि समीर नायक बांकीसोल के रहने वाले हैं। कुंडलुका के भुक्तू मुर्मू और डुमरिया के टिंकू सरदार हैं।

गाँव कनेक्शन ने इनमें से चार फंसे मजदूरों के परिवारों का पता लगाया। इन सभी श्रमिकों की उम्र 20 वर्ष के आसपास है, जिनमें से एक, समीर नायक, केवल 18 साल का है।


उनके परिवार बेहद गरीबी में रहते हैं और उनके पास बमुश्किल एक एकड़ ज़मीन है। सिंचाई सुविधाओं की कमी और रोज़गार के मौकों की कमी इन श्रमिकों को दूसरे राज्यों में पलायन करने के लिए मजबूर करती है।

बुदनी नायक के तीन बेटे उत्तराखंड चले गए थे। “मेरे दो बेटे सुरक्षित हैं, लेकिन गणोधर सुरंग में फंस गया है; मैं उसकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना कर रही हूँ।” मानिकपुर गाँव की बुदनी ने कहा। “सुरंग के अंदर मेरे बेटे को खाना, पानी और दवाएँ देने के लिए मैं सरकार का आभारी हूँ, मेरे बेटे अब दूसरे प्रदेश में जाने के बारे में सोचेंगे, क्योंकि वो सुरक्षित नहीं हैं।''

“हमारे पास ज़्यादा ज़मीन नहीं है, यह एक एकड़ से भी कम है और सिंचाई के लिए पानी भी नहीं है। इसलिए, मेरे बेटे काम करने के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं।” माँ ने कहा।

इस बीच, उनके घर से कुछ मीटर की दूरी पर, 20 साल के एक अन्य प्रवासी श्रमिक, रवींद्र नायक का घर है, जो सुरंग के अंदर फंस गया है। वह वहाँ अपने चाचा के साथ रहता था।

“गाँव के लोग बाहर नहीं जाना चाहते हैं, लेकिन मजबूरी के कारण करना पड़ता है; गाँव के लड़के अपने परिवार के लिए पैसा कमाने में लिए पलायन करते हैं और मुश्किल में रहते हैं, मुझे बस उम्मीद है कि मेरा भतीजा ज़िंदा घर आएगा। " रवींद्र नायक के चाचा प्रफुल्ल नायक ने गाँव कनेक्शन को बताया।

“डुमरिया और आस-पास के ब्लॉकों में एक दिन कड़ी मेहनत करने के बाद, एक दैनिक मज़दूर केवल 200 से 300 रुपये ही कमा पाता है, लेकिन अन्य राज्यों में उन्हें प्रतिदिन 500 रुपये मिलते हैं; इसलिए, अधिक पैसा कमाने के लिए, गाँव के लड़के स्थानीय स्तर पर काम करने के बजाय पलायन करना पसंद करते हैं, ”उन्होंने कहा।


रविंदर नायक की तरह, 18 साल के समीर नायक भी अपने चाचा के साथ बैंकिसोल गाँव में रहते थे, क्योंकि उन्होंने बचपन में अपने पिता को खो दिया था।

“तीन महीने पहले, वह अपने दोस्तों के साथ उत्तरकाशी चला गया था। मुझे उसके बारे में अखबारों से पता चला। " उसके चाचा जवाहरलाल नायक ने कहा।

“कोई भी पुलिस या प्रशासनिक अधिकारी मेरे भतीजे के बारे में कोई जानकारी नहीं दे रहा है, हमें उत्तरकाशी में उसके दोस्त के माध्यम से समीर की जानकारी मिल रही थी, लेकिन पिछले तीन दिनों से उससे भी सारा संपर्क टूट गया है।'' चाचा ने कहा।

उन्होंने कहा, "समीर का बड़ा भाई शर्मा नायक अब उसके बारे में पता लगाने के लिए उत्तरकाशी जाएगा।"

“सरकार को बेहतर शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए और खेती के लिए सिंचाई की सुविधा देनी चाहिए; खेती से बेहतर आय ही गाँवों से पलायन रोकेगी।" जवाहरलाल नायक ने कहा।

जारी है बचाव अभियान

केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ टनल ढहने वाली जगह का दौरा किया।

उन्होंने बचाव कार्यों की समीक्षा की, गडकरी ने आश्वासन दिया कि अगर ड्रिलिंग के लिए लाई गई मशीनें ठीक से काम करती हैं, तो मजदूरों को 'दो से तीन' दिनों में बचा लिया जाएगा।

उन्होंने प्रेस को बताया, " फंसे हुए लोग सुरक्षित हैं और अच्छी स्थिति में हैं।"

सुरंग में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए लगाई गई ड्रिलिंग मशीनें अब तक मजदूरों को बाहर निकालने में सफल नहीं हो पाई हैं। सुरंग का निर्माण राष्ट्रीय राजमार्ग और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड की तरफ से किया जा रहा है।

सुरंग बनाने का मकसद तीर्थयात्रा के मौसम के दौरान यात्रा की सुविधा के लिए उत्तराखंड में यमुनोत्री और गंगोत्री घाटी को जोड़ना है। इसके बनने के बाद, राडी पास के नीचे से गुजरने वाली सुरंग के माध्यम से 25.6 किलोमीटर लंबी सड़क यात्रा को 4.5 किलोमीटर तक कम कर देगी।

फंसे हुए मजदूरों की लोकेशन सुरंग के मुहाने से करीब 200 मीटर की दूरी पर है। सुरंग से श्रमिकों को बचाने की योजना में उनके सुरक्षित निकालने की सुविधा के लिए सुरंग के अंदर एक छोटा लेकिन स्थिर क्षैतिज मार्ग ड्रिल करना शामिल है।

12 नवंबर को भूस्खलन के कारण सुरंग का एक हिस्सा ढह गया था और मलबे के कारण सुरंग में घुसने का रास्ता बंद हो गया था, जिससे मज़दूर अंदर फंस गए थे। चारधाम परियोजना के हिस्से के रूप में ब्रह्मकाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिल्क्यारा और डंडालगांव के बीच 4.5 किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण किया जा रहा था।

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