एक लड़की की साध्वी बनने की कहानी

Divendra SinghDivendra Singh   21 May 2019 5:23 PM GMT

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आज इनको सभी मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्या गिरि के नाम से जानते हैं, लेकिन दिल्ली जैसे बड़े शहर में पढ़ने वाली देव्या गिरि क्यों बन गईं महंत ??

देव्या गिरि बताती हैं, "बाराबंकी में जवाहर लाल डिग्री कॉलेज से मैंने बीएससी की पढ़ाई की। उसके बाद दिल्ली से मैंने पैथालॅाजी की पढ़ाई की। लाइफ को सेट करने के लिए बाम्बे प्रयासरत थी तभी उस बीच भोलेनाथ के दर्शन किए फिर मेरा झुकाव इस तरफ हो गया। एकाएक घर में एक घटना हुई जिससे अंदर से मुझे लगा कि मुझे यही लाइन पकड़नी है। मैंने धर्म को, सन्यास को, इस पूरे धार्मिक वातावरण को एक धर्म के रूप मे नहीं बल्कि एक कैरियर के रूप में लिया। मान लीजिए डॉक्टर, इंजीनियर्स या अन्य क्षेत्र में जाते हैं वैसे मैंने में भी इसको एक कैरियर के रूप में लिया।"

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आज देव्या गिरि मनकामेश्वर मंदिर की पहली महंत हैं, लेकिन देव्या गिरि मुम्बई में लैब शुरू करना चाहती थीं। वो बताती हैं, "मेरा फोकस अपनी लैब को खोलने का था जिसके लिए मुझे मुम्बई जाना था। मेरा पूरा ध्यान भी उसी में था। हम सिर्फ दिल्ली से लखनऊ इसलिए आ रहे थे कि यहां की लैब देख लें, तो उसको देखने के लिए मैं बाराबंकी से लखनऊ आ रही थी की उसी बीच मंदिर दर्शन का एक प्रोग्राम बना और मैं मंदिर गई।अंदर आते ही मुझे ये नहीं लग रहा था कि ये मंदिर परिसर है। हम लोगों की जो प्रैक्टिस थी वो रेलवे अस्पताल में थी जब हम लोगों को क्लास नहीं करनी होती थी तो वहां हनुमान जी का मंदिर है तब हम लोग वहां चले जाते थे। कनाट प्लेस में हनुमान जी मंदिर और फिर वैष्णों देवी मुझे इनका ही अनुभव था।"

लेकिन मंदिर में पहुंचना उनके जीवन के लिए बदलाव की तरह था। इस बारे में वो आगे कहती हैं, " तो ये मेरा पहला आगमन था और दो से तीन बार यहां आने के बाद कभी गर्भगृह तक नहीं गए थे, कभी बंद होता था कभी आरती का समय होता था। जिस दिन घटनाक्रम था उस दिन मैं अंदर गई। पुजारी जी थे, वो फू्ल निकालने के लिए दूसरे गेट से निकले हम अलग गेट से अंदर गए। जो गर्भ ग्रह का शिवलिंग है वहां मुझे नहीं पाता था कैसे क्या करना है तो मैंने शिवलिंग पर दोनो हाथ रखकर झुककर प्रणाम किया। जैसे ही मैंने दोनों हाथों से शिवलिंग को टच किया और सर को रखा जैसे लगा शिवलिंग नीचे से गायब हो गया। अंदर से लगा कि हो सकता है भय हो जो गायब हो गया, मेरा शरीर कापने लगा।"

इस बात से देव्या गिरि डर गईं की आखिर शिव लिंग गया कहाँ, उस घटना के बारे में उन्होंने बताया, "मैं डर गई थी पुजारी जी वापस आऐंगे और वो पूछेंगे तो हम उनसे क्या कहेंगे कि भोलेनाथ कहां गए। वहां विचित्र स्थिति थी जो शब्दों में नहीं कहा जा सकता है। न हम अपने आपको कुछ कर समझा पा रहे थे और न ही सोच पा रहे थे बस अंदर से मैंने ये प्रार्थना जरूर की, कि भोलेनाथ आप वापस आ जाओ नहीं तो ये पुजारी मुझे बहुत डाटेंगे। उसी बीच मेरी पता नहीं मुझे क्या हो रहा था। उसी बीच मुझे लगा मेरा हाथ शिवलिंग में है जैसे ही ये महसूस हुआ वैसे ही कान में आवाज पड़ी कौन है? कौन है? उस समय सलवार सूट पहन रखा था और गर्भग्रह का जाल खुला तो अन्य वस्त्रों में नहीं जाना होता है वहां सिर्फ पुजारी जाते हैं। गर्भग्रह से सीढ़ी से उतरने तक और बैठने तक मुझे लगता है कई मिनट लगे होंगे। जो शरीर था वो काम करना बंद ही किया था। मालूम नहीं पंरतु मन की ये स्थिति की जीवन का वो पढ़ाव था मुझे लगा सब छोड़ने लायक है और ऐसा मन होने लगा कि मुझे इन्हीं के पास रहना है उसके बाद का जो संघर्ष था वो थोड़ा सा मुश्किल था मगर मुझे लगता है कि मैं भाग्यवान थी। जो हमारे गुरूदेव थे महेंद्र केशव गिरि जब वो मुझे समझ पाए तो उन्होंने मुझे मंदिर में रहने दिया। मंदिर परिसर में यहां की परंपराओं में महिलाओं को दीक्षा नहीं दी जाती है। उन्होंने पहले मुझे दीक्षा दी और फिर आज्ञा दी कि मैं यहां (मंदिर) में रह सकती हूं। ये उनकी कृपा थी।

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