भारत और चीन में मजबूत साझेदारी विश्व के लिए जरूरी: विश्व मुद्रा कोष 

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   28 April 2017 1:58 PM GMT

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भारत और चीन में मजबूत साझेदारी विश्व के लिए जरूरी: विश्व मुद्रा कोष अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष।

वाशिंगटन (भाषा)। भारत और चीन के बीच मजबूत साझेदारी को विश्व के लिए अहम बताते हुए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि व्यापार के लिए खुलापन बनाए रखना बहुत अहम है, खासतौर पर एशिया के लिए।

आईएमएफ के उप प्रबंधन निदेशक ताओ झांग ने एक विशेष साक्षात्कार में कहा, ‘‘वैश्विक सहयोग और सही नीतियां अपनाकर मजबूत, सतत, संतुलित और समावेशी वृद्धि हासिल की जा सकती है। इस समय भारत और चीन को वैश्विक वृद्धि के आधे हिस्से का श्रेय जाता है, ऐसे में इन दोनों बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच एक मजबूत साझेदारी बेहद अहम है, यह साझेदारी इन देशों की जनता के लिए और विश्व के लिए अहम है।''

झांग ने कहा कि अच्छी तरह से लागू किए गए व्यापार समझौते सभी संबंधित पक्षों की आर्थिक समृद्धि में योगदान दे सकते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘आईएमएफ ने हमेशा से मुक्त व्यापार प्रणाली का समर्थन किया है क्योंकि व्यापार वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास का एक ईंजन रहा है।'' उन्होंने कहा, ‘‘निष्पक्ष नियमों के तहत किए जाने वाले मुक्त व्यापार का उद्देश्य एक साझा उद्देश्य है।''

जी-20 के तहत चीन, भारत और अन्य देशों ने हमारी अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने में व्यापार के योगदान को प्रबल बनाने की प्रतिबद्धता जताई है।

झांग ने कहा कि आर्थिक एकीकरण खासतौर पर एशिया के लिए वैश्विक आर्थिक विकास, गरीबी उन्मूलन और कल्याणकारी लाभों का एक अहम स्रोत रहा है। फिर भी कई बार एकीकरण और तकनीकी बदलाव के साथ कुछ समूहों को अपना स्थान बदलना पड़ता है। संकट के बाद उससे उबरने की कार्रवाई में धीमेपन से इसमें इजाफा होता आया है।

वैश्विक स्तर पर, खासतौर पर विकसित विश्व में संरक्षणवाद के बढ़ने के बारे में सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की अपने देश आधारित नीतियां व्यापार पर अत्यधिक निर्भर एशिया को प्रभावित कर सकती हैं।''

उन्होंने कहा, ‘‘व्यापार में खुलापन बनाए रखना, खासतौर पर एशिया के लिए, बहुत अहम है।'' उन्होंने कहा कि इसी के साथ व्यापार से मिलने लाभों को व्यापक तौर पर साझा करना और सामंजस्य बैठाने की नीति लागू करने तथा लागत के बोझ से दबे लोगों की मदद करना अहम है।

कर्मचारी सक्रिय श्रम बाजार नीतियों एवं शिक्षा के जरिए अपनी मदद कर पाने में सक्षम होने चाहिए। अधिक कमजोर समूहों के लिए राजकोषीय नीतियां लागू की जा सकती हैं, ऋण तक व्यापक पहुंच भी मददगार हो सकती है।

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