'पीपली लाइव' बना कोठिलवा: गांव के लोगों ने कहा, बाहर से लोग आएं और लौंगी मांझी के काम को देखकर जाएं

30 साल में नहर खोदकर अपने गांव में खेती के लिए पानी पहुंचाने वाले लौंगी मांझी का गांव कोठिलवा 'पीपली लाइव' हो गया है। दिल्ली के पत्रकार वहीं से लौंगी मांझी के काम पर सवाल कर रहे हैं तो वहीं ट्रैक्टर मिलने के बाद वहां मीडिया का मजमा लगा है।

Rohin KumarRohin Kumar   23 Sep 2020 10:30 AM GMT

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Laungi manjhi, gayaट्रैक्टर मिलने के बाद लौंगी मांझी के गांव में रोज अधिकारी और मीडियाकर्मियों का आनाजाना लगा है।

बीते तीन दशक में नहर खोदकर अपने गांव में खेती के लिए पानी लाने वाले बिहार के गया जिले के लौंगी मांझी का कोठिलवा गांव अब 'पीपली लाइव' हो गया है। महिंद्रा की तरफ से ट्रैक्टर मिलने के बाद स्थानीय मीडिया और प्रशासन के लोग उनके गांव का दौरा कर रहे हैं। हालांकि पटना और दिल्ली के बड़े मीडिया हाउसेस के पत्रकार अब भी मौके से नदारद हैं और लौंगी मांझी के काम पर दूर से ही सवाल कर रहे हैं।

गांव कनेक्शन ने बीते 16 सितंबर को कोठिलवा से लौंगी मांझी पर ग्राउंड रिपोर्ट की थी। ख़बर लिखने वाले स्वतंत्र पत्रकार ने आनंद महिंद्रा को ट्विटर पर टैग करते हुए लिखा, "गया के लौंगी मांझी ने अपने ज़िंदगी के 30 साल लगा कर नहर खोद दी। उन्हें अभी भी कुछ नहीं चाहिए, सिवा एक ट्रैक्टर के। उन्होंने मुझसे कहा है कि अगर उन्हें एक ट्रैक्टर मिल जाए तो उनकी बड़ी मदद हो जाएगी।"

आनंद महिंद्रा ने पत्रकार के ट्वीट का जवाब देते हुए लिखा, "उनको ट्रैक्टर देना मेरा सौभाग्य होगा। उन्होंने जो काम किया है वह ताजमहल और किसी भी पिरामिड के निर्माण से बड़ा है।"

बीते 17 सितंबर की शाम को ही महिंद्रा के सिद्धार्थ टैक्टर्स डीलर, गया की ओर से लौंगी मांझी को महिंद्रा 265 DI मॉडल का ट्रैक्टर कल्टिवेटर के साथ दे दिया गया। खबर के वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर एक ट्वीट शेयर किया जाने लगा। यह ट्वीट टाइम्स ऑफ इंडिया के गया से पूर्व पत्रकार अब्दुल कादिर का था, जिन्होंने दावा किया कि लौंगी मांझी की खबर एक गलत ख़बर है और बाकी मीडिया संस्थान उसी गलत खबर को चला रहे हैं।

अपने ट्वीट में उन्होंने आगे लिखा कि, "1914 के रिकॉर्ड बताते हैं कि वहां पहले से ही नहर थी। मैंने कई अधिकारियों से बातचीत की। किसी भी अधिकारी ने किसी व्यक्ति के द्वारा बनाए जा रहे नहर की बात नहीं सुनी जबकि ये अधिकारी दशकों तक शहर में पदस्थ रहे हैं।" ट्वीट में कादिर ने टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर को फर्ज़ी बताया। उन्होंने अपने मीडिया संस्थान पर उन्हें खबर की पड़ताल के लिए संसाधन मुहैया नहीं कराने का आरोप भी लगाया। इसी गुस्से में उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया से इस्तीफ़ा भी दे दिया।

कादिर वरिष्ठ पत्रकार अब्दुल कादिर का ट्वीट

चूंकि अब्दुल कादिर वरिष्ठ पत्रकार रहे हैं, इसलिए उनके ट्वीट के आधार पर लौंगी मांझी पर की गई मीडिया संस्थानों की रिपोर्ट को शक की निगाह से देखा जाने लगा। जबकि कादिर मंगलवार (22 सिंतबर) तक खुद ही कोठिलवा नहीं गए हैं। "हमारे सवालों का हमारे ग्राउंड विजिट से कोई मतलब नहीं है," अब्दुल कादिर ने गांव कनेक्शन से बताया।

नहर और पईन का फ़र्क़

दो शब्द हैं - नहर और पईन। लेकिन अंग्रेज़ी में दोनों के लिए चलन में एक ही शब्द है - कैनाल (Canal)। इन दोनों का काम भी लगभग एक ही है। "लोग सहूलियत के लिए नहर और पईन को एक ही बोल देते हैं जबकि भौगोलिक दृष्टि से दोनों अलग-अलग चीज़ है," मगध क्षेत्र में पानी के संरक्षण के लिए लंबे समय से काम कर रहे रवींद्र पाठक ने गांव कनेक्शन को बताया।

"नहर में एक इनपुट प्वाइंट होता है। जिसे हम लोग 'छेद' कहते हैं। पानी एक जगह से घुसता है और कई जगहों पर निकलता है। नहर की संरचना लिनियर (रेखीय) होती है। मुगल काल तक नहरों का उपयोग ट्रांसपोर्टेशन के लिए होता था। लेकिन देश की आज़ादी के बाद जो नहरें बनी उसका उद्देश्य सिंचाई है," रवींद्र आगे कहते हैं।


रवींद्र ने बताया कि पईन में कई इनपुट और आउटपुट प्वाइंट होते हैं। जहां से भी पानी आने की संभावना होती है, पईन के ब्रांच को मेन इनपुट प्वाइंट से जोड़ दिया जाता है। पईन सर्पिलाकार (सरपेंटाइल) होता है। पईन में ढ़ाल भी होता है। चूंकि पईन में कई जगहों से पानी घुसने और निकलने की संभावना होती है इसीलिए प्राकृतिक ढाल के हिसाब से उसका निर्माण होता है। यह एक जटिल प्रक्रिया होती है। बरसात के मौसम में इसे पानी के प्रवाह के हिसाब से मोड़ा जाता है। पानी के प्रवाह में कई जगह अवरोध मिलते हैं तो उसको उस हिसाब में बनाया जाता है। पईन का भी प्रयोग सिंचाई के लिए होता है।

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उन्होंने बताया कि पईन के बनने में अक्सर दस-बीस साल का वक्त लग ही जाता है। "कभी-कभी कोई लोग भावनात्मक रूप से सनक जाते हैं तो पईन खोद देते हैं। कई सारी पईनें खोदी गई हैं। लेकिन सारी पईनें सफल नहीं होती हैं," रवींद्र पाठक ने जोड़ा। वह कहते हैं कि लौंगी मांझी ने जो खोदा है, वह दरअसल पईन है। लोग सहूलियत में उसे नहर कह रहे हैं। "लौंगी मांझी के पईन का अध्ययन किया जाना चाहिए," उन्होंने कहा।

रवींद्र पाठक भौगोलिक स्थितियों और पारंपरिक निर्माण विधियों को सही संदर्भों में नहीं समझने पर चिंता जाहिर करते हैं। उन्होंने कहा, "दशरथ मांझी ने जो पहाड़ काटकर रास्ता बनाया, वह रास्ता इतना ही चौड़ा था कि दो-चार लोग आर-पार हो जाएं। बाद में जिला प्रशासन ने सड़क को चौड़ा करवाया। इसकी दृष्टि यह है कि शासन और प्रशासन किसी व्यक्ति के इस तरह के पराक्रम को संदिग्ध नहीं रखना चाहता। इसलिए जो पईन लौंगी मांझी ने खोदी है, उसे नहर कहा जा रहा है। शहर और बाहर बैठे लोगों को नहर ही चाहिए, यही आधुनिकता का अंहकार और समस्या दोनों है।"

क्या पहले से थी कोठिलवा में नहर?

टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व पत्रकार अब्दुल कादिर ने अपने ट्वीट में 1914 के लैंड रिकॉर्ड्स के हवाले से दावा किया कि कोठिलवा में पहले से नहर थी। उन्होंने यह भी लिखा कि उन्होंने नहर के निर्माण के संबंध में गया जिले के कई अधिकारियों से बात की है और किसी ने भी किसी अकेले व्यक्ति द्वारा नहर खोदे जाने की बात जानने से इनकार किया है। उसके बाद से ही सोशल मीडिया में लौंगी मांझी की कहानी पर संदेह पैदा किया जाने लगा।,

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वर्ष 2013 में रेवेन्यू और लैंड रिफॉर्म विभाग के निदेशक मिथिलेश मिश्रा के नेतृत्व में बिहार सरकार ने भूमि सर्वेक्षण का काम शुरू किया है। आखिरी लैंड सर्वे साल 1910 में हुआ था। उन्होंने भूकर नक्शे (कैडेस्ट्रल मैप) के बारे में लिखा है कि उसे संभालकर रखने में बड़ी चुनौती है। पिछले सौ साल में ज़मीन पर चीज़ें बदल गई हैं। यहां पढ़े

यही कारण है कि बिहार सरकार ने 2013 में निजी कंपनियों को एरियल सर्वे का ठेका दिया है। गया सहित 16 जिले का ठेका आईआईसी टेक्नोलॉजी को दिया गया है। आईआईसी टेक्नोलॉजी के बिहार स्थित मैनेजर रमेश कौल ने गांव कनेक्शन से बातचीत में कहा, "कैडेस्ट्रल सर्वे सालों पहले किया गया था। तब से अब की स्थितियां बहुत बदल चुकी हैं। बिहार में विस्तृत लैंड सर्वे की जरूरत महसूस हो रही थी। इसलिए सरकार ने तय किया कि कैडस्ट्रल सर्वे के बजाय एरियल सर्वे करवाया जाए।"

2013 से आईआईसी टेक्नोलॉजी यह सर्वे कर रही है जो कि अभी तक पूरा नहीं हो सका है। "विभाग के पास बहुत सारे जरूरी रिकॉर्ड्स मौजूद नहीं हैं। कर्मचारियों को भी उतना लैंड रिकॉर्ड्स के बारे में आइडिया नहीं होता इसलिए हमें देरी हो रही है," कौल ने गांव कनेक्शन को बताया।

गांव वालों के बयान

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने अपने जीवनकाल में कोई नहर नहीं देखी। उन्होंने लौंगी मांझी को ही सालों से पईन खोदते देखा है।

"हमने कभी कोठिलवा में नहर नहीं देखी। जहां जो भी खुदाई हुई है, वह लौंगी मांझी ने ही की है। हमने उन्हें खुदाई करते देखा है," कोठिलवा निवासी रामजीतन मांझी कहते हैं। रामजीतन की उम्र 50 से 60 साल के बीच है।

वहीं 70 साल के बड़कू भुइंया भी कहते हैं, "हम अपने बचपन से आजतक कोई नहर नहीं देखे कोठिलवा में। यहां पानी लौंगी मांझी के ही प्रयास से आया है। मेरे सामने तो कितने बच्चे बड़े जवान हो गए किसी को नहर नहीं दिखी।"

"मेरी उम्र 30-32 साल हो गई है। जब से होश संभाले हैं लौंगी मांझी को ही नहर-पईन खोदते देखे हैं। लौंगी मांझी की सोच थी कि बारिश का पानी जो बंगेठा पहाड़ से बांके बाज़ार की तरफ चला जाता है, उसे क्यों नहीं कोठिलवा की तरफ मोड़ दिया जाए। और वही काम उन्होंने किया," रामविलास सिंह ने गांव कनेक्शन से कहा।

लौंगी मांझी के गांव में जुटे ग्रामीण

"कोई पहले से नहर नहीं था। हम छोटे उम्र से ही लौंगी मांझी को काम करते देखे हैं। लोग इन्हें पागल समझते थे। कहते थे कि अकेले कैसे नहर खोद देंगे। अब जब नहर बन गई है तो लोग बहुत खुश हैं। लौंगी मांझी ने इतिहास रच दिया है," राजेश पासवान ने गांव कनेक्शन से कहा। राजेश की उम्र 52 वर्ष है।

"जब से होश संभाले हैं आज के पहले तक कोई नहर नहीं देखे हैं। जो काम गांव के कोई बुजुर्ग नहीं कर सके वो काम लौंगी जी ने कर दिया है। अब उम्मीद है कि अच्छी फसल होगी," राजकुमार भुइंया ने गांव कनेक्शन को बताया। राजकुमार की उम्र 38 वर्ष है।

लौंगी मांझी खुद भी इस तरह के अनर्गल आरोपों पर हंसते हैं। उन्होंने भी कहा कि पहले से कोई नहर नहीं था। गांव वाले इसके गवाह हैं। लौंगी मांझी का परिवार बाहर से आए पत्रकारों के अटपटे सवालों से परेशान है। "ये तो देखने की चीज़ है। लोग आकर देखें कि क्या हुआ है," लौंगी मांझी के बड़े बेटे रमेश मांझी कहते हैं। रविवार को कोठिलवा आए पत्रकारों और अधिकारियों को रमेश मांझी जानबूझकर बंगेठा पहाड़ तक ले जाते हैं। ताकि उनके सवालों के जवाब लौंगी के काम को देखकर ही मिले।

स्थानीय अधिकारियों का क्या है कहना?

गया के डीएम अभिषेक सिंह ने लघु सिंचाई विभाग की टीम का गठन किया है। उन्होंने कहा, "दक्षिण बिहार में आहर-पईन पानी के प्रवाह का एक पुराना और पारंपरिक तरीका है। कई गांवों में पईन बनते हैं। यह अविश्वसनीय है कि लौंगी मांझी ने ये काम अकेले किया है। लघु सिंचाई विभाग की टीम वहां गई है। वे कुछ दिनों में अपनी रिपोर्ट देंगे। फिलहाल जिला प्रशासन को लौंगी मांझी के काम में कुछ भी संदेहास्पद नहीं मिला है।" डीएम ने बताया कि चुनाव की व्यस्तताओं की वजह से वे कोठिलवा नहीं जा सके हैं।

बांके बाज़ार के ब्लॉक डेवलपमेंट अफ़सर (बीडीओ) सोनू कुमार कोठिलवा जाकर साइट का दौरा कर चुके हैं। जब गांव कनेक्शन ने उनसे सोशल मीडिया में चल रहे "पहले से नहर थी" के दावों के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा,"कोठिलवा जाने वाली टीम में रेवेन्यू अफ़सर भी थे। उन्हें सर्वेक्षण के लिए नक्शे की जरूरत होती है। स्थानीय स्तर का जो सर्वे हमें उपलब्ध है उसमें इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है कि नहर पहले से थी या नहीं थी। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले से कोई नहर नहीं थी। टीम विजिट में लौंगी मांझी का काम दिखता है। फिलहाल कोई भी फॉल्ट लाइन प्रशासन को नहीं मिला है जिससे संदेह की दृष्टि पैदा की जाए।"

बीडीओ ने कहा कि कोठिलवा के नहर को संदर्भ सहित देखने की जरूरत है। वहां की टोपोग्राफी (स्थलाकृति) को दरकिनार करके नहर पर बहस नहीं की जा सकती। "बारिश के दिनों में पहाड़ों से पानी नीचे आता है तो वह अपना प्राकृतिक रास्ता ढूंढ़ लेता है। निचली जमीन की तरफ वो अपना रास्ता बना लेता है। वो रास्ता फिर पानी के प्रवाह का पारंपरिक रास्ता बन जाता है। मगध क्षेत्र में इसे 'ढ़ोड़ा' कहते हैं।"

"संभवत: जिस सर्वे के हवाले से नहर की बात की जा रही है, वह नहर न होकर ढ़ोड़ा होगा। अब एक बात यहां समझने की जरूरत है। चलिए एक मिनट के लिए मान लेते हैं कि सौ साल पहले कोई नहर थी। क्या वह नहर सौ साल बाद वैसे ही रहेगी? उसमें इतने सालों में पानी नहीं बहा, उसमें सेडिमेंटेशन हुआ। जब गाद भर गया और अगर उस गाद को किसी ने नि:स्वार्थ भाव से तीस साल तक साफ कर दिया तो क्या यह सराहनीय काम नहीं है?," बीडीओ सोनू कुमार ने कहा। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रशासन को लौंगी मांझी के काम पर अब तक कोई संदेह नहीं है।

जिले के जल संसाधन विभाग के चीफ इंजीनियर अभय नारायण रविवार को कोठिलवा पहुंचे थे। उन्होंने गांव कनेक्शन को कहा, "बंगेठा पहाड़ से गांव तक पईन के सहारे लौंगी मांझी ने पानी पहुंचाया है। समझने की जरूरत है कि उनके अपने 30 वर्षों के अनुभव से, जैसे-जैसे पहाड़ से पानी उतरने का नैचुरल कोर्स बनता गया, वह अपनी समझ से पईन काटते गए। पईन उन्होंने अपनी समझ के आधार पर काटा है। कहीं-कहीं पईन ज्यादा गहरा भी मिलेगा आपको। उनके पास कोई काग़ज़ पर बना नक्शा नहीं था।"

अभियंताओं की टीम से मांझी ने आग्रह किया है कि हरकुट्टा से निकलने वाले पानी को चेक डैम बनाकर आहर से जोड़ने दें। नहर की लंबाई के बारे में अभय नारायण ने कहा कि अभी नहर की नपाई नहीं हुई है। सर्वे के लिए अभियंताओं की टीम का गठन हुआ है।

"अभियंताओं की टीम सर्वे करके रिपोर्ट देगी तभी सही लंबाई का पता चल सकेगा। फिलहाल तो जो 3 किलोमीटर कहा जा रहा है, वह प्रथमदृष्टया सही ही लगता है। मांझी जी ने जो आइडिया दिया है, उसको भी देखा जाएगा कि कैसे किया जा सकता है।" रविवार को चीफ इंजीनियर ने लौंगी मांझी की बात जल संसाधन मंत्री संजय झा से भी करवाई थी।

सर्किल अफ़सर, इमामगंज को जब गांव कनेक्शन ने सोशल मीडिया में चल रहे दावों के बारे में बताया तो उन्होंने गांव कनेक्शन से कहा, "जिस भी व्यक्ति को घर बैठे संदेह हो रहा है, उससे यही कहा जा सकता है कि वह आकर इस जगह का दौरा करे। नहर थी या नहीं थी ये तो जिओग्रफिक्ल मैप में भी बहुत क्लियर समझ नहीं आएगा।"

"गया क्षेत्र में जो भी नदियां बहती हैं, सारी बरसाती नदियां हैं। यहां सिंचाई का काम चेक डैम से होता है। पहाड़ी इलाके से तराई होते हुए जो पानी नीचे उतरता है, उसे पईन खोदकर दिशा दी जाती है। उसे ही लोग नहर कहते हैं। पईन और नहर में बस लंबाई का फ़र्क़ होता है। नहर बड़ी होती है, उससे पानी दो-चार गांवों में पहुंचा दिया जाता है। पईन छोटे स्तर पर होता है। पानी को चेक डैम बनाकर रोका जाता है। दोनों के स्वरूप में कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं होता। उद्देश्य दोनों का सिंचाई ही है," राज कुमार, सर्किल अफ़सर इमामगंज ने गांव कनेक्शन से कहा।

बांके बाज़ार के सर्किल अफ़सर संजय कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया, "लौंगी मांझी ने जिस ज़मीन पर खुदाई की है, वह सरकारी ज़मीन है। फॉरेस्ट लैंड है। जिला प्रशासन वन विभाग से एनओसी लेगा। विभाग तय करेगा कि पईन के निर्माण के लिए वहां क्या बेहतर विकल्प हो सकते हैं?"

  

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