विश्व रेडियो दिवसः आज भी लोगों के दिलों में धड़कता है रेडियो

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विश्व रेडियो दिवसः आज भी लोगों के दिलों में धड़कता है रेडियो

लखनऊ। विश्व रेडियो दिवस 13 फरवरी को हर साल मनाया जाता है। विश्व रेडियो दिवस मनाने के पीछे यूनेस्को का यह उद्देश्य था कि दुनिया के प्रमुख रेडियो प्रसारकों, स्थानीय रेडियो स्टेशनों और सारी दुनिया के रेडियो-श्रोताओं को एक ही मंच पर लाया जा सके। विश्वस्तर पर रेडियो दिवस मनाने का फैसला युनेस्को द्वारा 2011 में लिया गया और यह तय हुआ कि 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाया जाएगा।

रेडियो का इतिहास

सबसे पहले रेडियो का प्रसारण 24 दिसंबर 1906 को कनाडाई वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडेन के अगुवाई में हुआ। लेकिन वर्ष 1900 में ही भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु ने रेडियो पर परीक्षण की शुरुआत कर दी थी। दुनिया का पहला रेडियो स्टेशन ली द फोरेस्ट ने न्यूयॉर्क में 1918 में शुरु किया था।

प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में रेडियो का योगदान

रेडियो का प्रथम विश्व युद्ध में प्रयोग सिर्फ नौसेना तक ही सीमित था और युद्ध के बाद गैर फौजी लोगों के लिए रेडियो निषिद्ध कर दिया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध में रेडियो का उपयोग सैनिकों के लोकेशन ट्रैकिंग के लिए किया जाने लगा जिससे सैनिकों को एक जगह से दूसरे जगह जाने में आसानी होती थी। युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार ने यह ऐलान कियान कि सभी ट्रांसमीटर जमा किए जाएं और बाद में ब्रिटिश हुकुमत ने सभी रेडियो लाइसेंस रद्द कर दिए।

भारत में रेडियो का इतिहास

भारत में 1927 तक ढेरों रेडियो क्लबों की स्थापना हो चुकी थी लेकिन उससे पहले भी अनधिकृत रुप से बंबई, कलकत्ता, लाहौर और मद्रास में रेडियो प्रसारण किया जा रहा था। वर्ष 1936 में इम्पोरियल रेडियो ऑफ इंडिया की शुरुआत हुई जो आगे चलकर ऑल इंडिया रेडियो के नाम प्रख्यात हुआ।

प्रिंसिपल नरीमन और भारत की आजादी

नरीमन प्रिंटर आजादी के समय भायखला के बॉम्बे टेक्निकल इंस्टिट्यूट के प्रिंसिपल थे। नरीमन को रेडियो इंजिनियरिंग की अच्छी समझ थी। उन दिनों जब ब्रिटिश हुकुमत से फैसला हुआ कि सभी लोग अपने-अपने ट्रांसमीटर अतिशीघ्र जमा कर दें तो नरीमन ने अपने ट्रांसमीटर के पुरजे-पुरजे अलग करके अलग-अलग जगहों पर छुपा दिए। उन्हीं दिनों द्वितीय विश्व युद्ध और भारत छोड़ो आंदोलन दोनों ही तेजी से चल रहे था। महात्मा गांधी को गिरफ्तार भी कर लिया गया था। कई नेताओं के आग्रह पर नरीमन प्रिंटर ने कुछ लोगों के मदद से रेडियो प्रसारण किया। भारत छोड़ो आंदोलन का आगाज भी इसी रेडियो स्टेशन से हुआ था।

रेडियो का बदलता स्वरुप

रेडियो साहित्यिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, समाजिक, युवा, बाल एवं महिला तथा कृषि एवं पर्यावरण संबंधी प्रस्तुतियों के लिए बहुत खास है लेकिन समय के साथ टेलीविजन के प्रवेश से रेडियों के स्रोताओं की संख्या में कमी हुई। रेडियो का एफएम में बदलाव से एकबार फिर लोगों का जुड़ाव रेडियो से बहुत तेजी से हुआ है।

रेडियो की मदद से आप दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। जिन लोगों को पढ़ना-लिखना नहीं आता, वह भी रेडियो सुनकर सारी जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं। रेडियो सम्पर्क-साधन की भूमिका भी निभाता है और लोगों को सावधान और सतर्क भी करता है। आज हर शहर में नए-नए एफएम चैनल चल रहे हैं जिससे लोगों को लगातार रेडियो से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

(यह स्टोरी गांव कनेक्शन के लिए अमित सिंह ने की है)

             

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