फरीदाबाद के खेड़ी कला गाँव का ‘जुगाड़’

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फरीदाबाद के खेड़ी कला गाँव का ‘जुगाड़’खेड़ी कला गाँव में जुगाड़ से मिल रहा महिलाओं को रोजगार

फरीदाबाद। रेहाना छोटी सी थी जब कर्म मार्ग के इस शेल्टर होम में रहने आ गई थी। रेहाना की तरह कई बच्चे रहते हैं यहां। इनमें से कुछ बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से कमज़ोर भी हैं। रेहाना अब इन बच्चों को ट्रेनिंग देती है, उन्हें अपनी बातें कहना सिखाती हैं और उन्हें एक बड़े मिशन के लिए तैयार करती हैं। इस बड़े मिशन का नाम है जुगाड़।

कई परिवारों को चलता है गुजारा

जिस जुगाड़ की शुरुआत शेल्टर होम के बच्चों को मसरूफ़ रखने के लिए, उनके समय के कारगर इस्तेमाल के लिए हुई वो जुगाड़ आज इतना बड़ा ब्रांड बन गया है कि खेड़ी कला गांव के कई परिवारों का गुज़ारा इससे चलता है। जुगाड़ के प्रोडक्शन यूनिट में रद्दी अख़बारों और कपड़ों की कतरनों से बने बैग्स, पाउच और ऐसी ही कई छोटी-छोटी रोज़मर्रा की ज़रूरत की चीज़ें बनती हैं। जिस प्रोडक्शन यूनिट की शुरुआत दो लोगों ने मुट्ठी भर बच्चों के साथ की थी, उस यूनिट के ज़रिए अब सालाना 55 से 60 लाख रुपए का सामान बनाकर देश-विदेश के बाज़ारों में भेजा जाता है।

यूरोप के देशों में जा रहा है सामान

पिछले कई साल से जुगाड़ से जुड़ी गांव की महिलाओं को इस बात का गुमान है कि वे अब अपने पैरों पर खड़ी हैं और उनका बनाया सामान अब यूरोप के कई देशों में जा रहा है। जुगाड़ के साथ काम करके हर महिला महीने में सात से आठ हजार तक कमा लेती है। शेल्टर होम के 40 बच्चों के लिए जुगाड़ उनकी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा है। यहां रहने वाले बड़े बच्चे कटिंग, सिलाई और बैग्स बनाने का काम तो सिखते ही हैं, जुगाड़ नाम के इस सोशल बिज़नेस का मुनाफ़ा भी वापस शेल्टर होम में रहने वाले छोटे बच्चों की देखभाल में और उनकी स्कूल की फ़ीस देने में लगा दिया जाता है। ये जुगाड़ की ही देन है कि शेल्टर होम से रेहाना जैसे मज़बूत और हुनरमंद बच्चे निकलते हैं और वापस यहीं आकर छोटे बच्चों की नई पीढ़ी को सहारा देने का काम करने लगते हैं।

    

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