विश्व एड्स दिवस : "कुत्तों से भी बदतर बर्ताव किया जाता था हमारे साथ"
"कुत्तों से भी बदतर बर्ताव किया जाता था हमारे साथ। बिस्तर पर गद्दे न होना तो आम बात थी, उस पर एक लेबल लगा दिया जाता था 'एचआईवी पॉज़िटिव' का।"
Jigyasa Mishra 1 Dec 2018 7:51 AM GMT
लखनऊ। "अच्छा! एक तारीख आने वाली है तो आप भी आ गए? पूरे साल तो झांकने भी नहीं आता कोई," अमित (बदला हुआ नाम) व्यंग्य कसते हुए बोलते हैं। अमित एचआईवी पॉज़िटिव हैं और इस बात से खींझे हुए हैं कि पत्रकार उनसे उनका हाल जानने सिर्फ़ एड्स दिवस के आसपास ही क्यों आते हैं।
कई वर्षों से एड्स से लड़ते हुए अमित ने कई और सामाजिक बीमारियों का सामना किया है।
"वर्ष 2001 में जब मुझे अपनी बीमारी के बारे में पता चला था तो दवाएं और इलाज शुरू कर दी थी मैंने लेकिन वर्ष 2005 में अस्पताल में एडमिट होना पड़ा था। कुत्तों से भी बद्तर बर्ताव किया जाता था हमारे साथ। बिस्तर पर गद्दे न होना तो आम बात थी, उस पर एक लेबल लगा दिया जाता था 'एचआईवी पॉज़िटिव' का।"
भारत में एड्स का पहला मामला वर्ष 1986 में सामने आया था। यूएन एड्स रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 में भारत में 80 000 नए एचआईवी संक्रमण और 62 000 एड्स से संबंधित मौतें थीं। वर्ष 2016 में एचआईवी के साथ रहने वाले 2100 लाख लोग थे, जिनमें से 49% एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी तक पहुंच रहे थे।
इन अनुभवों को बताते हुए अमित की आवाज़ में तेज़ी आ गई और गला भर आया। उनकी पत्नी हाथ दबाकर शांत रहने का इशारा करती हैं। मन में टीस की तरह चुभ रही होंगी शायद ये बातें। "अभी भी आप जाइए यदि सैंपल टेस्टिंग के लिए तो एड्स पेशेंट के सैंपल तो हाथ में नहीं लेते। पर्ची पकड़ाकर बोलते हैं, "ये लो लगा कर इधर रखो दो। ये अगर अस्पताल का हाल है तो बाकी लोगों का आप समझ ही सकते हैं" अमित ने आगे बताया।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2017 में 21.4 लाख लोग एचआईवी से ग्रस्त थे। हालांकि रिपोर्ट में भी बताया गया है कि मामलों में थोड़ी गिरावट आयी है। नाको ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि एड्स नियंत्रण को लेकर आत्मसंतोष के लिए कोई जगह नहीं रखी गई है, क्योंकि यह देश वर्ष 2030 तक 'एड्स का खात्मा' के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए आगे बढ़ चुका है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में भारत में एचआईवी पीडि़त 21.40 लाख लोगों (पीएलएचआईवी) में वयस्क पीडि़तों की संख्या 0.22 फीसदी थी।
अमित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी से अपना इलाज करते वक़्त नीलिमा (अमित की पत्नी का बदला हुआ नाम) से मिले जो खुद एड्स पीड़ित थीं और इलाज के लिए आया करती थी और हॉस्पिटल के ही मैरिज रजिस्ट्रेशन के ज़रिये दोनों का विवाह हुआ।
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मैरिज रेजिस्ट्रेशन किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) के लिए रेजिस्टर्ड एड्स रोगियों में जो विवाह के लिए इक्षुक होते है उनके नाम ' मैरिज रेजिस्ट्रेशन' के लिए लिख लिए जाते हैं फिर जब भी कोई मैच या जोड़ी मिलती है तो उनका विवाह करवाया जाता है। "हमने आखिरी शादी 2017 में करवाई थी और आज तक जितनी भी शादियां हमारे ज़रिये हुई हैं सब सफ़ल हैं," डॉक्टर रेड्डी बताते हैं। |
नीलिमा के पहले पति ने उनकी बीमारी जानने के बाद तलाक दे दिया था और वह अपने पिता के साथ रहती थी जब वो अमित से मिलीं। "हम करीबन छह साल से साथ हैं और खुश हैं। हम एक दूसरे के साथ तब भी होते हैं जब और कोई नहीं होता।" नीलीमा बताती हैं।
क्या है एचआईवी और एड्स? "एचआईवी यानी ह्यूमन इम्म्यूनो वायरस जब किसी शरीर में प्रवेश करता है तो वह एड्स यानी अक्वायर्ड इम्म्युनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम नामक बीमारी से ग्रसित हो जाता है। उस व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम हो जाती है जिसके फलस्वरुप कई तरह के लक्षण सामने आने लगते हैं, जैसे दुबले होने लगना, कमजोरी लगना। कई तरह के इन्फेक्शन होने लगते हैं, कुछ ऐसे फेफड़े के इन्फेक्शन होने लगते हैं जो कि एक आम व्यक्ति को नहीं होते हैं, बार-बार दस्त आना और मुंह में छाले पड़ना इसके लक्षण होते हैं," किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मेडिसिन विभाग के सहायक प्रो. डी. हिमांशु रेड्डी ने बताया। |
एड्स और भ्रांतियां--
"एड्स ऐसी बीमारी है, जिसको लेकर लोगों में कई तरह की भ्रांतियां रहती हैं जैसे कि इसके साथ जीवित नहीं रह सकते या छूने या साथ खाने-पीने से फैलता है। लेकिन अब ऐसा नहीं है दवाई के द्वारा भी एक एड्स पीड़ित व्यक्ति सामन्य आदमी के जैसी जिन्दगी जी सकता है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मेडिसिन विभाग के सहायक प्रो. डी. हिमांशु रेड्डी ने बताया। वो आगे बताते हैं "एचआईवी एक वायरस के कारण होता है। ये वायरस हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को घटा देता है। जब ये वायरस शरीर में (ख़ून या वीर्य के ज़रिये) प्रवेश कर जाता है तो व्यक्ति एचआईवी से ग्रसित हो गया है। शरीर में प्रवेश के बाद ये लगभग 10 वर्षों तक डीएक्टिव या शांत रहकर रोगों से लड़ने की क्षमता या इम्म्यूनिटी को बहुत कम कर देता है जिस वजह से व्यक्ति कई तरह की बीमारियों और इंफेक्शन से ग्रसित हो जाता है जो कि एक आम व्यक्ति को नहीं हो सकते हैं। तब हम कहते हैं इस व्यक्ति को एड्स हो गया है।"
"इतने सालों में हमने कभी बच्चों के बारे में सोचा ही नहीं। ज़रुरत ही नहीं महसूस हुई। अपनी ज़िंदगी का तो भरोसा नहीं, खुशनसीबी से एक साथ मिला है वही काफ़ी है। एक नयी ज़िन्दगी को बर्बाद करने का खतरा क्यों लें फ़िर!" अमित बताते हैं।
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वर्ष 2017 में एचआईवी संक्रमण से लगभग 69,11,000 लोगों की एड्स से संबंधित बीमारियों से मौत हुई। इस दौरान मां से बच्चों में एचआईवी के संक्रमण को रोकने के लिए 22,675 माताओं को एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) की जरूरत पड़ी।
भारत में एचआईवी महामारी के स्वरूप को लेकर एचआईवी आकलन रिपोर्ट वर्ष 2017 पिछले संस्करण का समर्थन करता है, मतलब राष्ट्रीय स्तर पर इसकी गति कम रही, लेकिन देश के कुछ भौगोलिक क्षेत्रों और कुछ खास समुदायों में यह महामारी बढ़ी है। रिपोर्ट के अनुसार हाल के वर्षों की तुलना में एचआईवी संक्रमण के नये मामलों की गति में कमी आई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 1995 में एड्स महामारी की अधिकता की तुलना में कार्यक्रम के प्रभाव में इसके संक्रमण में 80 फीसदी से अधिक की कमी आई है। इसी तरह वर्ष 2005 में एड्स से संबंधित मौत की अधिकता की तुलना में 71 फीसदी की कमी आई है। यूएन-एड्स वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार एड्स के नये संक्रमण और एड्स से संबंधित पूरी दुनिया में होने वाली मौतों में 47 और 51 फीसदी तक कमी आई है।
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