ग्राइंडर, ड्रिलर, कटर हैं इनके खिलौने, करते हैँ कबाड़ से कलाकारी
हम सभी में गुरप्रीत जैसा ही एक कलाकार छिपा हुआ है। बस दिक्कत इतनी है कि इसे पता नहीं कि उसके आसपास जो बेकार कहलाने वाली चीजें हैं उन्हें फिर से खूबसूरत और उपयोगी आकार कैसे दिया जा सकता है।
Alok Singh Bhadouria 12 July 2018 10:44 AM GMT

न कभी हम बड़े होते हैं और न कभी खिलौनों से खेलने का शौक खत्म होता है। हां, खिलौने जरूर बदल जाते हैं। कंचे, लट्टू, चरखी, पतंग की जगह ग्राइंडर, ड्रिलर और कटर ले लेते हैं लेकिन चेहरे पर मुस्कान और दिल में दीवानगी एकदम वैसी ही रहती है। ऐसा ही कुछ है गुरप्रीत सिंह के साथ।
गुरप्रीत पंजाब के बिजली विभाग में सुपरिटेन्डिंग इंजीनियर हैं। कामकाज में दिनभर व्यस्त रहते हैं पर जब घर लौटते हैं तो वे ग्राइंडर, बर्नर, कटर जैसे औजारों के साथ खेलने में मशगूल हो जाते हैं। थकान और तनाव कहां गया पता ही नहीं चलता। लेकिन खेल-खेल में गुरप्रीत बेकार पड़ी टूटी-फूटी चीजों, बोतलों, पुराने कपड़ों, सूखी सब्जियों, टूटे ग्लास, तारों और पत्थर के टुकड़ों वगैरह से ऐसी खूबसूरत चीजें बनाते हैं कि लोग बस देखते हैं और ढेरों तारीफें करते हैं। उनकी यह सारी कलाकारी उनके फेसबुक पेज पर देखी जा सकती है।
इस शौक की शुरुआत कैसे हुई यह पूछने पर उन्होंने बताया, "चंडीगढ़ जैसे छोटे मगर ख़ूबसूरत से शहर में मेरी परवरिश हुई। उस समय ज़्यादातर मां-बाप का सपना बच्चों को इंजीनियर या डॉक्टर बनाना होता था। यह बात 1980 के दशक की शुरुआत की है। मुझे अस्पताल के नाम से ही घबराहट होती थी मगर मशीनें और औजार अच्छे लगते थे...सो हम भी बन गए इंजीनियर। बस फिर क्या...नौकरी शुरू और साथ ही जिंदगी की भागदौड़ भी।"
गुरप्रीत आगे बताते हैं, "आज लगभग 32 साल बाद पंजाब में सरकारी बिजली महकमे में तैनात हूं। पर इतने बरसों में दिल पर कई दफ़ा दस्तक हुई कि जो काम दिल से करना चाहा था वह नहीं कर पाया... या फ़िर ये हालात की मजबूरी थी। रोज़ीरोटी के लिए और रूह के लिये काम करना शायद अलग-अलग चीज़ें हैं... ख़ैर जैसे-तैसे रोज़ीरोटी के लिए नौकरी चलती रही और आत्मा की भूख मिटाने के लिए साथ-साथ कुछ छोटे-मोटे शौक़ पलते रहे। पिछले कुछ बरसों में जब बच्चे अपनी पढ़ाई के सिलसिले में घरौंदे से उड़े, तो खाली वक़्त में शौक़ के जुनून में और डूबना शुरु कर दिया।"
गांव कनेक्शन से बातचीत में गुरप्रीत कहते हैं, "इसके बाद कभी फोटोग्राफी, कभी साइकलिंग और कभी अपने खिलौनों से खेलना और अच्छा लगने लगा।" हमने पूछा, "खिलौने?" गुरप्रीत बोले, "जी...खिलौने ही मानता हूँ मैं ग्राइंडर, कटर जैसे औजारों को जो मैंने अब तक धीरे धीरे इकट्ठे कर लिए हैं। फोटोग्राफी में कुछ ग्रुप एक्ज़ीबिश्न और साइकलिंग में 'सुपर रैडेन्योर' का ख़िताब हासिल करने के बाद अब इन खिलौनो से जी बहलाना ज़्यादा अच्छा लगने लगा है।"
जब गुरप्रीत से पूछा कि सारा दिन ऑफिस में काम करने के बाद यह सब करने में थकान नहीं होती तो उन्होंने कहा, "सब कुछ भूल जाता हूं इनसे खेलते हुए...एक तरह का स्ट्रेस बस्टर भी है ये सब मेरे लिए। पुरानी और बेकार चीजें या सड़क पर पड़े छोटे-छोटे पत्थरों से जैसे इश्क सा हो गया है... बस इन्हीं से अपने खिलौनों की मदद से कुछ बनाते रहना अच्छा लगता है... कभी कुछ बन पाता है, कभी नाकामी भी हाथ लगती है। मगर एक बात जो इस जुनून को बरकरार रखे हुए है, वो रूह का सकून है जो यह सब करने से मुझे हासिल होता है।"
गुरप्रीत की फेसबुक वॉल पर उनके इस जुनून की झलक साफ दिखाई देती है।
हम सभी में गुरप्रीत जैसा ही एक कलाकार छिपा हुआ है। बस दिक्कत इतनी है कि इसे पता नहीं कि उसके आसपास जो बेकार कहलाने वाली चीजें हैं उन्हें फिर से खूबसूरत और उपयोगी आकार कैसे दिया जा सकता है। ऐसे सभी छिपे हुए कलाकारों के लिए हम अगले सप्ताह से हर एक वीकली कॉलम शुरू कर रहे हैं 'कबाड़ से कलाकारी' । इसमें गुरप्रीत सिंह अपने फोटो या विडियो के जरिए अपना हुनर हमारे साथ शेयर करेंगे।
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