रिसर्च: रतुआ रोग से मुक्त हो जाएगी गेहूं की फसल

Ashwani NigamAshwani Nigam   16 April 2017 9:21 PM GMT

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रिसर्च: रतुआ रोग से मुक्त हो जाएगी गेहूं की फसलगेहूं की फसल में रोग का निरीक्षण करता किसान।

लखनऊ। हरितक्रांति के बाद खाद्यान्न उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में गेहूं का बहुत योगदान है। हालांकि, गेहूं उत्पादन में रतुआ रोग एक बहुत बड़ी बाधा है। रतुआ रोग की कई बीमारियों में पत्ता रतुआ, तना रतुआ और धब्बा रतुआ से हर साल बड़ी मात्रा में गेहूं की फसल बर्बाद होती है। इस समस्या से निजात दिलाने में भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों की हालिया खोज काफी असरदार बताई जा रही है। विशेषज्ञों का दावा है कि इस खोज के बदौलत आने वाले समय में गेहूं की फसल पूरी तरह से रतुआ रोग से मुक्त हो जाएगी।

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इस कड़ी में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने गेहूं के रतुआ फंगस पक्सीनिया ट्रिटिसिना के 15 जिनोम उपभेदों को खोज की है। माना जा रहा है कि इससे भारत सहित दुनिया के विभिन्न भागों में गेहूं की हानिकारक बीमारियों की गतिशीलता और उनकी प्रकृति को समझने में मदद मिलेगी। हाल ही में शोध जर्नल, जिनोम बायोलॉजी एंड इवोल्यूशन में “ ड्राफ्ट जिनोम ऑफ ह्वीट रस्ट पाथोजिन (पक्सीनिया ट्रिटिसिना) अनरिविल्स जिनोम - वाइड स्ट्रक्चरल वेरिएशंस डरिंग इवोल्यूशन” शीर्षक से प्रकाशित किया गया है।

इस बारे में जानकारी देते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिक डॉ. टीआर शर्मा के अनुसार रतुआ रोग पर शोध करने के लिए भारत सरकार ने एक परियोजना की शुरुआत की थी। इसमें परिषद के तीन संस्थानों भारतीय पौध जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केन्द्र, पूसा परिसर (नई दिल्ली), भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान फ्लोवरडेल केन्द्र, शिमला, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय स्टेशन वेलिंग्टन और दो राज्यों के विश्वविद्यालयों पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना और तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर मिलकर काम कर रहे थे।

उन्होंने बताया कि पूरे विश्व में रतुआ रोग गेहूं के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बना हुआ है। हर साल हजारों एकड़ फसल रतुआ रोग से बबार्द हो जाती है। ऐसे में भारत में इस बीमारी को दूर करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से संबंद्ध विभिन्न शोध संस्थान और कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बड़ा काम किया है। इस रोग की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन रोम ने इसी साल 3 फरवरी को 2017 को चेतावनी जारी की थी कि रतुआ विभिन्न गेहूं उत्पादक क्षेत्रों में फैल रहा है। 2016 में सिसली, यूरोप में रतुआ का दोबारा प्रकोप देखा गया था। इकसे साथ ही पास्ता बनाने में उपयोगी गेहूं की ड्यूरम किस्म को भी इस बीमारी के प्रति संवेदनशील पाया गया है। इसके बाद से पूरे विश्व में इस बीमारी के नियंत्रण के लिए शोध चल रहा है।

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