पश्‍चिमी यूपी के कई गांव में किसानों ने बोर्ड पर क्यों लिखा- 'BJP वालों का गांव में आना मना है'

किसान क्रांति यात्रा के बाद जब किसान दिल्‍ली से घर लौटे तो खुद पर हुई कार्रवाई के विरोध में इस तरह के बोर्ड लगा रहे हैं।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   24 Oct 2018 12:36 PM GMT

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पश्‍चिमी यूपी के कई गांव में किसानों ने बोर्ड पर क्यों लिखा- BJP वालों का गांव में आना मना है

लखनऊ। उत्‍तर प्रदेश के अमरोहा जिले के सदरपुर गांव के बाहर एक बोर्ड लगाया गया है, जिसे गांव वाले 'बीजेपी विरोधी बोर्ड' कहते हैं। इस बोर्ड पर लिखा है कि ''बीजेपी वालों का इस गांव में आना सख्‍त मना है।'' इस बोर्ड को लेकर गांव के ही बुजुर्ग किसान ओमकार सिंह कहते हैं, ''हम दिल्‍ली गए तो हमें बॉर्डर पर रोक दिया, हमारे पर लाठियां चलाई गईं। इसलिए हमने अपने गांव में बीजेपी वालों को आने से रोका है।'' कुछ सोचने के बाद ओमकार सिंह तैश में कहते हैं, ''दिल्‍ली उनकी है और गांव हमारा।''

सदरपुर गांव में लगा 'बीजेपी विरोधी बोर्ड'।

सदरपुर गांव अमरोहा जिले के हसनपुर तहसील में स्‍थ‍ित है। अमरोहा से 23 किमी की दूरी पर स्‍थ‍ित इस गांव में करीब 350 घर हैं। इस गांव के रहने वाले इंदरपाल सिंह बताते हैं, ''बीजेपी विरोधी बोर्ड इसलिए लगाया कि हम सब शांतिपूर्ण तरीके से दिल्‍ली जा रहे थे, लेकिन पुलिस ने हमपर लाठी भांजी, ये सही नहीं किया। अब हम भी इंतजार कर रहे हैं। उन्‍हें वोट मांगने यहीं आना होगा।'' इंदरपाल गांव की टूटी सड़क को दिखाते हुए कहते हैं, ''हमारा सांसद भी बीजेपी का, विधायक भी बीजेपी का, फिर भी सड़क टूटी है। हम किससे कहेंगे, जब सरकार सुनेगी नहीं।''

गांव के ही गजराम सिंह कहते हैं, ''दिल्‍ली सबकी है, फिर किसानों को वहां जाने से क्‍यों रोक दिया? बीजेपी सरकार को ऐसा नहीं करना था। हम बस किसान घाट जाना चाहते थे। हमारी समस्‍याओं से सरकार भाग नहीं सकती। हमारे गांव में सड़क, पानी और शिक्षा के नाम पर कुछ नहीं किया गया। बीजेपी के सांसद हैं इसके बाद भी ऐसा हाल है।''

''मोदी जी, योगी जी से हमारी दुश्‍मनी नहीं है। हमने इन्‍हीं को वोट दिया था, फिर हम अपनी बात इनसे क्‍यों नहीं कह सकते?'' - गजराम सिंह

बता दें, सदरपुर गांव पहुंचने के लिए निजी साधन की जरूरत पड़ती है। अगर निजी साधन नहीं है तो मुरादाबाद-मेरठ नेशनल हाईवे पर स्‍थित रजबपुर से करीब 10 किमी पैदल चलकर इस गांव पहुंचा जा सकता है। गांव तक पहुंचने के लिए कहीं मिट्टी की सड़क तो कहीं खड़ंजा मिलेगा। गांव के ही इंदरपाल सिंह बुनियादी जरूरतों के अभाव की बात करते हुए सवाल करते हैं कि, हमारे गांव में कौन सा विकास हो गया? चुनाव से पहले कितने वादे किए गए, लेकिन काम नजर नहीं आ रहा। हमारे बच्‍चों के पास काम नहीं है। स्‍कूल जाने के लिए उन्‍हें दूर जाना होता है। प्राइमरी स्‍कूल का भी हाल सही नहीं। सड़क तो आप देख ही रहे हैं। इतनी परेशानियों के बाद भी हम बोर्ड क्‍यों नहीं लगा सकते?''

अमरोहा के सदरपुर गांव के बाहर बैठे किसान।

सदरपुर गांव के बलराम सिंह बताते हैं, ''ये बोर्ड गांव वालों ने चंदा जुटाकर लगाया है। हमारे गन्‍ने का दाम नहीं मिल पा रहा। अभी पिछला भुगतान भी नहीं हुआ है और इस बार चीनी मिल चलने की कोई तारीख भी तय नहीं हुई। हमें गेहूं लगाना है, ऐसे में खेतों से गन्‍ना हटा रहे हैं। हाल ये है कि गन्‍ने को 150 रुपए कुंटल के हिसाब से बेचना पड़ रहा है।'' एक सवाल पर कि गांव में भी बीजेपी के कार्यकर्ता और नेता रहते होंगे, उन्‍होंने इसका विरोध नहीं किया? इसपर बलराम सिंह कहते हैं, ''हम सब भी तो बीजेपी के ही थे। हमने हमेशा से बीजेपी को वोट किया है, लेकिन इस सरकार ने हमारे साथ गलत कर दिया। आज डीजल के दाम कितने ज्‍यादा हो गए हैं। बिजली का रेट भी बढ़ा दिया। किसान को हर ओर से मार पड़ रही है।''

''हम सब भी तो बीजेपी के ही थे। हमने हमेशा से बीजेपी को वोट किया है, लेकिन इस सरकार ने हमारे साथ गलत कर दिया।''- बलराम सिंह

अमरोहा जिले में कुल 1133 गांव हैं। किसान यूनियन से जुड़े चौधरी वेदपाल सिंह का दावा है कि, ''अमरोहा के करीब 70 प्रतिशत गांव में 'बीजेपी विरोधी बोर्ड' लगे हैं। सिर्फ हसनपुर तहसील में करीब 200 गांव के बाहर ऐसे बोर्ड लगाए गए हैं। किसान क्रांति यात्रा के बाद जब किसान दिल्‍ली से घर लौटे तो खुद पर हुई कार्रवाई के विरोध में इस तरह के बोर्ड लगा रहे हैं।''

हाफिजपुर गांव में भी लगा 'बीजेपी विरोधी बोर्ड'।

सदरपुर से सटे दो गांव खजुरी और हाफिजपुर में भी 'बीजेपी विरोधी बोर्ड' लगे हैं। हाफिजपुर गांव के रहने वाले अरविंद सिंह कहते हैं, ''गांव में बीजेपी को लेकर गुस्‍सा है। हमारे गांव में विकास के नाम पर कुछ नहीं हुआ। सड़कों का हाल तो बहुत ही बुरा है। हमारे देवी स्‍थल को जाने वाली सड़क पर कीचड़ पड़ा रहता है। ये सब ठीक कराने की जिम्‍मेदारी सरकार की है, लेकिन ठीक हो नहीं रहा। इसलिए हमने विरोध करने का फैसला लिया। अरविंद इस बात पर भी जोर देते हैं कि दिल्‍ली में किसानों पर की गई कार्रवाई गलत थी।''

हाफिजपुर गांव की रहने वाली राकेश।

बता दें, हाफिजपुर गांव सदरपुर से ठीक अगला गांव है। यहां करीब 400 घर हैं। इस गांव की रहने वाली राकेश तंज कसते हुए कहती हैं, ''हमारे गांव की सड़कें कमाल की हैं। इसपर चलने के बाद आपको जाना कहां है ये सोचने की जरूरत नहीं। सड़क खुद-ब-खुद पहुंचा देगी।''

गांव के प्राइमरी स्‍कूल के पास मौजूद कुछ युवा स्‍कूल का बुरा हाल दिखाते हुए कहते हैं, ''यहां पढ़ेगा इंडिया, तो कैसे बढ़ेगा इंडिया?'' इन्‍हीं में से अजीत सिंह कहते हैं, हम बोर्ड क्‍यों न लगाएं? गांव में सुविधाओं का कितना अभाव है। स्‍कूल का हाल आप देख ही रहे हैं। बच्‍चों के बैठने की जगह तक नहीं है, इस वजह से उन्‍हें खुले में बैठकर पढ़ना होता है। क्‍लास में कूड़ा पड़ा हुआ है। हमारे गांव में कुछ नया नहीं हो रहा, सब पुराना चला आ रहा है। हमारा विरोध भी इसी बात का है। चुनाव के वक्‍त इतने वादे किए और जब पुरा करने की बारी आई तो मुकर गए। ऐसा करना सही थोड़े है।''

हाफिजपुर गांव का प्राइमरी स्‍कूल।

गांव वाले बताते हैं कि हसनपुर तहसील में कई गांव के बाहर 'बीजेपी विरोधी बोर्ड' लग चुके हैं। इनमें देहरी जट, धनौरी, नगलिया जट, कूबी, नाइपुरा, नाजरपुर और रसूलपुर गांव शामिल हैं। इसके अलावा भी कई गांव में ऐसे बोर्ड लगाने की तैयारी की जा रही है। गांव वालों का कहना है कि हम उनके दरवाजे (दिल्‍ली) पर गए तो हमारे साथ गलत किया, अब हम भी तैयार हैं।

    

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