देसी बीजों को सरंक्षित कर रहे हैं केदार सैनी

Moinuddin ChishtyMoinuddin Chishty   11 July 2019 6:16 AM GMT

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मध्यप्रदेश। मध्यप्रदेश के रुठियाई में रहने वाले एक पर्यावरण प्रेमी केदार सैनी ने 9 नवम्बर, 2013 को देसी बीजों को सरंक्षित करने के उद्देश्य से ‛समृद्धि देसी बीज' बनाया, जिसका मुख्य उद्देश्य सभी प्रकार के देसी बीजों का संरक्षण और संवर्धन करना था। इसके चलते जरूरतमंद किसानों को कुछ मात्रा में बीज बनाने के लिए देसी बीजों का निशुल्क वितरण भी किया, उद्देश्य था कि देसी बीजों को विलुप्त होने से बचाया जा सके। बीते दिनों उनसे बात हुई, जिसका प्रमुख अंश यहां है...

-देशी बीजों की दुर्दशा का क्या कारण है?

-प्राचीन समय में किसान एक दूसरे के सहयोग से उन्नत बीजों का आदान प्रदान करते हुए कृषि कार्यों में सहयोग करते थे। कृषक महिलाएं अगले वर्ष के लिए खड़ी फसल से उन्नत बीजों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले पौधों का चुनाव बीज बनाने के लिए करती थीं, उन्हीं चुनिंदा पौधों से बीज निकाल कर मिट्टी की कोठियों में सुरक्षित भंडारण कर दिया करतीं थीं। इस प्रकार अपने आप में किसान स्वयं एक बीज उत्पादक हुआ करता था, किंतु समय के साथ साथ लोगों की आवश्यकताएं भी बढती चली गईं। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऐसे बीजों की आवश्यकता महसूस की गई जो अधिक उत्पादन दें, साथ ही कम समय में पककर तैयार हो सकें, साथ ही विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छा उत्पादन देने में समर्थ हों। अधिक उत्पादन की होड़ के चलते किसानों ने देसी बीजों से खेती करने को घाटे का सौदा समझा और इसी के चलते किसान पूरी तरह से बीजों के लिए बाजार पर आश्रित हो गए। उपरोक्त कारणों के चलते ही देसी बीजों की दुर्दशा हुई है।

संकर बीजों के मुकाबले देसी बीजों का उत्पादन अभी तक कम देखा-सुना गया है। किसान देसी बीजों से ही खेती करेंगे तो खाद्यान्न मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

-यह सही है कि संकर बीजों की अपेक्षा देसी बीजों से उत्पादन काफी कम होता है, परंतु जिस गति से जनसंख्या बढ़ रही है, उसी गति से हमें खाद्यान्न बढ़ाने की भी आवश्यकता है। यह बात सत्य है कि देसी बीजों से उत्पादित खाद्यान्न में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक रहती है और प्राकृतिक स्वाद भी रहता है। साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक रहती है। ज्यादा जरूरी बात खाद्यान्न की पूर्ति करना है, जो देसी बीजों से संभव नहीं हो सकती क्योंकि देसी बीजों की उपलब्धता न के बराबर है। यदि हम मान लें कि आम किसान देसी बीजों से खेती करना प्रारंभ कर देते हैं तो भी विश्व में खाद्यान्न की पूर्ति करना संभव नहीं।


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ऐसी स्थिति में एक भयंकर खाद्यान्न संकट पैदा होगा, भूखमरी फैल जाएगी। खाद्यान्न की पूर्ति के लिए उन्नत संकर बीजों से ही खेती कर खाद्यान्न पूर्ति करना सम्भव है, किंतु दूसरी ओर स्वास्थ्य लाभ के लिए देसी बीजों से उत्पादित खाद्यान्न भी हमारे लिए आवश्यक है।

कई किसान देसी बीज अपनाना चाहते हैं, लेकिन बीज उपलब्ध नहीं हो पाते। आपके प्रयास और सुझाव?

-मेरी निजी मुहिम 'समृद्धि देसी बीज बैंक' रुठियाई द्वारा पूरे देश में ऐसे किसानों का पता लगा कर उनसे संपर्क किया जा रहा है, जो देसी बीजों के महत्व को समझते हुए संरक्षण और संवर्धन की इच्छा रखते हैं। ऐसे ही किसानों को कुछ मात्रा में सभी प्रकार के देसी बीज उपलब्ध करवाने के लिए मैं प्रयासरत हूं। इस अभियान से वह अपने राज्य में ही देसी बीजों का उत्पादन कर अपने क्षेत्र के किसानों की मांग पर देसी बीजों की पूर्ति कर सकेंगे।

इसी क्रम में अब तक गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा के कुछ किसानों से संपर्क हुआ है। योजना बनाकर हर राज्य में देसी बीजों के उत्पादन के लिए प्रयास कर रहा हूं, जिसके चलते हर राज्य में जरूरतमंद किसानों को आसानी से देसी बीज उपलब्ध हो सकेंगे।

सभी किसानों के लिए इस संबंध में सुझाव है कि वह प्रकृति का अनुपम उपहार समझ कर देसी बीजों का संरक्षण और संवर्धन करें, जिससे उन देसी बीजों को विलुप्त होने से बचाया जा सके, क्योंकि देसी बीजों से उत्पादित फल, सब्जी, अनाज अपने आप में एक औषधि स्वरूप हैं। शरीर के रोगों से लड़ने की क्षमता भी इनमें निहित है तो भरपूर स्वाद भी है। संकर बीजों से उत्पादित फल, सब्जी, अनाज आदि में पोषक तत्वों की कमी तो है ही, साथ ही प्राकृतिक स्वाद भी नहीं है।


-देसी बीजों से फसल में पुष्पन और फलन में भी विलंब होता है। इससे बाजार में कुछ असंतुलन तो नहीं होगा?

-बात सही है कि संकर बीजों की अपेक्षा देसी बीजों से उत्पादित फसल में पुष्पन और फलन में विलंब होता है, जिसके कारण बाजार में उस फसल की मांग होने और पूर्ति नहीं होने के कारण असंतुलन हो जाएगा। इसका असर यह होगा कि उस वस्तु के दाम बढ़ जाएंगे और आम उपभोक्ताओं पर काफी प्रभाव पड़ेगा।

-आपके अनुसार देसी और संकर बीजों में क्या अंतर है?

-देसी बीज किसानों द्वारा आसानी से तैयार किए जा सकते हैं, जबकि संकर बीज कृषि वैज्ञानिकों के वर्षों के अनुसंधान कार्यों द्वारा तैयार किए जाते हैं।

-देसी बीजों से उत्पादन कम होता है, जबकि संकर बीजों से उत्पादन अधिक होता है।

-देसी बीजों से उत्पादित फसल को पकने में अधिक समय लगता है, जबकि संकर बीजों से उत्पादित फसल को पकने में कम समय लगता है।

-देसी बीजों से उत्पादित फसल (फल, फूल, अनाज) का रंग और आकार समान नहीं होता है, जबकि संकर बीजों से उत्पादित फसल (फल, फूल, अनाज) का रंग और आकार समान होता है।

-देसी बीजों से उत्पादित फसल में रोग और कीटों का प्रकोप कम होता है, जबकि संकर बीजों से उत्पादित फसल में रोग और कीटों का प्रकोप अधिक होता है।

-देसी बीजों से उत्पादित फसल की कम देखरेख करनी पड़ती है, जबकि संकर बीजों से उत्पादित फसल की देखरेख अधिक करनी पड़ती है।


-देसी बीजों से उत्पादित फसल (फल, फूल, सब्जी, अनाज) का असमान आकार और आकर्षक रंग नहीं होने से बाजार में मांग कम रहती है, जिसके कारण भाव भी नहीं मिल पाता।

-इसके विपरीत संकर बीजों से उत्पादित फसल (फल, फूल, सब्जी, अनाज) का समान आकार और आकर्षक रंग होने के कारण बाजार में मांग रहती है, जिसके कारण भाव भी अधिक मिलता है।

-देसी बीजों से उत्पादित खाद्यान्न में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक रहती है, जबकि संकर बीजों से उत्पादित खाद्यान्न में पोषक तत्वों की कमी रहती है।

-देसी बीज आसानी से उपलब्ध नहीं होते, जबकि संकर बीज आसानी से बीज की दुकानों पर उपलब्ध हो जाते हैं।

-देसी बीजों से उत्पादित फसल पर रसायनिक खाद या जैविक खाद का उपयोग किया जा सकता है, जबकि संकर बीजों से उत्पादित फसल पर केवल रसायनिक खाद का ही उपयोग किया जा सकता है। जैविक खाद के उपयोग से उचित उत्पादन संभव नहीं।

-देसी बीजों के भाव बहुत कम होते हैं, जबकि संकर बीजों के भाव (हाइब्रिड मैरी गोल्ड फ्लावर सीड्स 2500 रुपये प्रति 1000 सीड्स यानि 20 लाख रुपये प्रति किलो के लगभग) बहुत अधिक होते हैं।

-देसी बीजों से कोई भी आम किसान खेती कर सकता है, जबकि संकर बीजों से आर्थिक रूप से सक्षम किसान ही खेती कर सकता है।

-देसी बीजों का उत्पादन केवल देश के किसानों द्वारा किया जाता है, जबकि संकर बीजों का उत्पादन अधिकतर विदेशी बीज निर्माता कंपनियों द्वारा किया जा रहा है।

-देसी बीजों पर आपके शोध के बारे में बताइये।

-देसी बीजों के संरक्षण और संवर्धन कार्य में अब तक मेरे द्वारा गेहूं की 54 प्रकार की विभिन्न किस्मों के बीज सहेजे जा चुके हैं।

-इस मामले में सरकार का क्या रुझान है?

-संकर बीजों से उत्पादित खाद्यान्न में सर्वाधिक रसायनिक खाद और जहरीले कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। जिसके कारण एक तरफ कृषि लागत बढ़ रही है तो दूसरी तरफ मानव स्वास्थ पर इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल रहे हैं। लोग दूषित खाद्यान्न के उपयोग के कारण गम्भीर जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। फसलों में रसायनिक खाद और जहरीले कीटनाशकों के उपयोग से एक ओर जहां पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, वहीं दूसरी ओर जलस्रोत भी दूषित हो रहे हैं।

इसी कारण हमारी सरकार भी इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए देसी बीजों द्वारा प्राकृतिक (गौ आधारित) कृषि कराने पर विचार कर रही है। इस संबंध में पद्मश्री सुभाष पालेकर से नीति आयोग की 5 घंटे चली चर्चा भी उल्लेखनीय है।

    

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