#KisanDiwas : जैविक किचन गार्डनिंग से पंजाब की सेहत सुधारने में जुटी महिलाएं
राष्ट्रीय किसान दिवस पर हम आपको पंजाब की उन महिलाओं से मिलवा रहे हैं, जो अपने घर की खाली जमीन और खेत के एक हिस्से में जहर मुक्त खेती कर रही हैं। इसे आप घर का बगीचा और किचन गार्डन भी कह सकते हैं।
Ranvijay Singh 23 Dec 2019 5:42 AM GMT
लखनऊ। रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक से उगाए गए अनाज और सब्जियों से नुकसान को देखते हुए पंजाब में जैविक किचन गार्डनिंग कर रही हैं। प्रदेश के कई गांवों में महिलाएं घर के आसपास पड़ी जमीन में देसी तरीकों से खेती कर परिवार के लिए अच्छी सब्जियां उगा रही हैं तो ये उनके लिए कमाई का जरिया भी बन गया है। एक गैर सरकारी संगठन के मुताबिक पंजाब के तीन जिलों के 40 गांव की 4 हजार महिलाएं किचन गार्डनिंग कर रही हैं।
पंजाब में फरीदकोट जिले के चैना गांव की रहने वाली सरबजीत कौर बताती हैं, ''मैं 2014 से जैविक किचन गार्डनिंग कर रही हूं। इससे मेरे परिवार के लिए ताजी बिना की कीटनाशक वाली सब्जियां मिल जाती हैं। शुरुआत में मैं ये काम अकेले करती थी, लेकिन अब पति और बेटे भी हाथ बंटा देते हैं।"
सरबजीत ने अपने किचन गार्डन में पालक, मेथी, धनिया, दो तरह की गोभी, मटर, लहसुन, प्याज और टमाटर जैसी सब्जियां लगाई हैं। सरबजीत के मुताबिक 8 लोगों के परिवार में रोज सब्जी में करीब 100 रुपए लग जाते, लेकिन किचन गार्डन की वजह से महीने के तीन हजार रुपए बच जाते हैं। साथ ही उनका परिवार शुद्ध भोजन भी कर रहा है।
''एक मां ही इस बात को समझ सकती है कि अपने बच्चों को जहर नहीं खिलाना है।'' - सरबजीत कौर
रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशओं के ज्यादा इस्तेमाल से पंजाब की जमीन और आबोहवा में काफी विपरीत असर पड़े हैं। पंजाब कैंसर से होने वाली मौतों के लिए कुख्यात है खुद सरबजीत के गांव में पांच लोग कैंसर से पीड़ित हैं। अपने गांव में कैंसर के मरीजों पर चिंता जताते हुए वो कहती हैं, ''कई लोग इस बीमारी के बारे में बताते भी नहीं हैं। सब कहते हैं, खेतों में ज्यादा दवा (कीटनाशक) छिड़कने से ऐसा हो रहा है। इसीलिए मैंने अपने घर में खाली पड़ी जमीन पर खेती शुरु की, जिसमें कोई ऐसी दवा नहीं डालतीं हूं। पहले तो मैं अकेले इस गांव से किचन गार्डनिंग करती थीं, लेकिन अब इस गांव की 250 महिलाएं किचन गार्डनिंग कर रही हैं।''
पंजाब में ही सरबजीत कौर के गांव से करीब 100 किलोमीटर दूर बरनाला जिले के भोतना गांव की कमलजीत कौर अपने खेत के एक हिस्से में बिना रसायानिक खादों वाली खेती कर रही हैं। कमलजीत कौर फोन पर बताती हैं, ''मैं 2011 से किचन गार्डनिंग कर रही हूं। संयुक्त परिवार में रहता हूं। शुरुआत में ससुराल वाले मान नहीं रहे थे, क्योंकि मैं शहर की रहने वाली थी, वो मजाक भी उड़ाते थे कि ये क्या जाने खेती के बारे में। लेकिन जब घरवालों ने मेरी उगाई हुई सब्जियां खाईं तो उन्हें स्वाद अच्छा लगा फिर सब साथ देने लगे।' कमलजीत बताती हैं कि अब वो खेत के कुछ हिस्से में भी सब्जियां उगा रही हैं। उनके गांव की करीब 300 महिलाएं इसी तरह जैविक किचन गार्डनिंग कर रही हैं। https://youtu.be/b5p53a3dgy4
''मेरी जैविक खेती को देखकर गांव के किसान भी मुझसे सलाह लेने आते हैं। कई किसान धीमे-धीमे जैविक खेती को अपना भी रहे हैं।'' - कमलजीत कौर
पंजाब में ऑर्गेनिक खेती करने वाली इन महिलाओं का मानना है कि रसायनिक कीटनाशक के अधिक इस्तेमाल से लोगों को तरह की तरह की बीमारियां होती हैं। इन बीमारियों से बचने का उपाय देसी तरीकों से खेती है। इसलिए वो अपने परिवार के खाने-पीने के लिए चीजें गाय-भैंस के गोबर, गोमूत्र और दूसरे तरीकों से उगाती हैं।
फरीदकोट जिले के गांव रमाना अलबेल सिंह की रहने वाली वीरपाल कौर बताती है, ''मेरे पति पूरी तरह से रासायनिक खेती करते थे। जब उनसे ऐसी खेती की बात कही तो वो मानने को तैयार ही नहीं थे, क्योंकि इससे उपज कम होने का डर था। लेकिन उनको समझाने के बाद अब मेरे किचन गार्डनिंग के साथ ही खेतों में भी जैविक तरीके से खेती होने लगी है।'' वीरपाल कौर कहती हैं, ''कीटनाशक से कैंसर होने की बात सुनी है और पंजाब में कैंसर कितना बढ़ रहा है। ऐसे में जैविक खेती ही सही है।''
पंजाब में कैंसर के बढ़ते मामले बड़ी चिंता का विषय हैं। 2015 में पंजाब सरकार के सर्वे के अनुसार, प्रदेश की एक लाख की आबादी में से लगभग 90 लोगों को कैंसर है। पंजाब के मालवा बेल्ट में ये स्थिति और खतरनाक हो जाती है। मालवा के मुक्तसर जिले में एक लाख की आबादी में से 136 लोगों को कैंसर होता है। फरीदकोट, भटिंडा और फिरोजपुर जिले भी इस आंकड़े के आसा पास ही हैं। पंजाब में बढ़ते कैंसर के मामलों को लेकर अलग-अलग रिसर्च हुए हैं, जिनमें रासायनिक खेती, अत्यधिक शराब का सेवन, पीने के पानी में फ्लोराइड, वायु प्रदूषण जैसे कारकों को जिम्मेदार माना जाता है।
इन महिलाओं को जैविक खेती के लिए गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) 'खेती विराl मिशन' ने प्रेरित किया है। साथ ही इन्हें बिना डीएपी, यूरिया और कीटनाशक, खरपतवार नाशकों के खेती करने के लिए प्रशिक्षित भी किया। खेती विराट मिशन से जुड़ीं संतोष सक्सेना बताती हैं, ''2011 में हमने फरीदकोट के 4 शुरुआत की। उस वक्त जब किसानों से जैविक खेती की बात करते तो वो हमारी बात सुनते ही नहीं थे। किसानों का कहना होता कि अगर वो रासायन का इस्तेमाल नहीं करेंगे तो उनकी फसल अच्छी नहीं होगी। फिर हमने महिलाओं से बात की। उन्हें बताया कि कैसे रासायनिक खेती उनके परिवार, उनके बच्चों के लिए हानिकारक है। इसके बाद कुछ महिलाएं आगे आईं और किचन गार्डनिंग करने लगीं। इनकी देखा देखी और भी लोग आए और इस अभियान में जुड़ गए।''
''पंजाब के तीन जिले (बरनाला, फरीदकोट, मुक्तसर) के 40 गांव की 4 हजार महिलाएं किचन गार्डनिंग कर रही हैं।'' - संतोष सक्सेना (खेती विरासत मिशन की जिला इंचार्ज)
संतोष बताती हैं, ''हमारे साथ ऐसी महिलाएं ज्यादा जुड़ी हैं जिनके परिवार में कम जमीन है। ऐसे में उनके किचन गार्डन से सब्जियों भी उग रही हैं और सब्जियों पर महीने में होने वाला खर्च भी नहीं हो रहा। कई परिवार इन सब्जियों को बेचकर महीने में चार से पांच हजार तक की कमाई भी कर ले रहे हैं।''
सामाजिक बदलाव भी, पंजाब में फिर महिलाएं बनी खेती का अहम हिस्सा
इस अभियान पर खेती विरासत मिशन से जुड़ी रूपसी गर्ग ने बताया, ''ये एक तरह का सामाजिक बदलाव भी है। पंजाब में महिलाएं खेती से बाहर हो गई थीं। इस अभियान के बाद महिलाएं फिर से खेती में भागीदार हो रही हैं। इनसे उन्हें सम्मान भी मिल रहा है और कई महिलाओं को आर्थिक मजबूती भी मिली है। वहीं, कई महिलाओं ने बताया कि उनकी सेहत पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। कई लोगों को गैस की बीमारी से छुटकारा मिला है तो कई लोगों को जोड़ों के दर्द से राहत मिली है।''
पंजाब का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 50.36 लाख हेक्टेयर है। इसमें से तकरीबन 42.68 लाख हेक्टेयर क्षेत्र खेती के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हरित क्रांति के बाद से पंजाब में पेस्टीसाइड और यूरिया का जमकर इस्तेमाल किया गया। इस वजह से उपज तो बढ़ी, लेकिन लोगों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ा। जानकार लोगों का मानना है कि पंजाब की बिगड़ रही इसी सेहत को ठीक करने की ओर जैविक खेती कर रही इन महिलाओं का एक छोटा सा लेकिन मजबूत कदम है।
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